Saturday, July 27, 2024
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क्रिप्स मिशन की भारत-संघ योजना

दिसम्बर 1941 में द्वितीय विश्वयुद्ध में अमरीका का प्रवेश हुआ जिससे ब्रिटिश सरकार पर भारत प्रकरण को सुलझाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ने लगा। अमरीकी राष्ट्रपति इलियट रूजवेल्ट ने भारत की स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया। ब्रिटिश सरकार अमरीकी सरकार की सलाह की अनदेखी नहीं कर सकी क्योंकि अमरीकी सहायता के कारण ही युद्ध में ब्रिटेन की स्थिति में सुधार आया था तथा ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था स्थिर रह पायी थी।

मार्च 1942 में जापान की शाही फौज भारत के इतने नजदीक आ गई कि उसका आक्रमण कभी भी आरम्भ हो सकता था। यह आक्रमण भारत पर नहीं, भारत में डटे अंग्रेजों पर होना था। अंग्रेज जानते थे कि यदि भारत में स्वयं भारतीयों का सहयोग नहीं मिला तो जापानियों के सामने टिकना असम्भव हो जाएगा। बदली हुई परिस्थितियों में ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने नरम रुख अपनाया। इस प्रकार ब्रिटिश सरकार को प्रथम गोलमेज सम्मेलन में आरम्भ हुई ‘भारत संघ योजना’ को फिर से आरम्भ करना पड़ा।

11 मार्च 1942 को इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने हाउस ऑफ कॉमन्स में एक वक्तव्य दिया जिसमें कहा गया- ‘युद्ध मंत्रिमंडल, सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेज रहा है ताकि ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की इच्छाओं के अनुसार जिन सुधारों का प्रस्ताव किया है उनके बारे में भारतीयों के भय और शंकाओं का निवारण किया जा सके। क्रिप्स को राजतंत्रीय सरकार का पूरा विश्वास प्राप्त है। क्रिप्स अपने साथ जो प्रस्ताव ला रहे हैं, वह या तो पूर्णतः स्वीकृत किया जाना चाहिए या फिर पूर्णतः अस्वीकृत।’

22 मार्च 1942 को क्रिप्स दिल्ली पहुंचे। वे साम्यवादी चिंतन वाले नेता थे तथा उन्हें भारतीयों के साथ सहानुभूति थी किंतु वे राजाओं और राजशाही को पसंद नहीं करते थे। यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई। उनकी तैयारी केवल कांग्रेस और मुस्लिम लीग से निबटने की थी, उन्हें पता ही नहीं था कि भारत में उनके मिशन के लिए इन दोनों से बड़ी मुसीबत भारतीय राजाओं की है।

राजाओं के पक्ष को लगभग अनसुना करने के कारण ही क्रिप्स मिशन सफल नहीं हो सका। भारत में उन्होंने कांग्रेस, मुस्लिम लीग सहित विभिन्न भारतीय पक्षों से बात की तथा भारतीय क्या लेना चाहते हैं और इंग्लैण्ड की गोरी सरकार उन्हें क्या देना चाहती है, इस अंतर को समझने का प्रयास किया। वी. बी. कुलकर्णी ने लिखा है- क्रिप्स भारत का मित्र और शुभचिंतक समझा जाता था।

28 मार्च 1942 को क्रिप्स ने नरेन्द्र मण्डल के प्रतिनिधि मण्डल से वार्ता की। क्रिप्स ने राजाओं को बताया कि ‘यदि भारत संघ अस्तित्व में आता है तो देशी-राज्यों के सम्बन्ध स्वतंत्र उपनिवेश अर्थात् भारत संघ से होंगे न कि ब्रिटिश क्राउन से। परमोच्चता वाली संधियां तब तक अपरिवर्तित रहेंगी जब तक कि कोई राज्य नवीन परिस्थतियों में अपने आप को समायोजित करने के लिए इसे समाप्त करने की इच्छा प्रकट न करे।’

राजाओं ने क्रिप्स के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। वे अपना भाग्य कांग्रेस के हाथों में नहीं सौंपना चाहते थे। इसलिए भारत की आजादी के बाद भी वे अपने राज्यों को ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा पूर्व में की गई संधियों के दायरे में ब्रिटिश क्राउन के अधीन रखना चाहते थे।

29 मार्च 1942 को क्रिप्स ने एक पत्रकार वार्ता में विभिन्न पक्षों के मध्य समझौते के लिए एक योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया जिसमें कहा गया कि- ‘युद्ध की समाप्ति के बाद, भारतीय संघ की स्थापना के उद्देश्य से नया संविधान बनाने हेतु संविधान सभा का गठन किया जाएगा। संविधान सभा में ब्रिटिश प्रांतों एवं देशी राज्यों की भागीदारी का प्रावधान किया जाएगा। यदि ब्रिटिश-भारत का कोई प्रांत नए संविधान को स्वीकार न करे तो वह अपनी यथावत स्थिति में रह सकता है। उसे भारत संघ के बराबर का दर्जा दिया जाएगा। संविधान सभा का निर्माण विभिन्न प्रांतों की विधान सभाओं के निम्न सदनों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से किया जाएगा। इस हेतु नए चुनाव करवाए जाएंगे। समस्त निम्न सदनों में जितने सदस्य होंगे उनकी दशांश संख्या, संविधान सभा की होगी। संविधान सभा में भारतीय रियासतों को अपनी जनसंख्या के अनुपात से प्रतिनिधि भेजने के लिए आमंत्रित किया जाएगा। रियासती प्रतिनिधियों के अधिकार ब्रिटिश-भारतीय प्रतिनिधियों के समान होंगे। रियासतों को यह छूट होगी कि वे नया संविधान स्वीकार करें या न करें। संविधान सभा में कुल 207 सदस्य होंगे जिनमें से 158 ब्रिटिश-भारत के तथा 49 रियासतों के होंगे। जब तक नवीन संविधान का निर्माण न हो जाए, सम्राट की सरकार, भारत के विश्व-युद्ध उपक्रम का हिस्सा होने के कारण, भारत की रक्षा का भार अपने हाथ में रखेगी परन्तु सेना, साहस तथा सामग्री संसधान उपलब्ध करवाने का दायित्व भारत के नागरिकों के सहयोग से भारत सरकार पर होगा। सरकार की इच्छा है कि प्रमुख भारतीय दलों के नेताओं को अपने देश की कौंसिलों, कॉमनवेल्थ तथा यूनाईटेड नेशन्स में परामर्श के लिए तुरन्त और प्रभावोत्पादक ढंग से भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाए जिससे वे भारत की स्वतत्रंता के लिए आवश्यक एवं महत्वपूर्ण सक्रिय तथा निर्माणकारी सहयोग देने में समर्थ हो सकें।’

योजना प्रस्तुत किए जाने के बाद पत्रकारों के प्रश्नों का जवाब देते हुए क्रिप्स ने कहा कि ‘भारत संघ के निर्माण के लिए तत्काल प्रयास किए जाएंगे। युद्ध समाप्त होने की प्रतीक्षा नहीं की जाएगी। विभिन्न पक्षों में सहमति बनते ही प्रांतीय चुनाव करवाए जाएंगे। चुनाव परिणाम प्राप्त होते ही संविधान निर्माण सभा स्थापित की जाएगी। हम भारत पर कुछ भी थोपना नहीं चाहते यहाँ तक कि समय सीमा भी नहीं।’

पत्रकारों ने पूछा कि- ‘क्या आपको पता है कि इंगलैण्ड का इतिहास अपने वायदों से मुकर जाने का रहा है? क्या आप इन प्रस्तावों की गारण्टी प्रेसिडेण्ट रूजवेल्ट से दिलवा सकते हैं?’

क्रिप्स का उत्तर था कि- ‘यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है तो किसी चीज की कोई प्रत्याभूति नहीं है। इसके लिए प्रेसिडेण्ट रूजवेल्ट उपलब्ध नहीं होंगे।’

क्रिप्स से पूछा गया कि- ‘इन प्रस्तावों के तहत संविधान सभा में देशी राज्यों की जनता की भागीदारी के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।’

इस पर क्रिप्स ने कहा कि- ‘यदि किसी राज्य में निर्वाचन का कोई तरीका है तो उनका उपयोग किया जाएगा किंतु यदि किसी राज्य में चुनी हुई संस्थायें नहीं हैं तो वहाँ यह कार्य नामित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाएगा।’

पत्रकारों ने पूछा- ‘आप कैसे पता लगायेंगे कि देशी राज्य, भारत संघ में शामिल होने जा रहे हैं?’

क्रिप्स ने कहा- ‘देशी राज्यों से पूछकर।’

पत्रकारों ने पूछा- ‘क्या राज्यों के नागरिकों की कोई आवाज होगी?’

क्रिप्स ने कहा- ‘इसका निर्णय उन राज्यों की वर्तमान सरकारों द्वारा किया जाएगा। हम किसी प्रकार की नई सरकारों का निर्माण नहीं करेंगे। राज्यों के साथ ब्रिटिश सरकार के सम्बन्ध संधियों के माध्यम से हैं, वे संधियां तब तक बनी रहेंगी जब तक कि राज्य उन्हें बदलने की इच्छा प्रकट न करें। यदि भारतीय राज्य, संघ में सम्मिलित होते हैं तो वे ठीक उसी परिस्थिति में रहेंगे जिसमें कि वे आज हैं।’

पत्रकारों ने पूछा- ‘यदि कोई प्रांत या राज्य सम्मिलित न होना चाहे तो उनके साथ कैसा व्यवहार किया जाएगा?’

क्रिप्स ने कहा- ‘वे दूसरे राज्यों के साथ उसी प्रकार का व्यवहार करेंगे जैसा कि वे अन्य शक्तियों यथा जापान, स्याम, चायना, बर्मा अथवा अन्य किसी देश के साथ करते हैं।’

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