भारत में मुसलमानी शासन ई.1192 में आरम्भ हुआ और लगभग ईस्वी 1757 तक चला। इतने लम्बे शासन काल में भारत की मूल संस्कृति अंधकार में कहीं खो सी गई किंतु फिर भी हिन्दुओं ने इस संस्कृति का केन्द्रीय भाग किसी ने किसी प्रकार सुर्रिक्षत रख लिया।
डिसमिस दावा तोर है सुन उर्दू बदमास (1)
ई.1192 में अफगानिस्तान से आए तुर्कों ने दिल्ली, अजमेर, हांसी एवं सरहिंद आदि विशाल भूभाग के हिन्दू शासक पृथ्वीराज चौहान को मारकर दिल्ली, अजमेर, हांसी और सरहिंद के विशाल भूभाग में पहले मुसलमानी राज्य की स्थापना की। भारत के इतिहास में इसे ‘दिल्ली सल्तनत‘ कहा जाता है। भारत का मुसलमानी राज्य शीघ्र ही तुर्कों के हाथों से निकलकर उनके गुलामों के हाथों में चला गया। गुलामों को भी अपना राज्य बहुत ही कम समय में खिलजियों के हाथों खोना पड़ा।
खिलजियों को दिल्ली के तख्त पर बैठे हुए कुछ ही समय बीता होगा कि दिल्ली का मुसलमानी राज्य तुगलकों के हाथों में चला गया। तुगलक भी अधिक समय तक दिल्ली में नहीं टिक सके और दिल्ली सल्तनत सयैदों के हाथों में चली गई। सैयदों को मारकर लोदियों ने दिल्ली हथिया ली। भारत पर शासन करने वाले ये मुसलमान वस्तुतः अफगानिस्तान से आए छोटे-छोटे कबीले थे जिन्होंने भारत की राजनीतिक दुर्बलता का लाभ उठाते हुए अपने राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।
ई.1526 में चगताई मुसलमानों अर्थात् मुगलों का भारत में आगमन हुआ। चंगेज खाँ के वंशज होने से उन्हें चंगेजी मुसलमान तथा तैमूर लंग के वशंज होने से उन्हें तैमूरी मुसलमान भी कहा जाता था। उन्होंने दिल्ली सल्तनत के अफगान कबीलों का दमन करके उत्तर भारत में एक नए मुसलमानी राज्य की स्थापना की जिसे ‘मुगल सल्तनत’ कहा जाता है। मुगलों ने लगभग तीन सौ साल तक तथा उनके बीच अफगानिस्तान के सूरियों ने लगभग 20 साल तक भारत के विशाल भूभागों पर शासन किया।
शासन की बार-बार की अदला-बदली में भारत में हर बार कुछ न कुछ बदल जाता था किंतु एक चीज जो नहीं बदलती थी, वह थी शासन की मुसलमानी पद्धति। मुस्लिम शासन पद्धति ने हिन्दुओं को शरीयत के आधार पर जिम्मी ठहराया तथा हिन्दुओं को अपनी ही भूमि पर रहने देने के लिए उन पर जजिया लगाया।
मुस्लिम हाकिमों ने तीर्थयात्राओं पर जाने वाले हिन्दुओं से जुर्माना वसूल किया, उनकी फसलों पर पचास प्रतिशत से भी अधिक कर लगाया, तिलक लगाने वाले हिंदुओं को कोड़ों से मारा, उन्हें घोड़ों पर चढ़ने तथा तलवार बांधने से वंचित किया तथा हिन्दुओं के हजारों मंदिरों को तोड़कर उन पर मस्जिदें खड़ी कर दीं। राजनीतिक शक्ति से वंचित हिन्दू जाति के पास इन अत्याचारों को सहन करने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं था।
मुसलमान हाकिमों ने निर्धन हिन्दुओं को धन का लालच देकर, मध्यमवर्गीय हिन्दुओं को नौकरियों का लालच देकर तथा धनी हिन्दुओं को तलवार के बल पर मुसलमानी मजहब अपनाने पर मजबूर किया। मुसलमान हाकिम केवल उन्हीं हिन्दुओं को नौकरी देते थे जो मुसलमानी मजहब अपना लेते थे।
मुस्लिम हाकिम मुसलमानों से उनकी फसल पर 25 प्रतिशत कर लेते थे जबकि हिन्दुओं की फसलों पर 50 प्रतिशत से 75 प्रतिशत तक कर लिया जाता था। इन अत्याचारों से बचने के लिए भारत में करोड़ों लोग मुसलमान बन गए। फिर भी ऐसे हिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक थी जिन्होंने मुस्लिम हाकिमों की सेनाओं के हर तरह के अत्याचार सहे किंतु वे मुसलमान नहीं बने।
जिन हिन्दुओं ने विदेशों से आए आक्रांताओं तथा विदेशों से आए मजहब को स्वीकार नहीं किया, मुस्लिम हाकिमों ने उनकी झौंपड़ियां जला दीं, उनके खेतों पर अधिकार कर लिया, उनकी औरतों को उठा लिया तथा उनके बच्चों को उनकी आंखों के सामने जीवित ही आग में झौंक दिया।
अपना सर्वस्व छिन जाने पर भी ये जिद्दी धर्मनिष्ठ हिन्दू, मुसलमान हाकिमों को जजिया देते रहे और उनके कोड़े खाते रहे किंतु येन-केन-प्रकरेण हिन्दू ही बने रहे। उस काल में आधे पेट रोटी खाने वाले एवं टांगों में लंगोटी लपेटने वाले करोड़ों हिन्दू किशनजी को चंदन चढ़ाते रहे और गंगाजी नहाते रहे। स्वाभाविक ही था कि ऐसी स्थिति में हिन्दुओं के मन में मुसलमान हाकिमों के विरुद्ध घनघोर घृणा का भाव होता।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
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