जवाहरलाल नेहरू ने माउण्टबेटन प्लान को यह कहकर नकार दिया कि ब्रिटिश प्रांतों को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता के वे स्वयं इस बात का निर्णय लें कि भारत में रहें या पाकिस्तान में, अपितु हिन्दू बहुल प्रांतों को अनिवार्यतः भारत में ही रखा जाएगा तथा केवल मुस्लिम बहुल प्रांतों को ही पाकिस्तान में जाने का अधिकार होगा तो माउण्टबेटन ने वी. पी. मेनन से माउण्टबेटन प्लान में कुछ संशोधन करने को कहा।
जवाहरलाल नेहरू के नाराज हो जाने पर माउण्टबेटन की दृष्टि सरदार पटेल पर गई किंतु अब तक माउण्टबेटन समझ चुके थे कि इस योजना के मामले में पटेल तो नेहरू से भी अधिक कठोर सिद्ध होंगे। अतः माउण्टबेटन ने भारत सरकार में दोहरी भूमिका निभा रहे अपने राजनीतिक सलाहकार एवं सरदार पटेल के रियासती विभाग के सचिव वी. पी. मेनन से दूसरी योजना तैयार करने को कहा।
जहाँ लॉर्ड माउण्टबेटन के स्टाफ में इण्डियन सिविल सर्विस के बड़े-बड़े दिग्गज अधिकरी मौजूद थे और जिनकी छातियां ऑक्सफोर्ड एवं कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटियों की बड़ी-बड़ी डिग्रियों से जगमगाती थीं और जिनकी बुद्धिमानी के डंके पूरे इंग्लैण्ड में बजते थे और जिन्होंने भारत में अपनी जिंदगी के बहुत बड़े हिस्से गुजार दिये थे, उन सभी को नकार कर माउण्टबेटन ने एक ऐसे आदमी को भारत विभाजन की संशोधितत योजना बनाने के लिए बुलाया जो बहुत साधारण भारतीय परिवार के बारह सदस्यों में से एक था ।
वह केवल 13 वर्ष की आयु में अपना स्कूल, घर और गांव छोड़कर बरसों तक दिल्ली की सड़कों पर हमाली और मजदूरी करता रहा था और रेलवे के इंजनों में कोयला झौंककर पेट पालता रहा था और जो केवल दो अंगुलियों से अंग्रेजी का टाइपराइटर चलाता था। इसका नाम वी. पी. मेनन था। उन दिनों पटेल और मेनन के दिमागों का गठजोड़ बहुत खतरनाक माना जाता था।
माउण्टबेटन को अनुमान भी नहीं था कि शतरंज की जिस चौसर पर माउण्टबेटन और जवाहरलाल नेहरू अपने-अपने मोहरे आगे बढ़ा रहे थे उस चौसर पर माउण्टबेटन और जहवाहरलाल तो स्वयं ही प्यादों से अधिक हैसियत नहीं रखते थे। असली खेल तो वी. पी. मेनन और सरदार पटेल खेलने वाले थे। चौसर भी मेनन और पटेल की थी और प्यादे भी। पटेल और मेनन ने बहुत पहले ही एक योजना अपने दिमाग में बना रखी थी। अब समय आ गया था जब मेनन उसे कागजों पर उतार दें। जहवारलाल नेहरू से बात करने के बाद माउण्टबेटन ने वी. पी. मेनन को बुलवाया तथा उन्हें उसी समय एक योजना बनाकर देने को कहा।
माउण्टबेटन ने इस बात का ध्यान रखा कि मेनन को पटेल से नहीं मिलने दिया जाए क्योंकि योजना बनाने से पहले यदि मेनन पटेल से मिले तो जहवारलाल को संदेह होगा कि विभाजन की नई योजना पटेल ने तैयार की है।
जवाहरलाल कतई नहीं चाहते थे कि इस योजना को बनाने का श्रेय सरदार पटेल को मिले। वी. पी. मेनन उसी समय वायसरॉय निवास पर टाइपराइटर लेकर बैठ गए और उन्होंने चार घण्टों में टाइपराइटर की मदद से एक योजना कागजों पर उतार दी। ऐसा लगता था कि यह मेनन ने तैयार की है किंतु वास्तव में इस योजना का खाका सरदार पटेल द्वारा पहले ही वी. पी. मेनन को बता दिया गया था।
ऑफिस के पोर्च में बैठकर हिमालय के विहंगम दृश्य का आनंद लेते हुए, लंच से डिनर के बीच फैले समय में अर्थात् कठिनाई से छः घण्टे तक काम करके एक ऐसे व्यक्ति ने भारतीय आजादी को नए सांचे में ढालने का गौरव प्राप्त किया, जिसने अपनी सरकारी नौकरी दो अंगुलियों से टाइपिंग करते हुए शुरू की थी। उसने जो मसौदा दुबारा लिखकर तैयार किया, उस आधार पर भारतीय उपमहाद्वीप को नए सिरे से व्यवस्थित किया जाना था और दुनिया का नक्शा भी बदल जाने वाला था।
इस योजना में प्रस्तावित किया गया कि हिन्दू-बहुल आबादी भारत में रहेगी। मुस्लिम-बहुल आबादी वाले क्षेत्र पाकिस्तान में जायेंगे। प्रत्येक ब्रिटिश प्रांत को अनिवार्यतः भारत या पाकिस्तान में मिलना होगा। पंजाब और बंगाल का आबादी के आधार पर बंटवारा होगा। देशी रजवाड़े अपनी मर्जी से हिन्दुस्तान या पाकिस्तान में मिल सकेंगे या फिर अलग देश के रूप में स्वतंत्र रह सकेंगे। नेहरू ने इस योजना को देखते ही स्वीकार कर लिया।
वी. पी. मेनन ने माउण्टबेटन प्लान में जो बड़ा बदलाव किया था, वह था पंजाब और बंगाल का मजहब के आधार पर बंटवारा। सरदार पटेल आरम्भ से ही पूरे पंजाब और पूरे बंगाल को पाकिस्तान में शामिल किए जाने के विरोधी थे।
माउण्टबेटन जानते थे कि जिन्ना आसानी से इस योजना को स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि उसकी मांग पूरे पंजाब और पूरे बंगाल की थी। इसके साथ-साथ ब्लूचिस्तान, सिंध और खैबर-पख्तून तो धर्म के आधार पर जिन्ना के थे ही। फिर भी माउण्टबेटन ने पंजाब और बंगाल के विभाजन वाली यह योजना स्वीकृति के लिए अपने सहायक लॉर्ड इस्मे के साथ लंदन भेज दी।
जिन्ना से भय
लियोनार्ड मोसले ने लिखा है-
‘योजना को स्वीकृति के लिये लंदन भेज दिये जाने के बाद माउंटबेटन जिन्ना की तरफ से आशंकित हो गया। उसे लगा कि जिन्ना छंटे हुए पाकिस्तान का विरोध करेगा। इसलिये उसने जिन्ना से बात की और उससे आश्वस्त होकर इस्मे को लंदन में तार भेजा कि मुझे पूरा विश्वास है कि जिन्ना इसे मान लेगा। हालांकि मैं जानता हूँ कि जिन्ना बहुत ही चालाक और सौदेबाज है, वह मुझे बहका भी सकता है।
माउंटबेटन को इतने पर भी संतोष नहीं हुआ। उसने जिन्ना से निबटने के लिये एक आपात योजना भी तैयार की कि यदि जिन्ना एन वक्त पर मुकर गया तो उस समय क्या किया जायेगा। इस आपात् योजना में मुख्यतः यह प्रावधान किया गया था कि चूंकि जिन्ना ने योजना को अस्वीकार कर दिया है इसलिये सत्ता वर्तमान सरकार को ही सौंपी जा रही है।’
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
Thank you for your sharing. I am worried that I lack creative ideas. It is your article that makes me full of hope. Thank you. But, I have a question, can you help me? https://accounts.binance.com/id/register-person?ref=GJY4VW8W