जैसे ही रैडक्लिफ आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित हुई, वैसे ही अविभाजित पंजाब में दंगे आरम्भ हो गए। इन दंगों से रक्त की नदी सी बह निकली। पाकिस्तान को रक्त की इसी नदी में से तैरकर निकलना था। बेशक सिक्ख जाति को भी रक्त की इसी नदी में से तैरकर अपना अस्तित्व बचाना था।
अविभाजित पंजाब में दंगों की शुरुआत
कलकत्ते से बढ़कर दंगे उत्तर, पूर्व और पश्चिमी की ओर फैलने लगे, पूर्वी बंगाल में नोआखाली तक, जहाँ मुसलमानों ने हिन्दुओं का कत्ल किया था और इधर बिहार तक जहाँ हिन्दुओं ने मुसलमानों का। अविभाजित पंजाब में दंगे पहले से ही चल रहे थे। मुल्ले लोग पंजाब और सरहदी सूबों में इंसानों की खोपड़ियाँ संदूकों में भर-भरकर घूमने लगे।
मुल्ले इन खोपड़ियों का प्रदर्शन मुसलमानों के सामने करते तथा उन्हें कहते कि ये उन मुसलमानों की खोपड़ियां हैं जिन्हें हिंदुओं ने बिहार केदंगों में मार डाला है। सदियों से देश के उत्तर-पश्चिमी सरहदी इलाकों में रहते आ रहे हिंदू और सिक्ख अपना घर-बार छोड़कर सुरक्षा के लिए पूरब की तरफ अर्थात् हिन्दू और सिक्खों की बहुतायत वाले इलाकों की तरफ भागने लगे।
कोई पैदल ही चल पड़े, कोई बैलगाड़ियों में, कोई ठसाठस भरी लारियों में लदे, तो कोई रेलगाड़ियों में लटके या उनकी छतों पर पटे। रास्तों में उनकी मुठभेड़ें वैसे ही त्रस्त मुसलमानों से हुई, जो सुरक्षा के लिए पश्चिम में भाग रहे थे। दंगे भगदड़ में बदल गए। 1947 की गर्मियों तक जबकि पाकिस्तान के नए राज्य के निर्माण की विविधवत् घोषणा की जा चुकी थी, लगभग एक करोड़ हिंदू, मुसलमान और सिख इसी भगदड़ में फँसे थे।
मानसून के आगमन तक दस लाख के लगभग मनुष्य मारे जा चुके थे। पूरे उत्तरी भारत में हथियार तने हुए थे, लोग भय-त्रस्त थे और लुक छिप रहे थे। शांति के एकाकी अवशिष्ट मरुद्वीप थे दूर सरहद पर पड़ने वाले छिटके-छितरे छोटे-छोटे दुर्गम गांव।
सिरिल रैडक्लिफ की विभाजन रेखा ने पचास लाख हिन्दुओं और सिक्खों को पाकिस्तानी पंजाब में छोड़ दिया था। भारतीय पंजाब में पचास लाख मुसलमान छूट गए थे। ये तीनों जातियां एक दूसरे पर टूट पड़ीं। कांलिन्स एवं लैपियर ने लिखा है- जब यूरोप के लोगों एक दूसरे की जान ली तो बम, हथगोलों और गैस चैम्बरों का इस्तेमाल हुआ। जब पंजाब की जनता खुद अपना सर्वनाश करने निकली तो लाठियों, हॉकी-स्टिकों, बर्फ तोड़ने के सूजों, छुरों, मुद्गरों, तलवारों, कुल्हाड़ियों, हथौड़ों, ईंटों और बघनखों का उपयोग हुआ।
अविभाजित पंजाब में दंगे बहुत भयानक थे। जनता ने इस हद तक आपसी घृणा, क्रूरता और राक्षस-प्रवृत्ति का परिचय दिया कि सभी नेता हक्के-बक्के रह गए। …… उस छोटी सी अवधि में न्यूनतम विवेक और अधिकतम उन्माद के साथ भारत और पाकिस्तान की शैतान पूजा की। …… लाहौर की नालियां एक दम लाल पड़ गई थीं क्योंकि उनमें मानव-रक्त प्रवाहित हो रहा था। 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान बनते ही लाहौर में हिन्दू और सिक्ख मौहल्लों में पानी की आपूर्ति काट दी गई। भयानक गर्मी ने लोगों को प्यास का दीवाना कर दिया।
उनके मुहल्लों के बाहर मुस्लिम टुकड़ियां हथियार ताने खड़ी थीं। पानी की एक डोल की भीख मांगने के लिए जो भी स्त्रियां और बच्चे मुहल्ले से बाहर आ रहे थे, उन्हें निर्दयता से मौत के घाट उतारा जा रहा था। कम से कम आधा दर्जन स्थानों पर शहर धू-धू कर जल रहा था।
कैप्टेन रॉबर्ट एटकिन्स को लाहौर में शांति-व्यवस्था बहाल करने के लिए गोरखों की सेना के साथ भेजा गया। उसे शहर में इक्की-दुक्की अटैचियों और बच्चों को थामे हुए गिड़गिड़ाते हुए हिन्दुओं और सिक्खों ने घेर लिया। वे चाहते थे कि उन्हें शिविरों में रखा जाए। लगभग एक लाख हिन्दू और सिक्ख पुराने लाहौर में कैद हो चुके थे। चारों ओर आग लगाकर उनकी पानी की आपूर्ति काट दी गई थी। …… शाह आलम गेट के पास जो प्रसिद्ध गुरुद्वारा था, उसे एक भीड़ ने घेर कर आग लगा दी।
15 अगस्त को पाकिस्तान से भारत आने वाली 10 डाउन एक्सप्रेस ट्रेन भारत पंजाब के अमृतसर रेलवे स्टेशन पर आकर रुकी। पूरी ट्रेन के मुसाफिरों को बुरी तरह से काट डाला गया था। ट्रेन की समस्त आठों बोगियों में कटे हुए गले, फटी हुई खोपड़ियां, बाहर निकली आंतें, कटे-कटाए हाथ-पैर और धड़ पड़े थे। कुछ घायल लोग अब भी जीवित थे और पीड़ा से कराह रहे थे।
ट्रेन के अंतिम हिस्से में एक डिब्बे पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था- ‘यह ट्रेन हम नेहरू और पटेल के नाम आजादी की सौगात के बतौर भेज रहे हैं।’ उस समय अमृतसर रेलवे स्टेशन पर पश्चिमी पंजाब से पहले की आई हुई ट्रेनों में आए हुए शरणार्थियों की भारी भीड़ बैठी थी। वे इन लाशों को देखकर क्रोध एवं उन्माद से फट पड़े।
अविभाजित पंजाब में दंगे तब और भी बढ़ गए जब यह तय हो गया कि पंजाब का कौनसा गांव भारत में रहेगा और कौनसा पाकिस्तान में जाएगा।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता