उज्बेक योद्धा शैबानी खाँ से परास्त हो जाने के कारण समरकंद और फरगना बाबर के हाथों से निकल गए और बाबर को अपनी बहिन का विवाह शैबानी खाँ के साथ करके उसकी कैद से मुक्ति पानी पड़ी। इसके बाद लगभग तीन साल तक बाबर को पहाड़ियों में छिपकर रहना पड़ा।
एक दिन बाबर और उसके साथी पेट भरने के लिए दिखकाट नामक गांव में पहुंचे। दिखकाट गांव में बाबर की भेंट एक बुढ़िया से हुई। उस बुढ़िया ने बाबर को बताया कि मेरी आयु एक सौ ग्यारह साल है तथा मैंने तैमूर लंग और उसकी सेना को समरकंद से हिन्दुस्तान पर हमला करने के लिए जाते हुए देखा था।
मेरा बाप भी तैमूर के साथ भारत गया था। जब बाबर ने बुढ़िया से पूछा कि क्या उन्हें इस गांव में कोई काम मिल सकता है तो बुढ़िया ने सलाह दी कि गांव में रोजगार तलाशने की बजाय उन्हें किसी तैमूरी बादशाह की सेना में जाकर भर्ती हो जाना चाहिए और मौका मिलने पर उनके साथ हिन्दुस्तान जाना चाहिए।
हिन्दुस्तान पर हमला करने की ताकत केवल तैमूरी बादशाहों में है। वहाँ इतना सोना-चाँदी और हीरे-जवाहरात हैं कि तुम्हारी सारी परेशानी दूर हो जाएगी। बुढ़िया की बातें सुनकर बाबर के मन में उत्साह का संचार हुआ। आखिर वह भी एक तैमूरी बादशाह था! उसने कुछ सैनिक एकत्रित करने तथा हिन्दुस्तान जाने का निर्णय लिया।
बाबर ने अपने संस्मरणों में लिखा है- ‘जब मैं 22 साल का हुआ तो ईलाक-यीलाक की घाटी में पहुंचा जो हिसार की चारागाह के पास है। मेरे पास इस समय कुछ ही सैनिक थे जिनकी संख्या 200 से 300 के बीच थी। वे बड़ी आशा से मेरे साथ रहते थे। उनके हाथों में डण्डे, पैरों में चारूक तथा बदन पर चापान थे।’ चारूक पशुओं के मोटे चमड़े को कहा जाता था जिसे पैरों में जूतों की तरह बांध लिया जाता था और चापान ऊनी नमदे से बने कोट को कहते थे।
बाबर ने लिखा है- ‘हम लोग इतनी दीनता को प्राप्त हो गए थे कि हमारे पास केवल दो ही खेमे बचे थे। मेरा खेमा मेरी माता के लिए लगाया जाता था और दूसरा खेमा मेरे लिए लगाया जाता था। मेरे बैठने के लिए प्रत्येक पड़ाव पर अलाचूक लगाया जाता था। अलाचूक ऊनी नमदे जैसा होता था जिसे तह करके रख दिया जाता था ताकि बैठने के काम आ सके।’
बाबर ने यहीं पर अपने मुँह पर पहली बार उस्तरा फिरवाया। तुर्की कबीलों में यह प्रथा थी कि जब कोई नौजवान पहली बार अपने मुँह पर उस्तरा फिरवाता था तो उस अवसर पर बड़ा समारोह किया जाता था किंतु बाबर की दशा इतनी शोचनीय थी कि किसी प्रकार के समारोह एवं उत्सव के आयोजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
बाबर चाहता था कि कुंदूज का शासक खुसरोशाह बाबर की सहायता करे ताकि बाबर उज्बेकों पर आक्रमण करके अपना राज्य पुनः प्राप्त कर सके किंतु खुसरोशाह ने बाबर की कोई सहायता नहीं की। इससे बाबर को बड़ी निराशा हुई। एक बार बाबर ने जलालाबाद पर आक्रमण किया जो उस समय शैबानी खाँ के राज्य में जा चुका था और अब अफगानिस्तान में है। जलालाबाद में बाबर को सफलता नहीं मिली और उसे फिर से पहाड़ियों में शरण लेनी पड़ी। बाबर प्रयास तो बहुत करता था किंतु भाग्य के आगे बेबस था। अन्ततः भाग्य ने बाबर की फिर से सुधि ली।
एक दिन बाबर अपने मुट्ठी-भर साथियों के साथ पहाड़ियों में घूम रहा था। उसकी दृष्टि पहाड़ियों में छिपे हुए कुछ सैनिकों पर पड़ी। जब बाबर ने उनसे पूछताछ की तो उन सैनिकों ने बताया- ‘शैबानी खाँ ने कुन्दूज के बादशाह खुसरोशाह को हराकर उसके राज्य पर अधिकार कर लिया है। हम बादशाह खुसरोशाह के सैनिक हैं तथा शैबानी खाँ की सेना के हाथों से बचने के लिए पहाड़ियों में छिपे हुए हैं। हम यहाँ आपसे मिलने ही आए हैं।’
खुसरोशाह भी बाबर की ही तरह तैमूरी बादशाह था। बाबर ने उन सैनिकों को अपने साथ आने आने का निमंत्रण दिया। उन सैनिकों की संख्या चार हजार थी। जब खुसरोशाह को ज्ञात हुआ कि उसके सैनिक बाबर के पास चले गए हैं तो उसने अपने जवांई याकूब को दूत बनाकर बाबर के पास भेजा। याकूब ने बाबर से कहा कि बादशाह खुसरोशाह आपसे भेंट करने के लिए आना चाहते हैं। यदि आप उनके प्राण न लें तथा उनकी सम्पत्ति को हानि नहीं पहुंचाने का वचन दें तभी बादशाह खुसरोशाह आपकी सेवा में उपस्थित हो सकते हैं।
बाबर ने खुसरोशाह के दूत को वचन दिया कि तुम्हारे बादशाह को किसी तरह की हानि नहीं पहुंचाई जाएगी, वे मुझसे मिलने के लिए आ सकते हैं। जब खुसरोशाह बाबर से मिलने आया तो बाबर के सैनिकों ने उसे चुनार के एक पेड़ के नीचे बैठाया। अब यही बाबर का दरबार था।
बाबर ने लिखा है- ‘खुसरोशाह बड़े वैभव और बहुत से सैनिकों के साथ मुझसे मिलने आया। नियम तथा प्रथा के अनुसार वह दूरी पर ही घोड़े से उतर पड़ा तथा मेरे निकट आकर तीन बार घुटनों के सहारे झुका। मुझसे कुशल-क्षेम पूछने के बाद वह एक बार फिर घुटनों पर झुका। जब वह उपहार प्रस्तुत कर चुका तो फिर घुटनों के सहारे झुका। वह आलसी वृद्ध 25-26 बार झुकने के कारण थक गया और जब गिरने ही वाला था तब मैंने उसे बैठने के लिए कहा। उसका इतने वर्षों पुराना राज्य छिन जाने से और सेना के नष्ट हो जाने से वह पूरी तरह निराश और हताश था। कायर और नमकहराम तो वह था ही, उसकी बातें भी नीरस थीं।’
बाबर ने लिखा है- ‘एक समय था जब खुसरोशाह के अधीन 20-30 हजार सैनिक हुआ करते थे, महमूद मिर्जा का सम्पूर्ण राज्य उसके अधीन था जो कहलूगा जिसे लोहे का फाटक कहते थे, से लेकर हिन्दूकुश पर्वत तक फैला हुआ था। आज वह मेरे सामने बैठकर अपमानित हो रहा था। एक-दो घड़ी की वार्त्ता के बाद मैं उठ खड़ा हुआ तथा घोड़े पर सवार हो गया। उस समय भी खुसरोशाह तीन बार घुटनों के सहारे झुका।’
खुसरोशाह भी अपने खेमे में चला गया। उसे आशा थी कि बाबर का साथ मिल जाने से वह फिर से अपना राज्य प्राप्त कर लेगा किंतु खुसरोशाह को इस भेंट से लाभ के स्थान पर हानि हुई। खुसरोशाह के बचे-खुचे सैनिकों, अमीरों और बेगों ने उसी शाम तक खुसरोशाह को छोड़ दिया और वे बाबर की सेवा में आ गए।
यद्यपि आज न तो बाबर कहीं का बादशाह था और न खुसरोशाह किंतु एक समय था जब बाबर समरकंद का शासक था और खुसरोशाह कुंदूज का। संभवतः इस कारण मर्यादा में बाबर खुसरोशाह से बहुत बड़ा था। इसी कारण खुसरोशाह ने बाबर के समक्ष इतनी विनय प्रकट की थी। एक समय वह भी था जब बाबर ने खुसरोशाह से सहायता पाने के लिए कई बार दूत भेजे थे किंतु आज खुसरोशाह बाबर से सहायता लेने आया था। समय-समय का फेर है, अब बाबर को खुसरोशाह में कोई रुचि नहीं थी।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता