सूफियों में चिश्तिया सम्प्रदाय सबसे उदार और लोकप्रिय सम्प्रदाय माना जाता है। चिश्ती संप्रदाय के संस्थापक ख्वाजा अबू-इसहाक-शामी चिश्ती, हजरत अली के वंशज थे। खुरासान के चिश्त नगर में रहने के कारण वे चिश्ती कहलाये। चिश्त तथा फीरोजकुह इनके केन्द्र थे जो अधिक समय तक स्थाई न रहे। सूफी दरवेशों के रूप में वहीं से चलकर वे भारत आये।
गौस उल-आजम महबूब सुभानी शेख अब्दुल जिलानी
ईराक की राजधानी बगदाद में गौस उल-आजम महबूब सुभानी शेख अब्दुल जिलानी की दरगाह है। वह सूफी सम्प्रदाय का फकीर था। इस संप्रदाय के फकीर पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनते थे तथा कपड़ों के स्थान पर एक मोटा ऊनी लबादा धारण करते थे। इनकी संख्या बहुत कम थी और ये स्थान-स्थान पर घूम कर ईश्वर की आराधना का उपदेश दिया करते थे। पैगम्बर मुहम्मद सूती लबादा ओढ़ते थे। अतः सूफी फकीरों को ऊनी लबादा ओढ़ने के कारण इस्लाम विरोधी माना जाता था।
ऊनी लबादा धारण करने की परम्परा ईसाइयों में थी। अनेक सूफियों ने अपने आप को पैगम्बर मुहम्मद द्वारा प्रतिपादित इस्लाम धर्म से अलग माना। ईसाइयों ने भी कोशिश की कि वे सूफी मत को अपनी ओर खींच लें। इसलिये उन्होंने सूफी फकीरों को मूहन्ना अथवा मसीहा का शिष्य कहना प्रारंभ कर दिया किन्तु इन दोनों मतों में मौलिक अन्तर है।
मसीहा का मूल मंत्र विराग है जबकि सूफीमत के मूल में प्रेम का निवास है। ईसाई तो सूफी मत को भले ही अपने धर्म में घोषित नहीं कर पाये किन्तु सूफी फकीरों ने ईसाई धर्म में बहुत बड़ा एवं क्रान्तिकारी परिवर्तन कर दिया। वर्तमान के मसीह मत में प्रेम का प्रसार सूफीमत के संसर्ग का परिणाम है।