Saturday, December 7, 2024
spot_img

18. बाली द्वीप पर पांच दिन

पुतु से भेंट

अब हम एयरपोर्ट से बाहर जा सकते थे। हमने बाली द्वीप के मैंगवी नामक एक छोटे से गांव में अपना सर्विस अपार्टमेंट बुक कराया था जो देनपासार से लगभग 25 किलोमीटर दूर है। इसी अपार्टमेंट का मालिक पुतु स्वयं पर्यटकों को वाहन उपलब्ध कराता है तथा ड्राइविंग भी स्वयं ही करता है। हमें आशा थी कि पुतु हमें लेने आएगा किंतु एयरपोर्ट पर हमें बहुत विलम्ब हो गया था, इसलिए मन में आशंका भी थी कि कहीं लौट नहीं गया हो किंतु सौभाग्य से पुतु, विजय तायल के नाम की कागज की पट्टी लिए एयरपोर्ट के बाहर ही खड़ा मिल गया।

यह एक अच्छे-खासे डील-डौल वाला लम्बा चौड़ा, हंसमुख और गौर-वर्ण नवयुवक था जिसने बड़े करीने से अपने बाल बना रखे थे और बेहद साफ सुथरे पैण्ट-शर्ट पहन रखे थे। उसने हमारा स्वागत दोनों हाथ जोड़कर तथा होठों पर लम्बी मुस्कान के साथ किया। उसने हमें नमस्ते कहा तथा हमसे हाथ भी मिलाया। उसके चेहरे से स्पष्ट ज्ञात होता था कि जितनी प्रसन्नता हमें उसे देखकर हुई है, उससे कहीं अधिक प्रसन्नता उसे अपने भारतीय अतिथियों को देखकर हुई है।

पुतु काफी बड़ी वातानुकूलित कार लेकर आया था जिसमें हम छः सदस्य मजे से बैठ सकते थे तथा हमारा सामान भी आराम से आ सकता था। हमारे भाग्य से वह अंग्रेजी भाषा अच्छी तरह से समझ सकता था। उसने न केवल हमारा सामान अपनी कार के पिछले हिस्से में जमाया अपितु हमारे लिए कार के दरवाजे भी खोले। भारत में ऐसे विनम्र एवं अनुशासित टैक्सी चालक शायद ही देखने को मिलें।

पुतु ने कार स्टार्ट करते ही पूछा- क्या आप लोग हिन्दू हैं? जब हमने कहा कि हाँ हम हिन्दू हैं, तो पुतु के चेहरे की मुस्कान और भी चौड़ी हो गई। उसने विनम्रता से कहा कि मैं भी हिन्दू हूँ तथा मेरी वाइफ भी हिन्दू है। ऐसा कहते समय उसके चेहरे पर गर्व और आनंद के जो भाव थे, उनका वर्णन किया जाना कठिन है, केवल कल्पना ही की जा सकती है। लगे हाथों उसने बता दिया कि उसकी पत्नी जिसका नाम पुतु एका है, पूरी तरह शाकाहारी है। मैं अभी शाकाहारी होने का प्रयास कर रहा हूं तथा सप्ताह में दो दिन चिकन या अन्य प्रकार का मांस नहीं खाता।

देनपासार एयरपोर्ट से मैंगवी गांव तक लगभग डेड़ घण्टे का समय लगने वाला था। अधिकांश मार्ग, देनपासार शहर से होकर जाता था। इस समय का उपयोग हमने शहर के बाजारों, घरों तथा सड़क के ट्रैफिक को देखने में किया।

शोर और गंदगी से पूरी तरह मुक्त

हमारे आश्चर्य का पार नहीं था। शहर की सड़कों पर ट्रैफिक तो था किंतु वाहन चालकों में किसी तरह की भागमभाग, बेचैनी, प्रतिस्पर्द्धा नहीं थी। सब अपनी लेन में चल रहे थे। दुपहिया वाहनों के लिए सड़क के बाईं ओर का हिस्सा निर्धारित था। कोई वाहन एक दूसरे से आगे निकलने का प्रयास नहीं कर रहा था। न कोई हॉर्न बजा रहा था। सड़कें पूरी तरह साफ थीं। कचरे का ढेर दिखाई देना तो दूर, कहीं कागज या पेड़ों के पत्ते तक दिखाई नहीं दे रहे थे। सड़कों के किनारे कचरापात्र लगे थे, लोग अपने हाथों का कचरा, कचरापात्रों में ही फैंकने के अभ्यस्त थे।

