Saturday, July 27, 2024
spot_img

6. रोम में पांचवा दिन – 21 मई 2019

शरीर भारतीय समय को भूलकर इटली का समय अपनाने लगा है। हालांकि अब भी आंख एक बार तो भारतीय समय के अनुसार प्रातः पाँच बजे खुल जाती है किंतु अब दोबारा सोने पर वापस नींद भी आ जाती है और इटली के समयानुसार प्रातः पांच बजे खुल जाती है। आज सुबह से ही बरसात आरम्भ हो गई थी। पिताजी ने हमारे साथ नहीं चलने का निर्णय लिया तथा घर पर ही विश्राम करने की इच्छा व्यक्त की। हमने उनसे कहा कि पिछले दिन दिनों से सायं काल में बरसात नहीं हो रही है, यदि आज भी मौसम अच्छा रहा तो आप हमारे साथ लंच के बाद चले चलना।

मरकातो फूडो

मैं सुबह आठ बजे तैयार हो कर मरकातो फूडो देखने चला गया। यह एक सब्जी एवं फल बाजार था किंतु कुछ दुकानों पर कच्चा मांस भी बिक रहा था जिसे कांच की अलमारियों में प्रदर्शित किया गया था। सारी सब्जियां और फल ताजी थे। अधिकतर वृद्ध महिलाएं इस बाजार में खरीदरारी कर रही थीं।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

सेंट एंजेलो कैसल

हमारे पास मेरूलाना प्लाजो से खरीदे गए टिकट थे जिनसे हम इटली के कुछ निश्चित स्थल देख सकते थे। इनमें सेंट एंजेलो कैसल भी सम्मिलित था। हमने वहीं जाने का निर्णय लिया। आज हम प्रातः नौ बजे घर से निकलने में सफल हो गए। बस भी जल्दी ही मिल गई। हमारे अपार्टमेंट से सेंट एंजिलो कैसल मात्र तीन किलोमीटर की दूरी पर था इसलिए हमें वहाँ पहुँचने में अधिक समय नहीं लगा।

जिस समय हम सेंट एंजेलो कैसल में घुसे, वर्षा शुरु हो गई थी। यह एक प्राचीन गोलाकार दुर्ग है जो पार्को एड्रियानो क्षेत्र में टिब्रिस (ट्रेवी तथा टाइबर) नदी के तट पर स्थित है। एक तरह से टाइबर नदी इस दुर्ग की प्रथम रक्षा पंक्ति का निर्माण करती है। इस दुर्ग का निर्माण दूसरी शताब्दी ईस्वी के रोमन सम्राट हैड्रियन ने करवाया था। हैड्रियन तथा उसके परिवार के सदस्यों की समाधियाँ आज भी इस दुर्ग में स्थित हैं। हैड्रियन ई.117 में रोम का सम्राट बना था तथा उसकी मृत्यु ई.138 में ‘बेई’ नामक स्थान पर हुई थी।

हैड्रियन की रानी सबीना तथा उसके एक दत्तक पुत्र भी संभवतः राजा के साथ ही मारे गए थे। राजा तथा उसके परिवार के लोगों के अवशेष लाकर इस दुर्ग में दफनाए गए। राजा ने अपनी मृत्यु से पहले ही यहाँ अपने लिए तथा अपने परिवार के सदस्यों के लिए कब्रें बनवा दी थीं। परवर्ती काल में रोम के पोप ने इसे अपना आवास बना लिया। किसी युग में यह रोम का सबसे ऊंचा भवन था। आज भी बहुत कम भवन इस दुर्ग की ऊंचाई के बराबर हैं। हम इस दुर्ग के चारों ओर वैसे ही घूमते हुए चढ़ रहे थे जिस प्रकार पहाड़ी क्षेत्रों में बसें घुमावदार सड़कों पर चढ़ती हैं।

इस दुर्ग की छत पर मिशेल आर्केन्जिल नामक देवी की विशाल प्रतिमा लगी हुई है जिसके नाम पर इस दुर्ग का नामकरण किया गया है। इस दुर्ग तक पहुँचने के लिए ट्रेवी नदी पर बने हुए पोंटे सेंट एंजिलो नामक एक पुल को पार करना होता है जिसके दोनों तरफ प्राचीन कालीन ईसाई देवदूतों एवं देवियों की मूर्तियां लगी हुई हैं। हैड्रियन के बाद रोम के राजाओं के शवों को यहीं लाकर दफनाया जाता रहा।

यहाँ दफनाया जाने वाला अंतिम राजा कैराकैला था जिसकी मृत्यु ई.217 में हुई थी। ई.401 में इस दुर्ग को सैनिक मुख्यालय में बदल दिया गया। इसके कारण दुर्ग में स्थित प्राचीन काल के अनेक निर्माण ध्वस्त हो गए। ई.410 में जब विसिगोथ लुटेरों ने रोम में लूट मचाई तो इस दुर्ग में स्थित शाही कब्रों को भी खोद दिया गया ताकि वहाँ से कीमती सामग्री प्राप्त की जा सके। ई.537 में गोथ आक्रांताओं ने इसी प्रक्रिया को फिर से दोहराया तथा हैड्रियन एवं उसके बाद के सम्राटों के काल में बनी अनेक कीमती प्रतिमाओं को तोड़ डाला।

इन विध्वंसों के दौरान सम्राट हैड्रियन की कब्र पर रखा एक कीमती पत्थर साबुत बचा रहा जिसे बाद में सेंट पीटर्स बेसिलिका में सम्राट ऑट्टो की कब्र को ढंकने के लिए भेज दिया गया। जब रोम में ईसाई धर्म का बोलबाला हो गया तो इस दुर्ग में स्थित रोमन पैगन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को भी तोड़ डाला गया जिनमें से कुछ के खण्ड दुर्ग में हुई खुदाई एवं सफाई आदि के समय मिले हैं।

इन्हें दुर्ग के गलियारों में लगा दिया गया है। प्राचीन निर्माण के कुछ स्तम्भों के टुकड़े भी अब पर्यटकों एवं इतिहासकारों की सुविधा के लिए दुर्ग परिसर में प्रदर्शित किए गए हैं।

ई.590 में रोम में भयानक प्लेग फैल गया था जिसमें बहुत से रोमवासी मारे गए थे। उस समय रोम में पोप ग्रेगरी (प्रथम) का शासन था। एक लोक किंवदंती के अनुसार तब देवी आर्क एंजिल मिशेल इस दुर्ग की छत पर प्रकट हुई थी। पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में एक यात्री ने इस लोक किंवदन्ती को रोमन लोगों के मुंह से सुना था तथा उस समय उसने दुर्ग पर एक देवी की प्रतिमा भी देखी थी।

उस काल में पोप ग्रेगरी (प्रथम) रोमन देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को नष्ट करवा रहा था। पोप ग्रेगरी (प्रथम) ने भी इस देवी की तलवार से खून टपकता हुआ देखा था। फिर भी पोप ने पैगन देवी-देवताओं की मूर्तियों को तुड़वाना जारी रखा। चौदहवीं शताब्दी ईस्वी में पोप निकोलस (तृतीय) ने सेंट पीटर्स बेसिलिका से इस दुर्ग तक एक छतदार गलियारा बनवाया जिसे पैसेटो बोर्गो कहा जाता था। अब यह गलियारा मौजूद नहीं है। इसका उल्लेख केवल पुस्तकों में मिलता है।

ई.1527 में जब चार्ल्स (पंचम) ने रोम को घेर लिया तब पोप क्लेमेंट (सप्तम्) ने इसी दुर्ग में शरण ली थी। पोप के सिपाही इस दुर्ग की छतों पर खड़े होकर शत्रु सेना पर गोलियां बरसाया करते थे। लिओ (दशम्) ने मैडोना के साथ राफेएलो डा मॉण्टेलुपो के द्वारा एक चैपल का निर्माण करवाया।

ई.1536 में मॉण्टेलुपो ने सेंट मिशेल की एक संगमरमर की मूर्ति भी बनाई जिसके हाथ में एक तलवार थी। इस मूर्ति को दुर्ग के ऊपर स्थापित कर दिया गया। बाद में पोप पॉल (तृतीय) ने इस दुर्ग में एक विलासिता पूर्ण महल का निर्माण करवाया ताकि यदि भविष्य में फिर कभी रोम पर आक्रमण हो तो पोप इस महल में निवास कर सके।

