फासीवाद और नाजीवाद में समानता
जिस समय रूस में बोल्शेविक क्रांति की सफलता के बाद साम्यवादी राज्य की स्थापना हो रही थी तथा एक नए समाज और नई अर्थव्यवस्था का गठन किया जा रहा था, उसी समय इटली में ‘फासीवाद’ और जर्मनी में ‘नाजीवाद’ ने जन्म लिया। इन्हें सामान्यतः ‘प्रतिक्रांति’ (Counter Revolution) के रूप में परिभाषित किया जाता है।
वस्तुतः फासीवाद ‘समाजवाद’ के विरोध में और नाजीवाद ‘साम्यवाद’ के विरोध में उठ खड़ा हुआ था। फासीवादी लोग इटली में समाजवादियों को कुचलकर तथा नाजीवादी लोग जर्मनी में साम्यवादियों को कुचलकर सत्तारूढ़ हुए थे।
फासीवादियों एवं नाजीवादियों ने व्यक्ति-स्वातन्त्र्य, समानता और नागरिक अधिकारों का हरण कर लिया, जबकि इंग्लैण्ड तथा फ्रांस आदि देशों में व्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता और अधिकारों को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया।
इन कारणों से इन देशों (इंग्लैण्ड तथा फ्रांस) में क्रांति के पश्चात् प्रजातांत्रिक एवं उदारवादी शासन व्यवस्था की स्थापना हुई थी, वहीं फासीवाद और नाजीवाद के दौरान अधिनायकतंत्र की स्थापना की गई। इसी संदर्भ में फासीवाद एवं नाजीवाद को प्रतिक्रांति के रूप में देखा जाता है।
इटालवी विश्वकोष में मुसोलिनी ने लिखा है- ‘फासीवाद शांति की आवश्यकता या लाभ में विश्वास नहीं करता। इसलिए वह शांतिवाद को अस्वीकार करता है, क्योंकि इसमें संघर्ष से इन्कार और बलिदान के अवसर पर कायरता के दोष हैं। युद्ध और केवल युद्ध ही ऐसी चीज है जो मानवीय शक्तियों को उच्च स्तर पर उठा देता है।
जिन समुदायों में युद्ध स्वीकार करने का साहस होता है, उन पर अपने बड़प्पन की छाप लगा देता है। शेष सब व्यवहार कृत्रिम हैं, वे मनुष्य के समक्ष मृत्यु और जीवन का प्रश्न नहीं रखतीं।’
मुसोलिनी की सरकार के मंत्री ‘जिओवानी जैन्ताइल’ फासीवादी विचारधारा का माना हुआ शिल्पकार था।
उसने लिखा है- ‘लोगों को लोकतान्त्रिक ढंग से अपनी व्यक्तिगत विशेषता के माध्यम से स्वयं की वास्तविकता नहीं तलाशनी चाहिए अपितु फासीवादी तरीकों से जगत् की आत्म-चेतना रूप परामर्थिक अहम् की क्रियाओं के माध्यम से तलाशनी चाहिए। …… जहाँ तक कोई शक्ति इच्छा को साकार करने की सामर्थ्य रखती है, वहाँ तक वह शक्ति नैतिक है। फिर वह उपदेश या लाठी किसी भी उपाय को काम में लें।’
भारत के प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने फासीवाद पर टिप्पणी करते हुए लिखा है- ‘फासीवाद कट्टर राष्ट्रवादी है तथा अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है। वह तो राज्य को देवता बना देता है जिसकी वेदी पर व्यक्ति की स्वतंत्रता और अधिकारों की बलि आवश्यक है। फासीवाद की दृष्टि में केवल अपना देश ही अपना है, दूसरे समस्त देश पराए हैं और शत्रु के बराबर हैं।’
रोम में हिटलर का स्वागत
