Friday, March 29, 2024
spot_img

5. रोम में चौथा दिन – 20 मई 2019

आज प्रातः हमें कोलोजियम के लिए निकलना था। हमारे पास कोलोजियम, रोमन फोरम तथा पेलेंटाइन हिल के टिकट थे जो हमने कल मेरूलाना प्लाजो से प्राप्त किए थे। ये तीनों स्थान एक दूसरे से सटे हुए हैं। कोलोजियम में प्रवेश करने के लिए हमें 12 बजे का समय दिया गया था। हमने प्रातः 9.30 बजे अपार्टमेंट से निकलने का निश्चय किया ताकि कोलोजियम में प्रवेश करने से पहले हम, रोमन फोरम तथा पेलेंटाइन हिल देख सकें किंतु अपार्टमेंट से निकलने में विलम्ब हो गया और हम प्रातः10.15 पर सर्विस अपार्टमेंट से निकल सके।

इस प्रकार आज तीसरे दिन भी हमें साढ़े दस बजे वाली बस मिली। अब तक हमें अनुमान हो चुका था कि हम दक्षिणी रोम में प्रवास कर रहे थे और हमें यहाँ से मध्य रोम अथवा उत्तरी रोम की ओर जाना पड़ता था। इस बस ने हमें ‘विया अर्जेण्टीनिया’ नामक बस-स्टॉप पर उतारा। वहाँ से हमें कॉलोजियम के लिए दूसरी बस मिली। हम प्रातः 11.15 पर कॉलोजियम के सामने उतर गए।

कोलोजियम के सामने

हम उस विश्व-प्रसिद्ध ऐतिहासिक भवन के ठीक सामने खड़े थे जो इस बात का साक्षी था कि मनुष्य कितना हिंसक, कितना अत्याचारी और कितना निर्दयी हो सकता है! यह वही कोलोजियम था जिसका निर्माण ईसा के जन्म के लगभग 70 वर्ष बाद रोमन सम्राट वेस्पेसियन के समय में रोम-वासियों के मनोरंजन के लिए करवाया गया था। यह वही कोलोजियम था जिसमें हजारों ग्लेडियेटरों को रोमन-वासियों का मनोरंजन करने के लिए अपने प्राण गंवाने पड़े थे।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

यह वही कोलोजियम था जिसमें रोम के राजा और धनी-सामंत धन कमाने के लिए हजारों ग्लेडियेटरों को एक-दूसरे के प्राण लेने पर विवश करते थे। यह वही कोलोजियम था जिसमें एक भूखे शेर ने ईसाई संत एण्ड्रोक्लस के समक्ष सिर झुकाकर, स्वयं पर किए गए उपकार के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की थी।

यह वही कोलोजियम था जिसमें एक दिन ग्लेडिएटरों ने ‘स्पार्तक’ नामक ग्लेडिएटर के नेतृत्व में बंद कोठरियों के दरजवाजे तोड़ डाले थे और रोम की सड़कों पर आकर बहुत से ‘पैट्रिशियन’ अर्थात् धनी-सामंतों को मार दिया था। यह वही कोलोजियम था जिसकी कोठरियों में बंद छः हजार ग्लेडिएटरों को एक साथ ‘एपियन’ नामक सड़क पर सूली पर चढ़ा दिया गया था किंतु अभी हमारे लिए कोलोजियम के दरवाजे एक घण्टे बाद खुलने वाले थे।

रोमन फोरम तथा पेलेंटाइन हिल में विफलता

हम मध्याह्न 12.00 बजे से 12.25 तक कोलोजियम में प्रवेश ले सकते थे। इस समय सवा ग्यारह ही बजे थे इसलिए हमने पहले, रोमन फोरम तथा पेलेंटाइन हिल देखने का निर्णय लिया किंतु हमें यह देखकर निराशा हुई कि वहाँ पहले से ही पर्यटकों की बहुत लम्बी कतारें लगी हुई थीं। अतः पिताजी ने रोमन फोरम की लाइन में लगने से मना कर दिया और वे कोलोजियम के बाहर ही एक छोटे से खाली चबूतरे पर बैठ गए।

200 रुपए की एक पॉलीथीन

हम कतारों में तो लग गए किंतु असमंजस में थे, संभवतः हमारे पास इतना समय नहीं था कि हम रोमन फोरम तथा पेलेंटाइन हिल देखकर 12.25 से पहले बाहर आ सकें। इतने में ही बरसात आरम्भ हो गई। हमने अनुमान लगाया कि साढ़े ग्यारह बज गए क्योंकि विजय ने सुबह ही गूगल पर देखकर रोम के मौसम विभाग द्वारा की गई भविष्यवाणी के बारे में बता दिया था कि आज बारसात साढ़े ग्यारह बजे आरम्भ होगी।

