Sunday, December 8, 2024
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46. माहम अनगा

अकबर की बहुत सी धायें और आयाएं थीं। उनमें से कुछ तो शिशु अकबर को स्तनपान करवाती थीं और कुछ उसकी सेवा टहल करती थीं। इन आयाओं के पतियों के पास कोई काम-धाम नहीं होता था और वे दिन भर बेकार बैठे हुए आपस में जुआ खेलते रहते थे। वे लोग हरम के हिंजड़ों से हँसी-ठिठोली करते, एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिये नित्य नये षड़यंत्र रचते और बात-बात पर छुरे निकाल कर एक दूसरे को मारने के लिये दौड़ते थे। जब आयाएं हरम में जाती थीं तो वे इन झगड़ों को अपने साथ ले जाती थीं और अपने-अपने खाविंद का पक्ष लेकर दूसरी आयाओं के खाविंदों पर दोषारोपण करती रहती थीं। पूरा हरम इन खाविंदों की चुगलियों और बुराइयों से गूंजता था।

इन आयाओं में सर्वप्रमुख माहम अनगा थी जिसके पति शम्सुद्दीन ने चौसा की लड़ाई में पराजित होकर भागते हुए हुमायूँ को गंगाजी में डूबने से बचाया था। हुमायूँ ने उपकृत होकर इस भिश्ती को अतगा[1]  खाँ की उपाधि दी थी जिससे उसका दिमाग फिर गया था। माहम अनगा का लड़का आदमखाँ तथा जंवाई शियाबुद्दीन भी बहुत ही बदमाश और घमण्डी थे तथा किसी की भी परवाह नहीं करते थे। माहम अनगा और उसका परिवार यदि किसी से भय खाते थे तो वह था बैरामखाँ।

अकबर के बालक होने के कारण जिस प्रकार शासन और सत्ता का प्रबंध बैरामखाँ करता था उसी प्रकार अंतःपुर का प्रबंध माहम अनगा के हाथ में था। माहम अनगा ने अकबर की माता हमीदा बानू को अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से वश में कर रखा था।

माहम अनगा नीच स्वभाव की महत्वाकांक्षिणी स्त्री थी। साधारण भिश्ती की स्त्री से बादशाह की धाय बन जाने से उसका दिमाग फिर गया था। वह अकबर को अपना पुत्र और बैरामखाँ को अपने पुत्र का नौकर समझती थी। इस नाते वह बैरामखाँ को सहन करने को तैयार नहीं थी और उसके विरुद्ध अकबर के कान भरती रहती थी। वस्तुतः अकबर को बैरामखाँ से जो चिढ़ होने लगी थी उसका कारण माहम अनगा ही थी।

अकबर घुमा फिरा कर ही सही किंतु ये सब बातें बैरामखाँ को कह ही देता था ताकि बैरामखाँ यह न समझे कि अकबर को कुछ पता नहीं है। एक बार बैरामखाँ ने शम्सुद्दीन अत्तका को रोक कर आँखें तरेरीं- ‘मैं कभी-कभी बादशाह को तुम्हारी चुगली और चांटी से खिंचा हुआ पाता हूँ। मैंने क्या किया है और तुम क्यों मेरे खून के प्यासे होकर बादशाह का मिजाज मुझसे फिरा रहे हो?’

अत्तका डर गया। उसने अपने बहुत से आदमियों को एकत्र किया और खानखाना के भी कई विश्वासपात्र आदमियों को लेकर खानखाना के डेरे पर पहुँचा। अत्तका बैरामखाँ के पैरों पर गिर कर खूब गिड़गिड़ाया। बैरामखाँ ने उसे भविष्य में सावधान रहने के लिये कहकर माफी दे दी।

जब यह सारी बात माहम अनगा को पता चली तो वह सर्पिणी की तरह फुंकार उठी। एक बदजात नौकर की इतनी मजाल कि बादशाह की धाय के खाविंद को धमकाये। उसने मन ही मन बैरामखाँ का सत्यानाश करने का संकल्प ले लिया।


[1] धातृ-पतियों को अत्तका भी कहा जाता था।

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