14 अप्रेल 2017 को हम अपने सर्विस अपार्टमेंट में लगभग एक बजे पहुंच गए। रास्ते में हमने एक सब्जी मण्डी देखी जिसे देखकर तबियत प्रसन्न हो गई और निर्णय लिया गया कि संध्या काल में इस सब्जी मण्डी से सब्जियां खरीदी जाएंगी।
हम लम्बी यात्रा की थकान से बुरी तरह थके हुए थे। इसलिए हमने पहला दिन आराम करने, चाय पीने और लॉन में बैठकर चावल के खेतों को देखने में बिताया। पुतु ने हमें बताया कि कल बाली द्वीप पर हिन्दुओं का सबसे बडा त्यौहार है। इसलिए वह अगले दिन थोड़ा विलम्ब से आएगा। हमें इसमें कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि हमें भी अपनी दैनंदिनी से निवृत्त होने और अपना भोजन तैयार करने में प्रातः के साढ़े दस तो बजने ही थे। हमें पुतु ने एक दुपहिया स्कूटर दे दिया ताकि हम यदि आसपास कहीं जाना चाहें तो जा सकें।
फूलों का अनोखा संसार
शाम के समय मैं और विजय, पुतु का दुपहिया स्कूटर लेकर तरकारी और दूध खरीदने के लिए उसी सब्जी मण्डी में पहुंचे जो प्रातः काल में हमने मैंगवी आते समय देखी थी। यह पुरा तमन अयुन टेम्पल का निकटवर्ती क्षेत्र था। हमारे लिए यह एक और झटका खाने वाला समय था। वहाँ सब्जी मण्डी नहीं थी, केवल फूलों की थड़ियां और दुकानें थीं, जिन्हें हम सुबह हरी सब्जियां समझ बैठे थे। कई तरह के फूल, कई रंगों के फूल। चारों तरफ फूल ही फूल। प्राकृतिक रूप से उत्पन्न फूलों के साथ-साथ बांस की खपच्चियों से बने हुए दर्जनों प्रकार के फूल सजे हुए थे। ये सारे फूल हिन्दुओं के अगले दिन के बड़े त्यौहार में उपयोग लिए जाने हेतु बिकने आए थे। मण्डी में भीड़-भाड़ थी किंतु हिन्दुस्तान की भीड़ की तुलना में कुछ भी नहीं। बहुत से लोग अपने परिवारों के साथ फूल खरीदने आए थे। वे फूल खरीदते थे, मोलभाव भी करते थे किंतु कहीं कोई बहस नहीं थी, कोई भी जोर-जोर से नहीं बोल रहा था। लोग आपस में हंस-बोल रहे थे किंतु एक शालीनता जैसे विद्यमान थी।
फल एवं सब्जी मण्डी की वे महिला दुकानदार
फूलों की मण्डी से सटी हुई एक पतली गली थी जिसमें जाने पर हमें वास्तव में एक फल और सब्जी मण्डी दिखाई दी। इस मण्डी में भारत की तरह छोटी-छोटी दुकानें बनी हुई थीं और लकड़ी के बने हुए ठेले भी देखे जा सकते थे। हमें यह देखकर प्रसन्नता हुई कि वहाँ कई तरह के फल मौजूद थे किंतु यह देखकर मन उदास भी हुआ कि सब्जियां बहुत ही कम थीं। सेब थे किंतु चालीस से पचास हजार रुपए किलो अर्थात् भारतीय मुद्रा में दो सौ से ढाई सौ रुपए किलो। केले थे किंतु चार हजार रुपए का एक केला। अर्थात् भारतीय मुद्रा में बीस रुपए का एक केला। हजारों में भाव सुनकर ही मुझे पसीना आ जाता था। हालांकि भारतीय मुद्रा में हिसाब लगाकर कुछ तसल्ली मिलती थी, किंतु समस्त फल एवं सब्जियां भारत की तुलना में बहुत महंगी थीं।
कुछ ठेलों पर सब्जियां थीं जिनमें आलू, प्याज, लौकी, पत्ता गोभी, बैंगन और तुरई ही प्रमुख थीं। एकाध सब्जियां स्थानीय प्रवृत्ति की थीं जिनके नाम पूछने पर भी हमें याद नहीं रहे। उनका उपयोग कैसे किया जा सकता था, यह जानने में तो हम पूरी तरह असफल रहे। क्योंकि समस्त दुकानदार जो कि शत-प्रतिशत महिलाएं थीं, अंग्रेजी का एक भी अक्षर नहीं जानती थीं। वे हमें बाट और रुपए दिखाकर समझाने का प्रयास करती थीं कि कितनी सब्जी के लिए हमें कितने रुपए देने पड़ेंगे। हम जहाँ भी रुक जाते, आस-पास की दुकानों की महिलाएं भी उठकर हमारे पास आ जातीं। वे यह देखना और सुनना चाहती थीं कि हम तरकारी कैसे खरीदते हैं, उनकी बात को कैसे समझते हैं और हम किस प्रकार बोलते हैं!
सब्जी बेचने वाली उन महिलाओं को देखकर सहज ही जाना जा सकता था कि वे बहुत निर्धन हैं, भारतीय सब्जी बेचने वाली महिलाओं से भी अधिक निर्धन। भले ही उनके द्वारा बोला जा रहा एक भी शब्द हमारे पल्ले नहीं पड़ रहा था किंतु उनकी वाणी और मुखमुद्रा हमें यह बता रही थी कि वे हमें अपने बीच पाकर प्रसन्न थीं और किसी न किसी बहाने से हमसे बात करना चाहती थीं। हमने किसी तरह आलू, प्याज और टमाटर खरीदे तथा यह निर्णय लिया कि अगले दिन सुबह आकर ताजी तरकारी खरीदेंगे।
विदेशियों को पहचानने वाले कुत्ते
यद्यपि इस समय संध्या के सात ही बजे थे किंतु अंधेरा बहुत घिर आया था हम लौट पड़े। सर्विस अपार्टमेंट पहुंचते-पहुंचते तो गहरी रात हो गई। यद्यपि अभी साढ़े सात ही बजे थे। मार्ग में हमें यह भय भी लगा कि हमें विदेशी और असुरक्षित जानकर कोई हम पर आक्रमण न कर दे। यद्यपि ऐसा कुछ नहीं हुआ। हाँ, मैंगवी गांव के उन कुत्तों ने हमें फिर से पहचान कर भौंकना आरम्भ कर दिया था। कुत्तों की आंखें हमें स्पष्ट रूप से धमका रही थीं कि हम जानते हैं कि तुम विदेशी हो, इसलिए अपने अपार्टमेंट में ही रहो, इधर-उधर मत घूमो। मुझे याद आया कि भारत में भी गलियों के कुत्ते विदेशी पर्यटकों को देखकर इसी प्रकार भौंकते हैं। स्वयं के लिए विदेशी शब्द सोच पाना भी बड़ा अटपटा सा था।