Saturday, July 27, 2024
spot_img

अध्याय -16 – बौद्ध धर्म तथा भारतीय संस्कृति पर उसका प्रभाव (अ)

हे भिक्षुओं, तुम आत्मदीप बनकर विचरो। तुम अपनी ही शरण में जाओ। किसी अन्य का सहारा मत ढूँढो। केवल धर्म को अपना दीपक बनाओ। केवल धर्म की शरण में जाओ।   

-महात्मा बुद्ध।

छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व में ब्राह्मण धर्म के विरुद्ध दूसरी धार्मिक क्रांति के प्रणेता गौतम बुद्ध थे जिन्हें शाक्य मुनि तथा महात्मा बुद्ध भी कहा जाता है। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था। उनके पिता शुद्धोदन, शाक्य गणराज्य के प्रधान थे। शाक्यों का गणराज्य भारत की उत्तर-पूर्वी सीमा पर हिमालय की तराई में स्थित था जिसकी राजधानी कपिलवस्तु थी।

सिद्धार्थ का जन्म

कपिलवस्तु एवं देवदह के मध्य, वर्तमान नौतनवा स्टेशन से 8 मील पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान है। वहाँ उस काल में लुम्बिनी नामक गांव स्थित था। बौद्ध सूत्रों के अनुसार ईसा से 563 वर्ष पूर्व कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन की महारानी मायादेवी अपने पिता के घर आ रही थीं कि मार्ग में लुम्बिनी वन में वैशाख मास की पूर्णिमा को महारानी ने एक बालक को जन्म दिया। इस बालक का नाम सिद्धार्थ रखा गया।

सिद्धार्थ का बचपन

सिद्धार्थ के जन्म के एक सप्ताह पश्चात ही उनकी माता मायादेवी का स्वर्गवास हो गया। अतः सिद्धार्थ का पालन-पोषण उनकी मौसी एवं विमाता प्रजापति ने किया। सिद्धार्थ बचपन से ही विचारवान, करुणावान एवं एकान्तप्रिय थे। संसार में व्याप्त रोग, जरा एवं मृत्यु आदि कष्टों को देखकर उनका हृदय पीड़ित मनुष्यों के लिए करुणा से भर जाता था।

सिद्धार्थ का वैवाहिक जीवन

पिता शुद्धोदन ने सिद्धार्थ को क्षत्रियोचित शिक्षा दिलवाई तथा सोलह वर्ष की आयु में उनका विवाह दण्डपाणि नामक राजा की सुंदर राजकन्या यशोधरा के साथ कर दिया। सिद्धार्थ का मन घर-परिवार एवं सांसारिक बातों में नहीं लग सका। वे इन बातों की ओर से उदासीन रहते थे।

राजा शुद्धोधन ने सिद्धार्थ के लिए प्रत्येक मौसम के अनुकूल अलग-अलग प्रासाद बनवाए तथा प्रत्येक प्रासाद में विभिन्न ऋतुओं के अनुरूप ऐश्वर्य और भोग विलास की सामग्री उपलब्ध करवाई। सिद्धार्थ को अपने दाम्पत्य जीवन से एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम राहुल रखा गया। लगभग 12 वर्ष तक गृहस्थ जीवन का सुख भोग लेने पर भी सिद्धार्थ का मन सांसारिक प्रवृत्तियों में नहीं लग सका।

महाभिनिष्क्रमण

लगभग 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने ज्ञान की खोज में घर छोड़़ने का निर्णय लिया। एक रात्रि में वे अपने घोड़े पर बैठकर 30 योजन दूर निकल गए। गोरखपुर के समीप अनोमा नदी के तट पर उन्होंने अपने राजसी वस्त्र एवं आभूषण उतार दिए और तलवार से अपना जूड़ा काट कर सन्यासी बन गए। इस प्रकार उन्होंने राजसी सुख एवं परिवार का त्याग कर दिया। इस घटना को बौद्ध धर्म एवं साहित्य में ‘महाभिनिष्क्रमण’ कहा जाता है।

सत्य और ज्ञान की खोज में

सन्यासी हो जाने के बाद बुद्ध तप तथा साधना में लीन हो गए। सबसे पहले वे वैशाली के आलाकालाम नामक एक तपस्वी के पास ज्ञानार्जन हेतु गए किन्तु वहाँ उनकी ज्ञान पिपासा शान्त नहीं हो पाई। इसके बाद वे राजगृह के ब्राह्मण उद्रक रामपुत के पास गए। इन दोनों गुरुओं से सिद्धार्थ ने योग साधना और समाधिस्थ होना सीखा परन्तु इससे उन्हें सन्तोष नहीं हुआ।