ई.1753 में दुर्ग के ऊपर लगी हुई सेंट मिशेल की संगमरमर की प्रतिमा को एक नई कांस्य प्रतिमा द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया जिसका निर्माण फ्लेमिश शिल्पी पीटर एण्टोन वॉन वरशेफेल्ट ने किया था। अब यही मूर्ति दुर्ग पर लगी हुई दिखाई देती है। पुरानी प्रतिमा अब भी दुर्ग के भीतर एक खुले चौक में लगी हुई है। रोम के पोप शासकों ने इस दुर्ग का उपयोग बंदीगृह के रूप में भी किया। जियोर्डानो ब्रूनो को जीवित जलाने से पहले छः साल तक इसी दुर्ग में बंदी बनाकर रखा गया था। बेनवेनूटो सेलिनी नामक एक शिल्पी को भी इसी दुर्ग में बंदी बनाया गया। उस पर मुकदमा चलाने के लिए जेल में कोर्ट लगाई गई थी।

अब इस दुर्ग में एक संग्रहालय स्थापित कर दिया गया है। संसार भर से लगभग 12-13 लाख लोग इस दुर्ग को देखने के लिए प्रति वर्ष आते हैं। हम भी दुर्ग में लगी मूर्तियों को देखते हुए आगे बढ़ते रहे। दुर्ग भव्य और अद्भुत है किंतु भारत के रहस्यमय किलों के सामने यह एक बहुत छोटे परिंदे के जैसा है। इसके भीतर सुरंगनुमा मार्गों पर चलना भी किसी रहस्य को उजागर करने से कम नहीं है।

ये सुरंगनुमा मार्ग एक समान ऊंचाई पर ऊंचे उठते जाते हैं जिन पर कभी रोमन योद्धा घोड़ों पर सवार होकर सरपट दौड़ लगाते होंगे। इन सुरंगनुमा गलियारों के दोनों ओर छोटी-छोटी कोठरियां हैं जिन्हें देखकर भय लगता है।

राजकीय बंदी विद्रोही दार्शनिक एवं प्रतिद्वन्द्वी राजकुमार कभी इन्हीं कोठरियों में बंदी रखे जाते होंगे। बीच-बीच में शाही निवास के महल भी बने हुए हैं। इन महलों में संसार के श्रेष्ठ फ्रैस्कों (भित्तिचित्र) बने हुए हैं जिनमें बाइबिल की कथाएं तथा विभिन्न पोप से जुड़े हुए धार्मिक प्रसंग उत्कीर्ण हैं। ऐसा लगता है जैसे सब कुछ एक गोल जादुई डिब्बे में बंद है।

हम सबसे ऊपर की मंजिल पर पहुँच गए जहाँ आजकल शस्त्रों का संग्रहालय स्थापित है। यहाँ तक पहुँचने के मार्ग में एक रेस्टोरेंट भी है जिसमें विदेशी पर्यटकों की अच्छी-खासी भीड़ थी। संग्रहालय के बाहर घुमावदार बरामदा बना हुआ है जिसमें खड़े होकर दुर्ग के एक हिस्से की छत पर पुरानी तोपों का संग्रहालय है।

बहुत से गोले भी सजाकर रखे गए हैं जो कभी तोपों में प्रयुक्त होने के लिए बनाए गए होंगे किंतु कभी भी तोपों में नहीं डाले गए। संभवतः ये तोपें और गोले उस समय के हैं जब पंद्रहवीं शताब्दी ईस्वी में रोम के पोप दुर्ग में निवास करते होंगे।

ये तोपें सोलहवीं सदी ईस्वी की उन भारतीय तोपों से बिल्कुल अलग हैं जिनका प्रयोग मुगलों के समय भारत में किया जाता था। रोम के दुर्ग की तोपें बहुत कुछ वैसी ही हैं जिनका उल्लेख भारतीय प्राचीन ग्रंथों में चरिष्णु के नाम से किया गया है। इनसे गोला फैंकने की तकनीक बहुत कुछ भारतीय गोफन जैसी रही होगी।

जब हम इन तोपों को देखने में व्यस्त थे, तभी दुर्ग के बाहर बह रही ट्रेवी नदी का कोई पक्षी उड़कर इसी बरामदे के बाहर आकर बैठ गया। दीपा तुरंत ही उस पक्षी की ओर आकर्षित हुई। वह पक्षी और दीपा दोनों एक दूसरे को काफी देर तक देखते रहे। मानो दोनों के बीच कोई मूक संवाद चल रहा हो। मैंने इस दृश्य को अपने सैलफोन के कैमरे में कैद कर लिया। आज यह रोम यात्रा की सबसे यादगार तस्वीरों में से एक है।

संग्रहालय देखने के बाद हम दुर्ग की छत पर पहुँचे। यहाँ से पूरा रोम दिखाई देता है। शताब्दियों एवं सहस्राब्दियों के अंतराल में बसा हुआ यह विशाल शहर ऐसा लगता है मानो किसी ने एक विशाल कैनवास पर रंगों से भवनों, सड़कों, नदियों और ऊँचे-ऊँचे गिरजाघरों को आकार दे दिया हो। सेंट पीटर्स स्क्वैयर तथा सेंट पीटर्स बेसिलिका यहाँ से बहुत साफ दिखाई देते हैं।

सेंट पीटर्स बेसिलिका के गुम्बद की लगभग 10-12 अनुकृतियां भी चारों तरफ दिखाई देती हैं मानो किसी ने इस भव्य पैरोनोमा को पूर्णता प्रदान करने के लिए इतने सारे विशाल चर्चों का निर्माण किया हो!

हम बहुत देर तक रोम शहर को देखते रहे। किसी ने सच ही कहा है- ‘रोम वाज नॉट बिल्ट इन ए डे!’  जहाँ तक पर्यटकों को जाने की अनुमति है उसके पास भी एक ऊंची दीवार है जिस पर सेंट एंजिलो मिशेल की मूर्ति लगी हुई है। इसी मूर्ति के कारण इस दुर्ग को अब सेंट एंजिलो कैसल कहा जाता है। कैसल के सामने एक इटैलियन युवती गिटार बजा रही थी और इटैलियन भाषा में कोई गीत गा रही थी।

रोम शहर की सफाई-व्यवस्था

दुर्ग के नीचे बह रही नदी की कलकल ध्वनि को तो यहाँ से नहीं सुना जा सकता किंतु नदी में तैरते रहने वाले सफेद बगुलों जैसे पक्षी पूरे परिवेश को जीवंत बनाए रहते हैं। नदी में तैरते हुए पक्षियों के झुण्ड भी यहाँ से साफ दिखाई देते हैं। इन पक्षियों की उपस्थिति दर्शकों को अचम्भित करती है।

 पूरे रोम शहर में एक भी गाय, साण्ड, कुत्ता, बिल्ली, चूहा, कौआ, बंदर गिलहरी, छिपकली, मक्खी, मच्छर आदि देखने को नहीं मिलता किंतु रोम वासियों ने जैसे इन पक्षियों पर अनुकम्पा करके उन्हें शहर के आकाश में उड़ने की अनुमति दे रखी है। ये पक्षी इस शहर में प्रकृति की मनुष्येतर जैविक उपस्थिति दर्ज करवाते हैं।

कुछ बूढ़ी औरतें और काले रंग के लम्बे ओवरकोट पहने इटेलियन युवतियां तरह-तरह की नस्ल के पालतू कुत्ते लेकर यदा-कदा शहर की सड़कों के किनारे बने फुटपाथों पर चलती हुई दिखाई दे जाती हैं किंतु वे इतने अनुशासित लगते हैं मानो उन पर भी महान् रोम के महान् इतिहास का महान् गौरव हावी हो गया है!

ट्रेवी नदी के पक्षियों और इटैलियन युवतियों के कुत्तों के अतिरिक्त संभवतः और किसी मनुष्येतर प्राणी को शहर में प्रवेश करके मनुष्यों को देखने की अनुमति नहीं है। कम से कम मुझे तो ऐसा ही प्रतीत हुआ। पूरा शहर साफ है, गंदगी और दुर्गंध का नामोनिशान नहीं है।

सड़क के किनारे हर 10-20 मीटर की दूरी पर लोहे के स्टैण्डों पर प्लास्टिक के बैग लटके हुए हैं। हर दुकान के आगे भी ये बैग लगे हुए हैं जिनमें कचरा डाला जाता है। लगभग हर आधा किलोमीटर पर प्लास्टिक के बड़े कंटेनर लगे हुए हैं जिनमें बड़ा कचरा डाला जा सकता है।

ट्रेवी फाउण्टेन

सेंट एंजिलो कैसल से निकलकर हम ट्रेवी फाउण्टेन पहुँचे। यहाँ बहुत भीड़ थी, इतनी कि फव्वारे के पास पहुँचने के लिए पैर धरने तक के लिए जगह नहीं थी। इटली की राजधानी रोम एक ऐसा नगर है जिसमें कई जिले हैं। इनमे से एक जिला ट्रेवी कहलाता है।

इस जिले में फोन्टाना डी ट्रेवी नामक फव्वारा स्थित है जो 86 फुट ऊँचा तथा 161 फुट चौड़ा है। यह रोम नगर में बैरोक शैली में निर्मित एकमात्र फव्वारा है तथा संसार के प्रसिद्धतम फव्वारों में से एक है। विभिन्न दशों में बनने वाले अनेक चलचित्रों में इस फव्वारे को दर्शाया गया है। संभवतः यही कारण है कि दुनिया भर से आए पर्यटकों की भीड़ सबसे ज्यादा यहीं पर होती है।

यह फव्वारा उस स्थान पर बना हुआ है जहाँ तीन सड़कें आकर समाप्त होती हैं। इसलिए इसे लैटिन भाषा में ट्रायवे कहा जाता है जो संस्कृत के शब्द त्रि-वाय से साम्य रखता है। इसे ‘एक्वा वर्जिन’ अर्थात् पवित्र जल भी कहा जाता है। इस फव्वारे के लिए जल की आपूर्ति एक प्राचीन काल में निर्मित नहर से होती है जिसका निर्माण रोमन साम्राज्ञी एग्रिप्पा के स्नानघर में पर्वतों के पवित्र जल की आपूर्ति के लिए किया गया था। यह नहर रोम से 13 किलोमीटर दूर स्थित पहाड़ों से निकाली गई थी।

नहर काफी घूमकर आती है इसलिए इसकी कुल लम्बाई 22 किलोमीटर हो जाती है। जब रानी एग्रिप्पा मर गई तो इस नहर से रोम नगर को जल की आपूर्ति होने लगी। बाद के किसी काल में नहर के ऊपर एक फव्वारा बना दिया गया जिस पर एग्रिप्पा तथा त्रिविया नामक रोमन देवियों की सुंदर एवं विशाल मूर्तियां लगाई गईं। समय के साथ यह फव्वारा बिखरने लगा तथा देवियों की मूर्तियां भी टूट गईं।

ई.1629 में रोम के पोप उरबान (अष्टम्) ने गियान लॉरेंजो बरनिनी नामक एक शिल्पी से एक नया फव्वारा डिजाइन करने को कहा। बरनिनी ने नया डिजाइन तो तैयार कर दिया किंतु उसके कार्यान्वित होने से पहले ही पोप उरबान (अष्टम्) की मृत्यु हो गई। फिर भी बरनिनी ने इस फव्वारे में कुछ परिवर्तन किए जो आज भी मौजूद हैं। बाद में पियात्रो दा कोरटाना ने एक प्रभावशाली मॉडल बनाया किंतु फव्वारे का पुननिर्माण नहीं किया जा सका।

ई.1730 में पोप क्लेमेंट बारहवें ने इस फव्वारे का नया डिजाइन तैयार करने के लिए आर्चीटैक्चर्स की एक प्रतियोगिता आयोजित करवाई जिसमें एलेसैण्ड्रो गैलिली ने निकोला साल्वी के डिजाइन को परास्त कर दिया किंतु इससे रोम में विद्रोह हो गया और अंत में फव्वारे के पुनर्निर्माण का काम निकोला सालवी को दिया गया।

ई.1732 में फव्वारे के पुनर्निर्माण का काम आरम्भ हुआ। ई.1751 में सालवी की मृत्यु हो गई तथा उसका काम अधूरा रह गया किंतु अपनी मृत्यु से पहले उसने अपने द्वारा बनाए गए डिजाइन को फव्वारे के पीछे एक फूलदान में छिपा दिया ताकि उस डिजाइन को सालवी के शत्रु नष्ट न कर दें। इस फूलदान को ‘एसो दी कोप्पे’ कहा जाता है जिसका अंग्रेजी में उच्चारण एस ऑफ कप्स किया जाता है।

फव्वारे की सजावट के लिए चार शिल्पी पिएत्रो ब्राक्की, फिलिप्पो डेल्ला वाल्ले, जियोवान्नी ग्रोस्सी तथा एण्ड्रिया बरगोण्डी की सेवाएं प्राप्त की गईं। ज्यूसेप्पे पानिनी को आर्चीटैक्चर नियुक्त किया गया। ई.1762 में पानिनी ने ट्रेवी फाउण्टेन को अंतिम रूप दिया। इस नए डिजाइन में, पुराने फव्वारे में लगी एग्रिप्पा तथा त्रिविया नामक रोमन देवियों की पुरानी मूर्तियों को हटा दिया गया तथा उनके स्थान पर समुद्रों एवं नदियों के देवता ओसेनस तथा समृद्धि एवं आरोग्य की देवियों की मूर्तियां लगाई गईं।

पोप क्लेमेंट अष्टम् ने 22 मई 1762 को इस फव्वारे का उद्घाटन किया। इस फव्वारे के निर्माण में ट्रावरटाइन नामक पत्थर का उपयोग किया गया है जो रोम से 35 किलोमीटर पूर्व में स्थित ट्रिवोली से लाया गया है। इसके बाद भी कई बार इस फव्वारे का जीर्णोद्धार किया गया किंतु मूल डिजाइन में परिवर्तन नहीं किया गया। इस फव्वारे में पलाज्जो पोली नामक दीवार नुमा संरचना बनाई गई है जो किसी स्टेज के पीछे लगे पर्दे की तरह दिखाई देती है। इस दीवार में दो मंजिलें बनी हुई प्रतीत होती हैं।

नीचे की मंजिल में तीन बड़े आले हैं जिनमें एक-एक प्रतिमा लगी हुई है। बीच का आला तथा बीच की प्रतिमा सबसे बड़ी है, यह ओसेनस देवता की है तथा इसे मूर्तिकार पिएत्रो ब्राक्की ने बनाया था। ओसेनस एक रथ पर खड़े हैं तथा दो सेवक उस रथ के वेगवान घोड़ों को नियंत्रित कर रहे हैं।

ओसेनस प्राचीन यूनानी एवं रोमन धर्मों में समुद्रों एवं नदियों के देवता के रूप में पूजे जाते थे। ओसनेस के पास के एक आले में समृद्धि की देवी है जो अपने कलश से जल गिरा रही है तथा दूसरी तरफ के आले में आरोग्य की देवी है जिसके हाथ में पकड़े हुए प्याले में से एक सांप कुछ पीता हुआ दिखाया गया है।

ऊपर वाली मंजिल के दो आलों में दो अलग-अलग दृश्य उत्कीर्ण हैं जिनमें रानी एग्रिप्पा के स्नानघर के लिए नहर निकालने का आदेश देने एवं नहर के पूरा होने पर रानी के चरणों में सूचना निवेदन करने के दृश्य दर्शाए गए हैं। शेष आले खिड़की के रूप में बनाए गए हैं। दीवार के ऊपर, मध्य भाग में एक मुकुट बनाया गया है जो रोम के अधिकांश भवनों में दिखाई देता है।

पलाज्जो पोली नामक दीवार के चरण भाग में प्राकृतिक चट्टान की आकृति में एक बड़ा प्लेटफार्म बनाया गया है। ओसोनस के रथ के नीचे से पानी बहकर चट्टान पर आता है और झरने की तरह सामने के कुण्डों में गिरता है। पूरा दृश्य कृत्रिम होते हुए भी प्राकृतिक लगता है। पर्यटक इन कुण्डों में दाएं हाथ से सिक्का उछालते हैं। सिक्के को बाएं कंधे के पीछे की ओर उछाला जाता है।

मान्यता है कि इससे उनकी मनोकामना पूर्ण होती है। प्रतिदिन औसतन 300 यूरो इस फव्वारे में उछाले जाते हैं। वर्ष 2016 में 15 लाख अमरीकी डॉलर अर्थात् 10.35 करोड़ भारतीय रुपए इन कुण्डों में डाले गए। हम प्रातः नौ बजे के घर से निकले थे और इस समय ढाई बजने को आए थे। हम घर के लिए लौट पड़े जो यहाँ से केवल चार-साढ़े चार किलोमीटर ही दूर था।

चिएसा सेंट एग्नेसे इन एगोने

सायं चार बजे हम पिताजी को साथ लेकर पियाजा नोवाना गए। यहाँ का परिवेश आज भी कल की तरह गीत-संगीत, नृत्य, वाइन, पिज्जा, पास्ता, कॉफी से सराबोर है। चौक में बने तीनों फव्वारों को देखते हुए हम एक चर्च गए। चर्च के बाहर पीतल की एक चमचमाती प्लेट लगी है जिस पर रोमन लिपि एवं इटैलियन भाषा में ‘चिएसा सेंट एग्नेसे इन एगोने’ लिखा हुआ है तथा चर्च के नाम के नीचे स्थान का नाम ‘पियाजा नोवाना’ अंकित है।