कल जो छतरी हमने रास्ते से खरीदी थी, आज उसे सर्विस अपार्टमेंट में ही भूल आए थे। वैसे भी इतनी तेज बारिश में वह किसी काम की नहीं थी। यहाँ बहुत से बांग्लादेशी विक्रेता हाथों में छतरियां एवं मोमजामे की बरसातियां (कामचलाऊ रेनकोट) बेच रहे थे। जैसे ही बरसात आरम्भ हुई, वैसे ही छतरियों एवं मोमजामे की बरसातियों की बिक्री होने लगी। हमने भी चार बरसातियां खरीदीं, एक पिताजी के लिए, एक भानु के लिए, एक मेरे लिए और एक मधु के लिए। विजय और दीपा घर से वाटर-प्रूफ विण्ड चीटर पहनकर आए थे जिनमें कैप भी लगी थीं। इसलिए उन्हें बरसातियों की आवश्यकता नहीं थी।

बांग्लादेशी विक्रेताओं ने हमसे प्रत्येक बरसाती के लिए पाँच डॉलर मांगे। भारत में इस तरह की पॉलीथीन की कीमत मुश्किल से 30-40 रुपए होती। यह इतनी पतली पॉलीथीन थी कि जरा सा नाखून लगते ही फट जाती। थोड़े से मोलभाव के बाद हमें प्रत्येक बरसाती के लिए ढाई यूरो अर्थात् 200 भारतीय रुपए चुकाने पड़े।

बरसात तेज होती देखकर हम लोग कतारों से बाहर निकल गए और वहीं आ गए जहाँ पिताजी बैठे हुए थे। तब तक विजय ने दौड़कर पिताजी को पॉलीथीन की बरसाती पहना दी थी।

पर्यटकों को जानबूझ कर सुविधाओं से वंचित किया जा रहा था

हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि देश-विदेश से आए हजारों पर्यटक बरसात में खड़े-खड़े भीग रहे थे किंतु उनके लिए सरकार, नगर पालिका, कोलोजियम प्रबंधन, एनजीओ (स्वयं सेवी संगठन) आदि की तरफ से, किसी तरह के शेड, चबूतरे, बरामदे, लॉन, कुर्सी, प्याऊ, पेशाबघर आदि की व्यवस्था नहीं थी।

ऐसा लगता था कि यह सब सोच-समझ कर किया जा रहा था ताकि बंग्लादेशियों की पॉलिथीन एवं छतरियां बिक सकें। यह ठीक वैसा ही था जैसा कुछ साल पहले तक भारत में कुछ रेलवे स्टेशनों पर ट्रेन के आगमन के समय रेलवे के नलों में पेयजल की आपूर्ति बंद कर दी जाती थी ताकि लोग वेण्डर्स से पानी की बोतलें खरीदें तथा 10 रुपए की बोतल के लिए 20 रुपए चुकाएं। हालांकि श्री नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में इस तरह की व्यवस्थाओं में सुधार आया है।

अस्सी रुपए में लघुशंका

अब मुझे लघुशंका से निवृत्त होने की इच्छा होने लगी। हमने बांग्लादेशियों से पूछा तो उन्होंने बताया कि कोलोजियम के पीछे एक टॉयलेट है। मैं किसी तरह पूछता हुआ और ढूंढता हुआ वहाँ तक पहुँचा, मुझे लगभग पौन किलोमीटर चलना पड़ा था। टॉयलेट के बाहर एक अफ्रीकी नस्ल का कर्मचारी बैठा हुआ सबसे 1 यूरो चार्ज कर रहा था, संभवतः वह नाइजीरियन था। मैं ठिठक गया, एक बार पेशाब करने के अस्सी रुपए! थी तो यह ज्यादती किंतु किया क्या जा सकता था!

कोलोजियम में प्रवेश

जब तक मैं टॉयलेट से लौटकर आया, तब तक बारह बज चुके थे और हम कोलोजियम में प्रवेश ले सकते थे। बारिश अब भी तेज थी। कोलोजियम के सामने दो तरह की कतारें थीं। एक तरफ की कतारों में वे पर्यटक थे जिन्होंने अभी-अभी टिकट खरीदे थे। उन्हें छोटे-छोटे समूहों में भीतर भेजा जा रहा था।

दूसरी तरफ की कतार के लोगों को तत्काल कोलोजियम में जाने दिया जा रहा था। यह कतार बहुत छोटी थी। चूंकि हमारे पास पहले से ही टिकट बुकिंग थी इसलिए हम तत्काल कोलोजियम में प्रवेश पा गए। बरसात की आपाधापी में हमारे छः टिकटों में से दो टिकट भीग गए इसलिए वे स्कैनर के सामने काम नहीं कर पाए। काउण्टर पर बैठी लड़की ने अपने से वरिष्ठ अधिकारी से बात की तो वह समस्या को तत्काल समझ गया और उसने हम सभी को भीतर जाने की अनुमति दे दी।

कॉलेजियम

यह देखकर आश्चर्य होता है कि आज से लगभग दो हजार साल पहले बनी यह बिल्डिंग आज भी उन्मत्त भाव से खड़ी है। कुछ हिस्सों की अवश्य ही सरकार द्वारा मरम्मत करवाई गई है। कॉलेजियम का मुख्य डिजाइन इस प्रकार है कि बीच में वृत्ताकार मैदान है। उसके चारों तरफ छोटी-छोटी कोठरियां बनी हुई हैं जिनमें ग्लेडियेटर्स बंद रहते थे।

ऊपर की मंजिल में छज्जेदार एवं खुली बालकनियां बनी हुई हैं। इन बालकनियों में रोमन सम्राट एवं राजपरिवार के सदस्य, धनी-सामंत तथा जन-सामान्य बैठा करता था। यहाँ से ये लोग सामने मैदान में चल रहे भयानक रक्तपात के दृश्यों को देखते थे। प्रत्येक ग्लेडिएटर अपने प्राण बचाने के लिए अपने प्रतिद्धंद्वी के प्राण लेता था। इस प्रयास में प्रत्येक ग्लेडिएटर तब तक लड़ता रहता था जब तक कि वह किसी अन्य प्रतिद्वंद्वी द्वारा न मार दिया जाए।

जो ग्लेडियेटर लड़ने से मना करता था, उस पर भूखे शेर छोड़ दिए जाते थे और रोम के राजा एवं प्रजा उन भूखे शेरों द्वारा मनुष्यों की हड्डियों को चबाए जाने के वीभत्य दृश्य देखकर तालियां बजाते थे। इन सारे दृश्यों के दो परिणाम होते थे- पहला परिणाम मनोरंजन के रूप में मिलता था और दूसरा परिणाम धनी-सामंतों एवं राजा को होने वाली विपुल धनराशि के रूप में मिलता था।

हमने लगभग डेढ़ घण्टा कोलोजियम में बिताया। बाहर अब बरसात थम चुकी थी किंतु इस समय तक पिताजी पूरी तरह थक चुके थे। इसलिए हम अपने सर्विस अपार्टमेंट को लौट लिए। घर आकर भोजन किया तथा कुछ देर विश्राम करने के बाद सायं 4 बजे के आसपास हम लोग पेंथिऑन तथा पियाजा नवोना देखने के लिए निकल गए। इस बार पिताजी घर पर ही रहे। थकान हो जाने के कारण उन्होंने चलने से मना कर दिया। उन्हें हल्का सा बुखार भी हो आया था।

पेंथिऑन का रोमांच (मंगल देवता का प्राचीन मंदिर)

कुछ वर्ष पहले मैंने एक अमरीकी लेखक डेन ब्राउन का उपन्यास एंजिल्स एण्ड डेमॉन्स पढ़ा था। इस उपन्यास में रोम शहर में स्थित प्राचीन भवनों, चौराहों, फव्वारों, चित्रों, चर्चों को आधार बनाते हुए एक अद्भुत काल्पनिक कथा गढ़ी गई है। धर्म और विज्ञान के बीच हुए युद्ध एवं एक कार्डिनल द्वारा किए जा रहे षड़यंत्रों के कथानक ने उपन्यास को अत्यंत रोचक बना दिया है।

एण्टी मैटर को चुराने से लेकर उसके नष्ट होने के बीच होने वाली हत्याओं के सिलसिले को समाप्त करके जब पाठक उपन्यास पूरा करता है तो रोम शहर के पुराने चर्च, कब्रिस्तान, बेसिलिका, टॉवर, फव्वारे, चौराहे आदि जीवंत होकर पाठक की आंखों में तैरने लगते है। पाठक की स्मृति में पेंथिऑन की भी एक अमिट छाप अंकित हो जाती है। वही पेंथिऑन हमारे सामने था। इस प्राचीन रोमन मंदिर का वर्णन इस पुस्तक में पहले ही कर दिया गया है।

यह भवन ईसा के जन्म से पहले, ई.पू.31 में तत्कालीन रोमन शासक मार्कस एग्रिप्पा (लूसियस का पुत्र) के समय बनना आरम्भ हुआ। उसने एक्टियम के युद्ध में रोमन सेनाओं की विजय के उपलक्ष्य में तीन भवन बनाने का निर्णय लिया। इनमें से पहला भवन मंगल देवता का मंदिर (मार्स टेम्पल) था, दूसरा भवन एग्रिप्पा सार्वजनिक स्नानागार था तथा तीसरा भवन नेप्च्यून देवता (वरुण देवता) का मंदिर था। ये भवन प्रथम रोमन सम्राट ऑगस्टस सीजर ऑक्टेवियन के समय बनकर पूरे हुए। उस युग के भवनों को ऑगस्टस शैली के भवन कहा जाता है जिनमें से पैंथिऑन भी एक है।