यह स्वाभाविक ही है कि एक जैसे विचार रखने वाले दो लोग गाढ़े मित्र हो जाते हैं। फासीवाद का जनक मुसोलिनी और नाजीवाद का जनक हिटलर आपस में मित्र बन गए। मुसोलिनी ने हिटलर को रोम में आमंत्रित किया। इस समाचार को सुनकर दुनिया दहल गई। संसार के दो बड़े तानाशाहों का मिलन संसार पर भारी पड़ने वाला था। 3 मई 1938 को रोम को दुल्हन की तरह सजाया गया। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा सैनिक नियुक्त किए गए ताकि कोई हिटलर की तरफ टोपी भी फैंकने का साहस न कर सके।
हिटलर अपने साथ अपने दोनों विश्वस्त साथियों गोबेल्स एवं रिबनट्रॉप और पाँच सौ अधिकारियों को भी ले गया था जो जर्मनी के विदेश, गृह, गुप्तचर, रक्षा एवं सैन्य विभागों के वरिष्ठतम अधिकारी एवं बड़े अखबारों के सम्पादक थे। इन लोगों के लिए जर्मनी से इटली तक एक विशेष ट्रेन चलाई गई थी। राजा एमानुएल विक्टर (तृतीय) एवं सीन्यौर (प्रधानमंत्री) मुसोलिनी ने स्वयं इस ट्रेन का स्वागत किया। हर एडोल्फ हिटलर ने मुसोलिनी से हाथ मिलाया तथा गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण किया। इसके बाद दोनों पक्षों के अधिकारियों ने एक गुप्त कमरे में बैठक की।
इसके बाद हिटलर अपने आदमियों को लेकर वापस जर्मनी लौट गया। दुनिया कभी नहीं जान सकी कि उस बैठक में दोनों देशों के बीच क्या खिचड़ी पकी।
पूरी दुनिया गर्म हो गई
हिटलर के रोम से लौट जाने के बाद दुनिया अचानक गर्म हो गई। कोई नौसीखिया भी बता सकता था कि इटली और जर्मनी मिलकर इंग्लैण्ड और फ्रांस की खबर लेने वाले थे। इस समय चीन और जापान में गहरा घमासान मचा हुआ था और स्पेन पर बमवर्षा हो रही थी। समझा जा रहा था कि अब जर्मनी किसी भी समय ब्रिटेन पर आक्रमण कर सकता है।
इसलिए चर्चिल सम्भल कर बैठ गया, उसने चालीस लाख लड़ाकों की पीठ पर बंदूकें बांध दीं और युद्धक-विमानों की संख्या दो-गुनी कर दी। उसी सप्ताह रूमानिया में क्रांति शुरु हो गई। तौब्रुक का पतन हो गया। जापान ने अमरीका को लताड़ पिलाई। हिटलर और मुसोलिनी की संधि से ग्रीस को इतना जोश आया कि वह अलबेनिया में युद्ध जीत गया।
इटली में युद्ध के बाजे
हिटलर के इटली आने से पहले इटली- फ्रांस वार्ता चल रही थी किंतु हिटलर के लौट जाने के बाद इटली-फ्रांस वार्ता अचानक समाप्त हो गई। इटली के अखबार चीख-चीखकर कार्सिका और ट्यूनिश की मांग करने लगे। अनुमान था कि इटली जल-थल दोनों मार्गों से फ्रांस पर आक्रमण करेगा। सोवियत रूस को अनुकूल बनाने के लिए मुसोलिनी ने पहले ही हंगरी, रूमानिया, यूगोस्लाविया, बुल्गारिया, कालासागर और डून्यूब के मुहाने तक सोवियत प्रभाव को स्वीकार कर लिया था। इराक, ईरान और अफगानिस्तान को भी रूसी प्रभाव में स्वीकार कर लिया गया था। अब इटली में युद्ध के बाजे बजने लगे।
द्वितीय विश्व-युद्ध
प्रथम विश्व युद्ध के समय मुसोलिनी ने जर्मनी का विरोध किया था तथा मित्र-राष्ट्रों की तरफ से लड़ने के सम्बन्ध में प्रचार किया था। इटली के राजा इमानुएल ने प्रथम विश्व-युद्ध में मित्र-राष्ट्रों की तरफ से ही युद्ध किया था किंतु द्वितीय विश्वयुद्ध में भाग लेने के लिए स्वयं मुसोलिनी को ही निर्णय लेना था। इस समय तक जर्मनी का तानाशाह-शासक हिटलर उसका अच्छा मित्र बन चुका था।
इसलिए मुसोलिनी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में जर्मनी की तरफ से मैदान में उतरने का निर्णय लिया। वैसे भी मुसोलिनी इंग्लैण्ड तथा फ्रांस जैसे लिजलिजे समाजवादियों के साथ मिलकर युद्ध नहीं कर सकता था। जर्मनी की तरफ से लड़ रहे देशों को ‘धुरीराष्ट्र’ तथा इंग्लैण्ड की तरफ से लड़ रहे देशों को ‘मित्रराष्ट्र’ कहा जाता था। इटली का राजा ‘इमानुएल‘ हिटलर तथा युद्ध दोनों को ही पसंद नहीं करता था किंतु उसकी एक न चली।
क्लारा पेटाची
जब द्वितीय विश्व-युद्ध आरम्भ हो ही रहा था, क्लारा पेटाची नामक एक युवती मुसोलिनी के निकट आने में सफल हो गई। वह शीघ्र ही मुसोलिनी की प्रेमिका बन गई। इटली की सेना और गुप्तचर विभाग मानता था कि वह हिटलर की तरफ से मुसोलिनी के पास भेजी गई है तथा सरकार के भीतर किए जा रहे निर्णयों की जानकारी हिटलर तक पहुँचाती है।
इसलिए एक दिन पुलिस, सेना तथा गुप्तचर विभाग के प्रधान आपस में मिले तथा तीनों ने विचार-विमर्श करके फासिस्ट सेना के सलाहकार ‘गारगानो’ की सहायता से एक मैमोरेण्डम तैयार करवाया।
इन सभी अधिकारियों ने व्यक्तिशः यह मैमोरण्डम मुसोलिनी के समक्ष प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया था कि ‘क्लारा’ हिटलर की जासूस है। अतः मुसोलिनी को चाहिए कि वह इस स्त्री को स्वयं से दूर कर दे। मुसोलिनी इस मैमोरेण्डम को देखते ही आग-बबूला हो गया। इन समस्त अधिकारियों को तुरंत उनके पदों से हटा दिया गया।
द्वितीय विश्वयुद्ध आरम्भ
कुछ ही दिनों में यूरोप में द्वितीय विश्व-युद्ध छिड़ गया। हिटलर और मुसोलिनी ने युद्ध शरू किया, उनका मुख्य निशाना ब्रिटेन तथा फ्रांस थे। बहुत से अन्य देश भी इस युद्ध से उदासीन नहीं रह सके तथा दोनों ही पक्षों में और भी शक्तियाँ जुड़ती चली गईं। थोड़े ही दिनों में दुनिया दो हिस्सों में साफ-साफ बंट गई। आधी दुनिया के नेता मुसोलिनी, हिटलर और तोजो हो गए थे तो बाकी की आधी दुनिया को चर्चिल, स्टालिन और रूजवेल्ट हांक रहे थे।
मुसोलिनी मुसीबत में
हिटलर ने फ्रांस को बर्बाद करके रख दिया किंतु मुसोलिनी अपने देश को अपने पक्ष में नहीं रख सका। राजा से लेकर प्रजा तक, पत्रकारों से लेकर सैनिकों तक कोई भी मुसोलिनी की युद्ध नीति से प्रसन्न नहीं था। इसका परिणाम यह हुआ कि मुसोलिनी की फासिस्ट सेनाएं मन लगाकर नहीं लड़ सकीं और इटली की सेना कई मोर्चों पर हार गई। अंत में ब्रिटिश सेना सिसली तक आ पहुँची।
मुसोलिनी भाग कर हिटलर से मिलने ‘फेल्ट्रे’ गया। हिटलर ने मुसोलिनी से कहा कि वह मोर्चे पर डटा रहे क्योंकि जर्मनी में ऐसे शस्त्रों का निर्माण हो रहा है जो शीघ्र ही अमरीका और इंगलैण्ड को राख के ढेर में बदल देंगे। मुसोलिनी प्रसन्न-चित्त होकर रोम लौट आया। उस समय तक रोम पर बम-वर्षा आरम्भ हो चुकी थी।
रोम बर्बाद हो जाएगा
मुसोलिनी ने राजा विक्टर इमानुएल (तृतीय) से भेंट करके उसे बताया कि भविष्य अत्यंत आशाजनक है किंतु राजा ने मुसोलिनी से कहा कि भविष्य अत्यंत निराशाजनक है। हवाई हमलों के समय जर्मन सैनिक मोर्चा छोड़कर भाग जाते हैं और इटली के सैनिक मारे जाते हैं। हम सिसली खो चुके हैं, बेहतर होगा कि हम युद्ध से बाहर हो जाएं। यदि यह युद्ध बंद नहीं हुआ तो रोम बर्बाद हो जाएगा। मुसोलिनी राजा से नाराज होकर चला गया।
ग्राण्ड कौंसिल की बैठक
जब मुसोलिनी ने राजा की सलाह स्वीकार नहीं की तो राजा ने ग्रांड कौंसिल की बैठक बुलाई। ग्रांड कौंसिल की बैठक शाही महल में रखी गई। मुसोलिनी को ज्ञात हो गया कि इस बैठक में विरोधी दल का नेता ‘ग्राण्डी’ मुसोलिनी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रखेगा।
मुसोलिनी ने शाही महल के चारों ओर फासिस्ट सेना का पहरा लगा दिया। मुसोलिनी के आदेश से ग्राण्ड कौंसिल के सदस्यों की गाड़ियां शाही महल के भीतरी प्रांगण में ले जाई गईं। उनकी गाड़ियों के द्वार बंद थे तथा अंदर काले परदे से ढके थे। सभी सदस्य काले कपड़े पहने हुए थे। कुल 36 सदस्य इस बैठक में भाग लेने के लिए आए। वे अपनी गाड़ियों से उतर कर सीधे सदन में चले गए।
सदस्यों के प्रवेश करते ही सदन का दरवाजा बंद कर दिया गया। थोड़ी ही देर में मुसोलिनी ने सदन में प्रवेश किया। वह फासिस्ट सेना के प्रधान की वर्दी पहने हुए था। उसका चेहरा अत्यंत सख्त दिखाई दे रहा था किंतु उसकी ओर सदस्यों ने देखा तक नहीं।
मुसोलिनी सीधे ही अध्यक्ष की कुर्सी पर जाकर बैठ गया तथा उसने अत्यंत रूखे शब्दों में घोषणा की- ‘ग्राण्ड कौंसिल की आज की बैठक सिसली की घटनाओं पर विचार करेगी। सिसली का पतन होने पर वहाँ के निवासियों ने मित्र-सेनाओं को अपना मुक्ति-दाता कहकर स्वागत किया है। इटली के सैनिकों ने दुश्मनों का बहुत कम प्रतिरोध किया जबकि जर्मन सैनिकों ने वीरता-पूर्वक अंतिम दम तक शत्रु का मुकाबला किया।’
इसके बाद ग्राण्डी खड़ा हुआ। उसने कहा- ‘मैं यह घोषित करता हूँ कि इटली की बर्बादी और विपत्ति के लिए हमारी सेना दोषी नहीं है। इसका एकमात्र दोष मुसोलिनी पर है। इटालियन जनता के साथ विश्वासघात करके उसे जर्मनी की गोद में फैंक दिया गया है। मैंने उसी दिन मुसोलिनी से कहा था कि आपने देश की प्रतिष्ठा, भावना और सम्मान के विरुद्ध हमारे देश को युद्ध में घसीट लिया है। आज इटली की माताएं चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं कि मुसोलिनी ने हमारे बेटों को युद्ध में झौंककर मार डाला।’
इसके बाद दोनों नेताओं में लम्बा-चौड़ा वाद-विवाद हुआ। इसी दौरान ग्राण्डी ने मुसोलिनी के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव रख दिया। इस पर मुसोलिनी ने यह कहकर सदन की कार्यवाही स्थगति कर दी कि- ‘युद्ध मैंने आरम्भ किया था, अब मैं ही इसे समाप्त करूंगा।’
इस पर सदस्यों ने मुसोलिनी का कड़ा विरोध किया और रात दो बजे तक सदन में तीखी बहस चलती रही। अंत में प्रस्ताव पर वोटिंग कराई गई। मुसोलिनी के विरोध में 19 तथा समर्थन में 17 मत आए। मुसोलिनी सदन में हार गया।
मुसोलिनी ने सदन छोड़ने से पहले वक्तव्य दिया कि- ‘आप लोगों ने शासन पर संकट ला दिया है। इससे राजतंत्र पुनः प्रकाश में आएगा तथा लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा।’
