Saturday, April 20, 2024
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43. मस्त हाथी

दिल्ली और उसके बाद आगरा भी मुगलों ने फिर से हासिल कर लिये किंतु मानकोट का जो दुर्ग वे खिज्रखाँ के भरोसे छोड़ आये थे वह अब तक नहीं जीता जा सका था। बैरामखाँ जानता था कि जब तक सिकन्दर सूर की कमर नहीं तोड़ दी जाती तब तक हिन्दुस्थान में मुगल साम्राज्य का प्रसार नहीं किया जा सकता। इसलिये बैरामखाँ ने मानकोट आक्रमण की योजना बनायी।

मानकोट का घेरा अकबर के जीवन का पहला युद्ध था जिसे परिस्थितियों के कारण अधूरा छोड़ देना पड़ा था। इसलिये उसने बैरामखाँ से कहा कि वह स्वयं मानकोट जीतना चाहता है और अधूरी जीत को पूरी किया चाहता है। बैरामखाँ ने अकबर को भी युद्ध में चलने की अनुमति दे दी।

बैरामखाँ को फिर से मानकोट पर चढ़कर आया देखकर सिकन्दर सूर ने बैरामखाँ के वकील नासिरुल्मुल्क के माध्यम से बहुत सारा धन और इनाम बैरामखाँ को भिजवाया और कहलवाया कि भले ही अदली का सेनापति हेमू मारा जा चुका हैं किंतु अदली खुद अभी भी जीवित है जो कि आपका और मेरा दोनों का दुश्मन है। वह बंगाल में अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है। उसने बंगाल के हाकिम मुहम्मदखाँ को मार डाला है और अब मुहम्मदखाँ के बेटे जलाजुद्दीन पर चढ़ बैठा है। मैं अदली से लड़ने के लिये बिहार जाना चाहता हूँ। यदि आप मुझे बिहार जाने का रास्ता दे दे तो मैं मानकोट खाली करके चला जाऊंगा।

बैरामखाँ को सिकंदर सूर की बात जंच गयी। उसने अकबर को सिकन्दर सूर का प्रस्ताव मान लेने की सिफारिश की और समझाया कि यदि सिकन्दर सूर और अदली एक दूसरे से लड़कर कमजोर हो जाते हैं तो इसमें मुगलों का ही भला होगा और जो काम एक दिन अकबर को करना पड़ेगा, वह काम इन दोनों अफगान शैतानों की परस्पर लड़ाई से स्वतः सम्पन्न हो जायेगा।

अकबर ने बैरामखाँ की बात मान ली और सिकन्दर सूर को मानकोट खाली करके बिहार जाने की अनुमति दे दी। सिकन्दर सूर मानकोट दुर्ग की चाबियाँ और बहुत से हाथी अकबर की नजर करके बिहार को चला गया। जहाँ से साल भर बाद उसकी मृत्यु के समाचार ही आये। बिना किसी क्षति के मानकोट हाथ आ जाने की खुशी में मुगल सेना ने जश्न मनाया।

अकबर को उन दिनों हाथी लड़ाने का शौक चर्राया हुआ था। इसलिये उसने हाथियों की लड़ाई का आयोजन करवाया। बैरामखाँ उन दिनों बीमार था और फोड़े निकल आने से घोड़े पर नहीं चढ़ सकता था। इसलिये वह अपने डेरे में ही रहा और हाथियों की लड़ाई देखने नहीं गया। हाथियों को शराब पिलाकर मदहोश कर दिया गया और एक दूसरे पर हूल दिया गया।

शराब के मद में चूर हाथी अपनी सारी संजीदगी को भूलकर वहशी दरिंदों की तरह लड़े।  दो बादशाही हाथी तो मानो एक दूसरे के खून के प्यासे हो गये। दोनों ही हाथी खास बादशाही अंगरक्षक दल के थे और अच्छा खाये-पिये हुए थे। इसलिये दोनों में से कोई भी हार मानने को तैयार नहीं था। अंत में वे लड़ते-लड़ते मैदान से बाहर हो गये और बैरामखाँ के डेरे तक जा पहुँचे। उनके पीछे तमाशाई लोगों की भीड़ भी चीख-पुकार मचाती हुई आयी।

लोगों की चीखें सुनकर बैरामखाँ सतर्क हो गया और किसी तरह तम्बू से बाहर निकल कर उसने अपनी जान बचाई। जांघों में फोड़े होने से वह मुश्किल से ही बच पाया। किसी तरह उन मदमत्त हाथियों पर नियंत्रण किया गया।

अचानक हाथियों के चढ़ आने से बैरामखाँ के दिल में संदेह हो गया कि यह अकबर के आदेश से हुआ है। जब बैरामखाँ ने अपने आदमियों से सलाह मशविरा किया तो उन्होंने भी बैरामखाँ की हाँ में हाँ मिला दी। बैरामखाँ के सिर पर खून सवार हो गया किंतु उसने किसी तरह अपने आवेश पर नियंत्रण रखा और अपना एक आदमी माहम अनगा के पास भेज कर कहलवाया कि मैं अपना कुछ कसूर नहीं जानता हूँ और खैरख्वाहों के विरुद्ध भी कोई काम नहीं करता हूँ। फिर कैसे चुगलखोरों ने मुझे गुनहगार करके बादशाही की इतनी बड़ी नामिहरबानी करा दी है कि मस्त हाथी मेरी चादर पर छोड़े जाते हैं?

बैरामखाँ के शब्द क्या थे! सुलगते हुए शोले थे जिन की आँच महसूस कर माहम अनगा कांप उठी। वह खुद चादर ओढ़कर मिजाजपुर्सी के लिये बैरामखाँ के डेरे में हाजिर हुई। घंटों तक चिकनी चुपड़ी बातें करके उसने बैरामखाँ का मिजाज ठण्डा किया।

बैरामखाँ ने कहा कि बदजात हाथी उसे सौंप दिये जायें। जब माहम अनगा ने बैरामखाँ की मांग के बारे में बताया तो अकबर खुद भी बैरामखाँ के डेरे पर आया। उसने बैरामखाँ को समझाया कि हाथी शराब के नशे में थे और अचानक ही लड़ते हुए इस ओर आ निकले थे। इसमें किसी तरह का षड़यंत्र नहीं था लेकिन बैरामखाँ अपनी जिद्द पर अड़ा रहा।

हार कर अकबर ने दोनों हाथी बैरामखाँ के डेरे पर भिजवा दिये। बैरामखाँ ने हाथियों को तो कुछ नहीं कहा किंतु उनके महावतों को जम कर पिटवाया। अकबर अपनी आँखों से यह दृश्य देखता रहा। उसके बेकसूर महावत पिटते रहे और बादशाह होते हुए भी वह कुछ नहीं कर सका।

यह बात अभी शांत हुई भी न थी कि फिर से एक अनहोनी घट गयी। एक दिन शाम के समय बैरामखाँ यमुना में नौका विहार के लिये गया। जाने कैसे एक शाही हाथी बिगड़ गया और बैरामखाँ को कुचलने के लिये झपटा। बैरामखाँ किसी तरह अपनी जान बचाकर लौट आया।

जब अकबर को यह बात पता चली तो उसने हाथी को महावत सहित बैरामखाँ के पास भिजवा दिया। बैरामखाँ ने महावत की खाल खिंचवा ली। अकबर चुप रहा। बैरामखाँ ने उसी दिन अकबर के शिक्षक मुल्ला पीर मोहम्मद को नौकरी से अलग कर दिया। अकबर इस पर भी चुप रहा। इसके बाद बैरामखाँ ने बादशाही हाथियों का मुआयना किया और बहुत से हाथी अपने आदमियों में बांट दिये। इनमें से अधिकांश हाथी वही थे जिन्हें बैरामखाँ ने हरहाने, सरहिन्द, पानीपत और देवती माचेड़ी के मोर्चों से पकड़ा था। अकबर इस बार भी चुपचाप देखते रह जाने के अतिरिक्त कुछ नहीं कर सका।

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