आज भी रोम नगर के मध्य में ये तीनों संरचनाएं देखी जा सकती हैं जो उत्तर से दक्षिण में एक सीध में बनी हुई हैं। इनमें से मंगल देवता का मंदिर तथा वरुण देवता का मंदिर जनसामान्य के लिए नहीं थे, इनका उपयोग केवल सम्राट एवं उसके परिवार के सदस्य करते थे। जबकि एग्रिप्पा स्नानागार सार्वजनिक उपयोग के लिए था। पेंथिऑन के सामने आज भी लैटिन भाषा में एक प्राचीन शिलालेख लगा है जिसमें इसे पैंथिऑन डोम कहा गया है।

ई.54 से 68 के बीच नीरो रोम का सम्राट हुआ। उसके समय रोम में भयानक आग लगी जिसमें ये तीनों भवन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। उसने रोम के क्षतिग्रस्त भवनों को दुबारा से बनवाया। नीरो ने अथवा उसके बाद के किसी राजा ने इस भवन का पुनर्निर्माण करवाया। यह राजा वेस्पेयिन भी हो सकता है जिसने रोम पर लगभग साढ़े नौ साल राज्य किया। ई.80 में रोमन सम्राट टाइटस के समय रोम में बड़ा ज्वालामुखी फटा जिसके कारण रोम में एक बार पुनः भयानक आग लग गई।

इस दौरान रोम के कई भवनों को क्षति पहुँची। नव-निर्मित पैंथिऑन भी इस आग की भेंट चढ़ गया। टाइटस के उत्तराधिकारी डोमिशियन ने पैंथिऑन को पुनः बनवाया। ई.97 से ई.117 तक ट्राजन नामक महान् रोमन सम्राट ने शासन किया। उसके समय में ई.110 में रोम पर आक्रमण करने वाले कुछ शत्रुओं ने पैंथिऑन को पुनः जला दिया। ट्राजन ने रोम नगर का पुनर्निर्माण करवाया। उसके समय में रोमन स्थापत्य एवं शिल्प अपनी नई ऊंचाइयों पर पहुँचा।

ई.114 में उसने पैंथिऑन को नए सिरे से बनवाना आरम्भ किया। उसके उत्तराधिकारी सम्राट हैड्रियन ने ट्राजन के समय आरम्भ हुए भवनों को पूरा करवाया। इस काल का शिलालेख भवन की दीवार में लगा हुआ है।

इस पुनर्निर्माण के बाद पैंथिऑन को फिर कभी पुनर्निर्मित नहीं किया गया। यही कारण है कि इन भवनों में आज भी ट्राजन एवं हैड्रियन युग की ईटें लगी हुई हैं। इसके निर्माण के बाद की शताब्दियों में हुए लेखकों के विवरणों में इस भवन के उल्लेख मिलते हैं। ई.202 में सैप्टिमियस सेरेवस तथा उसके पुत्र कैरेकाला ने इस भवन की मरम्मत करवाई।

उस काल का एक शिलालेख आज भी भवन की दीवार में लगा हुआ है।  ई.337 में रोमन सम्राट कॉन्स्टेन्टीन द्वारा ईसाई धर्म स्वीकार करने से पहले तक यह भवन रोम के राजाओं का प्रमुख देवालय बना रहा किंतु ई.337 के बाद यह मंदिर उजड़ने लगा। ई.609 में बिजैन्तिया के रोमन सम्राट फोकस ने पैंथिऑन भवन पोप बोनीफेस (चतुर्थ) को दे दिया।

उसने इस प्राचीन रोमन मंदिर को ईसा मसीह की माता मैरी तथा ईसाई धर्म में तब तक हुए शहीद संतों के नाम पर ‘सांक्टा मारिया एण्ड मारटायर्स रोटोण्डा’ नामक चर्च में बदल दिया। उस समय पोप द्वारा यह घोषणा की गई कि इस स्थान पर जिन्हें एंजिल (देवता) कहकर पूजा जाता था, वास्तव में वे डेमॉन्स (राक्षस) थे। संभवतः अमरीकी लेखक मार्क डेन को अपने उपन्यास का शीर्षक ‘एंजील्स एण्ड डेमॉन्स’ रखने का विचार यहीं से आया होगा। इस उपन्यास में पैंथिऑन की चर्चा बहुत विस्तार से की गई है।