मैं अपने जीवन में इससे पहले चर्च एवं मस्जिद में एक-दो बार ही गया हूँ जबकि गुरुद्वारों और सूफी दरवेशों की मजारों पर बीसियों बार जाने का अवसर मिला है। निश्चित रूप से हिन्दू धर्म के वैष्णव मंदिरों के बाद, ईसाई धर्म के कैथोलिक चर्च अत्यधिक भव्य एवं आकर्षक होते हैं। यह भी एक भव्य चर्च है जिसके भीतर संसार के कीमती फ्रैस्को बने हुए हैं।

चर्च की चारों दीवारों एवं गुम्बद की भीतरी छत पर इन फ्रैस्को की सहायता से कैथोलिक धर्म की जानकारी देने वाला पैरोरोमा ही बना दिया गया है। पूरे चर्च में कॉलम्स के सहारे-सहारे पैडस्टल खड़े करके उन पर प्राचीन काल के संतों की प्राचीन मूर्तियां प्रदर्शित की गई हैं। बहुत से भित्तिचित्रों एवं मूर्तियों के निकट इंग्लिश, इटैलियन, स्पेनिश एवं फ्रैंच भाषाओं में ईसाई संतों के नाम एवं उनसे सम्बद्ध घटनाएं अंकित की गई हैं।

आज चर्च में कोई म्यूजिकल कंसर्ट होने वाली थी जिसकी तैयारियां चल रही थीं। चर्च के भीतर देश-विदेश से आए सैंकड़ों लोग मौजूद थे किंतु कोई भी पर्यटक न तो बात कर रहा था, न किसी का सैलफोन बज रहा था और न बच्चे इधर-उधर दौड़कर शांति भंग कर रहे थे। यहाँ तक कि पर्यटक चलने में भी इतनी सावधानी बरत रहे थे कि उनके पैरों की आहट भी सुनाई नहीं देती थी।

दुनिया के विभिन्न देशों से आए कुछ लोग लकड़ी की पॉलिशदार बैंचों पर बैठकर प्रार्थना कर रहे थे। चर्च में प्रवेश करते ही एक नोटिस बोर्ड दिखाई देता है जिस पर लिखा है- ‘फोटो खींचना मना है’ किंतु सभी पर्यटक अपने मोबाइल फोन और कैमरों से फोटो एवं वीडियो शूट कर रहे थे। मैंने कुछ देर तक तो नोटिस बोर्ड पर लिखी सूचना का पालन किया और उसके बाद उन सैंकड़ों पर्यटकों की तरह कुछ चित्र तो उतार ही लिए जो बड़ी उत्सुकता से वहाँ अंकित फ्रैस्को को अपने कैमरों में बंद कर रहे थे।

पिताजी ने संगमरमर से बने एक पैनल की ओर मेरा ध्यान खींचा जिसमें किसी सामंत पुत्र के ईसाई होने तथा भिखारी का जीवन जीने की इच्छा प्रकट करने की कहानी अंकित है। इसी पैनल में उस संत की मृत्यु का दृश्य भी अंकित है जिसके निकट तत्कालीन पोप, संत के सामंत पिता और कुछ देवदूत खड़े हुए उसे शांति के साथ शरीर छोड़ते हुए देख रहे हैं।

यहाँ कुछ पैनल प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनाकर भी लगाए गए हैं। यहाँ से हमें पिताजी को पैंथियम दिखाने ले जाना था किंतु पिताजी थक चुके थे और उन्होंने घर लौटने की इच्छा व्यक्त की। हम उसी समय बस पकड़कर अपने सर्विस अपार्टमेंट लौट आए।

Related Articles

4 COMMENTS

  1. Great post and straight to the point. I don’t know if this is actually
    the best place to ask but do you guys have any thoughts on where to employ some professional writers?
    Thanks in advance 🙂 Escape room

  2. Oh my goodness! Incredible article dude! Thank you, However I am experiencing problems with your RSS. I don’t understand the reason why I am unable to subscribe to it. Is there anybody getting the same RSS issues? Anyone who knows the solution will you kindly respond? Thanks!

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source