Saturday, December 7, 2024
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भारत विभाजन की योजनाएँ

भारत विभाजन की योजनाएँ

जब मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों के लिए अलग देश के रूप में पाकिस्तान की मांग तेज की तो भारत में विभिन्न स्तरों पर भारत विभाजन की योजनाएँ तैयार होने लगीं।

मुस्लिम लीग द्वारा कांग्रेस पर लगाए गए आक्षेप सम्बन्धी ‘पिरपुर रिपोर्ट’ ई.1939 में प्रकाशित हुई। इसी प्रकार बिहार में कांग्रेस शासन के दोषों को स्पष्ट करने के लिए ‘शरीफ रिपोर्ट’ प्रकाशित की गई। ई.1939 में कांग्रेस मंत्रिमण्डलों के त्यागपत्र दिए जाने के पश्चात् जिन्ना ने मुसलमानों से कहा कि वे 22 सितम्बर 1939 को ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाएँ क्योंकि कांग्रेस मंत्रिमण्डल समाप्त हो चुके थे।

दीनिया संकल्पना

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ई. 1940 में रहमत अली ने ‘इस्लाम की मिल्लत और भारतीयता का खतरा’ शीर्षक से एक इश्तहार प्रकाशित किया। इस इश्तहार में उसने कहा कि मुसलमानों को अलग राष्ट्र के निर्माण का प्रयास करना चाहिये। रहमत अली ने ‘इण्डिया’ शब्द के अंग्रेजी अक्षरों में हेरफेर करके ‘दीनिया’ शब्द का निर्माण किया जिसका अर्थ था- ‘एक ऐसा उपमहाद्वीप जो इस्लाम में धर्मान्तरित होने की प्रतीक्षा कर रहा है।’

रहमत अली ने बंगाल एवं आसाम का पुनः नामकरण करते हुए उसे ‘बंगुश ए इस्लाम’ नाम दिया। इस नाम का अर्थ था ‘इस्लाम का बंगुश’। बंगुश बंगाल का एक मुगल सामंत था। रहमत अली ने बिहार का नाम फरूखिस्तान, उत्तर प्रदेश का नाम हैदरिस्तान तथा राजपूताना का नाम मोइनिस्तान रखा। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के नाम पर मोइनिस्तान की कल्पना की गयी। उसने हैदराबाद का नाम ओसमानिस्तान रखा। मलाबार के मोपला मार्गों को मोपलिस्तान नाम दिया गया। इनके अलावा साफिस्तान और नसरिस्तान क्षेत्रों की भी कल्पना की गई।

रहमत अली द्वारा दीनिया (भारत) के मानचित्र पर दिखाए गए गैरमुस्लिम क्षेत्र अप्रभावी और बेकार टुकड़े नजर आते थे जो मुस्लिम राज्यों के सभी ओर छितराए हुए थे। रहमत अली की कल्पना के अनुसार वे मुस्लिम राज्य हिन्दू भारत से संघर्ष के द्वारा जन्मे थे और इस हिन्दू भारत को अपने अंदर समाहित करने, उन्हें धर्मांतरित करने तथा उन पर विजय प्राप्त करने की नीति का अनुसरण कर रहे थे।

इसके बाद दीनिया संकल्पना को ध्यान में रखकर भारत विभाजन की योजनाएँ बनने लगीं। ई. 1942 में रहमत अली ने एक और इश्तहार ‘मिल्लत और उसका मिशन’ निकाला जिसके अनुसार भारत की नियति में पूरी तरह इस्लाम और मुस्लिम प्रभुत्व में धर्मांतरित होना लिखा है। अब भारत विभाजन की योजनाएँ मिल्लत के आधार पर बनाई जाने लगीं।

भारत-विभाजन योजनाओं की बाढ़

भारत विभाजन की तरह-तरह की योजनाएं प्रस्तुत की जाने लगीं। कुछ ने रहमत अली की योजना के अनुसार प्रस्ताव किया कि सिर्फ पंजाब, सिंध, पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश, ब्लूचिस्तान और काश्मीर को भारत से अलग कर देना चाहिए।

कुछ लोग अब्दुल लतीफ की योजना का समर्थन करते थे जिसके अनुसार उपर्युक्त प्रांतों के अलावा बंगाल और हैदराबाद को भी अलग कर लेना चाहिए तथा एक मुस्लिम राज्य की स्थापना करनी चाहिए। यह राज्य भारत के सब मुसलमानों का राज्य होगा। कुछ समय बाद रहमत अली ने अपने विचार बदल लिए और उसने भारत के समस्त प्रांतों में मुसलमानों के स्वायत्तशासी राज्यों की मांग करनी शुरू कर दी थी।

अंग्रेज सरकार मुस्लिम लीग से पूर्व-अनुमति ले

इस काल में भारत के मुस्लिम बुद्धिजीवियों की बुद्धि ने बहुत तेजी से काम करना आरम्भ कर दिया और वे भारत विभाजन की योजनाएँ बड़ी ही चतुराई के साथ बनाने लगे ताकि मुसलमानों को भारत की भूमि में अधिक से अधिक हिस्सा मिल सके और काफिर हिन्दू किसी अनुपजाऊ भूभाग में सिमट कर रह जाएं।

इन योजनाओं से प्रभावित होकर जिन्ना ने फरवरी 1940 में भारत सरकार से मांग की कि कोई भी आगामी सुधार योजना उस समय तक लागू नहीं की जाए जब तक कि उसके लिए लीग की पूर्व अनुमति प्राप्त न हो जाए। इस समय तक मुस्लिम लीग ने मुसलमानों के लिए अलग देश हेतु औपचारिक प्रस्ताव भी पारित नहीं किया था।

6 मार्च 1940 को अलीगढ़ में भाषण देते हुए जिन्ना ने कहा- ‘हिन्दू-मुसलमान समझौता केवल समानता के आधार पर हो सकता है न कि गांधीजी की शर्तों के आधार पर।

चूंकि यह समानता पश्चिमी प्रजातंत्रीय प्रणाली से उपलब्ध नहीं हो सकती थी इसलिए वे प्रजातंत्रीय प्रणाली के विरुद्ध थे। उसका तर्क था कि- ‘इस्लाम ऐसे प्रजातंत्र में विश्वास नहीं रखता जिसमें निर्णय का अधिकार गैर-मुसलमानों को हो।’

मुहम्मद अली जिन्ना ने हिन्दू मुस्लिम समझौते के सम्भव न होने के लिए मुख्य कारण यह बताया था कि मुसलमान भारत के भावी प्रशासन में बराबर के साझीदार होना चाहते थे।

अर्थात् जिन्ना अपनी शर्तें कड़ी करता जा रहा था और बात को घुमाकर बड़े ही लच्छेदार शब्दों में कह रहा था कि भारत के भावी संघ की केन्द्रीय एवं प्रांतीय सभाओं में हिन्दुओं एवं मुसलमानों के लिए बराबर संख्या में सीटें हों। यह मांग किसी भी प्रजातांत्रिक आधार पर उचित नहीं ठहराई जा सकती थी। इसलिए किसी समझौते का प्रश्न नहीं उठता था।

जिन्ना बड़ी चतुराई से और बड़ी तेज से भारत को विभाजन की ओर धकेल रहा था। जिन्ना के कपट के सामने कांग्रेसी नेता किंकर्त्तव्यविमूढ़ से नजर आते थे। भारत विभाजन की योजनाएँ पूरे देश में जोर-शोर से बन रही थीं।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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