सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खाँ पाकिस्तान के साथ नहीं जाना चाहते थे, उन्होंने पाकिस्तान के लिए संघर्ष कर रही मुस्लिम लीग के नेताओं की तुलना भेड़ियों से करते हुए कहा कि कांग्रेस हमें भेड़ियों के सामने फैंक देना चाहती है।
3 जून 1947 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हुई जिसमें माउंटबेटन योजना स्वीकार कर ली गई। बैठक में इसे अस्थाई समाधान बताया गया तथा आशा व्यक्त की गई कि जब नफरत की आंधी थम जाएगी तो भारत की समस्याओं को सही दृष्टिकोण से देखा जाएगा और फिर द्विराष्ट्र का ये झूठा सिद्धांत हर किसी के द्वारा अस्वीकार कर दिया जाएगा।
आज जो भारत का स्वरूप है, इसे इस क्षेत्र के भूगोल यहाँ के पर्वतों और समुद्रों ने बनाया है ….. आर्थिक परिस्थितियों और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के चलते भारत की एकता और जरूरी हो जाती है। भारत का जो स्वरूप हमेशा से हमारी आंखों में बसा हुआ है वह हमारे दिलो-दिमाग में बरकरार रहेगा।
भेड़ियों के सामने
कांग्रेस कार्यसमिति के इस निर्णय से पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश के खानबंधु और खुदाई खिदमतगार, जो बराबर कांग्रेस का साथ दे रहे थे, बड़ी मुसीबत में पड़ गए। जब वर्किंग कमेटी की बैठक में गांधीजी ने भी माउंटबेटन की योजना का अर्थात् देश के बंटवारे की योजना का समर्थन किया तो सीमांत गांधी अब्दुल गफ्फार खाँ अवाक रह गए।
अब्दुल गफ्फार को यह देखकर आश्चर्य हुआ कि खाँ आश्चर्य हुआ कि बंटवारा स्वीकार करने के पहले पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश के नेताओं से पूछा भी नहीं गया। उन्होंने देश के बंटवारे का विरोध करते हुए कहा कि- ‘अगर कांग्रेस अब खुदाई खिदमतगारों को भेड़ियों के सामने फेंक देती है तो सीमांत प्रदेश इसे दगाबाजी का काम समझेगा।’
रेडियो पर घोषणा
3 जून 1947 को शाम सात बजे वायसराय तथा भारतीय नेताओं ने माउंटबेटन योजना को स्वीकार कर लिये जाने तथा अंग्रेजों द्वारा भारत को शीघ्र ही दो नये देशों के रूप में स्वतंत्रता दिये जाने की घोषणा की। वायसराय ने कहा कि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के बीच ऐसी किसी योजना पर समझौता हो पाना संभव नहीं हुआ है जिससे कि देश एक रह सके। इसलिये आजादी के साथ ही जनसंख्या के आधार पर देश का विभाजन हिंदुस्तान व पाकिस्तान के रूप में किया जायेगा।
वायसराय की घोषणा में पाकिस्तान के प्रांतीय और जिलेवार हिस्सों को गिनाया गया। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर विधान सभा के भीतर जनमत संग्रह ‘साधारण बहुमत’ से विभाजन के पक्ष और विपक्ष में किस प्रकार किया जाएगा। देर से बचने के लिए विभिन्न प्रांतों के हिस्सों को स्वतंत्र रूप से यह कार्य करना होगा। मौजूदा संविधान सभा और नई संविधान सभा, संविधान रचना का काम करेगी। ये संस्थाएं अपने नियम स्वयं बनाने के लिए स्वतंत्र होंगी।
वायसराय माउण्टबेटन के संदेश के बाद जवाहरलाल नेहरू, सरदार बलदेवसिंह और मुहम्मद अली जिन्ना के संदेश प्रसारित किए गए। नेहरू ने अपने वक्तव्य के अंत में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया नारा उच्चारित किया- ‘जयहिन्द।’ जबकि जिन्ना ने अपना भाषण ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ कहकर समाप्त किया।
जवाहरलाल नेहरू ने वायसराय की घोषणा का स्वागत करते हुए देशवासियों से अपील की कि वे इस योजना को शांतिपूर्वक स्वीकार कर लें। नेहरू ने कहा- ‘हम भारत की स्वतंत्रता बल प्रयोग या दबाव से प्राप्त नहीं कर रहे हैं। यदि देश का विभाजन हो भी जाता है तो कुछ दिनों पश्चात् दोनों भाग पुनः एक हो जायेंगे और फिर अखण्ड भारत की नींव और मजबूत हो जायेगी।’
जिन्ना ने अपने भाषण में कहा- ‘यह हम लोगों के लिये सोचने की बात है कि जो योजना बर्तानिया सरकार सामने रख रही है, उसे हम लोग समझौता- आखिरी सौदे के रूप में स्वीकार कर लें।’
सिक्खों के नेता बलदेवसिंह ने कहा- ‘यह समझौता नहीं था, आखिरी सौदा था। इससे हर किसी को खुशी नहीं होती। सिक्खों को तो होती ही नहीं। फिर भी यह गुजारे लायक है हमें इसे मान लेना चाहिये।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता