तुर्कों की कई प्रबल शाखायें हुई जिन्होंने अलग-अलग स्थानों पर अपने राज्य कायम किये। जो ‘तुर्क’ तुर्किस्तान से आकर ईरान में बस गये थे, उन्हें तुर्कमान कहा जाता था। तुर्कमानों का जो कबीला काली बकरियां चराता था वह ‘कराकूयलू’ कहलाता था। तुर्की भाषा में ‘करा’ काले को कहते हैं, ‘कूय’ माने बकरी और ‘लू’ का अर्थ होता है- वाले। इस प्रकार काली बकरियों वाले कराकूयलू कहलाये। सफेद बकरियां चराने वाले उनके भाई आककूयलू कहलाते थे। तुर्कों के कराकूयलू तथा आककूयलू कबीले अजरबैजान में निवास करते थे जो रूम और रूस की सीमाओं पर स्थित है।
कराकूयलू वंश की कई शाखायें थीं जिनमें से एक प्रमुख शाखा थी- ‘बहारलू’। मुगल अमीर तैमूर लंगड़े के समय में बहारलू शाखा में अली शकरबेग नाम का आदमी हुआ जिसके पास हमदान, देनूर और गुर्दिस्तान के इलाके जागीर में थे। यह जागीर ‘अलीशकर बेग की विलायत’ कहलाता था। अलीशकर बेग इतना नामी आदमी था कि जब इस क्षेत्र से तुर्कमानों का राज्य चला गया तब भी यह क्षेत्र अलीशकर बेग की विलायत कहलाता रहा।
अलीशकर बेग का बेटा पीरअली हुआ। उसने अपनी बहिन का विवाह तूरान के शाह महमूद मिरजा से कर दिया और इस नाते वह शाह का अमीर हो गया। यहीं से बहारलू खानदान मुगल खानदान से जुड़ा। महमूद मिरजा फरगना के उसी मुगल शासक उमरशेख का बड़ा भाई था जिस उमरशेख के बेटे बाबर ने हिन्दुस्थान में मुगल शासन की नींव रखी।
तूरान से महमूद मिरजा का राज्य खत्म होने के बाद पीरअली खुरासान चला गया। खुरासान के अमीरों ने पीरअली को शक्तिशाली समझ कर और आने वाले समय में अपने लिये प्रबल प्रतिद्वंद्वी जानकर उसकी हत्या कर दी। पीरअली का बेटा यारबेग हुआ। वह ईरान में रहता था। जब ईरान का वह क्षेत्र आककूयलू शाखा के हाथों से निकल गया तो यारबेग भाग कर बदख्शां आ गया और बदख्शां के कुन्दुज नामक शहर में रहने लगा। बदख्शां उस समय उमरशेख के बाप अबू सईद के अधीन था।
जब उमरशेख बदख्शां का शासक हुआ था तब यारबेग कुन्दुज में ही रहता था। यारबेग के बेटे सैफ अली ने बदख्शां की सेना में नौकरी कर ली। सैफअली का बेटा बैरमबेग उमरशेख के बेटे बाबर की सेना में शामिल हो गया। जब 1513 ईस्वी में बाबर अंतिम बार बदख्शां से अफगानिस्तान के लिये रवाना हुआ तो कराकायलू शाखा का यह चिराग़ भी अपना भाग्य आजमाने के लिये बाबर के साथ लग लिया।