सम्राट फोकस के आदेश से शहीद ईसाई संतों के अवशेष ‘कब्रिस्तानों’ से निकालकर पैंथिऑन के सीमा-क्षेत्र में गाढ़े गए। कहा जाता है कि ईसाई संतों के अवशेष 28 गाड़ियों में भरकर इस स्थान पर लाए गए। सम्राट पाफकस ने रोम के समस्त भवनों से धातुओं की चद्दरें उतार कर कुस्तुंतुनिया भिजवा दीं। ताम्बे, कांसे और पीतल की ये चद्दरें प्राचीन रोमन सम्राटों द्वारा रोम के राजकीय भवनों एवं देवालयों को सजाने के लिए लगाई गई थीं।

जब रोम की राजनीतिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई तब रोम के प्रमुख राजकीय एवं सार्वजनिक भवनों से संगमरमर के अलंकृत पत्थर, पट्टिकाएं तथा मूर्तियां भी लूट ली गईं। इनमें से कुछ सामग्री आज भी ब्रिटिश संग्रहालय में देखी जा सकती है।

जब कुस्तुंतुनिया के पतन के बाद 15वीं शताब्दी ईस्वी में रोम में पुनर्जागरण का युग आरम्भ हुआ तब पैंथिऑन डोम के भीतरी भाग को रोम के प्रसिद्ध चित्रकारों द्वारा महत्त्वपूर्ण चित्रों से सजाया गया जिनमें मेलोज्जो दा फोरली तथा फिलिप्पो ब्रूनेलेश्ची का चित्र ‘घोषणा’ सर्वप्रमुख माना जाता है।

पुनर्जागरण युग के कई महत्त्वपूर्ण कलाकारों के शवों को भी पैंथिऑन परिसर में दफनाया गया। इनमें चित्रकार राफेल तथा एनीबाले कैराकी, गीतकार अर्कान्जिलो, शिल्पकार बलडेसर पेरुजी, आदि सम्मिलित थे।

सत्रहवीं शताब्दी ईस्वी में पोप उरबान अष्टम् बारबेरिनी (ई.1623-44) ने पैंथिऑन के पोर्टिको में लगी ब्रोंज की भारी भरकम चद्दरें उखाड़ लीं। इस धातु के 90 प्रतिशत भाग का उपयोग सैंट एन्जिलो कैसल के लिए तोपें तथा उनके गोले बनाने में किया गया तथा शेष 10 प्रतिशत धातु का उपयोग रोम के सुप्रसिद्ध वास्तुकार बरनिनी द्वारा सेंट पीटर बेसिलिका के ऊपर दिखाई देने वाली ‘टेकरी’ बनाने में किया गया।

 पैंथिऑन के दोनों ओर सजावट के लिए बनाई गई संरचनाओं को पोप उरबान (अष्टम्) ने ‘गधे के कान’ घोषित करके उन्हें भी हटवा दिया तथा उनके स्थान पर ईटों के दो कॉलम खड़े करवा दिए जो उन्नीसवीं सदी के अंत तक अपने स्थान पर मौजूद रहे। उस काल के एक कवि ने अपनी कविता में लिखा है कि जो काम बारबेरियन (बर्बर आक्रान्ता) नहीं कर पाए वह बरबेरिनिस (पोप उरबान अष्टम् के वंशज) ने कर दिखाया।

इटली के एकीकरण के बाद इटली के प्रथम सम्राट विटोरियो एमेनुएल (द्वितीय) का शव इसी परिसर में दफनाया गया। उसके बाद सम्राट उम्बेरतो (प्रथम) तथा उसकी रानी माग्रेरिटा के शव भी यहीं दफनाए गए। वर्तमान में पैंथिऑन एक कैथोलिक चर्च है। हर समय हजारों पयर्टकों की भारी भीड़ के बीच भी चर्च की गतिविधियां चलती रहती हैं।

भारी भीड़ के बीच ही, चर्च में विवाह भी करवाए जाते हैं। पैंथिऑन का मुख्य भीतरी भवन गोलाकार डोम है जिसका व्यास 142 फुट तथा फर्श से छत के गुम्बद तक की ऊँचाई भी 142 फुट है। इसके सामने एक बड़ा बरामदा बना हुआ है। यह चर्च जिस विशाल चौक में खड़ा है उसे ‘पियाजा डेल्ला रोटोण्डा’ अर्थात् ‘रोटोण्डा का चौक’ कहा जाता है।

इस भवन को देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि महान् रोमन सम्राटों के शासन काल में, विशेषकर ट्राजन एवं हैड्रियन के समय में रोम में किस प्रकार के भवन बन रहे थे! उस काल में रोम में इस प्रकार के और भी भवन बने थे किंतु उनमें से अधिकांश नष्ट हो चुके हैं किंतु एग्रिप्पा सार्वजनिक स्नानागार के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं जिसका निर्माण पैंथिऑन के साथ करवाया गया था। ये भवन ईसाई धर्म के जन्म लेने से पहले के रोम का दर्शन करवाते हैं।

पियाजा नवोना

पैंथिऑन से निकलकर हम लोग पियाजा नवोना अर्थात् नवोना चौक गए। वर्ष 2000 में अमरीकी लेखक डेन ब्राउन द्वारा लिखे गए उपन्यास ‘एंजील्स एण्ड डेमॉन्स’ में इस फव्वारे की भी विपुल चर्चा की गई है, जिसके बाद से यह फव्वारा विश्व-भर के पर्यटन मानचित्र पर आ गया है। पैंथिऑन तथा पियाजा नवोना के बीच लगभग आधा किलोमीटर की दूरी है। एक पतली सी गली से होकर वहाँ तक पहुँचा जा सकता है।

बीच में एक सड़क भी पार करनी होती है जिस पर तेज गति से वाहन चलते हैं किंतु वे पदयात्रियों को देखते ही एकदम यंत्रवत् स्थिर हो जाती हैं। पियाजा नवोना एक विशाल आयताकार चौक है जिसके दोनों छोर पर दो कलात्मक फव्वारे बने हुए हैं। इन दोनों के मध्य में भी एक अलग तरह का फव्वारा है। ये तीनों फव्वारे संगमरमर से बनी मूर्तियों से सजाए गए हैं। इनमें से बहुत सी मूर्तियां मनुष्यों के आकार से भी बड़ी हैं। ये मूर्तियां प्राचीन रोमन देवी-देवताओं की हैं जिनमें से अधिकांश नग्न हैं। प्राचीन रोमन लोग देवी-देवताओं की नग्न प्रतिमाओं की ही पूजा किया करते थे।

रोमन सम्राट डोमिशियन ने पहली शताब्दी ईस्वी में इसी स्थान पर एक स्टेडियम का निर्माण करवाया था जिसे ‘स्टेडियम ऑफ डोमिशियन’ तथा ‘सर्कस एगोनालिस’ कहा जाता था। इस स्टेडियम में खेल-प्रतियोगिताएं होती थीं जिन्हें देखने के लिए सम्राट अपने परिवार एवं सामंतों सहित आता था।

 बाद की शताब्दियों में इसे ‘नवोना’ कहा जाने लगा। आज भी इस चौक का आकार एक स्टेडियम जैसा ही है जिसके चारों तरफ विगत दो हजार सालों में भवनों की एक विशाल शृंखला उग आई है। रोमन सम्राट इनोसेंट (दशम्)  के शासन काल (ई.1644-55)में इस क्षेत्र में ‘बैरोक रोमन स्थापत्य शैली’ में विशाल भवनों का निर्माण करवाया गया।

सम्राट इनोसेंट का राजमहल ‘पलाज्जो पैम्फिली’ भी पियाजा नवोना की तरफ मुंह करके बनाया गया था। इस चौक के केन्द्र में बना फव्वारा फोण्टाना देई क्वात्रो फियूमी (चार नदियों वाला फव्वारा) कहलाता है। इसे ई.1651 में जियान लॉरेन्जो बरनिनी ने डिजाइन किया था। इसके ऊपर एक विशाल स्तम्भ खड़ा है जिसे ऑबलिस्क ऑफ डोमिशियन कहा जाता है। इसे टुकड़ों के रूप में सर्कस ऑफ मैक्सीन्टियस से लाया गया था।

इसी चौक में दो और फव्वारे बनाए गए हैं। इसके दक्षिणी छोर पर फोण्टाना डेई मोरो स्थित है। इसे ई.1575 में जियाकोमो डेल्ला पोर्ता ने डिजाइन किया था। ई.1673 में बरनिनी ने इसमें मूर तथा डॉल्फिन की प्रतिमाएं बनाई। इसके चारों ओर एक कलात्मक खाई बनाई गई है। इसके बाईं ओर के छोर पर फाउण्टेन ऑफ नेपच्यून स्थित है जिसे ई.1574 में जियाकोमो डेल्ला पोर्ता ने डिजाइन किया था। इस फव्वारे में स्थित स्टेच्यू ऑफ नेपच्यून ई.1878 में एण्टोनियो डेल्ला बिट्टा ने बनाई थी ताकि इस फव्वारे का दृश्य फोण्टाना डेई मोरो के साथ संतुलन स्थापित कर सके।

इस चौक का उपयोग नाटक आदि खेलने के लिए भी किया जाता था, यह परम्परा आज भी जारी है। ई.1652 से ई.1866 तक अगस्त माह के प्रत्येक शनिवार एवं रविवार को इस चौक में पैम्फिली परिवार के लोग एकत्रित होकर उत्सव का आयोजन करते थे। किसी समय इस क्षेत्र में एक बाजार स्थापित किया गया था जिसे ई.1869 में निकटवर्ती कैम्पो डे फियोरी में स्थानांतरित कर दिया गया। वर्तमान समय में क्रिसमस के दिनों में इस चौक में अस्थाई बाजार लगता है।

जब हम इस चौक पर पहुँचे तो संध्या होने वाली थी। हालांकि रोम में सूर्य का प्रकाश रात नौ बजे तक रहता है, इसलिए चिंता की बात नहीं थी। हम कुछ समय इस स्थान पर रुक सकते थे। इस स्थान पर देश-विदेश से आए हजारों दर्शक थे। कुछ स्थानीय कलाकार सर्कस जैसे खेल दिखाकर पर्यटकों से चंदा मांग रहे थे।

कुछ युवक मण्डलियां सर्कस एवं नृत्य-नाटिका का सम्मिलित प्रदर्शन करके यूरो एकत्रित कर रहे थे। कुछ संगीत मण्डलियां वाद्य बजाकर लोगों का मनोरंजन कर रहे थे। हमारे सामने ही दूर देशों से आए युवक-युवतियों ने उस संगीत पर नृत्य करना आरम्भ किया और थोड़ी ही देर में वे एक गोल घेरे में ऐसे नाचने लगे जैसे वे एक-दूसरे को जानते हैं और वर्षों से इसी तरह नृत्य करने के अभ्यस्त हैं।

चौक के चारों ओर भारतीय थड़ियों जैसी स्टॉल लगी हुई थीं जिनमें रखे कुछ लैम्पों से आग की लपटें निकल रही थीं। कुछ महंगे रेस्टोरेंट्स वालों ने भी अपनी कुर्सियां चौक में लगा रखी थीं जिन पर बैठकर विदेशी पर्यटक जमकर अल्कोहल पी रहे थे।

सिगरेट के धुएं से बनते छल्ले, संगीत की लहरियां, युवक-युवतियों के नृत्य, थड़ियों पर कई फुट ऊंची उठती आग की लपटें, फव्वारों की जल-धाराएं सब मिलकर ऐसा दृश्य उत्पन्न कर रहे थे मानो हम ऐसी धरती पर आ गए हैं जहाँ न कोई दुःख है, न चिंता है, न भय है, न किसी तरह का संघर्ष है, न कोई प्रतियोगिता है, न कोई उद्विग्नता है। बस चारों ओर नृत्य है, शराब है, संगीत है, यौवन है, मादकता है, विलासिता है, भोग की इच्छा है। संभवतः इसी सबकी कामना में दुनिया भर के देशों से धनी पर्यटक इटली आते हैं।

आज की शाम वे सब यहाँ हैं, कल कहीं और होंगे, उनकी जगह नए पर्यटक होंगे। सुख प्राप्त करने की अभिलाषा कल भी यहाँ इसी प्रकार नृत्य करेगी, शराब ढलेगी और इटैलियन फूड स्टॉल्स के लैम्पों से निकलती आग की लपटें इसी प्रकार आकाश को चूम लेने के लिए लपकती रहेंगी। न जाने कब से यह सिलसिला चल रहा है और कौन जाने कब तक जारी रहेगा!

मन का एक कौना बार-बार सचेत करने का प्रयास करता था, पर्यटकों की ये समस्त चेष्टाएं, अपने द्वारा अर्जित किए गए धन को भोगने की अभिलिप्सा के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। इनमें से अधिकांश लोग नहीं जानते कि सुख कहाँ से आता है और उसकी सृजना कैसे होती है!

वे इसी को सुख समझ रहे थे, जो कि केवल आज शाम से अधिक समय तक उनके साथ नहीं रहने वाला था। हाँ इतना अवश्य था कि इन क्षणों में वे अपने उन हजारों दुःखों को भूले हुए थे जिनके कारण प्राणी का जीवन इस धरती पर हर समय कष्टमय और संकटग्रस्त रहता है!

सब-अर्बन स्टेशन

पियाजा नवोना की रंगीनियों से निकलकर हमने बस पकड़ी और रेल्वे स्टेशन आ गए। यहाँ हमें फ्लोरेंस जाने वाली ट्रेनों के बारे में जानकारी प्राप्त करनी थी। आज 20 मई थी तथा 22 मई की सुबह हमें फ्लोरेंस के लिए ट्रेन पकड़नी थी। यह ट्रेन मुख्य रोम रेल्वे स्टेशन से मिलनी थी किंतु जहाँ हम ठहरे हुए थे वहाँ से रोम का मुख्य स्टेशन लगभग 5 किलोमीटर दूर था।

अतः हम चाहते थे कि हमारे अपार्टमेंट से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित  सब-अर्बन स्टेशन से हमें रोम रेल्वे स्टेशन के लिए कोई ट्रेन मिल जाए। रेल्वे स्टेशन पर कार्यरत रेलवे कर्मचारियों से पूछताछ में ज्ञात हुआ कि रेलवे ट्रेन से जाने की बजाय बस से जाना अधिक सुगम होगा।