फासिस्ट दल के सचिव ने मुसोलिनी की अब तक की सेवाओं के लिए धन्यवाद प्रस्ताव रखना चाहा किंतु मुसोलिनी ने यह प्रस्ताव रखने के लिए मना कर दिया और अपने कागज समेट कर सदन से चला गया। उसने सेना को आदेश दिए कि वह ग्राण्डी तथा सियानो को बंदी बना ले। सियानो मुसोलिनी का दामाद था किंतु इस समय वह भी मुसोलिनी के विरोध में खड़ा हो गया था।
राजा विक्टर से भेंट
अगले दिन सायं-काल में मुसोलिनी राजा से मिलने उसके महल में गया। इस समय वह सैनिक वर्दी में नहीं था अपितु साधारण नागरिक के कपड़ों में भा। किसी भी सीन्यौर (प्रधानमंत्री) के लिए राजा के समक्ष जाने का यही नियम था। राजा ने महल की सीढ़ियों पर खड़े होकर सीन्यौर का स्वागत किया।
इस समय राजा ने मार्शल की वर्दी पहन रखी थी। इस स्वागत को देखकर मुसोलिनी चौंका किंतु राजा उसे बहुत ही प्रेम से अपने कक्ष में ले गया।
मुसोलिनी ने राजा को बताया कि- ‘कौंसिल ने उसके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित किया है किंतु युद्ध-काल होने के कारण मैं उसका कुछ भी महत्त्व नहीं समझता।’
राजा ने मुसोलिनी को समझाया कि- ‘उसे कौंसिल के निर्णय का सम्मान करना चाहिए और अपने पद से त्यागपत्र दे देना चाहिए क्योंकि इटली में अब उसे कोई भी पसंद नहीं करता। अब वह इटली में सबसे घृणित व्यक्ति है। मार्शल बोडगोलियो को सेना और पुलिस का समर्थन प्राप्त है। इसलिए अब देश की सुरक्षा की जिम्मेदार बोडगोलियो को दे दी गई है।’
राजा की बात सुनकर मुसोलिनी निराश हो गया। लगभग 20 मिनट में यह भेंट समाप्त हो गई।
मुसोलिनी की गिरफ्तारी
मुसोलिनी महल की सीढ़ियाँ उतर कर अपनी गाड़ी ढूंढने लगा तभी एक मार्शल ने आकर उसे सैल्यूट किया और कहा कि आप इस गाड़ी में आएं। मुसोलिनी ने देखा कि रेडक्रॉस की बंद गाड़ी उसके सामने खड़ी थी।
मुसोलिनी ने पूछा- ‘क्या मुझे गिरफ्तार किया जा रहा है?’
अधिकारी ने जवाब दिया- ‘हाँ ड्यूस आपको गिरफ्तार किया जा रहा है।’
जिस समय रेडक्रॉस की चारों ओर से बंद गाड़ी में मुसोलिनी को राजा के महल से गिरफ्तार करके सैनिक बैरकों में ले जाया जा रहा था, उस समय रोम की सड़कों पर मित्र-राष्ट्रों की सेनाएं बम गिरा रही थीं। ये बम मुसोलिनी ने ही आमंत्रित किए थे। अगले दिन सुबह रोम के लोगों को ज्ञात हुआ कि मुसोलिनी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
लोग खुशी के मारे सड़कों पर निकल आए। उन्होंने मुसोलिनी के चित्र जलाए और फासिस्ट पार्टी के कार्यालय पर हमला बोलकर उसे तहस-नहस कर दिया। मुसोलिनी को रोम से निकालकर कोटे-डी सियानो नामक द्वीप पर ले जाया गया जहाँ किसी समय रोमन सम्राट ऑगस्टस की राजकुमारी जूलिया, रोमन सम्राट नीरो की माता ‘ऐग्रिप्पिना’ तथा रोम के एक पोप को भी निर्वासन में रखा गया था।
फासिस्टवादी गडरिए से भेंट
जिस द्वीप पर मुसोलिनी को रखा गया था, उस द्वीप पर मित्र-राष्ट्रों की सेनाएं बम गिराने लगीं तो मुसोलिनी को अन्यत्र ले जाया गया। 25 जुलाई 1943 को मुसोलिनी ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। जब हिटलर के कार्यालय से मुसोलिनी के बारे में पूछताछ की गई तो इटली की सरकार ने उसे कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। अंत में हिटलर को मुसोलिनी की गिरफ्तारी के बारे में पता लग गया।
उसने रोम में स्थित जर्मन राजदूत को आदेश दिया कि वह मुसोलिनी से भेंट करे किंतु नए प्रधानमंत्री ने इसकी अनुमति नहीं दी। कुछ दिन बाद मुसोलिनी को तीन हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित ‘ग्रानसासो’ नामक स्थान पर ले जाया गया। एक दिन जब मुसोलिनी पहाड़ी पर टहल रहा था, तब एक गड़रिए ने मुसोलिनी को पहचान लिया। वह फासिस्ट पार्टी का सदस्य रह चुका था।
गड़रिए ने बताया कि- ‘जर्मन सेना आपको ढूंढती हुई रोम के दरवाजे तक आ चुकी है। जर्मन सेना को बताया गया है कि आप स्पेन भाग गए हैं जबकि इटली के लोगों को बताया गया है कि आपको गोली मार दी गई है। आप चिंता न करें। मैं आपके यहाँ होने की सूचना जर्मन सैनिकों तक पहुँचा दूंगा।’
मुसोलिनी की मुक्ति
अपने पुराने नेता के प्रति वफादारी दिखाते हुए उस गड़रिए ने यह बात रोम जाकर जर्मन सैनिकों को बता दी। आनन-फानन में यह सूचना हिटलर को भिजवाई गई। हिटलर ने कैप्टेन स्कोर्जनी को आदेश दिया कि वह अभी तत्काल इटली जाए और मुसोलिनी को छुड़ा कर लाए। कैप्टेन स्कोर्जनी ने ग्लेडियरों की सहायता से अपने सैनिक ठीक उसी पहाड़ी पर उतार दिए जहाँ मुसोलिनी को बंदी बनाया गया था।
जब मुसोलिनी ने इन ग्लेडियरों को पहाड़ी पर उतरते हुए देखा तो उसने सोचा कि मित्र-राष्ट्रों की सेना उसे पकड़ने के लिए आई है किंतु बाद में उसे ज्ञात हुआ कि ये जर्मन सैनिक हैं तथा मुसोलिनी के उद्धार के लिए आए हैं। कैप्टेन स्कोर्जनी मुसोलिनी को एक विमान में बैठाकर उसी समय जर्मनी ले गया। जर्मन सेना ने उसी दिन मुसोलिनी की पत्नी को भी उसके घर से निकाल कर जर्मनी पहुँचा दिया।
नया समझौता
बर्लिन में हिटलर और मुसोलिनी के बीच एक नया समझौता हुआ जिसके अनुसार हिटलर ने इटली में दुबारा मुसोलिनी की फासिस्ट सरकार बनाने का वचन दिया तथा मुसोलिनी ने इटली के कुछ क्षेत्र जर्मनी को देने स्वीकार किए।
मुसोलिनी की वापसी
मुसोलिनी इटली लौट आया। इस बार उसने अपना मुख्यालय गार्गनानो नामक स्थान पर बनाया तथा वहाँ से देश की जनता के नाम से संदेश प्रसारित किया कि इटली में फासिस्ट सरकार का पुनर्गठन कर दिया गया है तथा शासन की बागडोर पुनः मुसोलिनी ने अपने हाथ में ले ली है। इटैलियन और जर्मन अंतिम क्षण तक मित्र-राष्ट्रों के विरुद्ध लड़ते रहेंगे।
मुसोलिनी के आते ही इटली का राजा रोम छोड़कर मित्र-राष्ट्रों की शरण में चला गया। ग्राण्ड कौंसिल की बैठक में मुसोलिनी के विरुद्ध वोट देने वाले समस्त 19 सदस्यों को पकड़कर उन पर मुकदमा चलाया गया। इनमें से 18 लोगों को प्राणदण्ड दिया गया, जिनमें मुसोलिनी का दामाद काउण्ट सियानो भी था। एक व्यक्ति को तीस साल की कैद की गई।
मुसोलिनी की बेटी एडा सियानो ने मुसोलिनी से प्रार्थना की कि वह अपने दामाद को छोड़ दे किंतु मुसोलिनी ने मना कर दिया। एडा हिटलर के पास गई किंतु हिटलर ने कहा कि मैं मुसोलिनी से कुछ नहीं कह सकता। एडा के पास कुछ गुप्त सरकारी कागज थे, उनके बदले में उसने अपने पति को छुड़वाना चाहा किंतु मुसोलिनी ने मना कर दिया।
