Friday, April 19, 2024
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10. खूनी ताकतों का संगम

तैमूर लंगड़े का चौथा वंशज मिर्जा उमर शेख अपने बाप-दादों की तरह परम असंतोषी जीव था। वह फरगना[1]  का शासक था किंतु वह अपने छोटे राज्य और अल्प साधनों से संतुष्ट नहीं था। अपने बड़े भाई अहमद मिर्जा से उसकी जानी दुश्मनी थी। अहमद मिर्जा समरकंद और बुखारा का शासक था। उमरशेख का विवाह कुतलुगनिगार खानम नामक औरत से हुआ था जो कुख्यात मंगोल आक्रांता चंगेजखान की तेरहवीं पीढ़ी में थी।

उमरशेख और कुतलुगनिगार खानम के कुल आठ संतानें हुई जिनमें बाबर सबसे बड़ा था। इस प्रकार बाबर की धमनियों में मध्य ऐशिया के दो खूंखार आक्रांताओं- चंगेजखाँ और तैमूर लंगड़े के खून का संगम हो गया।

उमरशेख बहुत रंगीन तबियत का आदमी था और सदा मौज मस्ती में डूबा रहता था। एक दिन जब उमर शेख कबूतर उड़ा रहा था तो उसके ऊपर मकान आ गिरा और उसी समय उसकी मृत्यु हो गयी। बाप की आकस्मिक मौत के कारण मात्र ग्यारह साल चार महीने का बाबर फरगना का शासन हुआ। वह अकाल प्रौढ़ बालक था और अपने बाप-दादाओं से भी बढ़कर महत्वाकांक्षी और दुस्साहसी था। उसकी खूनी ताकत का अनुमान लगाना कठिन था।

उमरशेख के मरते ही बाबर के दो सगे दुश्मनों ने अलग-अलग दिशाओं से फरगना पर आक्रमण कर दिया। इनमें से एक तो बाबर का सगा ताऊ अहमद मिर्जा था और दूसरा बाबर का सगा मामा महमूद खाँ था। बाबर की दादी ऐसान दौलत बेगम ने बाबर को सब विपत्तियों से बचाया जिसके कारण बाबर के दुश्मन मैदान छोड़कर भाग गये। बाबर ने दो बार समरकंद पर अधिकार किया और दोनों बार ही समरकंद उसके हाथ से निकल गया। यहाँ तक कि समरकंद के चक्कर में फरगना भी उसके हाथ से निकल गया। समरकंद के नये शासक शैबानी खाँ ने बाबर को गिरफ्तार कर लिया। बाबर ने अपनी बहिन का विवाह अपने शत्रु शैबानीखाँ से करके कैद से मुक्ति पायी और बे-घरबार हो कर पहाड़ों में भाग गया।

पूरे तीन साल तक वह अपने मुट्ठी भर साथियों के साथ पहाड़ों और जंगलों में भटकता फिरा। उसके घोड़े मर गये, जूते फट गये और वह दाने-दाने को मोहताज हो गया। वह मीलों दूर तक नंगे पाँव पैदल चलकर किसी गाँव तक जाता। भीख मांग कर रोटी खाता और जान बचाने के लिये फिर से जंगलों में जा छिपता।

दुनिया में कोई उसका मददगार न था, इसलिये वह दुनिया की दो क्रूरतम प्रबल ताकतों को वारिस होने के बावजूद भी किसी को अपना नाम तक नहीं बताता था। उसके मुट्ठी भर साथी ही उसके बारे में जानते थे कि वह कौन था और कहाँ रहता था।!


[1]   इसे अब खोकन्द कहते हैं।

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