Saturday, July 27, 2024
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अध्याय – 38 : भारत में अठारहवीं सदी में प्रेस एवं पत्रकारिता का विकास

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

मानव सभ्यता के विकास के साथ समाचार पत्रों के स्वरूप में भी परिवर्तन आता रहा है। अशोक (273 ई.पू.-232 ई.पू) के शासन काल में सम्राट के पास साम्राज्य के भिन्न-भिन्न प्रदेशों से समाचार एवं घटनाओं का वृत्तान्त निश्चित समय पर लिखकर भेजा जाता था। इसे समाचार पत्र का अत्यंत प्रारम्भिक रूप कहा जा सकता है। चीन में पहला समाचार पत्र छठी शताब्दी ईस्वी में निकला जो लगभग 1500 वर्षों तक चला। इस प्रकार समाचार पत्र एक प्राचीन संस्था है जिसके द्वारा शासक को विभिन्न प्रदेशों में घटित होने वाली घटनाओं और जनता के विचारों से अवगत कराया जाता था। मुगलों के समय में स्पष्ट रूप से इसका अस्तित्त्व दिखाई देता है। मुगल शासकों द्वारा विभिन्न प्रदेशों में वाकयानवीस नियुक्त किये जाते थे जो समय-समय पर विभिन्न क्षेत्रों से सूचनाएं लिखकर बादशाह को भिजवाते थे। बाद के काल में मुगल-सल्तनत के विभिन्न प्रदेशों में होने वाली घटनाओं के वृत्तान्त की नकल की हुई प्रतियाँ प्रमुख अधिकारियों के पास भेजी जाने लगीं। मुगलों की नकल करके ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने समाचार प्रेषकों की नियुक्ति की। उपरोक्त समाचार पत्रों को आधुनिक पत्रकारिता का पूर्वज कहा जा सकता है किन्तु उनका उपयोग केवल शासक द्वारा अपने साम्राज्य की सूचनाएं प्राप्त करना तथा शासन के उच्चाधिकारी वर्ग को सुचारू रूप से नियंत्रित करने में होता था। उनका उद्देश्य जनता को सूचनाएं पहुंचाना अथवा राजकीय नीतियों को जनता तक पहुँचाना नहीं था। इन समाचार पत्रों से शासक को जन-भावनाओं की सही जानकारी प्राप्त नहीं होती थी।

आधुनिक समाचार पत्रों का जन्म 16वीं शताब्दी में पश्चिमी यूरोप के जर्मनी, स्विट्जरलैण्ड तथा हॉलैण्ड आदि देशों में हुआ था। इंग्लैण्ड में 17वीं शताब्दी के प्रारम्भ में जेम्स (प्रथम) के शासनकाल में, शेक्सपीयर की मृत्यु के बाद पहला समाचार पत्र निकला। 17वीं शताब्दी में स्टुअर्ट वंश इंग्लैण्ड में अलोकप्रिय हो गया था। इस वंश के शासकों ने प्रेस को स्वतंत्रता नहीं दी। इंग्लैण्ड में जो समाचार पत्र निकलते थे उनमें विदेशों के समाचारों को छापने की तो स्वतन्त्रता थी किन्तु स्वदेशी समाचार छापने पर रोक थी। 17वीं शताब्दी के अन्त में हुई क्रान्ति के बाद इंग्लैण्ड में समाचार पत्रों की बाढ़ आ गई। 1702 ई. में पहला दैनिक समाचार पत्र डेली करैन्ट प्रकाशित हुआ।

भारत में छापाखाने का प्रारम्भ

भारत में प्रथम छापाखाना 1557 ई. में पुर्तगालियों द्वारा गोआ में स्थापित किया गया। उस समय तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भारत में प्रवेश नहीं किया था। इस छापाखाने में सबसे पहले, मलयालम भाषा में ईसाई धर्म की पुस्तक प्रकाशित की गई। दूसरा छापाखाना तमिलनाडु के तिनेवली में स्थापित हुआ। 1762 ई. में काठियावाड़ के भीमजी पारिख ने हिन्दू धर्म ग्रन्थ प्रकाशित करने के लिए बम्बई में एक छापाखाना लगाया। भारत में पहला अँग्रेजी छापाखाना 1674 ई. में बम्बई में स्थापित हुआ। लगभग 100 वर्ष बाद 1772 ई. में मद्रास में और 1779 ई. में कलकत्ता में सरकारी छापाखाना स्थापित हुआ।

बोल्ट्स के प्रयास

भारत में समाचार पत्र प्रकाशित करने का पहला प्रयत्न 1767 ई. में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अधिकारी विलियम बोल्ट्स ने किया। कम्पनी के साथ बोल्ट्स के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। उसने पूर्व में दो पुस्तकें प्रकाशित की थीं जिनमें कम्पनी प्रशासन की आलोचना की गई थी। कम्पनी के अधिकारी आलोचना सहने को तैयार नहीं थे। ऐसी स्थिति में बोल्ट्स को समाचार पत्र प्रकाशन की अनुमति नहीं दी गई। कम्पनी शासन के विरोध के कारण बोल्ट्स के प्रयत्न सफल नहीं हुए और उसे भारत छोड़कर इंग्लैण्ड लौट जाना पड़ा। बोल्ट्स के बाद लगभग 12 वर्ष तक इस दिशा में कोई प्रयत्न नहीं हुआ।

भारत में समाचार पत्रों का उदय एवं सरकारी प्रतिबन्ध

भारत में समाचार पत्र के प्रकाशन का कार्य सबसे पहले गैर-सरकारी अँग्रेज विद्वान जेम्स ऑगस्ट हिक्की ने किया। उसने कम्पनी के स्वेच्छाचारी शासन के विरुद्ध आवाज उठाई। हिक्की ने 29 जनवरी 1780 को बंगाल गजट एण्ड कलकत्ता एडवरटाइजर नाम से अँग्रेजी समाचार पत्र प्रकाशित किया। इस समाचार पत्र में केवल दो पृष्ठ थे तथा पृष्ठों का आकार छोटा था। हिक्की ने अपने लक्ष्य की व्याख्या करते हुए लिखा- ‘मुझे अपने शरीर को बन्धन से बाँधने में सुख मिल रहा है, क्योंकि उसके द्वारा मैं अपनी आत्मा और मन की स्वतन्त्रता प्राप्त करने की आशा करता हूँ मेरे इस साप्ताहिक-पत्र में स्तम्भ यद्यपि समस्त राजनीतिक और व्यवसायिक वर्गों और मतमतान्तरों के लिए खुले रहेंगे तथापि वे किसी के भी प्रभाव और दबाव से मुक्त रहेंगे।’

