Friday, March 29, 2024
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76. कामरान ने हुमायूँ के मित्रों की औरतें एक-दूसरे को दे दीं!

 हुमायूँ का चचेरा भाई मिर्जा सुलेमान हुमायूँ से परास्त होकर खोस्त की घाटी में भाग गया तथा हुमायूँ ने जफर दुर्ग एवं किशम दुर्ग पर अधिकार कर लिया। किशम दुर्ग  में हुमायूँ बीमार पड़ गया और कुछ दिनों तक अचेत पड़ा रहा।

गुलबदन बेगम ने लिखा है कि जब बक्खर में कामरान को समाचार मिला कि हुमायूँ किशम के किले में बेहोश पड़ा है तो कामरान ने गजनी पहुंचकर बेगा बेगम की बहिन के पति जाहिद बेग को मार डाला तथा गजनी पर अधिकार कर लिया। इसके बाद कामरान कांधार के लिए चल दिया किंतु कांधार दुर्ग पर बैराम खाँ का पहरा था। बैराम खाँ ने कामरान को कांधार दुर्ग में नहीं घुसने दिया। इस पर कामरान कांधार छोड़कर काबुल के लिए रवाना हुआ।

एक दिन सूर्य निकलते ही कामरान ने काबुल नगर पर धावा मारा। इस समय काबुल के दरवाजे खुले हुए थे और भिश्ती तथा घसियारे आदि स्त्री-पुरुष नगर के भीतर और बाहर आ-जा रहे थे। उन्हीं के साथ कामरान तथा उसके सिपाही काबुल नगर में घुस गए। उस समय हुमायूँ की मातस माहम बेगम का भाई अली मामा स्नानघर में था, कामरान ने उसे स्नानघर में ही मार डाला।

कामरान ने मुल्ला अब्दुल खालिक के मदरसे में डेरा डाला। कामरान के सैनिकों ने हुमायूँ के महल का कीमती सामान लूटकर कामरान के डेरे में डाल दिया। कामरान ने हुमायूँ के विश्वस्त अमीर फजायल बेग तथा मेहतर वकील को पकड़कर उनकी आंखों में सलाई फिरवा दी अर्थात् उन्हें अंधा कर दिया।

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इसके बाद कामरान ने हुमायूँ के परिवार की औरतों को पकड़ कर मिर्जा अस्करी के मकान में बंद कर दिया और उस मकान का दरवार्जा ईंटों की पक्की चिनाई से बंद करवा दिया। इन औरतों को दीवार के ऊपर से खाना पहुंचाया जाता था। हुमायूँ का पुत्र अकबर भी हुमायूँ के हरम की स्त्रियों के साथ इस घर में बंद किया गया। जो मिर्जा, बेग, अमीर और सिपाही कामरान का साथ छोड़कर हुमायूँ की तरफ भाग गए थे, उनके घरों की पहचान करके उन्हें गिराया गया तथा उनके परिवारों को बहुत बुरी सजाएं दी गईं। इन परिवारों की औरतों को दूसरे परिवारों को सौंप दिया गया।

यह कामरान के नैतिक पतन की पराकाष्ठा थी। जिन लोगों पर तथा जिन लोगों की सहायता से उसे शासन करना था, कामरान उन्हीं लोगों के परिवारों के साथ मानव-गरिमा से नीचे का बरताव कर रहा था। शाही आदेश से अमीरों की स्त्रियों की अदला-बदली जैसा कुकृत्य इससे पहले किसी भी मुगल विजेता द्वारा नहीं किया गया था। कामरान के साथ आई औरतों को हुमायूँ की औरतों के महलों में ठहराया गया। हुमायूँ के हरम के नौकरों तथा उनकी औरतों पर अत्याचार ढाए गए। कामरान ने अपने भाई-भतीजों, बहिन-भाइयों एवं बुआ-चाचियों आदि किसी के भी साथ किसी सम्बन्ध की परवाह नहीं की। वह बदले की आग में जल रहा था। उसे हर उस व्यक्ति से चुन-चुन कर बदला लेना था जो कामरान के स्थान पर हुमायूँ के पक्ष में था।

कामरान ने जैसा वीभत्स व्यवहार अपने ही कुल के सदस्यों के साथ किया, वैसा व्यवहार तो शेरशाह सूरी सहित किसी भी शत्रु ने हुमायूँ के परिवार के साथ अब तक नहीं किया था। हुमायूँ के परिवार के सदस्यों को विश्वास नहीं हुआ कि निर्दयी समय थोड़ा सा दयालु होकर इतनी शीघ्र ही फिर से बुरा हो जाएगा!

कामरान ने गुलबदन की माता दिलदार बेगम और गुलबदन को अपने पास बुलाया। उसने दिलदार बेगम से कहा कि वह लुहारखाने में जाकर रहे। कामरान ने गुलबदन बेगम से कहा कि मेरा घर भी तुम्हारा ही है, तुम यहीं पर रहो। इस पर गुलबदन बेेगम ने कामरान से कहा कि मैं यहाँ क्यों रहूँ। जहाँ मेरी माता रहेगी, मैं भी वहीं पर रहूंगी।

कामरान ने कहा कि ठीक है, तुम्हारी जहाँ इच्छा हो रहो किंतु तुम खिज्र ख्वाजा खाँ को पत्र लिखो कि जिस प्रकार हिंदाल और अस्करी मेरे भाई हैं, उसी प्रकार खिज्र ख्वाजा खाँ भी मेरा भाई है, इसलिए खिज्र ख्वाजा खाँ तुंरत मुझसे  आकर मिलो, यह समय मेरी सहायता करने का है।

इस पर गुलबदन ने कहा कि वह मेरे दस्तखत नहीं पहचानता है इसलिए तुम्हारी जो मर्जी हो तुम ही उसे पत्र लिखो। गुलबदन बेगम ने लिखा है कि मैंने मिर्जा ख्वाजा खाँ को लिखा कि हालांकि तुम्हारे सब भाई कामरान की तरफ हो गए हैं किंतु तुम कभी सपने में भी कामरान के साथ मत होना, बादशाह की तरफ ही रहना।

पाठकों की सुविधा के लिए बताना समीचीन होगा कि उस काल में जितने पुरुषों के नाम के साथ मिर्जा लगता था, वे तैमूरी खानदान अथवा मुगल खानदान के शहजादे थे और जिन पुरुषों के नाम के आगे ख्वाजा अथवा खोजा लगता था, वे अधिकांशतः बाबर की बेगम माहम सुल्ताना के पीहर पक्ष के अर्थात् हुमायूँ के ननिहाल से आए हुए थे।

खिज्र ख्वाजा खाँ गुलबदन बेगम का पति था। इस समय वह अपने परिवार के साथ खोस्त में था किंतु उसकी पत्नी गुलबदन बेगम काबुल के किले में कामरान की कैद में थी। कामरान चाहता था कि गुलबदन बेगम और उसका पति खिज्र ख्वाजा खाँ हुमायूँ के पक्ष में रहने की बजाय, कामरान के पक्ष में रहे किंतु जब गुलबदन ने खिज्र ख्वाजा खाँ को बुलाने के लिए पत्र नहीं लिखा तो कामरान ने मेहदी सुल्तान तथा शेर अली नामक दो अमीरों को खिज्र ख्वाजा खाँ को लाने के लिए भेजा।

जिस तरह मुगलिया खानदान में बाबर की बेगम माहम सुल्ताना का अत्यधिक सम्मान एवं आदर था, उसी प्रकार मुगलिया खानदान में बाबर की बहिन खानजादः बेगम और गुलबदन बेगम का भी अत्यधिक सम्मान था, उनकी कोई बात टाली नहीं जाती थी। माहम सुल्ताना एवं खानजादः बेगम तो अब काल के प्रवाह में तिरोहित हो चुकी थीं, इसलिए गुलबदन बेगम का अपने किसी भाई के पक्ष में होने का महत्व अत्यधिक बढ़ गया था।

यदि खोस्त का ख्वाजा परिवार अर्थात् गुलबदन के पति का परिवार कामरान के पक्ष में चला जाता तो हुमायूँ को बदख्शां, खोस्त एवं हेरात के क्षेत्र में नैतिक समर्थन प्राप्त हो जाता और हुमायूँ का पक्ष कमजोर हो जाता। इसलिए कामरान ने गुलबदन बेगम एवं खिज्र ख्वाजा खाँ को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। घमण्डी कामरान ये सब बातें तो जानता था किंतु यह नहीं जानता था कि गुलबदन बेगम और उसके पति का समर्थन पाने के लिए गुलबदन की माता दिलदार बेगम के साथ भी अच्छा व्यवहार करना होगा। चूंकि कामरान ने गुलबदन की माता को उसके महल से निकालकर शस्त्रागार में रहने के आदेश दिए थे, इसलिए कामरान को गुलबदन बेगम का समर्थन कैसे मिल सकता था!

जब बादशाह को ज्ञात हुआ कि कामरान ने खिज्र ख्वाजा खाँ को बुलाया है तो बादशाह हुमायूँ ने भी खिज्र ख्वाजा खाँ को पत्र लिखकर अपने पास आने के लिए लिखा। इस पर खिज्र ख्वाजा खाँ बादशाह हुमायूँ की सेवा में उपस्थित हो गया। उस समय हुमायूँ उकाबैन नामक स्थान पर ठहरा हुआ था।

– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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