26 दिसम्बर 1530 को बाबर की मृत्यु हो गई तथा 30 दिसम्बर 1530 को हुमायूँ बादशाह हुआ। बाबर की मृत्यु के समय बाबर के चार पुत्र और तीन पुत्रियाँ जीवित थे जिनमें हुमायूँ सबसे बड़ा था। हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 को काबुल में हुआ था। उसकी माता माहम सुल्ताना हेरात के शिया मुसलमान हुसैन बैकरा के खानदान में उत्पन्न हुई थी। उन दिनों हेरात, खुरासान राज्य की राजधानी हुआ करता था। कुछ पुस्तकों में आए वर्णन के अनुसार माहम सुल्ताना का भाई ख्वाजा अली, खोस्त के दरबार में नौकरी करता था। माहम का परिवार अपनी शांत प्रवृत्ति के लिए विख्यात था और ख्वाजा के नाम से जाना जाता था।
माहम सुल्ताना को माहिज बेगम एवं माहम बेगम भी कहते थे। माहम बेगम ने बाबर की एक अन्य पत्नी दिलदार बेगम से उत्पन्न पुत्री गुलबदन बेगम तथा पुत्र मिर्जा हिंदाल को गोद लेकर उनका पालन-पोषण किया था। गुलबदन बेगम ने माहम बेगम को अपनी पुस्तकों में आका बेगम एवं आकम बेगम भी लिखा है।
यद्यपि माहम बेगम बाबर की तीसरी पत्नी थी किंतु बाबर ने उसे पादशाह बेगम (बादशाह बेगम) का रुतबा प्रदान किया था। इस रुतबे का कारण यह था कि माहम सुशिक्षित, सुंदर एवं बुद्धिमती स्त्री थी और जीवन के हर मोड़ पर बाबर के साथ दृढ़ता से खड़ी रही थी। वह युद्ध के समय में भी बाबर के शिविर में उपस्थित रहती थी और बाबर को राजनीतिक विषयों पर सलाह देती थी। बाबर के हरम को अनुशासन में रखने में भी माहम की बड़ी भूमिका रही थी।
जब बाबर ने काबुल से बदख्शां एवं ट्रांसऑक्सियाना के कठिन अभियान किए थे तब माहम बेगम भी बाबर के साथ उन अभियानों में मौजूद रही। बाबर माहम बेगम के व्यवहार से इतना प्रभावित था कि जब माहम के पिता सुल्तान हुसैन मिर्जा की मृत्यु हुई तो बाबर उसे श्रद्धांजली देने के लिए स्वयं हेरात गया था।
जब बाबर विशेष दरबारों का आयोजन करता था जिसमें समस्त मिर्जा, बेग, अमीर और प्रजा उपस्थित होती थी, तब माहम सुल्ताना भी बाबर के साथ सज-धज कर उसके सिंहासन पर बैठा करती थी। बाबर माहम से इतना अधिक प्रभावित था कि कभी उसकी किसी बात का प्रतिवाद नहीं करता था और माहम की प्रत्येक इच्छा पूरी करने के लिए तत्पर रहता था।
जब माहम काबुल से भारत आई थी तब बाबर ने माहम के सम्मान में शाही पालकियां घुड़सवारों के साथ अलीगढ़ में उसकी अगवानी करने के लिए भिजवाईं। जब बाबर को समाचार मिला कि बेगम आगरा के निकट पहुंच गई है, तब बाबर पैदल ही बेगम की अगवानी के लिए पुराने किले से रवाना हुआ तथा पैदल चलकर ही बेगम को अपने महल तक लाया, इस दौरान बेगम अपनी पालकी में बैठी रही। माहम के साथ सौ मुगलानी दासियां अच्छे घोड़ों पर सवार होकर आई थीं जो बेहद सजी-धजी थीं। बाबर के समय में किसी अन्य बेगम को ऐसा रुतबा प्राप्त नहीं था।
माहम संसार की अकेली ऐसी औरत थी जो न केवल बाबर के हरम पर शासन करती थी अपितु बाबर के दिल, दिमाग और बाबर की बादशाहत पर भी राज किया करती थी। हुमायूँ को मुगलों में सबसे अच्छा बादशाह बताया जाता है किंतु बहुत कम लेखकों ने हुमायूँ के नरम दिल के निर्माण के लिए माहम की भूमिका को पहचाना है। माहम के स्नेहशील व्यक्तित्व के कारण ही हुमायूँ को साहित्य तथा चित्रकला से प्रेम हुआ तथा हुमायूँ के व्यक्तित्व में कठोरता का समावेश नहीं हो सका।
माहम के पेट से हुमायूँ के अतिरिक्त और भी चार औलादें पैदा हुई थीं किंतु वे शैशव अवस्था में मृत्यु को प्राप्त हुईं। जब बाबर बीमार पड़ा तब बाबर ने गुलरुख बेगम तथा गुलचहरा बेगम के विवाह की जिम्मेदारी माहम बेगम को ही प्रदान की थी।
कुछ लेखकों के अनुसार जब बाबर ने ई.1527 में खानवा-विजय के बाद हुमायूँ को बदख्शां का गवर्नर बनाकर आगरा से बदख्शां भेज दिया, तब माहम बेगम ने ही बड़ी चतुराई से हुमायूँ को बदख्शां से आगरा बुलवा लिया था जबकि बाबर चाहता था कि हुमायूँ बदख्शां का बादशाह बने तथा समरकंद पर विजय प्राप्त करे।
माहम द्वारा हुमायूँ को चुपके से भारत बुला लिए जाने का कारण यह बताया जाता है कि जब ई.1529 में घाघरा-युद्ध के बाद बाबर बीमार रहने लगा तो बाबर के प्रधानमंत्री निजामुद्दीन अली मुहम्मद खलीफा ने योजना बनाई कि बाबर की मृत्यु के बाद बाबर के जवांई मिर्जा जमाँ को बादशाह बनाया जाए जिसका विवाह बाबर की पुत्री मासूमा बेगम से हुआ था किंतु माहम बेगम को इस षड़यंत्र की जानकारी हो गई तथा उसने हुमायूँ को आगरा बुलवाकर खलीफा का षड़यंत्र निष्फल कर दिया।
जब हुमायूँ भारत आकर बीमार पड़ गया था तब माहम बेगम हुमायूँ को दिल्ली से आगरा ले आई थी तथा जीजान से उसकी सेवा एवं चिकित्सा करके उसे मौत के मुँह से बाहर खींच लिया था। इस प्रकार माहम बेगम ने न केवल अपने पति बाबर का अपितु अपने पुत्र हुमायूँ का भी यथाशक्ति साथ निभाया तथा उनकी राह के कांटे हटाए।
बाबर की मृत्यु के बाद माहम बेगम प्रतिदिन दोनों समय निर्धनों को भोजन खिलाया करती थी। इस भोजन के लिए वह प्रातःकाल में एक बैल, दो भेड़ और पांच बकरे तथा दोपहर के समय पांच बकरे दान किया करती थी। इस दान का पूरा खर्च माहम अपनी जागीर से होने वाली आय से करती थी।
बाबर की मृत्यु के बाद एक बार फिर प्रधानमंत्री निजामुद्दीन अली मुहम्मद खलीफा ने प्रयास किया कि बाबर के जवांई मिर्जा जमां को बादशाह बनाया जाए किंतु माहम सुल्ताना ने ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दीं कि खलीफा को यह अनुभव हो गया कि यदि उसने हुमायूँ का मार्ग रोका तो खलीफा का अपना जीवन खतरे में पड़ जायेगा इसलिये खलीफा ने हुमायूँ का समर्थन कर दिया।
बादशाह बनने के बाद हुमायूँ ने अपनी माता माहम बेगम का पादशाह बेगम का पद बनाए रखा। माहम अपनी मृत्यु के समय तक इस पद पर बनी रही। इस पद पर रहने के कारण उसे बादशाह के हरम एवं दरबार में कुछ निश्चित अधिकार प्राप्त थे जिनकी अनदेखी कोई नहीं कर सकता था।
जब हुमायूँ चुनार का युद्ध जीतकर आगरा लौटा तब माहम बेगम ने पूरे आगरा को सजाने के आदेश दिए। माहम के आदेश से महलों, बाजारों, गलियों और सैनिक छावनियों में दिए जलाए गए। सड़कों पर पानी का छिड़काव किया गया और उन्हें फूलों तथा रंगीन कागजों से सजाया गया। इस अवसर पर माहम ने 7 हजार लोगों को सम्मान-स्वरूप शाही चोगे प्रदान किए।
16 अप्रेल 1534 को बीमारी के कारण माहम का निधन हो गया। माहम बेगम की बड़ी इच्छा थी कि मृत्यु के बाद उसके शरीर को काबुल ले जाकर बाबर की कब्र की बगल में दफनाया जाए किंतु माहम की मृत्यु के बाद उसका शव कभी भी काबुल नहीं ले जाया जा सका। माहम को आगरा में कहाँ दफनाया गया, इस सम्बन्ध में पक्की जानकारी नहीं मिलती। माहम की मृत्यु के बाद बाबर की बहिन खानजादः बेगम को पादशाह बेगम बनाया गया।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता