Saturday, July 27, 2024
spot_img

ब्रिटिश नौकरशाही के गर्भ से मुस्लिम लीग का जन्म

ई.1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। तब से वह हिन्दुओं एवं मुसलमानों का संयुक्त रूप से नेतृत्व करती रही थी किंतु जब ई.1906 में वायसरॉय लॉर्ड मिण्टो ने मुस्लिम नेताओं का अलग से शिमला-सम्मेलन आयोजित करके उन्हें अपने अधिकारों के लिए कांग्रेस से अलग होकर लड़ने का मंत्र दिया, तब से भारतीय मुसलमानों में अपने लिए अलग पार्टी बनाने का विचार आकार लेने लगा।

मुस्लिम लीग की स्थापना

30 दिसम्बर 1906 को ढाका के नवाब सलीमउल्ला खाँ के निमंत्रण पर ढाका में, अलीगढ़ की मोहम्मडन एज्युकेशनल कॉन्फ्रेन्स की वार्षिक सभा आयोजित की गई। इस सभा में सलीमुल्ला ने मुसलमानों के अलग राजनीतिक संगठन की योजना प्रस्तुत की तथा कहा कि इसका उद्देश्य ब्रिटिश सरकार का समर्थन करना, मुसलमानों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना, कांग्रेस के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना और मुस्लिम नौजवानों को राजनीतिक मंच प्रदान करना है ताकि उन्हें भारतीय कांग्रेस से दूर रखा जा सके।

सलीमउल्ला ने इस संस्था का नाम मुस्लिम ऑल इण्डिया कान्फेडरेसी सुझाया। इस प्रस्ताव को उसी दिन स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार 30 दिसम्बर 1906 को अखिल भारतीय मुस्लिम संगठन अस्तित्व में आया जिसका नाम ऑल इंडिया मुस्लिम लीग रखा गया। नवाब विकुर-उल-मुल्क को इसका सभापति चुना गया। लीग के संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए समिति गठित की गई जिसके संयुक्त सचिव मोहिसिन-उल-मुल्क तथा विकुर-उल-मुल्क नियुक्त किये गये।

ई.1907 में, कराची में लीग का वार्षिक अधिवेशन आयोजित हुआ जिसमें लीग का संविधान स्वीकार किया गया। इस संविधान में मुस्लिम लीग के निम्नलिखित लक्ष्य और उद्देश्य निर्धारित किये गये-

(क.) भारतीय मुसलमानों में ब्रिटिश सरकार के प्रति निष्ठा की भावना पैदा करना और किसी भी योजना के सम्बन्ध में मुसलमानों के प्रति होने वाली सरकारी कुधारणाओं को दूर करना।

(ख.) भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक तथा अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उनकी आवश्यकताओं तथा उच्च आकांक्षाओं को संयत भाषा में सरकार के समक्ष रखना।

(ग.) जहाँ तक हो सके, उक्त उद्देश्यों को हानि पहुँचाये बिना, मुसलमानों तथा भारत के अन्य समाजों में मित्रतापूर्ण भावना उत्पन्न करना।

मुस्लिम लीग के संविधान में स्थायी अध्यक्ष की व्यवस्था की गई और खोजा सम्प्रदाय के धार्मिक नेता प्रिन्स आगा खाँ को अध्यक्ष बनाया गया। आगा खाँ के पास पहले से ही इतने काम थे कि उन्हें लीग के अध्यक्ष के कार्यालय का दैनिक कार्य देखने का समय नहीं था। इसलिए लीग के हर वार्षिक अधिवेशन में एक कार्यकारी अध्यक्ष चुना जाता था। लीगी नेता, भारत के मुसलमानों में अपने देश के प्रति नहीं, अपितु अँग्रेजों के प्रति वफादारी की भावना बढ़ाना चाहते थे। वे भारत के अन्य निवासियों के साथ नहीं अपितु अँग्रेजों के साथ एकता स्थापित करना चाहते थे।

लीग के सचिव जकाउल्ला ने स्पष्ट कहा- ‘कांग्रेस के साथ हमारी एकता सम्भव नहीं हो सकती क्योंकि हमारे और कांग्रेसियों के उद्देश्य एक नहीं। वे प्रतिनिधि सरकार चाहते हैं, मुसलमानों के लिए जिसका मतलब मौत है। वे सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षा चाहते हैं और इसका मतलब होगा कि मुसलमान सरकारी नौकरियों से हाथ धो बैठेंगे। इसलिए हम लोगों को (हिन्दुओं के साथ) राजनीतिक एकता के नजदीक जाने की आवश्यकता नहीं।’

ई.1908 में सर अली इमाम, लीग का कार्यकारी अध्यक्ष हुआ। उसने कांग्रेस की कटु आलोचना करते हुए कहा- ‘जब तक कांग्रेस के नेता इस तरह की व्यावहारिक नीति नहीं अपनाते, तब तक ऑल इंण्डिया मुस्लिम लीग को अपना पवित्र कर्त्तव्य निभाना है। यह कर्त्तव्य है- मुस्लिम समुदाय को राजनीतिक भूल करने से रोकना अर्थात् उसे ऐसे संगठन में मिलने से रोकना जो लॉर्ड मार्ले के शब्दों में, चन्द्रमा को पकड़ने के लिए चिल्ला रहा है।’

इसी प्रकार अलीगढ़ में विद्यार्थियों की एक सभा में नवाब विकुर-उल-मुल्क ने कहा- ‘अगर हिन्दुस्तान से ब्रिटिश हुकूमत खत्म हो गई तो उस पर हिन्दू राज करेंगे और तब हमारी जिन्दगी, जायदाद और इज्जत पर सदैव खतरा मंडराया करेगा। इस खतरे से बचने के लिए मुसलमानों के लिए एकमात्र उपाय है- ब्रिटिश हुकूमत जरूर बनी रहे। मुसलमान अपने को ब्रिटिश फौज समझें और ब्रिटिश ताज के लिए अपना खून बहाने और अपनी जिन्दगी कुर्बान कर देने के लिए तैयार रहें

…….आपका नाम ब्रिटिश हिन्दुस्तान की तवारीख में सुनहरे हर्फों में लिखा जायेगा। आने वाली पीढ़ियां आपका अहसान मानेंगी।’

मुस्लिम लीगी नेताओं के इन वक्तव्यों को मुसलमान युवाओं के बीच अपार लोकप्रियता मिली। इस प्रकार सर सैयद अहमद जीवन भर प्रयास करके जो सफलता प्राप्त नहीं कर पाए, मुस्लिम लीग ने वह सफलता प्रथम प्रयास में ही प्राप्त कर ली। लीगी नेताओं के वक्तव्यों को अंग्रेजों में प्रसन्नता के साथ और हिन्दुओं में चिंता की लकीरों के साथ देखा गया। शिक्षा एवं रोजगार से वंचित आम मुसलमान के लिए तो लीगी नेताओं के वक्तव्य मुसलमानों के दिलों में आशाओं का नवीन उजाला भरने वाले थे। मुस्लिम लीग के रूप में मुसलमानों को उनके पुराने सुनहरी दिन लौटाने वाले कई मसीहा एक साथ मिल गए थे।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source