काल के प्रत्येक खण्ड में तथा संसार के प्रत्येक भूभाग में दो प्रकार के झगड़े अस्तित्व में रहते हैं। पहली प्रकार के झगड़े भौतिक सुख देने वाले उपादानों के लिए होते हैं, यथा- धन, सम्पत्ति, भूमि, पशु, राज्य, स्त्री आदि। यदि संतों को छोड़ दें तो प्रत्येक सांसारिक व्यक्ति अधिक से अधिक भौतिक उपादानों पर अधिकार करना चाहता है। दूसरी प्रकार के झगड़े वैचारिक होते हैं, इनका भौतिक अस्तित्व नहीं होता अपितु वे प्रत्येक व्यक्ति के मन-मानस में रहते हैं।
भौतिक रूप से अस्तित्व में नहीं होने पर भी वैचारिक झगड़े अलग-अलग रूपों में सम्पूर्ण मानव समाज पर छाए रहते हैं, यथा- भाषा, रीती-रिवाज, परम्परा, पंथ, मत एवं मजहब आदि के झगड़े। कुछ लोग इन्हें धार्मिक झगड़े कहते हैं किंतु ये धार्मिक झगड़े नहीं हैं, धर्म तो मनुष्य मात्र का एक ही है अतः उसे लेकर झगड़ा नहीं हो सकता। मनुष्यों के पंथ, मत एवं मजहब अलग-अलग होते हैं, इस कारण इन्हें लेकर झगड़े होते हैं।
संसार का एक भी देश ऐसा नहीं है जहाँ एक से अधिक भाषाएं अस्तित्व में नहीं हैं या जहाँ एक से अधिक मजहबी विचार अस्तित्व में नहीं हैं। प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी भाषा को अपनी मातृभाषा मानता है, क्योंकि यह भाषा उसे अपने परिवार से मिलती है। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी मजहब या पंथ को अपना मजहब या पंथ मानता है क्योंकि इसका विचार भी उसे अपने परिवार से मिलता है।
पारिवारिक परम्परा से प्राप्त ये दोनों मानसिक सम्पत्तियां प्रत्येक मनुष्य को संसार भर में स्वयं को श्रेष्ठ समझने का एक स्वाभाविक विचार देती हैं। स्वयं के श्रेष्ठ होने तथा दूसरे के हेय होने की यह धारणा ही भाषा एवं मजहब के झगड़ों को खड़ा करती है। ये झगड़े प्रायः उस देश या काल के राजनीतिक झगड़े बन जाते हैं।
भारत में भी भाषा एवं मजहब को लेकर विगत कई शताब्दियों से झगड़े चल रहे हैं। काल के प्रवाह में ये झगड़े कभी-कभी एक-दूसरे पर इतनी बुरी तरह से छा जाते हैं कि पता ही नहीं चलता कि झगड़ा भाषा का है या मजहब का, या राजनीति का!
इस पुस्तक में ब्रिटिश शासन काल में आरम्भ हुए हिन्दी एवं उर्दू भाषा के झगड़े का रोचक इतिहास लिखा गया है। इस झगड़े को तब तक उसके वास्तविक रूप में नहीं समझा जा सकता जब तक कि पाठकों को भारत के इतिहास की उस पृष्ठभूमि की जानकारी न हो, जिसके कारण यह समस्या उत्पन्न हुई। इसलिए इस पुस्तक के प्रारम्भ में भारत के इतिहास की अतिसंक्षिप्त पृष्ठभूमि को भी लिखा गया है।
इस पुस्तक को पाठकों के समक्ष लाने का उद्देश्य भारतीयों को उनके गौरवमयी इतिहास से परिचित कराना है। आशा है यह इतिहास पाठकों के लिए रुचिकर सिद्ध होगा। सभी भाषाओं, पंथों एवं मजहबों के पाठक प्रत्येक प्रकार के दुराग्रहों से मुक्त होकर इसका आनंद लें। शुभम् अस्तु।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता