अलाउद्दीन खिलजी का प्रारम्भिक जीवन
अलाउद्दीन खिलजी का पिता शिहाबुद्दीन मसउद खिलजी, सुल्तान जलालुद्दीन फीरोजशाह खिलजी का भाई था। शिहाबुद्दीन के चार पुत्र थे जिनमें से अलाउद्दीन सबसे बड़ा था। अलाउद्दीन का जन्म 1266-67 ई. में हुआ था। जलालुद्दीन के तख्त पर बैठने से काफी पहले ही शिहाबुद्दीन की मृत्यु हो चुकी थी। इसलिये अलाउद्दीन का पालन पोषण जलालुद्दीन ने ही किया। अलाउद्दीन को नियमित रूप से लिखने-पढ़ने की सुविधा प्राप्त नहीं हो सकी। उसके वयस्क होने पर जलालुद्दीन ने अपनी पुत्री का विवाह अपने भतीजे अलाउद्दीन से कर दिया। इस प्रकार अलाउद्दीन खिलजी, जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा तथा दामाद था। उसने घुड़सवारी, खेलकूद तथा युद्ध विद्या सीख ली। पढ़ाई-लिखाई में रुचि नहीं होने से वह नितांत निरक्षर बना रहा। जब जलालुद्दीन खिलजी सुल्तान बना तो उसने अपने भतीजे अलाउद्दीन को अमीर-ए-तुजुक का पद दिया।
अलाउद्दीन का वैवाहिक जीवन
अलाउद्दीन का वैवाहिक जीवन बहुत नीरस था। उसकी सास मलिका जहान तथा पत्नी, दोनों मिलकर उलाउद्दीन को बात-बात पर ताने देती थीं। इसलिये उसने महरू नामक एक प्रेमिका तलाश कर ली। अलाउद्दीन की पत्नी को इस बात का पता चल गया इसलिये उसने एक दिन अलाउद्दीन के सामने ही महरू की पिटाई कर दी। इससे अलाउद्दीन का मन दिल्ली से उखड़ गया।
कड़ा-मानिकपुर की सूबेदारी
अलाउद्दीन के सौभाग्य से 1291 ई. में कड़ा के गवर्नर मलिक छज्जू ने सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को दबाने में अलाउद्दीन ने भारी वीरता का परिचय दिया। सुल्तान के बड़े पुत्र अर्कली खाँ ने सुल्तान के समक्ष अलाउद्दीन की प्रशंसा की। इस पर सुल्तान ने अलाउद्दीन को कड़ा-मानिकपुर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अलाउद्दीन दिल्ली से कड़ा चला गया। उसकी पत्नी ने कड़ा चलने से मना कर दिया। इस पर अलाउद्दीन अपनी प्रेमिका महरू को अपने साथ कड़ा ले गया।
महत्वाकांक्षाओं का विस्तार
कड़ा का वातावरण अलाउद्दीन के अनुकूल था। सुल्तान और उसके परिवार की छत्रछाया से दूर अलाउद्दीन को स्वतंत्र जीवन जीने का अवसर मिला। इससे उसकी महत्वाकांक्षाओं ने जन्म लिया और उसने दिल्ली के तख्त पर आँख गढ़ाई। तख्त प्राप्त करने के लिए उसने सैनिक संगठन, धन संग्रह तथा साथियों की परीक्षा करना आरम्भ किया। 1292 ई. में सुल्तान की आज्ञा से अलाउद्दीन ने भिलसा पर आक्रमण किया। भिलसा पर उसे बड़ी सरलता से विजय प्राप्त हो गई और उसने लूट का बहुत माल लेकर सुल्तान को समर्पित कर दिया। सुल्तान ने प्रसन्न होकर उसे आरिजे मुमालिक अर्थात सैन्य-मंत्री के पद पर नियुक्त कर दिया और कड़ा के साथ-साथ अवध का भी गवर्नर नियुक्त कर दिया। 1294 ई. में अलाउद्दीन ने देवगिरी पर आक्रमण किया और वहाँ से लूट की अपार सम्पत्ति लेकर कड़ा वापस लौट आया।
जलालुद्दीन की हत्या
देवगिरि की अकूत सम्पदा प्राप्त करके अलाउद्दीन मदान्ध हो गया। अब उसने दिल्ली का तख्त प्राप्त करने का निश्चय कर लिया। उसने कई तरह के बहाने करके अपने श्वसुर तथा ताऊ सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी को कड़ा बुलाया। सरल हृदय सुल्तान अपने भतीजे तथा दामाद पर भरोसा रखकर कड़ा आया जहाँ अलाउद्दीन ने 19 जुलाई 1296 को मानिकपुर के निकट सुल्तान के साथ विश्वासघात करके उसकी हत्या करवा दी और स्वयं दिल्ली का तख्त हथियाने का उपाय ढूंढने लगा।
दिल्ली के तख्त की प्राप्ति
सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की बेगम को जैसे ही सुल्तान की कड़ा में हत्या होने का समाचार मिला, उसने अपने छोटे पुत्र कद्र खाँ को रुकुनुद्दीन इब्राहीम के नाम से दिल्ली के तख्त पर बैठा दिया क्योंकि बड़ा पुत्र अर्कली खाँ मुल्तान का गवर्नर होने के कारण मुल्तान में था। जब अर्कली खाँ ने सुना कि माँ ने छोटे पुत्र कद्र खाँ को दिल्ली के तख्त पर बैठा दिया तो वह अपने परिवार से नाराज हो गया तथा उसने अपने परिवार की सहायता करने के लिये दिल्ली जाना उचित नहीं समझा।
जब अलाउद्दीन को सुल्तान के परिवार में फूट पड़ने के समाचार मिले तो अलाउद्दीन ने दिल्ली जाने का निर्णय किया। उसने मार्ग में नये सैनिकों की भी भर्ती की। जब वह दिल्ली पहुँचा तो उसके पास 56 हजार घुड़सवार तथा 70 हजार पैदल सिपाही थे। जब दिल्ली की सेना ने उसका मार्ग रोका तो अलाउद्दीन ने मुँह मांगा पैसा देकर अमीरों को अपनी ओर कर लिया।
अमीरों की गद्दारी देखकर मलिका-ए-जहाँ ने अपने बड़े पुत्र अर्कली खाँ को दिल्ली आने तथा परिवार की सहायता करने के लिये संदेश भिजवाये किंतु अर्कली खाँ ने उन संदेशों पर ध्यान नहीं दिया। इससे मलिका-ए-जहाँ दिल्ली में अकेली पड़ गई। जब सुल्तान कद्र खाँ ने अलाउद्दीन का सामना करने का विचार किया तो रहे-सहे अमीर भी अपने सैनिक लेकर अलाउद्दीन की तरफ जा मिले। इससे मलिका-ए-जहाँ अपने परिवार को लेकर अपने बड़े बेटे के पास मुल्तान भाग गई। इस प्रकार बिना लड़े ही अलाउद्दीन का दिल्ली के तख्त पर अधिकार हो गया।
अलाउद्दीन की समस्याएँ
अलाउद्दीन को दिल्ली के तख्त पर बैठते ही अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसकी प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित थीं-
(1) अलोकप्रियता की समस्या: अलाउद्दीन राज्य का अपहर्ता तथा अपराधी समझा जाता था, क्योंकि उसने ऐसे व्यक्ति की हत्या करवाई थी जो उसका अत्यन्त निकट सम्बन्धी तथा बहुत बड़ा शुभचिन्तक था। जलालुद्दीन का अलाउद्दीन पर बहुत बड़ा स्नेह था और वह उस पर अत्यधिक विश्वास करता था। उसी ने अलाउद्दीन का पालन-पोषण किया था और उसे ऊँचे-ऊँचे पद दिये थे। अलाउद्दीन, सुल्तान जलालुद्दीन का दामाद तथा भतीजा दोनों था। अतः जलालुदद्ीन का वध बड़ा ही नृशंस तथा घृणित कार्य समझा गया।
(2) शासन में अराजकता की समस्या: केन्द्रीय शासन लम्बे समय से आंतरिक संघर्षों में फंसा हुआ था। इस कारण स्थानीय अधिकारी स्वेच्छाचारी हो गये थे। केन्द्र सरकार के प्रति उत्तरदाई अधिकारियों के अभाव में, स्थानीय तथा केन्द्रीय शासन में सम्पर्क बहुत कम रह गया था। स्थानीय अधिकारियों को केन्द्रीय सत्ता के अधीन करना तथा राज्य के प्रति विश्वस्त बनाना एक बड़ी समस्या थी।
(3) जलालुद्दीन के उत्तराधिकारियों की समस्या: यद्यपि दिल्ली का तख्त अलाउद्दीन को प्राप्त हो गया था परन्तु जलालुद्दीन के उत्तराधिकारियों का विनाश अभी नहीं हुआ था। जलालुद्दनी की बेगम मलिका-ए-जहान, बड़ा पुत्र अर्कली खाँ, दूसरा पुत्र कद्र खाँ (रुकुनुद्दीन इब्राहीम) और जलालुद्दीन का मंगोल दामाद उलूग खाँ अभी जीवित थे। उनके झण्डे के नीचे अब भी विशाल सेनाएँ संगठित हो सकती थीं।
(4) जलाली अमीरों की समस्या: जलाली अमीर अपने आश्रयदाता की हत्या करने वाले को कभी क्षमा करने के लिए उद्यत नहीं थे। जलालुद्दीन के इन स्वामिभक्त सेवकों में अहमद चप का नाम प्रमुख है। वह बड़ा ही निर्भीक तथा साहसी तुर्की अमीर था और जलालुद्दीन तथा उसके उत्तराधिकारियों में उसकी अटल भक्ति थी। जलाली अमीरों से अलाउद्दीन को बड़ा भय था क्योंकि ये बड़े कुचक्री होते थे किंतु अहमद चप को मुल्तान में बंदी बनाकर हांसी में उसे अंधा करके जेल में डाल दिया गया। इससे अन्य जलाली अमीर भी सहम कर शांत हो गये।
(5) सीमा सुरक्षा की समस्या: मंगोल आक्रमणकारी प्रायः भारत के पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रदेशों पर आक्रमण करते थे। एक से अधिक अवसरों पर वे दिल्ली तक आ पहुँचे थे। उनकी गिद्ध-दृष्टि सदैव भारत पर ही लगी रहती थी। उनसे अपने राज्य को सुरक्षित करना, एक बड़ी समस्या थी। दिल्ली के निकट मंगोलपुरी बस जाने से मंगोलों को दिल्ली में आधार भी प्राप्त हो गया था।
(6) राज्य-विस्तार की समस्या: बलबन के कमजोर उत्तराधिकारियों एवं जलालुद्दीन खिलजी की उदार नीति के कारण अनेक हिन्दू-सामन्तों तथा राजाओं ने अपने राज्य वापस अपने अधिकार में कर लिये थे। अलाउद्दीन के तख्त पर बैठने के समय उत्तरी भारत का अधिकांश भाग तथा सम्पूर्ण दक्षिण भारत दिल्ली सल्तनत के बाहर था। इन खोये हुए प्रदेशों को अपने अधिकार में करना बड़ी समस्या थी।
समस्याओं का निवारण
यद्यपि अलाउद्दीन की समस्याएँ बड़ी तथा जटिल थीं किंतु उसे चार योग्य अमीरों- उलूग खाँ, नसरत खाँ, जफर खाँ तथा अल्प खाँ की सेवाएँ प्राप्त हो गईं। यद्यपि सुल्तान निरक्षर तथा हठधर्मी था परन्तु उसे काजी अलाउल्मुल्क का सानिध्य प्राप्त हो गया। काजी अलाउल्मुल्क ने अपने परामर्श से सुल्तान अलाउद्दीन की बड़ी सेवा की और उसे कई बार अनुचित कार्य करने से रोका। अलाउद्दीन अपनी बौद्धिक सीमाओं को जानता था इसलिये अपने शुभचिन्तकों के परामर्श को मान लेता था। इस कारण वह अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा।
(1) अमीरों के विश्वास की प्राप्ति: सुल्तान बनने के बाद अलाउद्दीन ने अमीरों का विश्वास अर्जित करने के लिये देवगिरी से लाई हुई सोने-चाँदी की मुद्राओं का मुक्त हस्त से वितरण किया। उसने सैनिकों को छः मास का वेतन पारितोषिक के रूप में दिलवाया। शेखों तथा आलिमों को दिल खोलकर धन एवं धरती से पुरस्कृत किया। उसने दीन-दुखियों में अन्न वितरित करवाया। इस कारण लोग सुल्तान के विश्वासघात तथा उसके घृणित कार्य को भूलकर उसकी उदारता की प्रशंसा करने लगे। प्रायः समस्त बड़े अमीर अलाउद्दीन के समर्थक बन गये।
(2) शासन पर पकड़ बनाने हेतु पदों का वितरण: अपनी स्थिति के सुदृढ़ीकरण के ध्येय से अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ ऊँचे पदाधिकारियों को पूर्ववत् उनके पदों पर बने रहने दिया और शेष पदों पर अपने सहायकों तथा सेवकों को नियुक्त कर दिया। इससे अलाउद्दीन की स्थिति बड़ी दृढ़ हो गई। उसने शासन में कई महत्वपूर्ण सुधार किये।
(3) जलालुद्दीन के उत्तराधिकारियों का दमन: अलाउद्दीन ने राजधानी में स्थिति को सुदृढ़ कर लेने के उपरान्त जलालुद्दीन के उत्तराधिकारियों का दमन करना आरम्भ किया। उसने अपने दो सेनानायकों उलूग खाँ और जफरखां को एक सेना देकर मुल्तान पर आक्रमण करने भेजा। अलाउद्दीन के सेनापतियों ने मलिका-ए-जहान, अर्कली खाँ, कद्र खाँ, अहमद चप और मंगोल उलूग खाँ को बंदी बनाकर दिल्ली रवाना कर दिया। हांसी के निकट अर्कली खाँ, कद्र खां, अहमद चप और उलूग खाँ को अंधा करके परिवार के सदस्यों से अलग कर दिया गया। बाद में अर्कली खाँ तथा कद्र खाँ को उनके पुत्रों सहित मौत के घाट उतार दिया गया। मलिका-ए-जहान को दिल्ली लाकर नजरबंद कर दिया गया।
(4) जलाली अमीरों का दमन: जलालुद्दीन के उत्तराधिकारियों का दमन करने के बाद अलाउद्दीन ने जलाली अमीरों के दमन का कार्य नसरत खाँ को सौंपा। नसरत खाँ ने जलाली अमीरों की सम्पत्ति छीनकर राजकोष में जमा करवाई। कुछ अमीर अन्धे कर दिये गये तथा कुछ कारगार में डाल दिये गए। कुछ जलाली अमीरों को तलवार के घाट उतार दिया गया। उनकी भूमियां तथा जागीरें छीन ली गईं। जलाली अमीरों से शाही खजाने में लगभग एक करोड़ रुपया प्राप्त हुआ।
(5) सीमा की सुरक्षा की व्यवस्था: अलाउद्दीन ने मंगोलों के आक्रमणों को रोकने एवं उनका सामना करने के लिये सीमान्त प्रदेश की नाकेबन्दी करके वहाँ पर सेनायें रखीं। मंगोलों ने अलाउद्दीन के समय में भारत पर चार-पांच बार आक्रमण किये परन्तु अलाउद्दीन ने धैर्य के साथ उनका सामना किया।
(6) साम्राज्य विस्तार का कार्य: अलाउद्दीन महत्वाकांक्षी तथा साम्राज्य विस्तारवादी सुल्तान था। वह सम्पूर्ण भारत का सुल्तान बनना चाहता था। इसलिये उसने एक विजय-योजना तैयार की और उत्तर तथा दक्षिण दोनों ही दिशाओं में विजय अभियान चलाये।
अलाउद्दीन के उद्देश्य तथा उसकी महत्वाकांक्षाएँ
अलाउद्दीन को आरम्भ में ही बड़ी सफलतायें मिल गई थीं, इससे उसका उत्साह बढ़ता चला गया। सौभाग्य से उसके पास एक विशाल सेना तथा अपार कोष इकट्ठा हो गया। फलतः उसकी आकाक्षायें और बढ़ गईं। उसने अपने जीवन के दो लक्ष्य बनाये। उसका पहला उद्देश्य था एक नये धर्म की स्थापना करना और उसका दूसरा उद्देश्य था विश्व-विजय करना। उसके मन में यह विचार उत्पन्न हुआ कि जिस प्रकार हजरत मुहम्मद के चार साथी, अर्थात पहले चार खलीफा थे, उसी प्रकार उलूग खाँ, जफर खाँ, नसरत खाँ तथा अल्प खाँ उसके भी चार साथी हैं जो बड़े ही वीर तथा साहसी हैं। अतः पैगम्बर की भाँति वह भी नये धर्म की स्थापना करके और सिकन्दर महान् की भाँति विश्व विजय करके अपना नाम अमर कर सकता है।
काजी अलाउल्मुल्क का परामर्श
जब अलाउद्दीन खिलजी ने अपने योजनाओं के सम्बन्ध में काजी अलाउल्मुल्क से परामर्श किया तब काजी ने उसे परामर्श दिया कि नबी बनना अथवा नया धर्म चलाना सुल्तानों का काम नहीं है। यह काम पैगम्बरों का होता है जो अल्लाह द्वारा भेजे जाते हैं। सुल्तान की विश्व-विजय की आकंाक्षा के सम्बन्ध में काजी ने सुल्तान से कहा कि यद्यपि विश्व-विजय की कामना करना सुल्तान का कर्त्तव्य है किंतु न तो विश्व में सिकन्दर कालीन परिस्थितियाँ विद्यमान हैं और न सुल्तान के पास अरस्तू के समान बुद्धिमान तथा दूरदर्शी गुरु उपलब्ध है। काजी ने सुल्तान को परामर्श दिया कि दिल्ली सल्तनत की सीमाओं पर रणथम्भौर, चितौड़, मालवा, धार, उज्जैन आदि स्वतन्त्र राज्य हैं जिनके कारण सल्तनत पर चारों ओर से आक्रमणों के बादल मँडरा रहे हैं। अतः परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सुल्तान के दो उद्देश्य होने चाहिये- (1.) सम्पूर्ण भारत पर विजय प्राप्त करना तथा (2.) मंगोलों के आक्रमणों को रोकना। इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए देश में शान्ति तथा सुव्यवस्था स्थापित रखना नितान्त आवश्यक था। काजी ने सुल्तान को यह परामर्श भी दिया कि जब तक वह मदिरा पीना तथा आमोद-प्रमोद करना नहीं छोड़ेगा तब तक उसके उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकेगी। अलाउद्दीन को काजी का यह परामर्श बहुत पसन्द आया और उसने काजी के परामर्श को स्वीकार कर लिया।
अलाउद्दीन खिलजी के प्रधान लक्ष्य
अलाउद्दीन खिलजी ने काजी अलाउल्मुल्क से परामर्श करके अपने तीन प्रधान लक्ष्य निर्धारित किये-
1. बाह्य आक्रमण से देश की रक्षा करना,
2. साम्राज्य में शान्ति तथा सुव्यवस्था स्थापित करना तथा
3. साम्राज्य को विस्तृत करना।
यह भी देखें-
सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी – खिलजी वंश का संस्थापक
अलाउद्दीन खिलजी – खिलजी वंश का चरमोत्कर्ष
अलाउद्दीन खिलजी : साम्राज्य विस्तार