इसके बाद एडा यूरोप के प्रत्येक उस प्रभावशाली व्यक्ति के पास गई जिसका मुसोलिनी पर प्रभाव था किंतु मुसोलिनी ने सभी को इन्कार कर दिया।
रोम पर मित्र-राष्ट्रों का अधिकार
मुसोलिनी के दोबारा सत्ता में आने के बाद भी फासिस्ट सेनाएं हारती ही चली गईं। इसका मुख्य कारण इटली की वे देशभक्त सेनाएं थीं जो मुसोलिनी को अपना नेता नहीं मानती थीं। उन्होंने ‘राष्ट्रीय मुक्ति सेना’ बना ली थी जो युद्ध में मुसोलिनी का साथ नहीं दे रही थी। 4 जून 1944 को रोम पर मित्र-राष्ट्रों की सेनाओं का अधिकार हो गया।
मुसोलिनी की हत्या
अप्रेल 1945 में मीलान शहर में मुसोलिनी तथा राष्ट्रीय मुक्ति सेना के अधिकारियों के बीच बैठक आयोजित की गई। राष्ट्रीय मुक्ति सेना जर्मनी और हिटलर से सम्बन्ध तोड़ने और युद्ध बंद करने की मांग कर रही थीं किंतु मुसोलिनी इन शर्तों को स्वीकार नहीं कर सकता था। मुसोलिनी बैठक से बाहर निकला तथा एक बंद मोटरगाड़ी में बैठकर अपने कुछ विश्वस्त साथियों एवं जर्मन अंगरक्षकों के साथ कोमो नामक शहर के लिए रवाना हो गया।
मार्ग में क्लारा भी उसे मिल गई। देशभक्त सेनाओं को मुसोलिनी के भागने का पता चल गया। उन्होंने मुसोलिनी के काफिले का पीछा किया तथा उसके बहुत से अंगरक्षकों को गोली मारी दी। अंत में वे लोग डोंगो पहुँचे। यहाँ देशभक्त सैनिकों के दस्ते ने नाकाबंदी करके इस काफिले को रोक लिया तथा प्रत्येक गाड़ी की तलाशी ली और सभी को उतारकर गिरफ्तार कर लिया गया।
अंत में एक जर्मन लॉरी की तालशी ली गई जिसमें ड्राइवर के केबिन की पीछे एक आदमी जर्मन आवेर कोट पहने हुए झपकियां ले रहा था। उसका लौह-टोप आंखों तक आगे की ओर लटका हुआ था जिससे उसका चेहरा ढंका हुआ था। ओवरकोट का कॉलर भी ऊंचा उठा हुआ था तथा आंखों पर काला चश्मा था।
जब जर्मन लोगों से पूछा गया कि यह कौन है तो जर्मन सिपाहियों ने जवाब दिया कि यह हमारा साथी है जो बहुत अधिक शराब पिए हुए है किंतु उनका यह ‘झूठ’ काम नहीं आया। देशभक्त सैनिकों के कर्नल बेलारियो तथा रेंजो नामक एक सैनिक ने मुसोलिनी को पहचान लिया। उसे तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया।
26 अप्रैल 1945 को राष्ट्रीय मुक्ति सेना ने मुसोलिनी एवं उसके साथियों को अमरीकी सेना के हवाले कर दिया। 28 अप्रैल 1945 को मुसोलिनी, उसकी प्रेमिका क्लारा पेटाची और मुसोलिनी के सहयोगियों की हत्या करके उनके शव बेहद भद्दे तरीके से मीलान शहर में ले जाकर चौराहे पर टांग दिए गए।
लोगों ने मुसोलिनी तथा उसके साथियों के चेहरों पर घृणा से थूका तथा उनके चेहरे पर कीचड़ लगाकर अपने क्रोध का प्रदर्शन किया। इसी के साथ इटली में फासीवादी आंदोलन का अंत हो गया। अमरीकी सैनिक मुसोलिनी का मस्तिष्क निकालकर अमरीका ले गए ताकि उसके मस्तिष्क का अध्ययन किया जा सके।
मुसोलिनी के साथ चल रही गाड़ियों से एक अरब लीरा (इटैलिनयन मुद्रा), 66 किलो स्वर्ण, 1 करोड़ 60 लाख फ्रैंक (फ्रैंच सिक्का), 2 लाख स्विस फ्रैंक, ब्रिटिश पौण्ड, भारी मात्रा में अमरीकी डॉलर, स्पेन की मुद्रा, पुर्तगाल का क्यूडो भी प्राप्त हुए। हीरे-जवाहरात की अंगूठियां भी बहुत संख्या में थीं।