Saturday, December 7, 2024
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74. जसोदा बार बार भाखै

अकबर ने शहजादा मुराद का विवाह खानखाना अब्दुर्रहीम के साले खाने-आजम मिर्जा अजीज कोका की बेटी से करना निश्चित किया। शहजादे मुराद के विवाह में भाग लेने के लिये अकबर ने मुगलिया सल्तनत के लगभग सभी बड़े अमीर, उमराव और सेनापतियों को पंजाब में बुलवाया जहाँ वह अपने विशाल लाव-लश्कर सहित डेरा डाले हुए था।

अकबर ने इस मौके पर खानखाना को भी पत्र लिखकर बुलाया था कि यदि गुजरात में शांति हो गयी हो तो वह शहजादे के विवाह में शरीक होने के लिये चला आये। खानखाना सांडनी पर बैठकर पन्द्रह दिन की ताबड़तोड़ यात्रा करता हुआ पंजाब पहुँचा जहाँ बादशाह का लश्कर पड़ाव डाले हुए था। पंजाब में शहजादे का विवाह सम्पन्न हो जाने के बाद अकबर खानखाना को अपने साथ सीकरी ले आया था। उनके साथ बहुत से अमीर उमराव भी आ गये थे जो अब तक सीकरी में ही पड़ाव डाले हुए बैठे थे।

अकबर ने कहने को तो दिल्ली को अपनी राजधानी बना रखा था किंतु वह दिल्ली के स्थान पर फतहपुर सीकरी में अधिक रहता था। चौमासे में अक्सर वह शाम के समय आगरा आ जाता और देर रात तक अपने आदमियों के साथ यमुनाजी के तट पर जमा रहता। सायंकालीन दरबार में वह शासन और राजनीति की बातें अत्यंत आवश्यक होने पर ही किया करता था। अन्यथा यह समय उसके रागरंग और मनोविनोद के लिये निर्धारित था। उसने उज्जैन के परम पराक्रमी महाराजा विक्रमादित्य के अनुसरण पर अपने दरबार में भी नवरत्नों की नियुक्ति की थी। इन रत्नों में कवि, लेखक, गवैये, संगीतकार और अन्य विद्वान शामिल थे। सांयकालीन दरबार का आयोजन मुख्य रूप से नवरत्नों के सानिध्य में समय व्यतीत करने के लिये किया जाता था। इन नवरत्नों को भी उसने अलग-अलग उपाधियों से नवाज रखा था। आज के इस सांयकालीन दरबार का आयोजन मुख्यतः संगीत सम्राट तानसेन के गायन के लिये किया गया था।

जब बहुत देर तक राग अलापने के बाद तानसेन ने सितार एक तरफ रखा तो दरबारी फिर से विचारों की दुनिया से बाहर निकल कर वर्तमान में लौटे। आज के गायन में तानसेन ने सूरदासजी का पद गाया था-

 ”जसोदा बार बार भाखै।

 है कोऊ ब्रज में हितू हमारो चलत गोपालहि राखै।”

अकबर ने तानसेन से इस पद का अर्थ करने को कहा। तानसेन ने पद का अर्थ इन शब्दों में किया- ‘मैया यशोदा बार-बार अर्थात् पुनः-पुनः यह पुकार लगाती हैं कि है कोई ऐसा हितू, जो ब्रज में गोपाल को रोक ले!’

इस पर अकबर ने फैजी की ओर देखा फैजी ने कहा- ‘यशोदा बार-बार अर्थात् रो-रोकर यह रट लगाती हैं कि है कोई ऐसा हितू, जो ब्रज में गोपाल को रोक ले!’

– ‘राजा बीरबल! आप क्या कहते हैं?’ अकबर ने बीरबल से पूछा।

– ‘शहंशाह! इस पद का अर्थ बिल्कुल स्पष्ट है किंतु मेरे साथी समझ नहीं पा रहे हैं। माता यशोदा बार-बार अर्थात् द्वार-द्वार पर जाकर कहती हैं कि है कोई ऐसा हितू, जो ब्रज में गोपाल को रोक ले!’

इस बार अकबर ने खाने आजम कोका की ओर देखा कोका ने कहा- ‘यशोदा बार-बार अर्थात् दिन-दिन[1]  यह पुकार लगाती हैं कि है कोई ऐसा हितैषी जो ब्रज में गोपाल को रोक ले!’

इस बार बारी आयी खानखाना की। खानखाना ने कहा- ‘जहाँपनाह! तानसेन गायक हैं, इनको एक ही पद बार-बार अलापना पड़ता है इसलिये इन्होंने बार-बार का अर्थ पुनः-पुनः किया। फैजी फारसी के शायर हैं, इन्हें रोने के अलावा और क्या काम है! इसलिये उन्होंने बार-बार का अर्थ ”रो-रो” कर किया। राजा बीरबल द्वार-द्वार घूमने वाले विप्र हैं इसलिये उन्होंने बार-बार का अर्थ ”द्वार-द्वार” किया। खाने आजम कोका नजूमी[2]  हैं, उनको दिन, तिथि और वार से ही वास्ता पड़ता है इसलिये उन्होंने बार-बार का अर्थ ”दिन-दिन” किया लेकिन बादशाह हुजूर इस पद का वास्तविक अर्थ यह है कि माता यशोदा का बाल-बाल अर्थात् रोम-रोम पुकारता है कि कोई तो मिले जो मेरे गोपाल को ब्रज में ही रोक ले।’

खानखाना का जवाब सुनकर अकबर की आँखों में प्रसन्नता का ज्वार उमड़ आया। उसने आसन से खड़े होकर रहीम को शाबासी दी। दूसरे सभासदों ने भी खानखाना की बहुत प्रशंसा की।


[1] प्रतिदिन।

[2] ज्योतिषी।

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