Saturday, December 7, 2024
spot_img

34. भगवान शंकर भूत-प्रेतों को लेकर अर्जुन की परीक्षा लेने आए!

पिछली कथा में हमने चर्चा की थी कि चंद्रवंशी राजाओं की नई पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ियों से बिल्कुल अलग थी। इस पीढ़ी तक आते-आते चंद्रवंशी राजा पूरी तरह मनुष्य बन गए थे यद्यपि उनमें देवताओं का अंश विद्यमान था।

चंद्रवंशी राजाओं की इस पीढ़ी के लिए स्वर्ग के द्वार पहले की तरह खुले हुए नहीं थे। फिर भी महाभारत में आई एक कथा के अनुसार पाण्डु पुत्रों में से अर्जुन को सशरीर स्वर्ग में प्रवेश करने का अवसर मिला था। यह कथा इस प्रकार से है-

जब पाण्डव द्यूत क्रीड़ा में पराजित होकर तेरह वर्ष का वनवास काट रहे थे तब धर्मराज युधिष्ठिर इस बात को लेकर चिंतित रहते थे कि यदि दुर्योधन पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण तथा अश्वत्थामा आदि योद्धाओं को लेकर अचानक ही वन में आ गया तो वह निश्चय ही पांडवों को नष्ट करने में सफल हो जाएगा। त्रिकालदर्शी वेदव्यास को इस चिंता के बारे में पता लग गया। इसलिए वे एक दिन युधिष्ठिर से मिलने के लिए आए।

महर्षि वेदव्यास ने राजा युधिष्ठिर को परामर्श दिया कि अर्जुन तपस्या तथा पराक्रम के कारण देवताओं के दर्शन की योग्यता रखता है। यह नारायण का सहचर महातपस्वी ऋषि नर है। इसे कोई जीत नहीं सकता। यह अच्युतस्वरूप है। इसलिए तुम अर्जुन को अस्त्रविद्या प्राप्त करने के लिए भगवान शंकर, देवराज इंद्र, वरुण, कुबेर और धर्मराज आदि देवताओं के पास भेजो। अर्जुन उनसे अस्त्र प्राप्त करके बड़े पराक्रम करेगा।’

पूरे आलेख के लिए देखें, यह वी-ब्लाॅग-

महर्षि वेदव्यास के चले जाने के पश्चात् महाराज युधिष्ठिर ने अर्जुन से कहा- ‘दुर्योधन ने पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण तथा अश्वत्थामा आदि योद्धाओं को अपने वश में कर लिया है। अब हमें केवल तुमसे ही आशा है। महर्षि वेदव्यास ने मुझे प्रतिस्मृति नामक विद्या सिखाई है। तुम उस विद्या को मुझसे सीख लो। उस विद्या को सीख लेने से मनुष्य को सम्पूर्ण जगत् स्पष्ट दिखाई देने लगता है। इस विद्या को सीख लेने के बाद तुम्हें देवताओं से भी युद्धविद्या एवं शस्त्र आदि प्राप्त करने चाहिए।’

महाराज युधिष्ठिर के आदेश से अर्जुन ने उसी समय ब्रह्मचर्यव्रत धारण किया तथा देवताओं का स्मरण करते हुए अपने गाण्डीव के साथ उत्तर दिशा में चल दिया जहाँ उसकी भेंट देवताओं से हो सकती थी।

To purchase this book, please click on photo.

जब अर्जुन चलने लगा तब द्रौपदी ने उससे कहा- ‘हे वीर! पापी दुर्योधन ने भरी सभा में मुझे बहुत सी अनुचित बातें कही थीं। उन्हें सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ था। अब हम लोगों का जीना-मरना, राज्य और ऐश्वर्य पाना, सब तुम्हारे ही पुरुषार्थ पर अवलम्बित है। मैं ईश्वर से तथा समस्त देवी-देवताओं से तुम्हारी सफलता की कामना करती हूँ।’

अपने भाइयों एवं द्रौपदी से विदा लेकर अर्जुन इतनी तीव्र गति उत्तर दिशा की ओर चला कि वह एक ही दिन में हिमालय पर जा पहुंचा। इसके बाद वह गंधमादन पर्वत पर होता हुआ कई दिन और कई रात तक चलकर इन्द्रकील नामक स्थान पर पहुंचा। वहाँ अर्जुन को एक आवाज सुनाई दी- ‘खड़े हो जाओ!’

अर्जुन ने रुककर चारों ओर देखा तो उसे एक वृक्ष के नीचे एक तपस्वी बैठा हुआ दिखाई दिया। उस तपस्वी ने अर्जुन से पूछा- ‘तुम कौन हो तथा तपस्वियों की इस भूमि में शस्त्र लेकर क्यों चले आए हो? यहाँ शस्त्रों का कोई काम नहीं है इसलिए अपने शस्त्र फैंक दो।’

तपस्वी की बात सुनकर अर्जुन को बड़ा विस्मय हुआ किंतु अर्जुन अपने स्थान पर खड़ा रहा, उसने अपने शस्त्रों का त्याग नहीं किया। तपस्वी ने अर्जुन से कई बार शस्त्र फैंकने को कहा किंतु अर्जुन उसी प्रकार खड़ा रहा। अर्जुन को अविचल देखकर उस तपस्वी ने कहा- ‘वत्स! मैं इन्द्र हूँ, तुम्हारे धैर्य की परीक्षा लेने के लिए आया हूँ। मैं तुमसे प्रसन्न हूँ। तुम जो चाहो, मुझसे मांग सकते हो।’