इसलिए वे उरुवेला की वनस्थली में जाकर तपस्या में लीन हो गए। यहाँ उन्हें कौडिल्य आदि पाँच ब्राह्मण सन्यासी भी मिले। अपने इन ब्राह्मण  साथियों के साथ वे उरुवेला में कठोर तपस्या करने लगे। सिद्धार्थ ने पहले तो तिल और चावल खाकर तप किया परन्तु बाद में उन्होंने आहार का सर्वथा त्याग कर दिया जिससे उनका शरीर सूख गया। तप करते-करते सिद्धार्थ को 6 वर्ष बीत गए परन्तु साधना में सफलता नहीं मिली।

जनश्रुति है कि एक दिन नगर की कुछ स्त्रियाँ गीत गाती हुई उस ओर से निकलीं जहाँ सिद्धार्थ तपस्यारत थे। उनके कान में स्त्रियों का एक गीत पड़ा जिसका भावार्थ इस प्रकार था- ‘वीणा के तारों को ढीला मत छोड़़ो। ढीला छोड़़ने से उनसे सुरीला स्वर नहीं निकलेगा परन्तु वीणा के तारों को इतना भी मत कसो कि वे टूट जाएं।’

तपस्वी सिद्धार्थ ने अपने हृदय में गीत के भावों पर विचार किया तथा अनुभव किया कि नियमित आहार-विहार से ही योग साधना सिद्ध हो सकती है। किसी भी बात की अति करना ठीक नहीं है, अतः मनुष्य को मध्यम मार्ग ही अपनाना चाहिए। अतः उन्होंने फिर से आहार करना शुरु कर दिया। सिद्धार्थ में यह परिवर्तन देखकर उनके पाँचों ब्राह्मण साथियों ने उन्हें पथ-भ्रष्ट समझकर उनका साथ छोड़़ दिया और वे सारनाथ चले गए।

बुद्धत्व की प्राप्ति

साथी तपस्वियों के चले जाने से सिद्धार्थ विचलित नहीं हुए और उन्होंने ध्यान लगाने का निश्चय किया। वे एक पीपल के वृक्ष के नीचे ध्यान की अवस्था में बैठ गए। सात दिन तक ध्यानमग्न रहने के पश्चात् वैसाख पूर्णिमा की रात को जब सिद्धार्थ ध्यान लगाने बैठे तो उन्हें बोध हुआ। उन्हें साक्षात् सत्य के दर्शन हुए। तभी से वे बुद्ध अथवा गौतम बुद्ध के नाम से विख्यात हुए। बुद्ध के जीवन में ज्ञान-प्राप्ति की यह घटना ‘सम्बोधि’ कहलाती है।

उस समय बुद्ध की आयु 35 वर्ष थी। जिस वृक्ष के नीचे उन्हें बोध प्राप्त हुआ, उसे ‘बोधि-वृक्ष’ कहा गया। जिस स्थान पर यह घटना घटी, वह स्थान ‘बोधगया’ कहलाया। इस घटना के बाद भी महात्मा बुद्ध चार सप्ताह तक बोधि-वृक्ष के नीचे रहे और धर्म के स्वरूप का चिन्तन करते रहे।

मज्झिम प्रतिपदा

बुद्ध ने साधना का मध्यम-मार्ग अपनाया तथा इसी का उपदेश दिया। इस मार्ग के अनुसार काम-वासना अर्थात् विषय-भोग में फंसना और घनघोर तप करके शरीर को कष्ट देना, दोनों ही व्यर्थ हैं। इसी को मध्यम मार्ग अथवा ‘मज्झिम प्रतिपदा’ कहा जाता है।

धर्म-चक्र प्रवर्तन

ज्ञान प्राप्ति के पश्चात महात्मा बुद्ध ने सबसे पहले बोधगया में तपस्यु और मल्लिक नामक दो बनजारों को अपने ज्ञान का उपदेश दिया। इसके बाद बुद्ध अपने ज्ञान एवं विचारों को जनसाधारण तक पहुँचाने के उद्देश्य बोधगया से निकल पड़े और सारनाथ पहुँचे। यहाँ उन्हें वे पाँचों ब्राह्मण साथी मिल गए जो उन्हें छोड़़कर चले गए थे। बुद्ध ने उन्हें अपने ज्ञान की, धर्म के रूप में दीक्षा दी।

यह घटना बौद्ध धर्म के इतिहास में ‘धर्म-चक्र प्रवर्तन’ के नाम से जानी गई तथा वे पांचों शिष्य ‘पंचवर्गीय’ कहलाए। यहाँ से महात्मा बुद्ध काशी गए और वहाँ अपने ज्ञान का प्रसार करने लगे। जब बुद्ध के शिष्यों की संख्या बढ़ गई तब उन्होंने एक संघ की स्थापना की तथा उनके लिए आचरण के नियम निर्धारित किए।

