जब शाह अबुल मआली ने सुना कि बैराम खाँ अकबर को लेकर सरहिंद आ पहुंचा है तो शाह अबुल का माथा ठनका। हालांकि हुमायूँ ने शाह अबुल को हिसार तथा उसके निकटवर्ती परगनों का शासक नियुक्त किया था और शाह अबुल बिना किसी कठिनाई के हिसार जा सकता था किंतु इस कार्य में उसे अपना अपमान अनुभव हुआ था।
शाह अबुल चाहता था कि वह पंजाब का शासक बना रहे। पंजाब के शासक के रूप में वह अफगानिस्तान और दिल्ली के बीच के मार्ग पर कब्जा बनाए रख सकता था और हिंदुस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान के अमीरों से भी सम्पर्क बनाए रख सकता था किंतु हिसार चले जाने पर ऐसा होना संभव नहीं था। अपने स्थानांतरण से क्षुब्ध शाह अबुल मआली ने अकबर से विद्रोह करने का मन बनाया तथा अकबर से मिलने के लिए उसकी सेवा में उपस्थित नहीं हुआ।
अकबर ने शीघ्र ही अनुभव कर लिया कि उसके पिता हुमायूँ को शाह अबुल मआली के सम्बन्ध में मिल रही शिकायतें बिल्कुल सही हैं तथा वह शाही आदेशों की अवहेलना करके स्वच्छंद व्यवहार कर रहा है। जब अकबर का काफिला सुल्तानपुर नदी के पास पहुंचा तब शाह अबुल मआली के कई अमीर शाह अबुल मआली का शिविर छोड़कर अकबर की तरफ चले आए। इस पर विवश होकर शाह अबुल मआली को भी अकबर के स्वागत के लिए सुल्तानपुर नदी के तट पर उपस्थित होना पड़ा।
जब शाह अबुल मआली अकबर के शिविर में पहुंचा तो शाह अबुल को अपेक्षा थी कि उसे अकबर के कालीन पर बैठाया जाएगा किंतु उसने देखा कि दरबारियों के बैठने के लिए अलग-अलग कालीन बिछाए गए हैं तथा शाह अबुल मआली को अकबर से बहुत दूर की पंक्ति में स्थान दिया गया है। इस व्यवस्था को देखकर शाह अबुल मआली और अधिक नाराज हो गया तथा दरबार की औपचारिकताएं पूरी करने के बाद अपनी तबियत खराब होने का बहाना करके अकबर से छुट्टी लेकर अपने डेरे पर चला गया।
अपने डेरे पर पहुंच कर शाह अबुल मआली ने अकबर को पत्र भिजवाया कि सारा संसार जानता है कि आपके पिता बादशाह हुमायूँ के दरबार में मेरा क्या स्थान है! आपको भी याद होगा कि जूईशाही में शिकार के समय मैंने बादशाह के साथ एक ही स्थान पर बैठकर एक ही थाली में भोजन किया था। जबकि आपको अलग थाल दिया गया था और आपको बादशाह से दूर बैठाया गया था। मेरे इस सम्मान का विचार न करके आपने न जाने क्यों मुझे अलग कालीन पर बैठाया और मेरे लिए अलग दस्तरखान लगवाया।
शाह अबुल मआली ने यह संदेश हाजी सीस्तानी के हाथों अकबर को भिजवाया। मआली का पत्र पढ़कर अकबर मुस्कुराया और उसने हाजी सीस्तानी से कहा कि सल्तनत के नियम एक बात हैं और स्नेह के नियम दूसरी बात हैं। मेरे पास तुम्हारा वह स्थान नहीं है जो बादशाह के पास है। यह आश्चर्य की बात है कि तुम इन दोनों स्थितियों को अलग-अलग नहीं मानते!
जब हाजी सीस्तानी अकबर का प्रत्युत्तर लेकर लौटा तो शाह अबुल मआली बड़ा लज्जित हुआ और चुपचाप हिसार चला गया। इसके बाद अकबर ने सिकंदरशाह सूरी पर अभियान आरम्भ किया। इस समय सिकंदरशाह सूरी मानकोट के पास की पहाड़ियों में शरण लिए हुए था। जब सिकंदरशाह सूरी ने सुना कि अकबर तथा बैराम खाँ मानकोट की तरफ आ रहे हैं तो सिकंदरशाह सूरी फिर से पहाड़ियों में भाग गया।
अकबर तथा बैराम खाँ अपनी सेना लेकर सिकंदरशाह की तरफ रवाना हुए किंतु जब उनका डेरा कालानूर में लगा हुआ था तब उन्हें एक ऐसा समाचार मिला जिसे सुनकर अकबर तथा बैराम खाँ के पैरों के नीचे की धरती खिसक गई। यह समाचार बादशाह हुमायूँ की आकस्मिक मृत्यु के सम्बन्ध में था जिसे सुनकर एकाएक विश्वास करना कठिन था।
अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है कि एक दिन हुमायूँ सायंकाल में पुस्तकालय की छत पर चढ़ा। उस समय बादशाह से मिलने के लिए बहुत से लोग पुस्तकालय के निकट स्थित मस्जिद के बाहर एकत्रित थे। इनमें से कुछ लोग मक्का, काबुल एवं गुजरात से आए थे। हुमायूँ बहुत देर तक इन लोगों से बात करता रहा।
इसके बाद हुमायूँ ने नक्षत्रों की गणना करने वालों को बुलाया। हुमायूँ का विचार था कि कुछ ही दिनों में शुक्र तारा उदय होने वाला है। अतः हुमायू उनसे गणना करवाना चाहता था कि शुक्र तारा किस दिन उदय होगा ताकि उस दिन वह एक बड़ा दरबार आयोजित करके अमीरों की वेतन-वृद्धि करे।
नजूमियों से विचार-विमर्श करने के बाद हुमायूँ पुस्तकालय से नीचे उतरने लगा। जब हुमायूँ दूसरी सीढ़ी पर था, तब उसने मिस्कीन नामक एक मुकरी की अजान सुनी। अबुल फजल के अनुसार अभी अजान का वक्त नहीं हुआ था किंतु फिर भी अजान को आदर देने के लिए बादशाह ने वहीं पर बैठ जाने का प्रयास किया। जनवरी का महीना होने से शाम जल्दी हो गई थी तथा कुछ अंधेरा भी हो गया था। जीने की सीढ़ियां खड़ी थीं और पत्थर चिकने थे। इसलिए हुमायूँ का पैर जामे में फंस गया और वह अपने पैर सीढ़ियों पर नहीं जमा सका। संतुलन बिगड़ने से हुमायूँ की छड़ी फिसल गई और हुमायूँ सिर के बल नीचे गिर पड़ा। उसकी दायीं कनपटी में बड़ी चोट आई और उसके दाएं कान से खून की कुछ बूंदें गिरीं।
हुमायूँ ने तत्काल ही अकबर के नाम एक पत्र लिखा और नजरी शेख कुली के हाथ अकबर को भिजवा दिया। अली कुली खाँ ने उसी दिन दिल्ली की सुरक्षा कड़ी कर दी किंतु कुछ इस तरह कि किसी को कानों-कान खबर न हो कि हुआ क्या है!
हुमायूँ की मृत्यु के पीछे एक दृष्टिकोण और भी है, वह है अफीम की पिनक। हुमायूँ चौबीसों घण्टे अफीम की पिनक में रहता था। पर्याप्त संभव है कि अफीम के नशे के कारण ही हुमायूँ का पैर सीढ़ियों पर लड़खड़ा गया और हुमायूँ गिर कर मर गया। पी. एन. ओक ने इसके सम्बन्ध में लिखा भी है।
किसी भी स्रोत से यह विश्वनीय जानकारी नहीं मिलती कि हुमायूँ सीढ़ियों से किस दिन गिरा तथा उसकी मृत्यु किस दिन हुई। क्योंकि कई दिनों तक इस दुर्घटना को छिपाया गया। अबुल फजल ने लिखा है कि 17 दिन तक इस दुर्घटना को छिपाया गया तथा इस दौरान मुल्ला बेकसी नामक एक अमीर को हुमायूँ के कपड़े पहनाकर महल की छत पर बिठाया जाता रहा ताकि लोग यह विश्वास करते रहें कि बादशाह अपने महल में मौजूद है। मुल्ला बेकसी की कद-काठी एवं चेहरा-मोहरा हुमायूं से मेल खाते थे।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता