जनवरी 1556 के अंतिम दिनों में हुमायूँ दिल्ली की दीनपनाह किले के पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर असमय ही मृत्यु को प्राप्त हो गया। उसकी मृत्यु की सूचना कई दिनों तक दिल्ली की जनता से छिपाई गई तथा एक संदेशवाहक को अकबर के पास भेजकर उसे हुमायूँ की मृत्यु की सूचना पहुंचाई गई।
हुमायूँ का 14 वर्षीय पुत्र अकबर उस समय बैराम खाँ बेग के संरक्षण में पंजाब के कालानूर नामक पर स्थित युद्ध-शिविर में था। 11 फरवरी 1556 को गुलबदन बेगम के पति खिज्र ख्वाजा खाँ तथा दिल्ली के कोतवाल अली कुली खाँ शैबानी आदि ने मिलकर अकबर के नाम का खुतबा पढ़ा। उस दिन लोगों को ज्ञात हुआ कि बादहशाह हुमायूँ का इंतकाल हो गया है।
हुमायूँ का शव दीनपनाह के बाहर एक भवन के तहखाने में दफना दिया गया। वहाँ यह शव लगभग साढ़े तेरह वर्ष तक रखा रहा। कहा जाता है कि ई.1569 में हमीदा बानू बेगम ने हुमायूँ का मकबरा नाम से एक नया भवन बनवाया। जब यह भवन बनकर पूरा हो गया तब हुमायूँ का शव इस भवन के तहखाने में लाकर दफनाया गया।
पी. एन. ओक आदि कुछ लेखकों का मानना है कि हुमायूँ का मकबरा एक प्राचीन अष्टकोणीय हिन्दू भवन था जिसे हुमायूँ की विधवा हमीदा बानू बेगम ने अफगानिस्तान के हेरात शहर में रहने वाले एक वास्तुकार मीरक मिर्जा घियास की सहायता से मुगल शैली की इमारत की आकृति प्रदान करवाई।
हुमायूँ के निधन के साथ ही बाबर का सबसे बड़ा बेटा भी भारत के राजनीतिक परिदृश्य से विलुप्त हो गया और बाबर के बेटों की पूरी पीढ़ी भारतीय राजनीतिक परिदृश्य के नेतृत्व में चली गई।
पाठकों को स्मरण होगा कि बाबर तथा गुलरुख बेगम का पुत्र मिर्जा कामरान अंधा करके मक्का भेजा जा चुका था। बाबर तथा गुलरुख बेगम का दूसरा पुत्र मिर्जा अस्करी भी कई साल पहले ही अफगानिस्तान से निष्कासित करके मक्का भेजा जा चुका था। बाबर के इन दोनों बेटों का मक्का में क्या हुआ, इसके बारे में विश्वसनीय विवरण उपलब्ध नहीं है। अलग-अलग लोगों ने उनके निधन की अलग-अलग तिथियां दी हैं।
बाबर का चौथे नम्बर का जीवित पुत्र मिर्जा हिंदाल ई.1551 में कामरान की सेना द्वारा मारा जा चुका था। वह दिलदार बेगम का पुत्र था किंतु उसका तथा दिलदार बेगम की पुत्री गुलबदन बेगम का पालन पोषण हुमायूँ की माता माहम सुल्ताना बेगम ने किया था। इस समय केवल गुलबदन बेगम ही बाबर की इकलौती संतान थी जो बाबर के कुनबे के साथ मौजूद थी।
तुर्की भाषा में हुमायूँ शब्द का अर्थ सौभाग्यशाली होता है किंतु कुदरत ने हुमायूँ के भाग्य में सौभाग्य के दिन बहुत कम अंकित किए थे। कहा जाता है कि बाबर ने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया था किंतु हुमायूँ का संघर्ष बाबर से कम नहीं था!
हुमायूँ ई.1530 में 22 वर्ष की आयु में बादशाह बना था तथा ई.1556 में 48 वर्ष की आयु में मृत्यु को प्राप्त हुआ था। इन 26 सालों में से 15 साल तक वह भारत से निर्वासित रहा। अतः भारतीय क्षेत्रों पर उसे केवल 11 साल शासन करने का अवसर मिला। इस अवधि में से भी उसे अधिकांश समय गुजरात के शासक बहादुरशाह और बिहार के शासक शेरशाह सूरी से लड़ने में लगाना पड़ा। फिर भी कुछ इतिहासकारों ने उसे महान् भवन निर्माता बताया है।
इन इतिहासकारों के अनुसार हुमायूँ ने दिल्ली में दीनपनाह नामक दुर्ग, दीनपनाह के भीतर शेरमण्डल नामक पुस्तकालय तथा आगरा एवं फतेहाबाद में एक-एक मस्जिद बनवाई। ये कोई बड़ी उपलब्धियां नहीं हैं। जिसे दीनपनाह दुर्ग बताया जा रहा है, वह एक पुराना हिन्दू किला है। यह उस स्थान पर बना हुआ है जहाँ हुमायूं के समय से लगभग पांच हजार साल पहले पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ स्थित थी। दीनपनाह के परिसर से मौर्य एवं गुप्त कालीन मुद्राएं, मूर्तियां एवं बर्तन आदि मिले हैं तथा भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी मिला है जिसे कुंती मंदिर कहते हैं।
अतः प्राप्त साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि दीनपनाह दुर्ग हुमायूँ ने नहीं बनवाया था। उसने तो पहले से ही बने प्राचीन दुर्ग में कुछ महलों का निर्माण करवाकर उसका नाम दीनपनाह रखा था। जब ई.1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ का राज्य भंग कर दिया तब शेरशाह के पुत्र ने दीनपनाह के परकोटे का निर्माण करवाकर उसे सलीमगढ़ नाम दिया।
इसी प्रकार दीनपनाह में स्थित शेरमण्डल एक अष्टकोणीय दो-मंजिला लघु भवन है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे हुमायूँ ने बनवाया। इस भवन की अष्टकोणीय आकृति ही बताती है कि यह किसी हिन्दू राजा द्वारा बनाया गया था। हुमायूँ ने तो उसमें अपना पुस्तकालय स्थापित किया था। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि इसे बाबर ने बनवाना आरम्भ किया था और शेरशाह सूरी दावा करता था कि इसका निर्माण शेरशाह सूरी ने करवाया तथा इसका नाम शेरमण्डल रखा।
इसी शेरमण्डल के पास एक स्नानागार स्थित है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यह एक वेधाशाला का बचा हुआ हिस्सा है जिसका निर्माण हुमायूँ द्वारा करवाना आरम्भ किया गया था। उनके अनुसार हुमायूँ को गणित तथा नक्षत्रविद्या का अच्छा ज्ञान था। इस ज्ञान का उपयोग करने के लिए उसने दीनपनाह दुर्ग में एक वेधशाला का निर्माण करवाने का निश्चय किया। इसके लिए उसने समरकंद आदि स्थानों से अनेक प्रकार के यंत्र मंगवाए किंतु शेरशाह सूरी द्वारा अचानक ही उसका राज्य भंग कर दिए जाने के कारण वह वेधाशाला का निर्माण पूरा नहीं करवा सका।
अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है कि वेधशाला के लिए कई स्थानों का चुनाव किया गया। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि वह भारत में एक नहीं अपितु कई वेधशालाएं बनवाना चाहता था। कहा नहीं जा सकता कि अबुल फजल की इस बात में कितनी सच्चाई है।
हुमायूँ ने आगरा में एक मस्जिद बनवाई थी जिसके भग्नावशेष ही शेष हैं। इसी प्रकार हिसार के फतेहाबाद कस्बे में हुमायूँ ने एक मस्जिद का निर्माण करवाया था, इसे हुमायूँ मस्जिद कहा जाता है। हुमायूँ ने यह मस्जिद दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगक द्वारा निर्मित लाट के निकट बनवाई। इस मस्जिद में एक लम्बा चौक है। इस मस्जिद के पश्चिम में लाखौरी ईंटों से बना हुआ एक पर्दा है जिस पर एक मेहराब बनी हुई है। इस पर एक शिलालेख लगा हुआ है जिसमें बादशाह हूमायूं की प्रशंसा की गई है। यह मस्जिद ई.1529 में बननी आरम्भ हुई थी किंतु हुमायूँ के भारत से चले जाने के कारण अधूरी छूट गई थी। ई.1555 में जब हुमायूँ लौट कर आया तब उसने इस मस्जिद का निर्माण पूरा करवाया।
इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि हुमायूँ ने भारत में दो-चार मस्जिदों के अतिरिक्त ऐसा कुछ नहीं बनवाया था जिसे हुमायूँ द्वारा निर्मित मौलिक निर्माण कहा जा सके।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता