Friday, April 19, 2024
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भारत को बीच में से चीरने की योजना

मौलाना अबुल कलाम द्वारा विभाजन का विरोध

जब मौलाना अबुल कलाम आजाद को ज्ञात हुआ कि माउंटबेटन ब्रिटिश मंत्रिमण्डल को भारत विभाजन के लिये राजी करने हेतु लंदन जा रहे हैं तो मौलाना ने शिमला जाकर माउंटबेटन से भेंट की और प्रस्ताव रखा कि कैबीनेट मिशन प्लान पर दृढ़ रहें ताकि देश का विभाजन टाला जा सके। इस पर लॉर्ड माउंटबेटन ने कहा कि यदि सत्ता हस्तांतरण में देरी की गयी तो लोग ब्रिटिश सरकार की नीयत पर शक करेंगे और सरकार की बदनामी होगी।

गांधीजी का असमंजस

वायसराय एवं गवर्नर जनरल माउण्टबेटन के प्रयासों से 6 मई 1947 को गांधीजी ने नई दिल्ली में मुहम्मद अली जिन्ना के निवास पर भेंट की। उन दोनों के बीच भारत का वह नक्शा रखा गया जिसमें पाकिस्तान हरे रंग से दिखाया गया था। गांधीजी ने जिन्ना से बहुत अनुनय-विनय की कि वह पाकिस्तान को लेने की जिद्द छोड़ दे।

गांधीजी ने जिन्ना से यहाँ तक कहा कि- ‘यदि वह पाकिस्तान की मांग छोड़ देता है तो उसे आजाद भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाएगा’ किंतु जिन्ना टस से मस नहीं हुआ। इस भेंट के बाद जिन्ना ने एक परिपत्र जारी किया जिसमें कहा गया कि मिस्टर गांधी बंटवारे के सिद्धांत को नहीं मानते हैं। उनके लिये बंटवारा अनिवार्य नहीं है। जबकि मेरी दृष्टि में न सिर्फ बंटवारा अनिवार्य है अपितु हिन्दुस्तान की राजनीतिक समस्या का एकमात्र व्यावहारिक हल भी है।

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7 मई 1947 की प्रार्थना सभा में गांधीजी ने अपना निर्णय जनता के समक्ष रखा- ‘कल में जिन्ना साहब के पास गया था। हमारे बीच राजनीतिक विरोध बहुत ज्यादा है। वे पाकिस्तान मांगते हैं, मैं उसका विरोधी हूँ परन्तु कांग्रेस वालों ने लगभग निर्णय कर लिया है कि पाकिस्तान की मांग पूरी कर दी जाए। हाँ पंजाब और बंगाल के जिन इलाकों में हिन्दुओं का बहुमत है, वे पाकिस्तान को न मिलें। केवल वे ही प्रदेश पाकिस्तान में जाएंगे जहाँ मुसलमानों का बहुमत है। मैं तो इसके भी विरुद्ध हूँ। देश के टुकड़े करने की बात से मैं कांप उठता हूँ। परन्तु यह विचार रखने वाला इस समय मैं अकेला हूँ। मैं किसी भी पक्ष का समर्थन नहीं करता। जिन्ना साहब को मैंने साफ कह दिया है कि मैं तो हिन्दू, मुसलमान, पारसी सिक्ख, जैन, ईसाई आदि सभी जातियों का सेवक हूँ, ट्रस्टी हूँ। इसलिए पाकिस्तान के निर्माण में मैं दिलचस्पी नहीं लूंगा। और उसकी स्वीकृति पर मैं हस्ताक्षर नहीं करूंगा। मैंने जिन्ना साहब को यह भी नम्रतापूर्वक बताया कि आप हिंसा के जोर से या ऐसे नामर्दी भरे रवैये से पाकिस्तान नहीं ले सकते। समझाकर शांति से सारा देश भले ही आपको सौंप दिया जाए, उससे मैं खुश हो जाउंगा। ऐसा होगा तो मैं सबसे पहली बधाई दूंगा।’

गांधीजी द्वारा पाकिस्तान निर्माण का पुनः विरोध

18 मई 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन भारत-विभाजन की योजना लेकर दिल्ली से लंदन गए। पूरा देश जानता था कि लॉर्ड माउंटबेटन भारत-विभाजन की अनुमति लेने के लिए लंदन गए हैं किंतु 30 मई 1947 को जिस दिन भारत-विभाजन योजना पर एटली और चर्चिल का अनुमोदन लेकर वायसराय लंदन से भारत लौटे, उसी शाम को प्रार्थना सभा में गांधीजी ने विभाजन का कठोर शब्दों में विरोध करते हुए कहा- ‘देश अगर धू-धू करके जलने लगता है, तो भी….. पाकिस्तान के नाम पर हम एक इंच भूमि नहीं देंगे।

गांधीजी भले ही पाकिस्तान न बनने देने की गंभीर घोषणाएं कर रहे थे किंतु भीतर ही भीतर हताश थे और वे अच्छी तरह समझ चुके थे कि इस विषय पर अब कांग्रेस में उनके विचारों का समर्थन करने वालों की संख्या घट गई है। यहाँ तक कि उनके पुराने साथी नेहरू और पटेल भी पाकिस्तान निर्माण के समर्थक हो गए हैं।

इससे दुःखी होकर एक दिन उन्होंने प्रार्थना सभा में सबके सामने कहा- ‘आज मैं स्वयं को अकेला पाता हूँ। सरदार पटेल और जवाहरलाल भी सोचते हैं कि मेरा स्थिति का आकलन गलत है तथा विभाजन पर सहमति से शांति अवश्य वापस होगी….।’

भारत को बीच में से चीरने की योजना

जब माउंटबेटन नयी योजना की स्वीकृति लेकर भारत आ गये तो अचानक जिन्ना ने मांग की कि उसे पूर्वी-पाकिस्तान और पश्चिमी-पाकिस्तान को मिलाने के लिये हिंदुस्तान से होकर एक हजार मील का रास्ता चाहिये। इस पर कांग्रेस फिर बिफर पड़ी किंतु माउण्टबेटन ने किसी तरह दोनों पक्षों में बीच-बचाव किया।

गुरुदत्त ने लिखा है- ‘जिन्ना उत्तरी और पश्चिमी-पाकिस्तान को मिलाने के लिए हिमालय के नीचे-नीचे एक सौ मील चौड़ी पट्टी चाहता था।’

दिल्ली में सीधी कार्यवाही दिवस का खतरा मई 1947 के दूसरे सप्ताह में कलकत्ता डेली में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई जिसमें एक संवाददाता द्वारा लिखा गया कि- ‘ परिस्थिति का मेरा अध्ययन इस प्रकार है……. दिल्ली में वैसा ही डायरेक्ट एक्शन शीघ्र होने वाला है। जैसा अभी-अभी पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत में किया गया है। ……..

हिन्दुस्तान की केन्द्रीय सरकार के संचार विभाग को अविलम्ब मुसलमानी बना दिया गया है। दिल्ली टेलिफोन विभाग के समस्त आवश्यक स्थानों पर यूरोपियन, हिन्दू और सिक्ख अधिकारियों को निकालकर मुसलमान नियुक्त कर दिए गए हैं। जिससे वैसा ही समय पड़ने पर जैसा पंजाब और पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत में अभी-अभी पड़ा था, समस्त संचार साधन दिल्ली के भीतर और दिल्ली के हिन्दुस्तान के अन्य भागों के साथ काट लिए जाएं अथवा नियंत्रण में कर लिए जाएं।’

सरकार द्वारा समय पर किए गए प्रबंध से यह आशंका निर्मूल सिद्ध हुई, दिल्ली में डायरेक्ट एक्शन नहीं हो सका।

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