Saturday, December 7, 2024
spot_img

क्या कोई भी मृत्यु से बच सकता है?

आत्मा देह क्यों त्यागती है? इस प्रश्न के उत्तर में एक शाश्वत नियम बताया जाता है कि जिसका जन्म हुआ है, वह मृत्यु को अवश्य प्राप्त होगा।

सप्तचिरंजीवी

मृत्यु की अनिवार्यता सम्बन्धी धारणा अस्तित्व में होते हुए भी भारतीय संस्कृति में सप्तचिरंजीवियों की अवधारणा भी मौजूद है। इसके अनुसार रामकथा कालीन हनुमान, विभीषण एवं परशुराम, महाभारत कालीन वेदव्यास, अश्वत्थामा, कृपाचार्य तथा पुराणकालीन राजा बली अमर हैं। इनकी मृत्यु नहीं होती-

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमांश्च बिभीषणः।
कृपः परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविनः।।

कुछ लोग इस सूची में जाम्बवान का तथा कुछ लोग आल्हा का नाम रखते हैं। इन सातों के साथ मार्कण्डेय ऋषि को भी दीर्घजीवी माना जाता है-

सप्तैतान् स्मरेन्नित्यम् मार्कण्डेयम् तथाष्टम्।
जीवेद् वर्षशतं सोऽपि सर्वव्याधिविवर्जितः।।

सप्तचिरंजीवियों में से हनुमानजी को शिवजी का, जाम्बवान को ब्रह्माजी का तथा परशुराम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। ये तीनों देवता हैं तथा बिना देह के रह सकते हैं और इच्छानुसार कभी भी देहधारण एवं देहत्याग कर सकते हैं। ये रामायण काल में थे तो महाभारत के काल में भी।

अनेक पुण्यात्माओं ने हनुमानजी के दर्शन होने की बात कही है। शेष चिरंजीवियों में से अश्वत्थामा को छोड़कर कभी भी किसी ने भी देखने का दावा नहीं किया है। अतः यह शाश्वत सत्य ही जान पड़ता है कि जिसने जन्म लिया है, वह देह त्याग अवश्य करेगा। यह बात अलग है कि हर देह की आयु एक जैसी नहीं है।

पुराणों में जिन सप्तचिरंजीवियों की बात कही गई है, वे संभवतः केवल एक ही सृष्टि के लिए चिरंजीवी होते हैं। जब इस सृष्टि का प्रलय होगा तब ये सप्तचिरंजीवी भी ईश्वर में स्थिर हो जाएंगे।

किसने देखे हैं सैंकड़ों हजारों साल के मनुष्य?

भारतीय जनमानस अनेक तपस्वियों की सैंकड़ों- हजारों वर्षों की आयु में विश्वास करता है किंतु बहुत कम लोगों ने इस बात का दावा किया है कि उन्होंने सैकड़ों या हजारों वर्ष की आयु के आदमी को स्वयं अपनी आंखों से देखा है।

क्या देवताओं की भी मृत्यु होती है?

भारतीय वांगमय उन देवताओं के वर्णन से भरा पड़ा है जो हिमालय पर्वत पर रहते थे। वे हजारों साल की आयु वाले थे तथा अमर थे किंतु जब प्रलय हुई तब सम्पूर्ण देवलोक नष्ट हो गया। उस सृष्टि में से केवल मनु ही जीवित रहे जो देवताओं की संतान थे और उन्होंने मानव सृष्टि को जन्म दिया। पुराणों में आए इस वर्णन से निष्कर्ष निकलता है कि देवता भी अमर नहीं थे, उनकी भी मृत्यु हुई।

क्या कागभुशुण्डि की भी मृत्यु होती है?

रामचरितमानस में कागभुशुण्डि नामक एक अनोखे जीव का वर्णन आया है। यह कौए के रूप में रहकर ईश्वर की भक्ति में लीन रहता है। यह एक सृष्टि से दूसरी सृष्टि में तथा एक ब्रह्माण्ड से दूसरे ब्रह्माण्ड में विचरण करता है। जब प्रलय होती है तब भी उसका नाश नहीं होता। वह भी शरीर बदलता रहता है।

क्या लोमश ऋषि की भी मृत्यु होती है?

भारतीय पुराणों में कहा गया है कि जब एक सृष्टि समाप्त होती है तब लोमश ऋषि के शरीर का एक रोम टूटता है अर्थात् किसी एक सृष्टि में प्रलय होने पर भी लोमश ऋषि का विलोपन नहीं होता वे अगली सृष्टि में चले जाते हैं। इस पर भी किसी भी ग्रंथ ने यह कहीं नहीं लिखा है कि लोमश ऋषि अमर हैं। कुछ सृष्टियों या बहुत सी सृष्टियों के बाद एक समय ऐसा आएगा जब लोमश ऋषि की देह भी पूरी हो जाएगी।

क्या ब्रह्मा की भी मृत्यु होती है?

पुराणों के अनुसार ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता माना गया है। एक निश्चित समय के बाद ब्रह्मा अपनी बनाई सृष्टि को अपने भीतर ले लेता है जिसे प्रलय कहते हैं। इसके बाद ब्रह्मा नई सृष्टि का निर्माण करता है। यह क्रम चलता रहता है। एक निश्चित समय के बाद ब्रह्मा की भी मृत्यु होती है तथा उसके बाद नया ब्रह्मा आता है।

केवल ईश्वर ही है अमर!

जब पुराणों के अनुसार सृष्टिकर्ता ब्रह्मा भी मृत्यु को प्राप्त होता है तो इससे समझा जा सकता है कि मृत्यु शाश्वत है, देवता भी मरते हैं, ब्रह्मा भी मरते हैं, केवल भगवान ही सदैव एक जैसे रहते हैं और उनका आदि एवं अंत दोनों नहीं है।

-मोहन लाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source