Saturday, July 27, 2024
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9. मृतकों के नगर

यह तो नहीं कहा जा सकता कि इतिहास की वह कौनसी तिथि थी जब मंगोलों ने इस्लाम स्वीकार किया किंतु इस शाखा में उत्पन्न हुआ तैमूर लंगड़ा इस्लाम का अनुयायी था। उसके बाप-दादे मध्य एशिया में छोटे-मोटे जागीरदार हुआ करते थे जो अमीर कहलाते थे। तैमूर लंगड़ा अपने खानदान में पहला बादशाह हुआ किंतु वह बादशाह न कहलाकर अपने बाप-दादों की तरह मिर्जा ही कहलाता था जिसका अर्थ होता है अमीर का बेटा।

उसका वास्तविक नाम तैमूर था किंतु एक बार युद्ध में घायल हो जाने से वह कुछ लंगड़ाकर चलता था इसलिये हिन्दुस्थान में वह तैमूर लंगड़े के नाम से जाना जाता था। उसका जन्म समरकन्द से पचास मील दक्षिण में मावरा उन्नहर के कैच नामक स्थान पर हुआ था। वह स्वभाव से झगड़ालू और नीच किस्म का इंसान था। अपने क्रूर कारनामों के कारण यह लंगड़ा दैत्य इतिहास में खूनी पृष्ठ लिखने में अपना सानी नहीं रखता। तेतीस वर्ष की आयु में वह समरकंद का शासक हुआ। शीघ्र ही उसने फारस, ख्वारिज्म, मैसोपोटामिया और रूस के कुछ इलाकों पर अधिकार कर लिया।

जहाँ तैमूर के पूर्वज भारत पर इसलिये चढ़ाई करते रहे क्योंकि भारत पर इस्लामी शासकों का शासन था और तैमूर के पूर्वज इस्लाम को नष्ट करना चाहते थे, वहीं तैमूर ने भारत पर इसलिये आक्रमण करने का निश्चय किया ताकि वह भारत से हिन्दुओं का सफाया करके तथा इस्लाम की वृद्धि करके कुछ पुण्य अर्जित कर सके। 24 सितम्बर 1398 को तैमूर लंगड़े ने सिन्ध नदी को पार करके भारत में प्रवेश किया। उसकी सेना में बरानवे हजार घुड़सवार थे। भारत में उसने मानव सभ्यता के इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार किया। उसने पाकपटन, दिपालपुर, भटनेर, सिरसा और कैथल होते हुए दिल्ली का मार्ग पकड़ा। नगरों में आग लगाता हुआ, फसलें जलाता हुआ, मनुष्यों की हत्यायें करता हुआ और उन्हें पशुओं के समान बंदी बनाता हुआ वह निर्विरोध आगे बढ़ता रहा।

पंजाब में रहने वाले एक लाख हिन्दुओं को बन्दी बनाकर वह दिल्ली पहुँचा और वहाँ उनका सामूहिक वध कर दिया। इसके बाद उसने दिल्ली में प्रवेश किया। दिल्ली में उन दिनों तुगलक वंश के उत्तराधिकारी सत्ता प्राप्ति के लिये नंगे नाच रहे थे। उन्हें प्रजापालन और प्रजा की रक्षा जैसे कामों से कोई लेना-देना नहीं था। जिस समय तैमूर लंगड़ा अपने एक लाख घुड़सवार लेकर दिल्ली के दरवाजे पर पहुँचा, उस समय दिल्ली निकम्मे सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद के शासन में थी। उस निकम्मे सुल्तान ने अपने प्राणों की रक्षा के आश्वासन के बदले में दिल्ली के दरवाजे तैमूर के लिये खोल दिये।

तीन दिन तक तैमूर लंगड़े ने दिल्ली में कत्ले-आम करवाया। लाखों स्त्रियों के साथ बलात्कार किया गया। लाखों हिन्दुओं के सिर काटकर उनके ऊंचे ढेर लगा दिये गये और उनके धड़ हिँसक पशु-पक्षियों के लिये छोड़ दिये गये। दिल्ली मृतकों का शहर हो गया। कत्ले आम पूरा होने के बाद तैमूर ने कहा मैं ऐसा नहीं करना चाहता था किंतु अल्लाह का ऐसा ही आदेश था इसलिये यह सब अल्लाह की मर्जी से हुआ है। अल्लाह को धन्यवाद देने के लिये वह हरिद्वार पहुँचा।

हरिद्वार में भी उसने दिल्ली वाला कारनामा दोहराया तथा नगर को हिन्दुओं से रहित करके गंगाजी के प्रत्येक घाट पर गौ वध करवाया। इसके बाद उसने जम्मू पहुंच कर वहाँ के हिन्दू राजा से जबरन इस्लाम कबूल करवाया। 19 मार्च 1399 को उसने पुनः अपने देश जाने के लिये सिन्धु नदी को पार किया। तब तक वह कई लाख हिन्दुओं का वध कर चुका था। उसने कितनी गायों की हत्यायें कीं तथा कितने मंदिर जला कर राख कर दिये, उनकी गिनती करने के लिये कोई जीवित नहीं बचा। उसने अपने मार्ग में पड़ने वाले समस्त नगरों और गाँवों को उजाड़ दिया। लाखों पुरुषों, स्त्रियों तथा बच्चों की हत्या कर दी।

लंगड़े दैत्य ने कत्ल किये गये मनुष्यों की खोपड़ियों से जगह-जगह पर पिरामिड सजाये और उन पर खड़े होकर पैशाचिक अट्टहास किये। निर्दोष इंसानों का खून बहाकर जश्न मनाये। उसने केवल उन्हीं को जीवित छोड़ा जो मुसलमान बन गये लेकिन जान बचाने के लिये मुसलमान बन जाने वालों का मौत ने पीछा तब भी नहीं छोड़ा। लाखों शवों के सड़ने से सम्पूर्ण उत्तरी भारत में प्लेग और अकाल फैल गये। बचे खुचे आदमी यहाँ तक कि पशु-पक्षी तक उनकी चपेट में आकर काल कलवित हो गये। कई महीनों तक दिल्ली में किसी पक्षी तक ने पर नहीं मारा फिर बेबस आदमी का तो कहना ही क्या था।

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