TO PURCHASE THIS BOOK, PLEASE CLICK THIS PHOTO

घास-फूस का दूध तीस हजार रुपए किलो

हमने पुतु से पूछा कि क्या सर्विस अपार्टमेंट में दूध की व्यस्था हो जायेगी। तो उसने साफ कह दिया कि नहीं, यहाँ आपको कहीं भी दूध नहीं मिलेगा। आप चाहें तो पैक्ड मिल्क खरीद सकते हैं। हमें झटका तो लगा किंतु अन्य कोई उपाय नहीं था। एक जनरल स्टोर के सामने पुतु ने अपनी कार रोकी तथा हमें दूध खरीदने के लिए कहा। स्टोर में जाकर मुझे एक और बड़ा झटका लगा। मैं किसी भी तरह दुकानदार को यह नहीं समझा पाया कि मैं क्या खरीदना चाहता हूँ। न ही मैं स्वयं, स्टोर में दूध की थैलियां खोज सका।

पुतु की कार मुझसे काफी दूर थी। इसलिए उसकी सहायता लेने के लिए मुझे काफी चलना पड़ता। अंत में एक अन्य ग्राहक ने मेरी बात समझी और मुझे एक फ्रिज में से कागज का एक डिब्बा दिखाया। मैंने डिब्बे को पढ़ा तो एक झटका और खा गया। यह न्यूजीलैण्ड से आया हुआ दूध था जिसका निर्माण वनस्पतियों, वनस्पति तेलों और कई तरह के प्रोटीनों से मिलकर हुआ था। मुझे विवश होकर यही दूध खरीदना पड़ा। एक बड़ा झटका उस समय और लगा जब दुकानदार ने मुझसे एक लीटर दूध के लिए तीस हजार इण्डोनेशियन रुपयों की मांग की। मैंने तत्काल भारतीय रुपयों में हिसाब लगाया कि यह डेढ़ सौ रुपया लीटर पड़ा। मुझे समझ में आने लगा था कि मालामाल हो जाने की खुशी अधिक समय तक टिकी नहीं रहने वाली है।

बीस हजार रुपए का नारियल

दूध की दुकान के बाहर पानी वाले नारियलों की एक थड़ी थी। पिताजी ने वहाँ से एक नारियल खरीदा। मैंने पूछा कितने रुपए दूं तो थड़ी पर बैठी औरत ने अपने गल्ले में से बीस हजार रुपए का नोट दिखाया। मैंने फिर भारतीय रुपयों में हिसाब लगाया। यह 100 रुपए का था। भारत में जहाँ पानी वाला नारियल 25-30 रुपए में मिल जाता है, बाली में यह 100 रुपए का था। बाली में वस्तुओं का मूल्य भारत की तुलना में कहीं अधिक था। इण्डोनेशियाई रुपयों के बल पर मालामाल होने का उत्साह अब काफी कम पड़ गया था।

मेंगवी गांव का वह कांच का बंगला

देनपासार से लगभग 25 किलोमीटर दूर मेंगवी गांव का सर्विस अपार्टमेंट देखते ही हमारी मंत्र मुग्ध होने जैसी स्थिति हो गई। यह एक शानदार छोटा सा बंगला था जिसके आरामदेह कमरों में बड़े-बड़े पलंग, सफेद सूती चद्दरें, आधुनिक शैली में बने शावर युक्त बाथरूम और आदमकद शीशों वाले ड्रेसिंग रूम तो मन को मोहते ही थे, साथ ही बंगले का बरामदा एक बड़े और खुले लॉन में खुलता था जो सीधा चावल के विशाल खेतों से जुड़ा हुआ था।

यहाँ शानदार बोगनविलिया और तरह-तरह के फूलों वाली झाड़ियां लगी हुई थीं जिनके बीच में बैठने के लिए आरामदायक कुर्सियां और सेंट्रल टेबल का प्रबंध किया गया था। बंगले में एयर कण्डीशनर, गीजर, इलेक्ट्रिक आयरन, वाई-फाई जैसी सारी आधुनिक सुख-सुविधाएं दिल खोलकर जुटाई गई थीं। बंगले का बाहरी बरामदा शीशे की दीवारों से बना हुआ था। यहाँ से बैठकर चावल के खेतों का दृश्य देखते ही बनता था। एक छोटी सी लाइब्रेरी का भी प्रबंध किया गया था।

इस बंगले की सबसे बड़ी विशेषता थी इसका रसोई-घर। यह भी आधुनिक शैली में बनी हुई रसोई थी जिसमें फ्रिज, कुकिंग गैस, रोस्टर, आर ओ से साफ किया गया पानी आदि सभी सुविधाएं मौजूद थीं। यदि इसमें कुछ नहीं था तो वे थे चकला, बेलन और तवा जिनका प्रबन्ध हम भारत से ही करके लाए थे। हमारे लगभग पांच दिन इसी बंगले में निकलने वाले थे।

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source