Saturday, July 27, 2024
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स्वतंत्रता संगा्रम से पहले भारत में साम्प्रदायिक हिंसा – 1921 1931

बीसवीं सदी के भारत में साम्प्रदायिक हिंसा के युग की शुरुआत मालाबार के मुस्लिम मोपलाओं ने की। अठारहवीं सदी में मोपलाओं ने टीपू सुल्तान के शासन में हिन्दुओं पर पहली बार संगठित हमले किए थे तब से मोपलाओं ने अपना कार्य जारी रखा था। उन्नीसवीं सदी में जब मोपला किसानों ने हिन्दू जमींदरों की हत्या की थी तो अंग्रेज, मोपलाओं को नहीं दबा सके। फिर भी अंग्रेजों ने हिन्दू जमींदारों को अपनी जमीनों पर बने रहने में बहुत सहायता दी।

बीसवीं सदी आते-आते मोपला पुनः संगठित होकर हिन्दुओं की हत्या करने लगे। ई.1921 में मोपलाओं ने मुस्लिम लीग के कराची प्रस्ताव में स्वीकृत खलीफा आंदोलन से प्रेरित होकर नैयर, नम्बूदरी एवं जम्मी हिन्दू भूस्वामियों के विरुद्ध भयानक हिंसा आरम्भ कर दी। उन्होंने हजारों हिन्दुओं को मार डाला एवं निर्धन हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बना लिया।

इस हिंसा का सामना नहीं कर पाने के कारण एक लाख से अधिक हिन्दू अपने घरों को छोड़कर भाग खड़े हुए जिन पर मोपला मुसलमानों ने कब्जा कर लिया। इस कार्यवाही से केरल का जनसांख्यिकीय परिवर्तन हो गया। जब ब्रिटिश सरकार ने हिन्दुओं को बचाने के प्रयास किए तो मुसलमानों ने अंग्रेजों पर भी हमले कर दिए।

ब्रिटिश रिकॉर्ड में इन्हें ब्रिटिश-मुस्लिम विद्रोह के रूप में अंकित किया गया। जब ब्रिटिश प्रशासक मोपला क्षेत्रों से हट गए तो मोपला लोगों ने फिर से हिन्दुओं का उत्पीड़न एवं हत्याएं करनी आरम्भ कर दीं। मुहम्मद हाजी को मोपला लोगों का खलीफा घोषित किया गया तथा पूरे क्षेत्र में खलीफा के झण्डे फहराने लगे। केरल के एरनाड एवं वल्लुवनाड जिलों को खलीफा की सल्तनत घोषित किया गया।

अंग्रेजों ने मोपलाओं द्वारा की जा रही मारकाट के समाचारों को काफी समय तक देश के सामने नहीं आने दिया किंतु वीर सावरकर ने एक मार्मिक उपन्यास लिखकर सारे नरसंहार को प्रकट कर दिया। इससे हिन्दुओं में भारी आक्रोश उत्पन्न हो गया। इस पर अंग्रेजों ने गढ़वाल, नेपाल और बर्मा से सेनाएं मंगवाकर मालाबार को भेजीं। इन सेनाओं ने 2,226 मोपला उपद्रवियों को मारा, 1,615 मोपला उपद्रवी घायल हुए, 5,688 मोपला उपद्रवी बंदी बनाए गए तथा 38,256 मोपला उपद्रवियों ने ब्रिटिश सेनाओं के समक्ष आत्म-समर्पण किया।

मोपला विद्रोह में गांधीजी ने पीड़ित हिन्दुओं से सहानुभूति दर्शाने की बजाय हिन्दू-मुस्लिम एकता का राग अलापा जिससे हिन्दुओं में मुसलमानों तथा गांधीजी के प्रति और अधिक आक्रोश पनप गया। डॉ. शिवराम मुंजे गांधीजी की नीतियों से इतने त्रस्त हो चुके थे कि वे कांग्रेस से उदासीन होने लगे।

श्रीमती एनीबेसेंट ने ई.1921 की मोपला-हिंसा के बारे में लिखा है- ‘मोपलाओं ने बहुत बड़े स्तर पर हत्याएं एवं लूट की। यहाँ तक कि जो हिन्दू, मोपलाओं का विरोध नहीं कर रहे थे उन्हें भी मार डाला। एक लाख लोगों का सर्वस्व लूटकर उन्हें अपने घरों से निकाल दिया गया। मालाबार हमें सिखाता है कि इस्लामिक शासन का वास्तविक अर्थ क्या है! हम भारत में दूसरे खिलाफत राज का नमूना नहीं देखना चाहते।’

जब मोपला उपद्रवियों के दमन के समाचार देश भर के समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए तो पूरे देश में साम्प्रदायिक तनाव व्याप्त हो गया। मुल्तान में भी मुसलमानों ने अनेक हिन्दुओं को मार डाला और उनकी सम्पत्ति लूट ली या नष्ट कर दी। सहारनपुर में भी ऐसी घटनाएं घटित हुईं। लाहौर में भी साम्प्रदायिक दंगे हुए। आर्य समाज के स्वामी श्रद्धानन्द की रोगी-शैया पर ही हत्या कर दी गई। आर्य समाज के कुछ अन्य नेताओं की भी हत्या की गई। इन घटनाओं ने हिन्दू जनता को विचलित कर दिया।

कोहाट के हिन्दू मुस्लिम दंगे

मई 1924 में पंजाब के एक मुस्लिम समाचार पत्र ‘लाहुल’ में एक हिन्दू विरोधी कविता छपी, जिसका एक अंश इस प्रकार था-

तुझे तेग ए मुस्लिम उठानी पड़ेगी।

कृष्ण तेरी गीता जलानी पड़ेगी।

इसके जवाब में जम्मू के ‘हिन्दू’ समाचार पत्र ने भी एक कविता प्रकाशित की जिसका एक अंश इस प्रकार था-

बनाएंगे काबा में विष्णु का मन्दिर,

नमाजी की हस्ती मिटानी पड़ेगी।

 जीवनदास नामक व्यक्ति ने ‘हिन्दू’ समाचार पत्र की एक हजार प्रतियां प्राप्त कीं तथा 22 अगस्त 1924 को कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर 30-40 प्रतियां बेच दीं। जब ये प्रतियां मुसलमानों तक पहुंचीं तो उन्होंने हिन्दुओं पर हमले करने आरम्भ कर दिए। हिन्दुओं के घर जला दिए गए, 12 हिन्दुओं को मार डाला गया, 13 हिन्दू लापता हो गए, 24 हिन्दुओं के शरीर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त किए गए, 62 हिन्दू सामान्य घायल हुए। इसकी प्रतिक्रिया में हिन्दुओं ने भी मुसलमानों पर हमले किए और कोहाट में दंगे आरम्भ हो गए।

कुल मिलाकर 10 मुसलमान मार डाले गए, 1 या 2 मुसलमान लापता कर दिए गए, 6 मुसलमान बुरी तरह से तथा 17 मुसलमान सामान्य रूप से घायल हुए। इस घटना के बाद हिन्दुओं को कोहाट से रावलपिण्डी भेज दिया गया। कोहाट के दंगा पीड़ितों की सहायता के लिए गांधीजी तीन बार रावलपिण्डी गए किंतु उनकी कोई सहायता नहीं कर सके। भाई परमानंद ने स्थानीय हिन्दू सभा की सहायता से पीड़ित हिन्दुओं को सहायता पहुंचाने में सफलता प्राप्त की।

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