भाग्य ने बाबर की शीघ्र ही फिर से सुधि ली। जब बाबर के शत्रु शैबानीखाँ ने कुन्दुज के शासक खुसरो शाह को हरा कर उसकी सेना भंग कर दी तो खुसरो शाह के चार हजार सैनिक पहाड़ों में छिपे हुए बाबर से आ मिले। यहीं से बाबर की खूनी ताकत ने फिर से जोर मारा।
भाग्य से हाथ आयी सेना का बाबर ने जमकर उपयोग किया और तत्काल ही काबुल पर आक्रमण कर दिया। शीघ्र ही काबुल, गजनी और उनसे लगते हुए बहुत सारे क्षेत्र बाबर के अधीन आ गये। बाबर ने भाग्य को अपने अनुकूल जानकर पूर्वजों की उपाधि मिर्जा का त्याग कर दिया और बादशाह की उपाधि धारण की।
बादशाह बनने के बाद बाबर ने एक बार फिर से अपने बाप-दादों के राज्य पर अधिकार करने का प्रयत्न किया और ईरान के शाह से सहायता मांगी। ईरान के शाह ने शर्त रखी कि यदि बाबर सुन्नी मत त्याग कर शिया हो जाये तो उसे ईरान की सेना मिल जायेगी।
बाबर की महत्वाकांक्षा ने बाबर को ईरान के शाह की बात मान लेने के लिये मजबूर किया और बाबर सुन्नी से शिया हो गया। इस अहसान का बदला चुकाने के लिये ईरान का शाह बड़ी भारी सेना लेकर बाबर की मदद के लिये आ गया। उसकी सहायता से बाबर ने समरकंद, बुखारा, फरगाना, ताशकंद, कुंदुज और खुरासान फिर से जीत लिये। यह पूरा क्षेत्र ट्रान्स ऑक्सियाना कहलाता था और इस सारे क्षेत्र में सुन्नी रहते थे। ईरान के शाह के साथ हुई संधि के अनुसार बाबर के लिये आवश्यक था कि वह ट्रान्स ऑक्सियाना के लोगों को शिया बनाये किंतु ट्रान्स ऑक्सियाना के निवासियों को यह मंजूर नहीं हुआ। जिसका परिणाम यह हुआ कि ईरान के शाह की सेना के जाते ही लोगों ने बाबर को वहाँ से मार भगाया।
अब मध्य एशिया में बदख्शां ही एकमात्र ऐसा प्रदेश रह गया जिस पर बाबर का अधिकार था। इस एक प्रदेश के भरोसे बाबर ट्रान्स ऑक्सियाना में बना नहीं रह सकता था। उसने बदख्शां को खान मिर्जा नाम के आदमी की देखरेख में देकर ट्रान्स ऑक्सियाना छोड़ दिया। अपने बाप-दादों की जमीन से हमेशा के लिये नाता टूट जाने से उसका दिल बुरी तरह टूट गया था। वह बुरी तरह सिर धुनता हुआ अफगानिस्तान लौट आया।
ट्रान्सऑक्सियाना के हाथ से निकल जाने पर बाबर ने अपना ध्यान अपनी अफगान प्रजा पर केंद्रित किया। बाबर के अधिकार में जो इलाका था उसमें यूसुफजाई जाति के लोग बड़ी संख्या में रहते थे। ये लोग बड़े झगड़ालू, विद्रोही और हद दर्जे तक बर्बर थे। वे किसी भी तरह के अनुशासन में रहने की आदी नहीं थे तथा किसी भी बादशाह को कर नहीं देना चाहते थे। बाबर ने उन्हें बलपूर्वक कुचलना चाहा किंतु इस कार्य में उसे सफलता नहीं मिली। पहाड़ी और अनुपजाऊ क्षेत्र होने के कारण बाबर इस क्षेत्र से इतनी आय भी नहीं जुटा पाया जिससे उसका गुजारा हो सके।
जीवन भर की लड़ाइयों के चलते तुर्क, मंगोल, ईरानी, उजबेग और अफगानी लोग बाबर के खून के प्यासे हो गये थे इस कारण यह आवश्यक था कि उसके पास एक विशाल सेना रहे किंतु सेना को चुकाने के लिये वेतन का प्रबंध हो पाना अफगानिस्तान में रहते हुए संभव नहीं था। एक सौ ग्यारह साल की बुढ़िया से उसने भारत की सम्पन्नता और तैमूर के भारत आक्रमण की जो कहानियाँ सुनीं थीं वे अब भी उसके अवचेतन में घर बनाये हुए बैठी थीं। इसलिये इस बार उसने देवभूमि भारत में अपना भाग्य आजमाने का निर्णय लिया।
इन सब से भी बढ़कर एक और चीज थी जो उसे अफगानिस्तान में चैन से बैठने नहीं दे रही थी। वह थी उसकी खूनी ताकत। आखिर उसके खून में चंगेजखाँ और तैमूर लंगड़े का सम्मिलित खून ठाठें मार रहा था! जो क्रूरता की सारी सीमायें पार कर नई मिसाल स्थापित करना चाहता था।