ई.1940 में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया ने ब्रिटिशों से संघर्ष न करने के लिए गांधीजी के नेतृत्व पर प्रहार किया। ई.1941 में जब हिटलर ने सोवियत संघ पर आक्रमण किया तो मास्को ने विश्व की सभी कम्युनिस्ट और प्रगतिशील शक्तियों को सोवियत रूस के संघर्ष या सोवियत संघ के मित्र राष्ट्रों के संघर्ष में अपना योगदान देने का आग्रह किया।
उस समय कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया के महासचिव पी. सी. जोशी ने यह मत व्यक्त किया कि मुस्लिम लीग प्रमुख राजनीतिक संगठन है। उसने कांग्रेस से अलग राष्ट्र की मांग को स्वीकार करने का आग्रह किया।
सितम्बर 1942 में सी.पी.आई. की केन्द्रीय समिति ने यह प्रस्ताव अंगीकार किया- भारतीय जनसमुदाय के प्रत्यंक अंग जिसका उसके देश में सम्बद्ध क्षेत्र, समान ऐतिहासिक परम्परा, समान भाषा, संस्कृति, मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति, समान आर्थिक जीवन हो, उसे स्वतंत्र भारतीय केन्द्र या संघ में एक स्वायत्त राज्य के रूप में रहने के अधिकार के साथ एक भिन्न राष्ट्रीयता प्रदान करनी चाहिए और अपनी इच्छा पर उसे केन्द्र या संघ से अलग होने का भी अधिकार होना चाहिए।
1940 के दशक के मध्य में ई. एम. एस. नंबूदिरीपाद ने ए. के. गोपालन के साथ केरल में मुसलमानों के एक जुलूस का नेतृत्व किया जिसमें पाकिस्तान जिंदाबाद और मोपलिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए। इसलिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि ख्वाजा अहमद अब्बास जो कि एक वामंथी थे, को यह कहना पड़ा कि कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया ने भारत को नुकसान पहुंचाया जिसमें मुस्लिम अलगाववादियों को एक सैद्धांतिक आधार प्रदान किया जाना शामिल था।
ई.1946 में ब्रिटिश कम्यूनिट पार्टी के एक नेता रजनी पामदत्ता के दबाव में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इण्डिया ने अपना रुख बदलते हुए पाकिस्तान को ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा मुस्लिम पूंजीवाद के बीच का एक षड्यंत्र बताया। उस समय तक मुस्लिम-कम्युनिस्टों का दृष्टिकोण बदलने के लिए काफी देर हो चुकी थी।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता