Monday, October 14, 2024
spot_img

भारत में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा

ब्रिटिश नौकरशाही द्वारा भारत में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा

भारत में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने का काम जितना ब्रिटिश काल के मुसलमानों ने किया, उतना ही अंग्रेज नौकरशाही ने भी किया। स्वयं वायसराय तथा उसकी पत्नी के स्तर पर भारत में साम्प्रदायिकता को बढ़ावा देने का व्यापक षड़यंत्र रचा गया।

मुस्लिम नेताओं को लॉर्ड मिण्टो का निमंत्रण

जब कांग्रेस देश की आजादी की मांग करने लगी तो अँग्रेज नौकरशाहों ने मुसलमानों की चिंताओं का लाभ उठाने का निश्चय किया। वायसराय लॉर्ड मिण्टो (ई.1905-10) के निजी सचिव स्मिथ ने अलीगढ़ कॉलेज के प्रिंसिपल आर्किबाल्ड को एक पत्र लिखा जिसमें कहा गया कि- ‘यदि आगामी सुधारों के बारे में मुसलमानों का एक प्रतिनिधि मण्डल मुसलमानों के लिए अलग अधिकारों की मांग करे और इसके लिए वायसराय से मिले तो वायसराय को उनसे मिलने में प्रसन्नता होगी।’

इस निमंत्रण को पाकर अलगाववादी-मुस्लिम नेताओं की बांछें खिल गईं। 1 अक्टूबर 1906 को 36 मुस्लिम नेताओं का एक प्रतिनिधि मण्डल सर आगा खाँ के नेतृत्व में शिमला में लॉर्ड मिन्टो से मिला और उन्हें एक आवेदन पत्र दिया जिसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित मांगें की गईं-

(1) मुसलमानों को सरकारी सेवाओं में उचित अनुपात में स्थान मिले।

(2) नौकरियों में प्रतियोगी तत्त्व की समाप्ति हो।

(3) प्रत्येक उच्च न्यायालय और मुख्य न्यायालय में मुसलमानों को भी न्यायाधीश का पद मिले।

(4) नगरपालिकाओं में दोनों समुदायों को अपने-अपने प्रतिनिधि भेजने की वैसी ही सुविधा मिले, जैसी पंजाब के कुछ नगरों में है।

(5) विधान परिषद के चुनाव के लिए मुख्य मुस्लिम जमींदारों, वकीलों, व्यापारियों, अन्य महत्त्वपूर्ण हितों के प्रतिनिधियों, जिला परिषदों और नगर पालिकाओं के मुस्लिम सदस्यों तथा पांच वर्षों अथवा किसी ऐसी ही अवधि के पुराने मुसलमान स्नातकों के निर्वाचक-मण्डल बनाये जायें।

इस प्रार्थना-पत्र में इस तथ्य पर विशेष जोर दिया गया कि भविष्य में किये जाने वाले किसी संवैधानिक परिवर्तन में न केवल मुसलमानों की संख्या, वरन् उनके राजनीतिक और ऐतिहासिक महत्त्व को भी ध्यान में रखा जाये। वायसराय मिन्टो ने मुस्लिम प्रतिनिधि मण्डल के प्रार्थना-पत्र की प्रशंसा की तथा उनकी मांगों को उचित बताया।

कैसे बना था पाकिस्तान - bharatkaitihas.com
To Purchase This Book Please Click On Image.

मिण्टो ने कहा- ‘आपका यह दावा बिल्कुल उचित है कि आपके स्थान का अनुमान सिर्फ आपकी जनसंख्या के आधार पर नहीं, अपितु आपके समाज के राजनीतिक महत्त्व और उसके द्वारा की गई साम्राज्य की सेवा के आधार पर लगाया जाना चाहिए।’ मिन्टो ने यह आश्वासन भी दिया कि भावी प्रशासनिक पुनर्गठन में मुसलमानों के अधिकार और हित सुरक्षित रहेंगे।

इस प्रकार ब्रिटिश नौकरशाही ने मुसलमानों को अपने जाल में फंसाने तथा साम्प्रदायिकता की खाई को चौड़ा करने का काम किया। इस प्रतिनिधि मण्डल की उत्तेजना को देखकर अँग्रेज नौकरशाह अच्छी तरह जान गये कि वे भारत के 6.2 करोड़ मुसलमानों को राष्ट्रीय आन्दोलन से अलग करने में समर्थ हो गये हैं। इसकी पुष्टि खुद मैरी मिन्टो की डायरी से होती है। कहा जा सकता है कि अक्टूबर 1906 का मुस्लिम शिष्ट मण्डल, एक मुस्लिम राजनैतिक दल के गठन का पूर्वाभ्यास था, इसका आभास मिलते ही ब्रिटिश नौकरशाही वर्ग में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई।

उसी शाम एक ब्रिटिश अधिकारी ने वायसराय की पत्नी मैरी मिन्टो को पत्र लिखकर सूचित किया- ‘मैं आपको संक्षेप में सूचित करता हूँ कि आज एक बहुत बड़ी बात हुई है। आज राजनीतिज्ञतापूर्ण एक ऐसा कार्य हुआ जिसका प्रभाव भारत तथा उसकी राजनीति पर चिरकाल तक पड़ता रहेगा। 6 करोड़ 20 लाख लोगों को हमने विद्रोही पक्ष में सम्मिलित होने से रोक लिया है।’

इंग्लैण्ड के समाचार पत्रों ने भी इसे एक बहुत बड़ी विजय बताया और मुसलमानों की बुद्धिमत्ता की प्रशंसा की। यह प्रथम अवसर था जब वायसराय के निमंत्रण पर भारत के विभिन्न भागों के मुसलमान शिमला में एकत्र हुए थे। जब वे वापिस अपने-अपने घर लौटे तब वे पूरे राजनीतिज्ञ बन चुके थे। अब उनके कंधों पर अलीगढ़ की राजनीति को सारे देश में फैलाने की जिम्मेदारी थी।

मुसलमानों को हिन्दुओं के विरुद्ध खड़ा करने के इस काम के लिए भारत सचिव लॉर्ड मार्ले ने 16 अक्टूबर 1906 को गवर्नर जनरल लॉर्ड मिन्टो को पत्र लिखकर बधाई दी। ब्रिटिश सरकार ने अपना आश्वासन पूरा किया और ई.1909 के भारतीय परिषद् अधिनियम के अन्तर्गत ब्रिटिश-भारत की प्रत्येक विधान सभा के लिए मुसलमानों को अपने समुदाय पर आधारित चुनाव मण्डलों से अपने प्रतिनिधियों को, अपनी जनसंख्या के अनुपात से कहीं अधिक अनुपात में चुनने का अधिकार दिया। इस प्रकार, मुस्लिम साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जाने लगा।

पुलिस का मुस्लिमीकरण

कांग्रेस द्वारा किए जा रहे राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े बहुसंख्यक हिन्दुओं को दबाने के लिए अंग्रेजों ने पुलिस विभाग में मुसलमानों को अधिक संख्या में भरना आरम्भ किया ताकि बहुसंख्यक हिन्दू जनता को कड़ाई से नियंत्रण में रखा जा सके। भारत सरकार के गृह विभाग की दिसम्बर 1909 की गोपनीय रिपोर्ट के अुनसार 1 अप्रेल 1908 को भारत सरकार में 2 सिख एवं 11 मुसलमानों के मुकाबले 2 हिन्दू सुपरिन्टेण्डेन्ट ऑफ पुलिस थे तथा 18 सिक्खों एवं 59 मुसलमानों के मुकाबले में 20 हिन्दू पुलिस इंस्पेक्टर थे।

इसी प्रकार 120 सिक्खों एवं 408 मुसलमानों के विरुद्ध केवल 211 हिन्दू सब इंस्पेक्टर थे। 1 जनवरी 1909 को भारत सरकार द्वारा निम्नतम श्रेणी के 15,529 पुलिस कर्मी लिए गए। इनमें से 1,078 सिख (7 प्रतिशत), 10,164 मुसमलान (65 प्रतिशत) तथा 4,287 हिन्दू (28 प्रतिशत) पुलिस कर्मी लिए गए। स्पष्ट है कि अंग्रेज सरकार मुसलमान-पुलिस के माध्यम से बहुसंख्यक-हिन्दुओं को दबाने का कार्य कर रही थी।

शासन के इस असमान व्यवहार के कारण हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच की दूरियां बढ़ीं। शासन द्वारा धर्म के आधार पर जनता के साथ असमान व्यवहार धरती के हर क्षेत्र में और हर युग में किया जाता रहा है, यह कोई पहली बार नहीं था। मुसलमानों के शासन में भी हिन्दुओं को संदेह की दृष्टि से देखा जाता था और अब अंग्रेजों ने भी वही नीति अपना ली थी।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source