ई. 712 में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया। वह पहला मुस्लिम आक्रांता था जिसने भारत की भूमि पर पैर रखा था। उसने सिंध के राजा दाहिर सेन को मार डाला तथा राज परिवार के सदस्यों की नृशंस हत्याएं कीं। हिन्दू प्रजा पर उसने ऐसे-ऐसे अत्याचार किये कि हूणों की याद एक बार फिर से ताजा हो उठी किंतु इस बार हिंदुओं के पास समुद्रगुप्त, चंद्रगुप्त, कुमार गुप्त तथा स्कंदगुप्त जैसे प्रबल प्रतापी सम्राट नहीं थे जो इस अत्याचारी का मार्ग रोक सकते।
हजारों स्त्रियों के साथ बलात्कार हुआ और वे जीवित ही आग में झौंक दी गयीं। बच्चों को लोहे की जंजीरों से बांध कर गुलाम बनाया गया। पुरुषों को तड़पा-तड़पा कर मारा गया। जाने कितने ही लोग हाथियों के पैरों तले कुचल दिये गये। कितनों को अधमरा करके नदियों में फैंक दिया गया।
अधमरे मनुष्यों एवं शवों को खाने के लिये गिद्धों के झुण्ड सिंध की पावन धरा पर मण्डराने लगे। विपुल मात्रा में मांस की गंध पाकर जंगलों से गीदड़ और भेड़िये निकल आये। कुत्ते भी मनुष्यों से अपनी स्वाभाविक मित्रता भूलकर भरी दोपहरी में जीवित मनुष्यों का मांस नोचने लगे। चूहे-बिल्ली तक नरभक्षी हो गये।
सिंध को पैरों तले रौंदकर वह खूनी दरिंदा वन्य पशुओं की तरह डकराता हुआ फिर से अपनी जन्म भूमि को लौट गया। वह अपने साथ अपार सोना, चांदी, हाथी, घोड़े, गुलाम, बच्चे और औरतें ले गया।
मुहम्मद बिन कासिम का बचा हुआ काम पूरा करने का बीड़ा महमूद गजनवी ने उठाया। वह गजनी का रहने वाला था। 1000 ईस्वी से 1027 ईस्वी तक उसने भारत पर सत्रह आक्रमण किये। उसने जब भारत पर पहला आक्रमण किया तो पंजाब के प्रबल प्रतापी महाराजा जयपाल ने विशाल सेना लेकर उसका रास्ता रोका। दुर्दांत गजनवी ने महाराजा जयपाल को युद्ध के मैदान में जीवित ही पकड़ लिया और उनकी बड़ी दुर्गति की। महाराजा के गले में पड़ा मोतियों का हार खींचते हुए गजनवी ने कहा- ‘गुलामों और काफिरों को मोती नहीं पहनना चाहिये।’ महाराजा के सामने ही राज-महिषियों की दुर्गति की गयी। बहुत सी राजकन्याओं ने आग में कूद कर प्राण तज दिये। ये भीषण दृष्य देखकर महाराजा जयपाल को इतनी ग्लानि हुई कि वे जीवित ही अग्नि में प्रवेश कर गये।
गजनवी ने अपने आक्रमणों में कई लाख हिन्दुओं की हत्या की। भारत से अपार धन लूटा। लोगों को गुलाम बनाया और उस काल में सर्वप्रसिद्ध सोमनाथ का मंदिर तोड़ा। मथुरा को नष्ट कर दिया। नगरकोट के प्रसिद्ध मंदिर को लूटा। यद्यपि इतिहास में सोमनाथ आक्रमण को ही अधिक स्थान मिला है किंतु नगरकोट देवी के मंदिर की लूट इतनी बड़ी थी कि इस मंदिर से मिले धन को उठा कर ले जाने के लिये गजनवी के हजारों ऊँट भी कम पड़ गये। इतना सब करने के बाद भी गजनवी पूरी तरह से भारत में इस्लाम न फैला सका।
महमूद गजनवी का बचा हुआ कार्य मुहम्मद गौरी ने अपने हाथ में लिया। वह गौर देश का रहने वाला था। 1178 ईस्वी से 1206 ईस्वी तक उसने भारत पर पच्चीस आक्रमण किये। दिल्लीपति पृथ्वीराज चौहान को हराकर उसने भारत में मुस्लिम राज्य की नींव रखी।
मुहम्मद गौरी ने भारतवर्ष की अपार सम्पत्ति को हड़प लिया जिससे देश की जनता एक साथ ही व्यापक स्तर पर निर्धन हो गयी। मुहम्मद गौरी के गुलामों और सैनिकों ने पूरे देश में भय और आतंक का वातावरण बना दिया। हिन्दू राजाओं का मनोबल टूट गया। हजारों-लाखों ब्राह्मण मौत के घाट उतार दिये गये। स्त्रियों का सतीत्व भंग किया गया। मंदिर एवं पाठशालायें ध्वस्त करके मस्जिदों में परिवर्तित कर दी गयीं। दिल्ली का विष्णुमंदिर जामा मस्जिद में बदल दिया गया। धार, वाराणसी उज्जैन, मथुरा, अजयमेरू, जाल्हुर की संस्कृत पाठशालायें ध्वस्त करके रातों रात मस्जिदें खड़ी कर दी गयीं। अयोध्या, नगरकोट और हरिद्वार जैसे तीर्थ जला कर राख कर दिये गये। बौद्ध धर्म तो हूणों के हाथों पहले ही पराभव को प्राप्त हो चुका था किंतु इस बार हिन्दू धर्म का ऐसा पराभव देखकर जैन साधु उत्तरी भारत छोड़कर नेपाल, श्रीलंका तथा तिब्बत आदि देशों को भाग गये। पूरे देश में हाहाकार मच गया। भारतवर्ष पर वो कहर ढाया गया कि भारत के इतिहास की धारा ही कुण्ठित हो गयी। हिन्दू क्षत्रियों का समस्त गौरव नष्ट हो गया। स्थान-स्थान पर मुस्लिम गवर्नर नियुक्त हो गये। भारत भूमि की हजारों वर्षों से चली आ रही स्वतंत्रता समाप्त हो गयी।