जब मिर्जा सुलेमान और उसका पुत्र मिर्जा इब्राहीम बादशाह हुमायूँ को काबुल पहुंचाकर उससे विदा लेने लगे तो हुमायूँ ने उनके माध्यम से सुलेमान की पत्नी हरम बेगम के नाम संदेश भिजवाया कि भयओ से कहना कि बहुत जल्दी एक सेना सुसज्जित करके भेज दे।
हरम बेगम कामरान से अपने अपमान का बदला लेना चाहती थी। जब उसे बादशाह हुमायूँ का यह संदेश मिला तो वह काम पर जुट गई। उसने जफर दुर्ग से लेकर खोस्त तक के पहाड़ी गांवों में घूम-घूम कर सैनिकों की भर्ती की। कुछ ही समय में उसने कई हजार सैनिकों की एक बड़ी सेना खड़ी कर ली। हरम बेगम ने इस सेना के लिए घोड़े, अस्त्र-शस्त्र तथा अन्य सामग्री की व्यवस्था भी की। मुगलों के इतिहास में यह अकेला उदाहरण है जब किसी मुगल बेगम ने अपने बलबूते पर इतनी बड़ी सेना एकत्रित की हो!
हरम बेगम ने यह सेना अपने जेठ हुमायूँ को भेज दी ताकि उसका जेठ अपनी भयओ अर्थात् छोटे भाई की पत्नी के अपमान का बदला ले सके। भयओ के ही अपमान का क्यों, मुगल हरम में ऐसी कौनसी औरत बची थी जिसका कामरान ने अब तक अपमान नहीं किया था! यही कारण था कि मुगलों की अधिकांश औरतें कामरान के रक्त की प्यासी हो गई थीं। इनमें गुलबदन बेगम और गुलबदन की माता दिलदार बेगम प्रमुख थीं।
जिस इंसान से औरतें नाराज हो जाएं, उसे बचाने के लिए कोई शक्ति आगे नहीं आती, न धरती की कोई शक्ति और न आसमान की कोई शक्ति। उस आदमी का नाश होकर रहता है, कामरान का नाश भी अब निकट आ गया था।
मिर्जा सुलेमान की पत्नी हरम बेगम द्वारा तैयार की गई सेना जब हुमायूँ की सेवा में पहुंची तो हुमायूँ ने बदख्शां पर अभियान करने का निश्चय किया जहाँ कामरान सहित सभी बागियों ने डेरा लगा रखा था। जून 1948 में हुमायूँ ने इस सेना के साथ बदख्शां के लिए प्रयाण किया। जब हुुमायूँ की सेना बंगी नदी को पार कर रही थी तब उन्हें एक स्थान पर ख्वाजा खिजरी मिल गया जो बादशाह का पक्ष छोड़कर कराचः खाँ आदि के साथ भाग गया था। ख्वाजा खिजरी को पकड़कर बादशाह के सामने प्रस्तुत किया गया। हुमायूँ के आदेश से हुमायूँ के अमीरों ने ख्वाजा खिजरी को हुमायूँ के सामने ही इतनी लातें और घूंसे मारे कि ख्वाजा खिजरी वहीं पर मर गया।
एक दिन इस्माईल बेग दुलदाई भी पकड़ा गया, यह भी हुमायूँ को छोड़कर, कराचः खाँ के साथ भागा था। इसे भी हुमायूँ के आदेश से लात-घूंसे मारे गए किंतु मुनीम खाँ बादशाह के पैरों में गिरकर इस्माईल बेग के प्राणों की भीख मांगने लगा। हुमायूँ मुनीम खाँ का बड़ा सम्मान करता था, इसलिए हुमायूँ ने इस्माईल बेग दुलदाई को छोड़ दिया।
बंगी नदी पार करके हुमायूँ ने टालिकान घेर लिया। इस समय टालिकान दुर्ग पर कामरान के आदमियों ने कब्जा कर रखा था और कामरान भी बदख्शां से टालिकान आ गया था। हुमायूँ ने टालिकान के दुर्ग पर तोपों से गोले बरसाने के आदेश दिए। इस गोलाबारी में मुबारिज बेग की मृत्यु हो गई। किसी समय वह हुमायूँ का विश्वस्त अमीर हुआ करता था किंतु कराचः खाँ के बहकावे में आकर कामरान की तरफ हो गया था।
मुबारिज बेग की मृत्यु से हुमायूँ को बड़ा दुःख हुआ। उसने कामरान को पत्र लिखा कि तू लड़ाई-झगड़े का यह मार्ग छोड़ दे। अपने आदमियों पर और इस दुर्ग पर रहम कर। पत्रवाहकों ने यह पत्र कामरान को सौंप दिया किंतु कामरान ने हुमायूँ का प्रस्ताव ठुकरा दिया।
जब घेरा चलते हुए एक साल बीत गया, तब कामरान की स्थिति खराब होने लगी। एक दिन उसने एक तीर में पत्र बांधकर हुमायूँ के शिविर की तरफ फैंका जिसमें लिखा था कि अब मैंने सब-कुछ देख लिया है। मैं अपने किए पर पश्चाताप करता हूँ। मुझे सेवा में उपस्थित होने की अनुमति प्रदान की जाए। बादशाह की अनुमति का पत्र मक्का के मीर अरब के मार्फत मुझे भेजा जाए।
जब बादशाह को यह पत्र मिला तो बादशाह ने मीर अरब को अपने पास बुलाया तथा उससे कहा कि वह कामरान को पत्र लिखकर उसे मक्का जाने के लिए कहे। इस पर मीर अरब स्वयं कामरान से मिलने टालिकान के दुर्ग में गया। कामरान ने मीर से कहा कि मैंने पाप किया है। अब आप जो कहेंगे, मैं करूंगा।
इस पर मीर ने कहा कि बादशाह के जो अमीर, बेग और सैनिक भाग कर आपके पास आए हैं, उनकी गर्दनों में फंदा डालकर उन्हें बादशाह के सामने प्रस्तुत किया जाए। आप बादशाह के नाम का खुतबा पढ़ें तथा चुपके से हज्जाज चले जाएं।
मिर्जा कामरान ने मीर की बात मान ली तथा कहा कि मैं मक्का जाने के लिए तैयार हूँ किंतु बापूस को मेरे साथ जाने दिया जाए। मीर ने हुमायूँ के पास लौटकर सारी बातें बताईं। हुमायूँ ने कामरान को क्षमा करने तथा बापूस के साथ हज्जाज जाने की अनुमति देना स्वीकार कर लिया।
यह कैसी विडम्बना थी कि जिस बापूस ने कामरान का साथ छोड़कर हुमायूँ की सेवा ग्रहण की थी, जिस बापूस का घर कामरान ने गिरवाया था और जिस बापूस के तीन पुत्रों को मारकर उनके शव कामरान ने दुर्ग से बाहर फिंकवाए थे, आज उसी बापूस को अपने साथ मक्का ले जाने के लिए कामरान बेताब था!
अगले दिन हुमायूँ अपना शिविर छोड़कर निकटवर्ती बाग में चला गया। उसने हाजी मुहम्मद को आदेश दिया कि मिर्जा कामरान कुछ आदमियों के साथ मक्का जा रहा है। उसके चले जाने तक सल्तनत की सुरक्षा का पूरा प्रबंध किया जाए। मिर्जा के साथ शाही बर्ताव किया जाए। उसे शाही खिलअत तथा घोड़ा दिया जाए।
जब कामरान को ज्ञात हुआ कि बादशाह दुर्ग के सामने से हट गया है, तब कामरान ने टालिकान दुर्ग के दरवाजे भीतर से खुलवाए और वह अपने परिवार एवं विश्वस्त अनुचरों के साथ दुर्ग से बाहर आ गया। कामरान का काफिला चुपचाप मक्का की तरफ रवाना हो गया तथा हुमायूँ की सेना ने टालिकान दुर्ग में घुसकर दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
जब रात हुई तो उन भगोड़े अमीरों एवं बेगों को बादशाह के समक्ष प्रस्तुत किया गया जो बादशाह को छोड़कर कामरान की तरफ भाग गए थे। सबसे पहले कराचः खाँ को गले में तलवार लटकाकर उपस्थित किया गया। हुमायूँ ने उसकी पुरानी सेवाओं का स्मरण करके उसे क्षमा कर दिया।
उसके बाद मुसाहिब बेग को भी गले में तलवार लटकाकर प्रस्तुत किया गया। बादशाह ने उसे भी क्षमा कर दिया। इस प्रकार जितने भी भगोड़े बादशाह के सामने लाए गए, बादशाह ने उन सबको क्षमा कर दिया। मिर्जा अस्करी अब भी बेड़ियों में बांधकर रखा गया। उसने क्षमा पाने के लिए बादशाह से कोई याचना नहीं की।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता