Thursday, March 28, 2024
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14. दिति ने इन्द्रहंता पुत्र की प्राप्ति के लिए पति को प्रसन्न किया!

पिछली कड़ी में हमने देवमाता अदिति की कथा पर चर्चा की थी। इस कड़ी में हम दैत्यों की माता दिति की चर्चा करेंगे। अदिति की भांति दिति भी प्रजापति दक्ष की उन 17 पुत्रियों में  से थी जिनका विवाह प्रजापति मरीचि के पुत्र कश्यप से हुआ था।

विभिन्न धर्मग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि एक बार जब ऋषि कश्यप सन्ध्या काल में देवताओं के निमित्त यज्ञ में खीर की आहुतियां दे रहे थे, तब दिति अत्यंत कामासक्त होकर अपने पति कश्यप के पास आई तथा उनसे समागम का आग्रह करने लगी।

इस पर ऋषि कश्यप ने दिति को समझाया कि यह भूत-भ्रमण काल है, इस काल में समागम करना उचित नहीं है अन्यथा भूतनाथ शिव क्रुद्ध जो जाएंगे किंतु कामातुर दिति ऋषि से समागम का आग्रह करती रही।

कश्यप समझाते रहे किंतु अदिति जिद करती रही। अंत में ऋषि कश्यप ने विवश होकर अपनी पत्नी की बात मान ली। समागम के पश्चात् जब काम का आवेग शांत हो गया तो दिति अपने कृत्य के लिए अत्यंत लज्जित हुई तथा क्षमा याचना के लिए अपने पति के समक्ष उपस्थित हुई।

मुनि ने कहा- ‘हे भार्या! तेरे द्वारा असमय में समागम किए जाने के कारण तेरे गर्भ से दैत्य उत्पन्न होंगे। वे तीनों लोकों को अत्यंत दुःख देंगे, देवताओं से शत्रुता करने वाले होंगे तथा भगवान श्रीहरि विष्णु के हाथों मारे जायेंगे।’

जब दिति को यह ज्ञात हुआ कि उसके पुत्र देवताओं के कष्ट का कारण बनेंगे, तो दिति ने सौ वर्ष तक अपने शिशुओं का उदर में ही रखा। अंत में उसके गर्भ से हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप आदि दैत्य उत्पन्न हुए।

जब दिति के पुत्रों ने अदिति के पुत्रों को स्वर्ग से निकाल दिया तो भगवान विष्णु ने वराह के रूप में प्रकट होकर हिरण्याक्ष का तथा नृसिंह रूप में प्रकट होकर हिरण्यकश्यप का वध किया और इन्द्र को फिर से स्वर्ग का राजा बना दिया। इस कारण अदिति और दिति में वैर रहने लगा।

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एक बार दिति ने सोचा मैं कोई ऐसा उपाय करूं जिससे मुझे ऐसा पुत्र प्राप्त हो, जो इन्द्र को मार डाले। इसलिए दिति उसी दिन से अपने पति कश्यप को प्रसन्न करने में जुट गई और दिन-रात ऋषि की सेवा करने लगी। दिति ने अपने मन को संयमित करके प्रेम, विवेक, मधुर भाषण, मुस्कान एवं चितवन से ऋषि कश्यप के मन को जीत लिया।

दिति की सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि कश्यप ने दिति से कहा- ‘तुम जो चाहो हम करने को तैयार हैं।’

दिति ने ऋषि से कहा- ‘अदिति के पुत्रों ने मेरे पुत्रों को मार डाला है। अतः मैं आपसे ऐसे गर्भ की इच्छुक हूँ, जिससे उत्पन्न पुत्र, अदिति के पुत्र इन्द्र को मार डाले।’

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दिति के मन का कपट जानकर कश्यप ऋषि को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने सोचा कि माया ने मुझे पकड़ लिया। संसार में लोग स्वार्थ के लिए पति-पुत्रादि का भी नाश कर देते हैं। अब मेरा क्या होगा? मैंने अपनी पत्नी को जो वचन दिया है, वह व्यर्थ नहीं हो सकता किंतु मैं यह भी नहीं चाहता कि मेरे पुत्र इन्द्र का अनिष्ट हो। इस प्रकार सोच-विचार करके कश्यप ऋषि ने दिति को एक वर्ष का ‘पुंसवन व्रत’ धारण करने के लिए कहा।

कश्यप ने कहा- ‘यदि तुम एक वर्ष तक व्रत का पालन करोगी तो तुम्हारे गर्भ से जो पुत्र उत्पन्न होगा वह इन्द्र को मारने वाला होगा किंतु यदि व्रत में कोई त्रुटि हो जायेगी तो वह इन्द्र का मित्र हो जाएगा।’

कश्यप मुनि ने व्रत-काल में दिति को कई नियमों का पालन करने के लिए कहा। इन नियमों के अनुसार दिति व्रत की अवधि में किसी भी प्राणी को मन, वचन या कर्म के द्वारा नहीं सताएगी। किसी को शाप या गाली नहीं देगी, झूठ नहीं बोलेगी, शरीर के नख एवं बाल नहीं काटेगी, किसी भी अशुभ वस्तु का स्पर्श नहीं करेगी, क्रोध नहीं करेगी, बिना धुले वस्त्र नहीं पहनेगी तथा किसी अन्य व्यक्ति द्वारा पहनी हुई माला नहीं पहनेगी। किसी का जूठा नहीं खाएगी, मांसयुक्त अन्न का भोजन नहीं करेगी, शूद्र और रजस्वला स्त्री का अन्न नहीं खाएगी। जूठे मुंह, संध्या समय एवं खुले केश लेकर घर से बाहर नहीं जाएगी। केवल रात्रि में शयन करेगी, प्रातःकाल एवं सायंकाल में शयन नहीं करेगी।

ऋषि ने दिति से कहा कि इस व्रत के दौरान वह निषिद्ध-कर्मों का त्याग करके सदैव पवित्र और सौभाग्य के चिह्नों से सुसज्जित रहे। प्रातःकाल में गाय, ब्राह्मण, लक्ष्मीजी और भगवान नारायण की पूजा करके ही कलेवा करे। सुहागिन स्त्रियों एवं पति की सेवा में संलग्न रहे और यही भावना करती रहे कि पति का तेज मेरी कोख में है।

अपने पति की बात मानकर दिति कश्यप ऋषि के ओज से सुंदर गर्भ धारण करके पुंसवन व्रत का पालन करने लगी। पुत्र-जन्म एक सहस्र वर्ष बाद होना था। तब तक दिति कुशप्लव नामक तपोवन में रहकर घनघोर तपस्या करने लगी। वह भूमि पर सोती थी और सदैव पवित्रता का ध्यान रखती थी।

उसके इस प्रकार के सात्विक जीवन व्यतीत करने से उसका गर्भ भी अति उत्तम संस्कारों से विभूषित हो गया। इस प्रकार कई सौ साल बीत गए तथा दिति का गर्भ बड़ा होने लगा। एक दिन उसकी बहिन अदिति को दिति के गर्भवती होने तथा उसके गर्भ के उद्देश्य के बारे में जानकारी हो गई। अदिति को यह जानकर अत्यंत चिंता हुई कि दिति ने अदिति के पुत्रों को मारने के उद्देश्य से पति कश्यप से महातेजस्वी गर्भ की प्राप्ति की है। अतः अदिति अपनी बहिन दिति के गर्भ को नष्ट करने का उपाय सोचने लगी!

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