हिक्की ने अपने समाचार पत्र में, कम्पनी के अधिकारियों की अनेक बुराइयों की तीव्र आलोचना प्रकाशित की। इस समय गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्ज की कौंसिल का सदस्य फिलिप फ्रांसिस, गवर्नर जनरल और कौंसिल के अन्य सदस्यों का कटु आलोचक था। हिक्की के समाचार पत्र में फ्रांसिस को छोड़कर गवर्नर जनरल, मुख्य न्यायाधीश सर एलिजा इम्पे आदि समस्त अधिकारियों की कटु आलोचना हुई। इससे प्रतीत होता है कि फ्रांसिस और हिक्की में विशेष मित्रता थी अथवा हिक्की के प्रोत्साहन का स्रोत फ्रांसिस ही था। कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता था कि हिक्की बिना किसी समर्थन के अथवा कम्पनी के असन्तुष्ट अधिकारियों द्वारा सूचना न मिलने पर इस प्रकार की आलोचना छाप सके। इन आलोचनाओं से कम्पनी के अधिकारी क्षुब्ध हो उठे। प्रकाशन के एक वर्ष के भीतर ही हिक्की का कम्पनी के अधिकारियों से झगड़ा हो गया। उस समय भारत में समाचार पत्रों के विषय में कोई नियम नहीं थे। पत्र निकालने के लिए भारत में लाइसेंस लेना अनिवार्य था। डाक से अखबार भेजने का अधिकार सरकार के हाथों सुरक्षित था। हिक्की के पत्र में कम्पनी प्रशासन की आलोचना के कारण वारेन हेस्टिंग्ज ने 14 नवम्बर 1780 को हिक्की के बंगाल गजट पर पहला प्रहार किया। गवर्नर जनरल के आदेश से हिक्की के पत्र को डाक से भेजे जाने की सुविधा बंद कर दी गई। इसके बाद हिक्की ने आलोचना को और अधिक कटु कर दिया। हिक्की को इसकी कीमत चुकानी पड़ी। फ्रांसिस के भारत से चले जाने के बाद हेस्टिंग्ज ने इस पत्र पर कुठाराघात किया। 1782 ई. में सरकार ने हिक्की का छापाखाना और समस्त सम्पत्ति जब्त कर ली।

हिक्की के बंगाल गजट के बाद 1780 ई. में दूसरा समाचार पत्र इण्डिया गजट प्रकाशित हुआ जिसे समस्त प्रकार की सरकारी सुविधाएँ दी गईं। सम्भवतः यह वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा समर्थित अखबार था जिसे सरकारी विज्ञापन आदि अधिक सरलता से मिलते थे। 1784 ई. में कलकत्ता गजट तथा 1785 ई. में टामस जोन्स के प्रयत्नों से बंगाल जर्नल का प्रकाशन हुआ। इसका सम्पादक विलियम डुआनी था। डुआनी ने सरकार के विरुद्ध अभियान छेड़ा। उसकी स्पष्टवादिता और सरकारी कार्यों की आलोचना के कारण सरकारी अधिकारी उससे क्रुद्ध हो गये। डुआनी को बलात् एक अँग्रेजी जहाज में बैठाकर भारत से बाहर भेज दिया गया। 1780 ई. से 1793 ई. के बीच कलकत्ता से छः समाचार पत्रों का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इनमें एक समाचार पत्र हरकारू था। इसके सम्पादक चार्ल्स मैकलीन को सरकार से कड़ा संघर्ष करना पड़ा। इस प्रकार बंगाल से छः पत्र प्रकाशित हुए, उनमें से दो सरकार के कटु आलोचक थे। चार अखबार सरकारी कृपा पर निर्भर थे तथा सरकार की आलोचना करने से डरते थे।

मद्रास में सबसे पहले 1785 ई. में मद्रास कोरियर नामक समाचार पत्र निकला। मद्रास सरकार ने भी समाचार पत्रों के प्रति कड़ा रुख अपनाया और 1795 ई. में यह शर्त लगाई कि कोई भी सामग्री छापने से पहले उस पर सरकार की अनुमति प्राप्त की जानी आवश्यक है। मद्रास कोरियर के संस्थापक रिचार्ड जॉन्सटन को अनेक सरकारी सुविधाएँ दी गईं। 1795 ई. में इसी तरह सरकारी प्रभाव के अन्तर्गत ही मद्रास गजट निकाला गया। इसी दशक में मद्रास में हंफ्रेंस द्वारा इण्डिया हेराल्ड का प्रकाशन किया गया। इसे आरम्भ करने के लिए हंफ्रेंस द्वारा किये गये आवेदन को मद्रास सरकार ने अस्वीकार कर दिया। इस पर हंफ्रेंस ने बिना सरकारी अनुमति के ही इण्डिया हेराल्ड का प्रकाशन आरम्भ कर दिया। सरकारी अधिकारियों ने हंफ्रेंस पर आरोप लगाया कि उसने अपने पत्र में सरकारी नीति के विरुद्ध तथा प्रिन्स ऑफ वेल्स के सम्बन्ध में आपत्तिजनक बातें प्रकाशित की हैं। मद्रास सरकार ने हंफ्रेंस को भारत से निर्वासित कर दिया। इस घटना के बाद मद्रास सरकार का समाचार पत्रों पर नियंत्रण और भी कठोर हो गया। कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास की सरकारें, समाचार पत्रों में छपने वाली आलोचनाओं से इसलिए भयभीत नहीं होती थीं कि उनका विपरीत प्रभाव भारतीय जनता पर पड़ेगा, अपितु इसलिए भयभीत होती थीं कि कहीं इंग्लैण्ड में जनमत कम्पनी शासन और गतिविधियों के विरुद्ध न हो जाय।

बम्बई प्रान्त में अखबार सबसे बाद में निकले। 1789 ई. में बम्बई में पहला साप्ताहिक समाचार पत्र बॉम्बे हेराल्ड निकला। 1790 ई. में दूसरा समाचार पत्र बॉम्बे कोरियर नाम से और 1791 ई. में तीसरा समाचार पत्र बॉम्बे गजट नाम से प्रकाशित हुआ। बॉम्बे कोरियर, आगे चलकर टाइम्स ऑफ इण्डिया के नाम से प्रकाशित होने लगा जो आज भी देश का प्रमुख अँग्रेजी समाचार पत्र है। 18वीं शताब्दी के अन्त तक बंगाल, मद्रास व बम्बई प्रान्तों से अनेक मासिक तथा साप्ताहिक समाचार पत्रों का प्रकाशन होने लगा। मद्रास एवं बम्बई के समाचार पत्र सरकार विरोधी नहीं थे। ये समस्त पत्र अँग्रेजी भाषा में प्रकाशित होते थे जिनके अधिकतर सम्पादक कम्पनी के सेवानिवृत्त अँग्रेज अधिकारी थे। इन समाचार पत्रों की सदस्यता सरकारी कार्यालयों तथा विदशी व्यापारियों तक सीमित थी। इस समय पत्रकारिता सम्बन्धी कानून नहीं बने थे। सरकार की आलोचना करने पर सम्पादकों को यातनाएँ दी जाती थीं और अन्त में भारत छोड़ने पर बाध्य कर दिया जाता था। इन समाचार पत्रों का स्वरूप अराजनीतिक था। इनकी सामग्री में विदेशी समाचार, सरकारी आदेश, सरकारी विज्ञापन, सम्पादक के नाम पत्र, व्यक्तिगत समाचार, फैशन सम्बन्धी समाचार तथा यूरोपीय समाज के बारे में चटपटी एवं रहस्यमयी बातें होती थीं।

इस प्रकार 18वीं शताब्दी के भारतीय समाचार पत्रों के इतिहास का पहला अध्याय इंग्लो-इण्डियन समाचार पत्रों का इतिहास है। इस अवधि में समाचार पत्रों पर कुछ प्रतिबन्ध लगाये गये, जैसे-प्रत्येक समाचार पत्र को, अपने सम्पादक एवं संचालक के नाम सरकार को लिखित में देने होंगे। प्रत्येक अंक पर मुद्रक एवं सम्पादक के नाम अंकित करने होंगे। मुद्रित करने से पहले सामग्री का अवलोकन किसी सरकारी अधिकारी द्वारा किया जाना आवश्यक होगा। रविवार को कोई अंक प्रकाशित नहीं होगा आदि। सेना, युद्ध-सामग्री, जहाज, कम्पनी के देशी राज्यों से सम्बन्ध, सरकारी आय, सरकारी अधिकारियों के कार्यों तथा व्यक्तिगत मामलों से सम्बन्धित समाचार प्रकाशित नहीं किये जा सकते थे।

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