मुहम्मद बिन तुगलक के बचपन का नाम फखरुद्दीन मुहम्मद जूना खाँ था। वह अपने चार भाइयों में सबसे बड़ा, सर्वाधिक महत्वाकांक्षी एवं सबसे प्रतिभावान था। उसका पालन-पोषण एक सैनिक की भांति हुआ था। जूना खाँ के पिता गाजी तुगलक ने उसकी शिक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया था। दिल्ली सल्तनत के अंतिम खिलजी सुल्तान खुसरोशाह ने गाजी खाँ तुगलक को कुछ घोड़ों का अध्यक्ष नियुक्त किया था। कुछ समय बाद गाजी खाँ के पुत्र जूना खाँ ने सुल्तान खुसरोशाह के विरुद्ध षड़यंत्र रचना आरम्भ किया।
जूना खाँ सुल्तान खुसरोशाह को मारकर स्वयं दिल्ली का तख्त हथियाना चाहता था। जूना खाँ का अहसान फरामोश पिता गाजी खाँ भी इस षड़यंत्र में शामिल हो गया। जब जूना खाँ ने सुल्तान खुसरोशाह को मार दिया तो गाजी खाँ गयासुद्दीन तुगलक के नाम से दिल्ली का सुल्तान बन गया और उसका पुत्र जूना खाँ हाथ मलता रह गया!
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सुल्तान गयासुद्दीन ने तख्त पर बैठते ही अपने बड़े पुत्र जूना खाँ को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया ताकि जूना खाँ बगावत न करे! कुछ दिन बाद सुल्तान ने शहजादे जूना खां को उलूग खाँ की उपाधि दी तथा उसे सल्तनत का विस्तार के लिये जाजनगर और वारंगल के अभियान पर भेज दिया।
शहजादे जूना खां ने जाजनगर पर विजय प्राप्त करके वारंगल को घेर लिया। कहने को तो जूना खां वारंगल के मोर्चे पर था किंतु उसका दिल हर समय दिल्ली के लिये तड़पता रहता था। उसे लगता था कि उसके पिता ने उसके साथ धोखा किया है। खिलजी सुल्तान खुसरोशाह को तख्त से हटाने की सारी साजिश जूना खां ने रची थी किंतु तख्त पर उसका पिता गाजी खां बैठ गया था। इतना ही नहीं, गाजी खां ने खिलजियों की अकूत सम्पदा पर भी खुद ही अधिकार कर लिया था। यह सम्पदा दिल्ली के पहले सुल्तान कुतुबुद्दीन एबक के समय से ही भारतीय राजाओं से लूटकर एकत्रित की जा रही थी। इसमें अल्लाऊद्दीन खिलजी द्वारा राजपूताना, गुजरात एवं दक्षिण के राजाओं से लूटा गया अपार सोना-चांदी एवं हीरे-जवाहरात भी शामिल थे।
इस कारण सुल्तान का राजकोष धन तथा रत्नों से लबालब भरा हुआ था। तुगलक कालीन इतिहासकार इब्नबतूता ने लिखा है- ‘गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलकाबाद में एक महल बनवाया जिसकी ईंटें स्वर्ण से ढकी गईं। इस महल के भीतर दुनिया भर की विलासिता का बहुमूल्य सामान संग्रह किया गया। सुल्तान ने महल के भीतर एक सरोवर बनवाया जिसमें स्वर्ण को पिघलाकर भरा गया।’
पिता के अधिकार में चले गये विपुल धन और उसकी सत्ता ने शहजादे जूना खाँ को जुनूनी बना दिया। वह बचपन से ही अत्यंत महत्वाकांक्षी था लेकिन महत्वाकांक्षा के मार्ग में पिता के आ जाने से वह तड़प उठा था। अभी शहजादा वारंगल में ही था कि उसे अपने पिता सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक की मृत्यु का समाचार मिला। वह उसी समय वारांगल से दिल्ली के लिये दौड़ पड़ा। उसे भय था कि उसके भाइयों अथवा सल्तनत के अमीरों में से कोई भी दिल्ली के तख्त पर अधिकार कर लेगा! जब शहजादा जूना खाँ दिल्ली पहुँचा तो उसने अपने पिता को जीवित देखा, इस पर जूना खाँ बड़ा निराश हुआ। सुल्तान ने जूना खाँ को वारांगल का मोर्चा छोड़कर आने के लिए कड़ी फटकार भी लगाई। जूना खाँ समझ गया कि दिल्ली का तख्त अपने आप उसके कदमों में आकर नहीं गिरेगा, न ही सल्तनत का ताज खुद ब खुद उसके सिर पर आकर सजेगा! तख्त और ताज को पाने के लिए उसे स्वयं ही कुछ करना होगा किंतु क्या करना होगा, यह उसकी समझ में नहीं आ रहा था! अगली कड़ी में देखिए- जूना खाँ द्वारा अपने पिता की हत्या का षड़यंत्र!