इस संघ की सहायता से महात्मा बुद्ध लगभग 45 वर्ष तक अपने धर्म का प्रचार करते रहे। वे अंग, मगध, वज्जि, कौशल, काशी, मल्ल, शाकय, कोलिय, वत्स, सूरसेन आदि जनपदों में घूमते रहे। केवल वर्षा काल में वे एक स्थान पर निवास करते थे। राजगृह एवं श्रावस्ती से उन्हें विशेष प्रेम था। अपने उपदेशों में उन्होंने जनभाषा को अपनाया तथा जाति-पाँति और ऊँच-नीच की भावना से दूर रहते हुए मानव समाज को अपने उपदेशों से लाभान्वित किया। अपने शिष्य आनन्द के अनुरोध पर उन्होंने स्त्रियों को भी बौद्धधर्म की दीक्षा देना स्वीकार कर लिया।

महापरिनिर्वाण

इस प्रकार जीवन-यापन करते हुए ई.पू. 544 में 80 वर्ष की आयु में गोरखपुर के निकट कुशीनारा में गौतम बुद्ध ने देह-त्याग किया। बुद्ध के शरीर त्यागने की घटना को बौद्ध लोग ‘महापरिनिर्वाण’ कहते हैं। उनका अन्तिम उपदेश था- ‘हे भिक्षुओं, तुम आत्मदीप बनकर विचरो तुम अपनी ही शरण में जाओ। किसी अन्य का सहारा मत ढूँढो। केवल धर्म को अपना दीपक बनाओ। केवल धर्म की शरण में जाओ।’

नैतिक जीवन पर आधारित धर्म

बुद्ध के समय में लोगों में आत्मा-परमात्मा, लोक-परलोक, पाप-पुण्य, और मोक्ष आदि विषयों पर घोर वाद-विवाद होते थे। महात्मा बुद्ध इन विवादों में नहीं पड़े। उन्होंने इन प्रश्नों के उत्तर नहीं दिए तथा मनुष्य को नैतिकता पर आधारित जीवन जीने का उपदेश दिया। उन्होंने संसार तथा मानव जीवन को असत्य नहीं माना। वे इस विवाद में नहीं पड़े कि संसार तथा मनुष्य अमर हैं या नश्वर, सीमित हैं या असीम! जीव और शरीर एक है या अलग।

जब किसी ने उनसे इन प्र्रश्नों का उत्तर देने का आग्रह किया तो भी वे मौन रहे। उन्होंने जीवन को जैसा भी है, वैसा मानकर व्यावहारिक दृष्टि अपनाने का उपदेश दिया। उन्होंने अपने धर्म की इतनी अधिक नैतिक व्याख्या की कि कुछ विद्वानों की दृष्टि में बौद्ध धर्म, वास्तव में धर्म नहीं होकर आचार-शास्त्र मात्र था।

मूलतः बौद्ध धर्म कोई पृथक दर्शन नहीं है क्योंकि बुद्ध ने ईश्वरीय सत्ता, आत्मा, मोक्ष, पुनर्जन्म आदि प्रश्नों पर विचार प्रकट नहीं किए। आज जो कुछ भी बौद्ध दर्शन के नाम से विख्यात है, वह महात्मा बुद्ध की मृत्यु के बाद का विकास है। बौद्ध धर्म आध्यात्म शास्त्र भी नहीं है, क्योंकि बुद्ध ने सृष्टि सम्बन्धी विषय पर भी अपने विचार प्रकट नहीं किए।

उनका धर्म तो व्यावहारिक धर्म था। वह मनुष्य की उन्नति का साधन था। वह जीवन का विषय है और इसी जीवन में निर्वाण दिलाता है। वह नितान्त बुद्धिवादी है, उसमें अन्ध-विश्वासों के लिए स्थान नहीं है तथा उसका आधार मानव मात्र का कल्याण है।

Related Articles

6 COMMENTS

  1. hello there and thank you for your info – I’ve certainly picked up something new from right
    here. I did however expertise several technical issues using
    this website, as I experienced to reload the
    website a lot of times previous to I could get it to load
    correctly. I had been wondering if your web host is OK?
    Not that I am complaining, but slow loading instances times will often affect your placement in google and
    can damage your high quality score if ads and marketing with Adwords.
    Anyway I’m adding this RSS to my e-mail and can look out for much more of your respective intriguing content.
    Make sure you update this again soon.. Escape rooms hub

  2. Right here is the perfect website for anybody who really wants to find out about this topic. You understand so much its almost tough to argue with you (not that I actually would want to…HaHa). You certainly put a brand new spin on a topic that has been written about for years. Wonderful stuff, just excellent.

  3. May I just say what a comfort to discover an individual who actually knows what they’re talking about over the internet. You definitely know how to bring an issue to light and make it important. More people need to check this out and understand this side of your story. I was surprised you are not more popular since you definitely have the gift.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source