इण्डोनेशिया में डचों के विरुद्ध विद्रोह
ई.1825 में इण्डोनेशिया की जनता ने डच शासन के विरुद्ध जबर्दस्त विद्रोह किया किंतु इस विद्रोह को कुचल दिया गया। डचों का दमन चक्र इतना क्रूर था कि लगभग 95 वर्ष तक इण्डोनेशिया की जनता शांत बनी रही। प्रथम विश्वयुद्ध (ई.1914-19) में मित्रराष्ट्रों ने लोकतंत्र एवं स्वतंत्रता का नारा दिया। इससे इण्डोनेशिया में भी राष्ट्रवाद की भावना का प्रसार हुआ किंतु जब विश्वयुद्ध समाप्त हो गया और इण्डोनेशिया को कुछ नहीं मिला तो ई.1920 में जावा और सुमात्रा में डच शासन के विरुद्ध असंतोष फूट पड़ा। शीघ्र ही आंदोलनकारियों में फूट पड़ गई और डच सरकार ने स्वतंत्रता के आंदोलन को पूरी तरह कुचल दिया।
इण्डोनेशियाई राष्ट्रीय दल का गठन
ई.1927 में डच सरकार ने इण्डोनेशिया के शासन में कई सुधार किए तथा संसद की स्थापना की जिसमें से दो तिहाई सांसद जनता द्वारा मनोनीत किए जाने तथा एक तिहाई सांसद डच सरकार द्वारा मनोनीत किए जाने का प्रावधान था। संसद का अध्यक्ष, सरकार द्वारा ही नियुक्त किया जाता था। जनता इन सुधारों से संतुष्ट नहीं हुई तथा उसी वर्ष सुकाणों के नेतृत्व में ”इण्डोनेशियाई राष्ट्रीय पार्टी” का गठन किया गया। इस दल ने इण्डोनेशिया में राष्ट्रीय आंदोलन को नए सिरे से आरम्भ किया तथा गांव-गांव में जाकर स्कूल खोले ताकि नवयुवकों को राष्ट्रभक्ति एवं आजादी की शिक्षा दी जा सके। ई.1929 में सरकार ने इस दल पर प्रतिबंध लगा दिया।
इण्डोनेशियाई द्वीपों पर जापान का अधिकार
द्वितीय विश्वयुद्ध (ई.1939-45) के दौरान ई.1942 में जापान ने इण्डोनेशियाई द्वीपों पर अधिकार करके सैनिक शासन स्थापित कर दिया। डचों को इण्डोनेशिया खाली करना पड़ा किंतु कुछ द्वीप तब भी उनके अधिकार में रहे। ई.1945 में जब जापान का पतन हुआ तो जापान सरकार ने आत्मसमर्पण करने से पहले इण्डोनेशिया को स्वतंत्र करने की घोषणा की।
इण्डोनेशियाई गणतंत्र की स्थापना के लिए संघर्ष
सुकार्णो की इण्डोनेशियाई राष्ट्रीय पार्टी ने अचानक उत्पन्न इस परिस्थिति में देश में सरकार बनाने का प्रयास किया किंतु डच लौट आए और उन्होंने इण्डोनेशिया को स्वतंत्र करने से मना कर दिया। दोनों पक्ष अपनी-अपनी बात पर अडिग रहे तथा दोनों के बीच वार्तालाप चलता रहा। अंत में 25 मार्च 1947 को लिंगायती (लिंगजाति/लिंग्गाडजती) समझौता हुआ जिसके अनुसार जावा, सुमात्रा और मदुरा में इण्डोनेशियाई गणराज्य को मान्यता दे दी गई। सुकार्णो इण्डोनेशिया के समस्त द्वीपों को मिलकार एक देश बनाना चाहता था और डच सरकार चाहती थी कि इण्डोनेशियाई द्वीपों और हौलेण्ड को मिलाकर एक संघ-राज्य बनाया जाए।
फलतः दोनों पक्षों में फिर से संघर्ष आरम्भ हो गया। डच सरकार ने सुकार्णो के अधिकार वाले क्षेत्रों पर आक्रमण कर दिया तथा इसे पुलिस कार्यवाही कहा। इस पर भारत तथा ऑस्ट्रेलिया ने इस मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में उठाया। सुरक्षा परिषद के हस्तक्षेप से जनवरी 1948 में युद्ध बंद हो गया।
”बैटेविया” की घटना के बाद दिसम्बर 1948 में दोनों पक्षों में पुनः युद्ध आरम्भ हो गया किंतु तब तक विश्व जनमत सुकार्णो के पक्ष मे हो चुका था। सुरक्षा परिषद में पुनः युद्धबंदी का प्रस्ताव पारित हुआ जिसे डच सरकार ने अस्वीकार कर दिया और सुकार्णो तथा उसके साथियों को बंदी बना लिया।
इण्डोनेशिया गणराज्य को मान्यता
23 अगस्त से 2 नवम्बर 1949 तक हेग में इण्डोनेशियाई समस्या को सुलझाने के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इसमें हुए निर्णय के बाद इण्डोनेशिया को संघ राज्य घोषित किया गया तथा डॉ. सुकार्णो द्वारा घोषित गणराज्य को मान्यता दी गई। इस समझौते के अनुसार 27 नवम्बर 1949 को इण्डोनेशिया की वास्तविक सत्ता सुकार्णो के नेतृत्व वाली सरकार को सौंप दी गई किंतु इण्डोनेशियाई राज्य संघ में हॉलैण्ड की औपचारिक साझेदारी मानी गई। अर्थात् इण्डोनेशिया में हॉलैण्ड एवं इण्डोनेशियाई सरकार को बराबर सम्प्रभु राष्ट्र माना गया। जनता इस सम्बन्ध को भी समाप्त करना चाहती थी। अतः 15 अगस्त 1950 को इण्डोनेशियाई एकीकृत गणतन्त्र की स्थापना की गई तथा ई.1955 में इण्डोनेशिया एवं हॉलैण्ड के बीच के समस्त सम्बन्ध समाप्त हो गए।