इस पर अर्जुन ने दोनों हाथ जोड़कर कहा- ‘भगवन्! मैं आपसे सम्पूर्ण अस्त्र-विद्या सीखना चाहता हूँ। आप मुझे यही वर दीजिए।’

इन्द्र ने कहा- ‘तुम अस्त्र विद्या सीखने की बजाय मुझसे मन चाहे ऐश्वर्य भोग मांग लो।’

अर्जुन ने कहा- ‘मैं लोभ, काम, देवत्व, सुख अथवा ऐश्वर्य के लिए अपने भाइयों को वन में नहीं छोड़ सकता। मैं तो अस्त्र-विद्या सीखकर अपने भाइयों के पास लौट जाउंगा।’

इन्द्र ने अर्जुन को समझाया- ‘हे वीर! जब तुम्हें भगवान शंकर के दर्शन होंगे, तब मैं तुम्हें दिव्य अस्त्र दूंगा। अतः तुम उनके दर्शन प्राप्त करने का उद्यम करो। उनकी कृपा से तुम स्वर्ग में जाओगे।’ इतना कहकर इन्द्र अन्तर्धान हो गए।

इन्द्र के जाने के बाद अर्जुन ने फिर से आगे बढ़ना आरम्भ किया। एक दिन वह हिमालय को पार करके एक कंटीले जंगल में जा पहुंचा। अर्जुन ने उसी कंटीले वन में रहकर भगवान शंकर की उपासना करने का निश्चय किया। अर्जुन ने एक मास तक तीन दिन में एक बार सूखे पत्ते खाए। दूसरे मास में छः दिन में एक बार तथा तीसरे मास में पंद्रह-पंद्रह दिन में एक बार सूखे पत्ते खाकर तपस्या की। चौथे महीने में दोनों बांह उठाकर पैर के अंगूठे की नोक पर निराहार खड़े रहकर तपस्या की। नित्य जल में स्नान करने के कारण उसकी जटाएं पीले रंग की हो गईं।

एक दिन भगवान शंकर भील का रूप धरकर अर्जुन के समक्ष प्रकट हुए। माता पार्वती तथा बहुत से भूत-प्रेत भी भील-भीलनी के वेश में उनके साथ हो लिए। जिस समय भगवान शंकर अर्जुन के समक्ष प्रकट हुए, ठीक उसी समय एक भयानक दानव शूकर रूप धारण करके अर्जुन को मारने के लिए चुपचाप घात लगाकर बैठ गया।

अर्जुन ने शूकर को देख लिया और गाण्डीव पर बाण चढ़ाकर बोला- ‘दुष्ट तू मुझ निरअपराध को मारना चाहता है। ले तू ही मर! मैं तुझे यमराज के हवाले करता हूँ।’

जैसे ही अर्जुन ने बाण छोड़ना चाहा, वैसे ही भील वेष धारी भगवान शंकर ने अर्जुन से कहा- ‘तुमसे पहले मैंने इसे देखा है, इसलिए तुम इसे मत मारो, मैं इसे मारूंगा।’

अर्जुन ने भील की बात पर ध्यान नहीं दिया तथा अपना बाण शूकर पर छोड़ दिया। उसी समय भगवान शंकर ने भी अपना बाण चलाया। दोनों ही बाण शूकर के शरीर में धंसकर एक दूसरे से टकराए जिसके कारण भयानक आवाज हुई। शूकर दानव रूप में प्रकट होकर मर गया।

अर्जुन ने भगवान शिव से कहा- ‘तू कौन है और अपनी मण्डली के साथ इस वन में क्यों घूम रहा है? यह शूकर मुझे मारना चाहता था, इसलिए मैंने इस पर बाण चलाया, तूने इसका वध क्यों किया! अब मैं तुझे जीता नहीं छोड़ूंगा।’ 

भील रूप धारी भगवान भोले नाथ ने कहा- ‘इस शूकर पर मैंने तुमसे पहले प्रहार किया। इसे मारने का विचार मैंने तुमसे पहले ही कर लिया था। यह मेरा शिकार था, मैंने ही इसे मारा है।’

भील की बात सुनकर अर्जुन ने भील पर बाणों की वर्षा कर दी। भगवान ने उन सभी बाणों को पकड़ लिया। यह देखकर अर्जुन के आश्चर्य की सीमा नहीं रही। जब अर्जुन के बाण समाप्त हो गए तो उसने भगवान को अपने धनुष की नोक से मारना आरम्भ किया। इस पर भगवान ने अर्जुन का धनुष भी छीन लिया। अर्जुन ने तलवार उठाई तो भगवान ने तलवार भी तोड़कर फैंक दी। इस पर अर्जुन ने भगवान को घूंसे से मारा। भगवान ने भी अर्जुन में एक घूंसा लगाया तथा उसे अपनी भुजाओं में पकड़ लिया। अर्जुन बेसुध होकर धरती पर गिर पड़ा।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

1 COMMENT

  1. Hi there, just became aware of your blog through Google, and found that
    it’s really informative. I’m going to watch out for brussels.
    I’ll be grateful if you continue this in future.
    A lot of people will be benefited from your writing.
    Cheers! Escape room lista

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source