हमें इसी सबअर्बन स्टेशन के बाहर से 63 नम्बर की बस मिलेगी जो हमें रोम के मुख्य रेल्वे स्टेशन पर छोड़ देगी। हालांकि हमारे पास मेरूलाना प्लाजो से लिए गए पास थे जिससे हम चार दिनों तक रोम में किसी भी बस और ट्राम में निःशुल्क यात्रा कर सकते थे किंतु हमारे पास सामान अधिक था।

हमें इतने सारे सामान को सर्विस अपार्टमेंट से घसीटकर रेल्वे स्टेशन के बस-स्टॉप तक लाना उचित नहीं लगा। अतः हमने निर्णय लिया कि रोम के मुख्य स्टेशन तक जाने के लिए ट्रेन या बस का उपयोग करने की बजाय कार-टैक्सी करना अधिक उचित होगा। बड़ा विचित्र शहर है, यहाँ न ऑटो रिक्शा है, न तांगा है, न साइकिल रिक्शा है। शहर में यात्रा करने के केवल तीन ही साधन हैं, बस, ट्राम और कार-टैक्सी। तीनों ही बहुत महंगे हैं।

विशाल दरवाजों एवं आश्चर्यजनक आर्चों का देश!

रोम के भवनों में विशाल दरवाजों तथा तरह-तरह के आर्च का प्रयोग आम बात है। इन भवनों के गोल, तिकोने, फ्लैट आर्च देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। कुछ पत्थर तो ऐसे भी हैं जो एक की बजाय दो आर्च का हिस्सा हैं। आधा पत्थर इधर वाली आर्च का और आधा हिस्सा दूसरी तरफ वाली आर्च का। बाद में हमें ऐसे आर्च और विशाल दरवाजे फ्लोरेंस में भी देखने को मिले।

इटली के भिखारी

सबअर्बन रेल्वे स्टेशन के ठीक सामने बनी एक पुलिया के नीचे हमने एक परिवार को देखा। एक बहुत सुंदर इटैलियन युवती, दो छोटे बच्चे और उनका पिता। भारत में ऐसी अच्छी शक्ल-सूरत वाले भिखारी देखने को नहीं मिलते। हमें आश्चर्य हुआ कि यहाँ भी भिखारी होते हैं! उस भिखारी दम्पत्ति ने कुछ आशा भरी दृष्टि से हमें देखा। मुझे उनकी आंखों में याचना के स्थान पर आक्रामकता अधिक दिखाई दी। इसलिए मैंने चाहकर भी उनसे बात नहीं की। कौन जाने कब ये लोग क्या नाटक कर बैठें!

हम स्टेशन परिसर से बाहर निकलकर पैदल ही सर्विस अपार्टमेंट की तरफ चल दिए जो इस स्थान से कठिनाई से 400 मीटर की दूरी पर था। रोम तथा वेनिस की गलियों में हमने इक्का-दुक्का कुछ और भिखारियों को भी देखा। वे शरीर से अत्यंत कमजोर थे तथा सभी वृद्धावस्था में दिखाई देते थे।

उनके शरीर पर पैण्ट-शर्ट एवं कोट, हाथ में मोबाइल फोन, भीख मांगने का कटोरा और एक ट्रैवलर बैग जैसा बैग भी था। किसी भी भिखारी के पास वैसी गठरी नहीं थी जैसी भारत के भिखारियों के पास होती है। इटली में भिखारियों की संख्या इतनी कम है कि मेरे अनुमान से सरकार बड़ी आसानी से उनका पुनर्वास कर सकती है।

संभवतः पूरे इटली में दो-सौ से अधिक भिखारी नहीं होंगे, या फिर और भी कम। इटली के भिखारी बड़ी आशा भरी दृष्टि से पर्यटकों की तरफ देखते हैं तथा अपनी समझ के अनुसार अभिवादन भी करते हैं किंतु वे पर्यटकों को तंग नहीं करते।

हम यहाँ किसी भी भिखारी को कुछ भी देने की स्थिति में नहीं थे। एक यूरो से कम तो क्या देते जो कि भारत में 80 रुपए का मूल्य रखता था। इतना हम देना नहीं चाहते थे और इससे कम देने पर कौन जाने कोई भिखारी हमारे साथ बदतमीजी ही कर ले, जैसे कि भारत के भिखारी कर लेते हैं!

किन्नरों से सामना नहीं!

इटली की अपनी ग्यारह दिन की यात्रा में हमारा सामना किसी भी किन्नर से नहीं हुआ। कौन जाने यहाँ किन्नर होते भी हैं कि नहीं!

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source