मुहम्मद बिन तुगलक ने ई.1325 से ई.1351 अर्थात् 26 साल की दीर्घ अवधि तक भारत पर शासन किया। उसका व्यक्तित्व आकर्षक तथा प्रभावोत्पादक था। उसके समान विद्वान एवं प्रतिभावान सुल्तान उसके पूर्व दिल्ली के तख्त पर नहीं बैठा था।
मुहम्मद बिन तुगलक फारसी का ज्ञाता, उच्च कोटि का साहित्यकार तथा विद्याव्यसनी शासक था। वह तार्किक, सत्यान्वेषी तथा ओजस्वी वक्ता था। उसे अरबी भाषा का अच्छा ज्ञान था। उसने साहित्य का गहन अध्ययन किया था। दर्शनशास्त्र, तर्कशास्त्र, गणित, ज्योतिष आदि शास्त्रों में उसकी विशेष रुचि थी। वह न केवल शुद्ध बौद्धिक शास्त्रों में, अपितु भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा आयुर्वेद आदि विद्याओं के अध्ययन में भी रुचि रखता था और उनका अनुशीलन करता था।
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मुहम्मद बिन तुगलक के ये सब गुण सिक्के के एक पहलू की तरह थे। सिक्का का दूसरा पहलू बहुत भयावह एवं दरिंदगी से भरा हुआ था। खिलजियों का सर्वनाश उसी ने किया था। उसने अपने पिता की हत्या करके उसका राज्य और धन हड़प लिए। उसने अपने अमीरों की खाल खिंचवा ली तथा उनमें भूसा भरकर पूरे हिंदुस्तान में घुमाया।
उसने अपने सिपहसालारों का मांस चावल के साथ रांधकर उसके परिवार वालों को खाने के लिए भिजवाया। उसने उमेमाओं को कठोर दण्ड दिए और काजियों पर कोड़े बरसाए। मुहम्मद बिन तुगलक में महान आदर्शवाद के साथ नृशंसता, अपार उदारता के साथ निर्दयता तथा आस्तिकता के साथ-साथ घोर नास्तिकता मौजूद थी।
उसका दुर्भाग्य उससे दो कदम आगे चलता था। उसे किसी अच्छे काम का श्रेय नहीं मिला। किसी ने उसे विश्व का महान बादशाह माना तो किसी ने पागल कहकर उसकी भर्त्सना की। अनेक इतिहासकारों ने उसे मुस्लिम जगत् का विद्वानतम मूर्ख सुल्तान कहा तो अनेक इतिहासकारों ने उसे विभिन्नताओं का सम्मिश्रण बताया।
अंततः वह इतिहास में पागल बादशाह के रूप में विख्यात हुआ जिसने सोने-चांदी की जगह तांबे का सिक्का चलाया। जब वह अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिरि ले गया तो अपने साथ दिल्ली के लूले-लंगड़े भिखारियों एवं कुत्ते-बिल्लियों को भी ले गया। उनमें से बहुत से रास्ते में ही मर गए। उसने अपना राज्य इतना फैला दिया कि चौहदवीं शताब्दी के सीमित साधनों और अविश्वसनीय सूबेदारों के कारण नियंत्रण में रखना अत्यंत कठिन था।
जियाउद्दीन बरनी ने लिखा है कि सुल्तान की सयैदों तथा इस्लाम-भक्त मुसलमानों को मृत्यु दण्ड देने की उसकी उत्कण्ठा तथा उसकी आस्तिकता गर्म तथा ठण्डी सांस लेने के समान प्रतीत होती है। यह एक ऐसा रहस्य है जो बुद्धिभ्रम उत्पन्न कर देता है।
इब्नबतूता ने लिखा है कि मुहम्मद दान देने तथा रक्तपात करने में सबसे आगे है। उसके द्वार पर सदैव कुछ दरिद्र मनुष्य धनवान होते हैं तथा कुछ प्राण दण्ड पाते हुए देखे जाते हैं। अपने उदार तथा निर्भीक कार्यों तथा और निर्दय तथा हिंसात्मक व्यवहारों के कारण जनसाधारण में उसकी बड़ी ख्याति है। देखिए इस पागल बादशाह का वास्तविक और निष्पक्ष इतिहास। इस वी-ब्लॉग में। इस पागल बादशाह की अच्छाइयां एवं बुराइयां आपके सामने कड़ी दर कड़ी शीशे की तरह साफ होती चली जाएंगी। आपने इतिहास की इतनी नंगी सच्चाइयों को पहले कभी नहीं देखा होगा, वह भी पूरी लेखकीय ईमानदारी के साथ जिसमें इतिहास की पवित्रता की रक्षा की गई हो। अगली कड़ी में देखिए- सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने महल के तालाब में पिघला हुआ सोना भर दिया!