Saturday, July 27, 2024
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47. आगरा से पलायन

जब दिल्ली पर काबिज होने के चार साल पूरे होने को आये तो बैरामखाँ और अकबर राजकीय कार्य के सिलसिले में दिल्ली से आगरा गये। बैरामखाँ तो आगरा पहुँच कर राजकीय कार्यों में व्यस्त हो गया और अकबर सदा की तरह शिकार और खेलों में लग गया। हालांकि अब वह अठारह साल का कड़ियल जवान था और शासन के मामलों को बेहतर समझ सकता था किंतु उसकी तबियत शिकार खेलने और मौज मस्ती करने में ही अधिक लगती थी।

एक दिन जब अकबर शिकार खेलने के लिये आगरा के बाहर स्थित घने जंगलों में गया हुआ था तब वहीं माहम अनगा के गुप्तचर उसकी सेवा में हाजिर हुए। उन्होंने अकबर से कहा- ‘आपकी माँ मलिका हमीदा बानू सख्त बीमार हैं और उन्होंने कहलवाया है कि यदि बादशाह सलामत अपनी माँ को आखिरी बार देखना चाहता हैं तो बिना वक्त गंवाये, जैसे खडे़ हैं, वैसे ही चले आयें।’

पितृहीन अकबर माता के प्राण संकट में जानकर उसी क्षण मिरजा अबुल कासिम[1]  को साथ लेकर दिल्ली के लिये रवाना हो गया और बैरामखाँ को अपने दिल्ली जाने की खबर भिजवा दी। जैसे ही अकबर दिल्ली पहुँचा तो उसे हरम की औरतों ने घेर लिया। कहने की आवश्यकता नहीं कि उन औरतों का नेतृत्व माहम अनगा कर रही थी।

अकबर को यह देखकर संतोष हुआ कि उसकी माँ बिल्कुल सुरक्षित है।

– ‘हमने तो सुना था कि मलिका ए आलम की तबियत नासाज है?’

हमीदा बानू कुछ बोलती उससे पहले माहम अनगा बड़े नाज-नखरों से अकबर की बलैयाएं लेती हुई बोली- ‘मलिका क्यों बीमार पड़ने लगी? बीमार पड़े हमारा दुश्मन, वह मुआ बैरामखाँ। मौत ले जाये उसे खींचकर।’

– ‘फिर अचानक क्यों आपने हमें दिल्ली बुलवाया? वह भी मलिका की तबियत बहुत खराब होने की झूठी सूचना देकर?’ अकबर माहम अनगा के जवाब से हैरान रह गया।

– ‘बादशाह सलामत को अचानक दिल्ली इस लिये बुलवाया गया है कि हमें यह खबर लगी थी नमक हराम बैरामखाँ आगरा में बादशाह के साथ दगा करके स्वयं बादशाह बनने की तैयारी कर रहा है।’

– ‘किस ने दी ऐसी झूठी खबर?’ अकबर ने पूछा।

– ‘खबर बहुत ही भरोसे के आदमी ने लाकर दी और हमें यहाँ इस बात के सबूत भी मिले हैं।’ हमीदा बानू ने जवाब दिया।

अकबर ने माहम अनगा को दिलासा दी- ‘आप फिक्र न करें। खानबाबा का गुस्सा जरूर तेज है जिसके कारण उन्होंने कई ज्यादतियाँ की हैं किंतु ऐसी कोई बात नहीं है कि वे बादशाह के साथ दगा करें।’

 जब माहम अनगा की बात नहीं चली तो हमीदा बानू सामने आयी। उसने कहा- ‘यह ठीक है कि बैरामखाँ आज ऐसा नहीं करने वाला किंतु एक न एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जब वह ऐसा करने की सोचे। इसलिये जरूरी है कि तुम अभी बैरामखाँ से छुटकारा पा लो।’

अकबर ने माँ की बात को ध्यान से सुना और मौके पर उचित निर्णय लेने का भरोसा दिया। इस पर माहम अनगा ने नया पासा फैंका। उसने अकबर से कहा- ‘मुझे मक्का जाने की इजाजत दी जाये।’

– ‘क्यों?’ अकबर चौंका।

– ‘इसलिये कि यह बात बैरामखाँ तक जरूर पहुंचेगी। जब उसे पता लगेगा कि मैंने उसकी शिकायत की है तो वह जरूर या तो मुझे मार डालेगा या फिर अत्तका[2]  को।’

– ‘लेकिन उसे पता ही कैसे लगेगा कि आपके और मेरे बीच में क्या बात हुई है?’

– ‘क्योंकि उसके जासूस यहाँ भी मौजूद होंगे।’

– ‘चलो मान भी लिया जाये कि उसके जासूस यहाँ भी मौजूद होंगे लेकिन क्या उसकी इतनी हिम्मत होगी कि वह आप पर तेग उठाये?’

– ‘जब वह अत्तका को सबके सामने जान से मारने की धमकी दे सकता है तो क्या वह ऐसा नहीं कर सकता?’

भले ही अकबर माहम अनगा और हमीदा बानू की बातों को मानने से इन्कार कर रहा था किंतु ऐसा वह केवल उन्हें दिलासा देने के लिये कर रहा था। जब उसने अत्तका को बुलाकर सच्चाई जाननी चाही तो न केवल अत्तका अपितु सैंकड़ों आदमी बैरामखाँ की चुगलियों पर उतर आये। माहम अनगा ने दिल्ली, लाहौर और काबुल के सूबेदारों को पहले से ही बुला रखा था। उन्होंने भी बैरामखाँ की ज्यादतियाँ बढ़ा-चढ़ा कर अकबर से कहीं। अब अकबर के पास उनकी बात मान लेने के अलावा और कोई चारा नहीं था।

माहम थी तो भिश्ती परिवार से किंतु लम्बे समय से राजघराने में रहकर राजनीति की चतुर खिलाड़ी हो गयी थी। उसने बादशाह को विचार मग्न देखकर कहा- ‘यह आपने बहुत ही अच्छा किया जो मिरजा अबुल कासिम को अपने साथ लेते आयेे।’

– ‘यदि मिरजा अबुल कासिम हमारे साथ नहीं आते तो क्या कोई विशेष बात हो जाती?’ अकबर ने पूछा।

– ‘क्या शहंशाह को पता है कि बैरामखाँ हमेशा से मिरजा को अपने साथ क्यों रखता है?’ माहम अनगा ने उलट कर सवाल किया।

– ‘क्या इसमें भी किसी तरह का भेद है?’ अकबर के चेहरे पर असमंजस के चिह्न प्रकट हुए।

– ‘यही तो आप समझते नहीं बादशाह सलामत! अबुल कासिम बैरामखाँ का वो मोहरा है जिसे उसने आफत के समय के लिये संभालकर रखा हुआ है।’

– ‘आप क्या कह रही हैं मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा!’

– ‘मिरजा कासिम को बैरामखाँ ने इसलिये अपने साथ रखा हुआ है कि जब भी आप उसकी बात मानने से इन्कार करें तो बैरामखाँ आपके स्थान पर मिरजा को तख्त पर बैठा सके। बाबर का वंशज होने के कारण बाकी अमीर भी अबुल कासिम को अपना बादशाह स्वीकार कर लेंगे।’

माहम अनगा की बात सुनकर अकबर की आँखें फटी की फटी रह गयीं। कई बार खुद अकबर ने महसूस किया था कि बैरामखाँ मिरजा अबुल कासिम को बहुत अधिक तवज्जो दिया करता है। क्या वाकई में बैरामखाँ इतना शातिर आदमी है! माहम अनगा की इस बात से अकबर पूरी तरह माहम के वश में हो गया।

माहम अनगा की सलाह पर अकबर ने सारे अमीरों को पत्र लिखकर सूचित किया कि खानखाना बैरामखाँ उलटा चलता है जिससे हम उसे अपनी नजरों से गिराकर यहाँ दिल्ली चले आये हैं। जो अमीर अपना भला चाहता है तो वह यहाँ हाजिर हो जाये।

जब बादशाह आगरा से दिल्ली आ रहा था तो खुरजे[3]  में माहम अनगा का जंवाई शहाबुद्दीन अहमदखाँ अपने सब भाई बंदों के साथ बादशाह की पेशवाई के लिये हाजिर हुआ था और वहीं से बादशाह के संग लग लिया था। जब उसने बादशाह को अपनी सास के अधीन देखा तो अपने श्वसुर शमशुद्दीन खाँ अत्तका को बहीर[4]  से और मुनअमखाँ को काबुल से दिल्ली चले आने के लिये लिखा। जब शमशुद्दीन आया तो अकबर ने बैरामखाँ का नक्कारा, निशान और तुमन तौग शमशुद्दीन को दे दिये तथा पंजाब का सूबेदार भी बना दिया।

जब माहम अनगा के समधी मुहम्मद बरकी[5]  को ये सब समाचार मालूम हुए तो उसने बैरामखाँ को सारा हाल लिख भेजा। बैरामखाँ ने अकबर की कोई परवाह नहीं की।


[1] यह मिरजा कामरान का बेटा था।

[2] धाय का पति

[3] दिल्ली और अलीगढ़ के बीच स्थित है।

[4] पंजाब में लाहौर के पास था। अब पाकिस्तान में है।

[5]  माहम अनगा के बेटे अहमदखां का ससुर।

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