Saturday, December 7, 2024
spot_img

शामूगढ़ का युद्ध

दारा और औरंगजेब की सेनाएं शामूगढ़ के मैदान में आमने-सामने खड़ी थी। शामूगढ़ का युद्ध शाहजहाँ के शहजादों के भाग्य पर अंतिम मुहर लागने वाला था।

महाराजा रूपसिंह की तलवार औरंगजेब की गर्दन तक पहुँच ही गई! महाराजा रूपसिंह के सिर पर आज जैसे रणचण्डी स्वयं आकर सवार हो गई थी। इसलिए महाराजा रूपसिंह का अप्रतिम रूप, युद्ध के उन्माद से ओत-प्रोत होकर और भी गर्वीला दिखाई देने लगा था।

महाराजा ने दारा को सलाह दी कि वह शामूगढ़ का युद्ध प्रत्यक्ष रूप से न लड़े। अपितु अपना ध्यान औरंगज़ेब पर केन्द्रित रखे तथा मौका मिलते ही उसके निकट जाकर उसे पकड़ ले। मैं अपने राजपूतों सहित आपकी पीठ दबाए हुए बढ़ता रहूंगा। मेरे पीछे राजा छत्रसाल रहेंगे। यदि भाग्य लक्ष्मी ने साथ दिया तो दुष्ट औरंगज़ेब का खेल आज शाम से पहले ही खत्म हो जाएगा।

महाराजा की बातों से दारा को बड़ी तसल्ली मिली। दारा ने बलख और बदखशां में महाराजा की तलवार के जलवे देखे थे। इसलिए वह दूने उत्साह में भरकर एक ऊँची सी सिंहलद्वीपी हथिनी पर सवार हो गया जो हर प्रकार की बाधा के बावजूद भागने में बहुत तेज थी तथा दुश्मन के घोड़ों के पैर, अपने पैरों में बंधी तलवारों से गाजर-मूली की तरह काटती हुई चलती थी।

ज्यों ही शामूगढ़ का युद्ध शुरू हुआ, दोनों तरफ की मुगल सेनाओं ने आग बरसानी शुरू कर दी। राजपूत सेनाओं को इसीलिए शाही सेनाओं के बीच में रखा गया था ताकि वे तोपों की मार से दूर रहें। थोड़ी ही देर में मैदान में बारूद का धुआं छा गया और कुछ भी दिखाई देना मुश्किल हो गया।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

ठीक इसी समय महाराजा रूपसिंह ने दारा शिकोह को आगे बढ़ने का संकेत किया और दारा शिकोह पहले से ही तय योजना के अनुसार औरंगज़ेब के हाथी की दिशा को अनुमानित करके उसी तरफ बढ़ने लगा। महाराजा रूपसिंह उसकी पीठ दबाए हुए दारा के पीछे-पीछे औरंगजेब का काल बना हुआ चल रहा था।

बारूद के धुंए के कारण कोई नहीं जान पाया कि कब और कैसे दारा की हथिनी, औरंगज़ेब के हाथी के काफी निकट पहुँच गई। सब कुछ योजना के अनुसार हुआ था। इस समय औरंगज़ेब के चारों ओर उसके सिपाहियों की संख्या कम थी और दारा शिकोह तथा महाराजा रूपसिंह थोड़े सी हिम्मत और प्रयास से औरंगज़ेब पर काबू पा सकते थे किंतु विधाता को यह मंजूर नहीं था। उसने औरंगज़ेब के भाग्य में दूसरी ही तरह के अंक लिखे थे।

To purchase this book, please click on photo.

दारा और रूपसिंह अपनी योजना को कार्यान्वित कर पाते, उससे पहले ही आकाश से बारिश शुरू हो गई और मोटी-मोटी बूंदें गिरने लगी। इस बारिश का परिणाम यह हुआ कि धुंआ हट गया और मैदान में सारे हाथी-घोड़े तथा सिपाही साफ दिखने लगा।

औरंगज़ेब ने दारा की हथिनी को बिल्कुल अपने सिर पर देखा तो घबरा गया लेकिन औरंगज़ेब के आदमियों ने औरंगज़ेब पर आए संकट को भांप लिया और वे भी तेजी से औरंगज़ेब के हाथी की ओर लपके।

उधर जब औरंगज़ेब के तोपखाने के मुखिया ने देखा कि बारिश के कारण उसकी तोपें बेकार हो गई हैं, तो उसने तोपखाने के हाथी खोलकर दारा की सेना पर हूल दिए। इससे दारा की सेना में भगदड़ मच गई। बहुत से सिपाही हाथियों की रेलमपेल में फंसकर कुचल गए।

इधर महाराजा रूपसिंह हाथ आए इस मौके को गंवाना नहीं चाहता था। इसलिए जब उसने देखा कि दारा अपनी हथिनी को आगे बढ़ाने में संकोच कर रहा है तो महाराजा अपने घोड़े से कूद गया और हाथ में नंगी तलवार लिए हुए औरंगजेब की तरफ दौड़ा।

दारा ने महाराजा रूपसिंह को तलवार लेकर पैदल ही औरंगज़ेब के हाथी की तरफ दौड़ते हुए देखा तो दारा की सांसें थम सी गईं। उसे इस प्रकार युद्ध लड़ने का अनुभव नहीं था।

रूपसिंह तीर की तेजी से बढ़ता जा रहा था और दारा कुछ भी निर्णय नहीं ले पा रहा था। इससे पहले कि औरंगज़ेब का रक्षक दल कुछ समझ पाता महाराजा उन्हें चीरकर औरंगज़ेब के हाथी के बिल्कुल निकट पहुँच गया। महाराजा ने बिना कोई क्षण गंवाए औरंगज़ेब के हाथी के पेट पर बंधी रस्सी को अपनी तलवार से काट डाला।

यह औरंगज़ेब की अम्बारी की मुख्य रस्सी थी जिसके कटने से औरंगज़ेब नीचे की ओर गिरने लगा। महाराजा ने चाहा कि औरंगज़ेब के धरती पर गिरकर संभलने से पहले ही वह औरंगज़ेब की गर्दन उड़ा दे ताकि शामूगढ़ का युद्ध दारा शिकोह के माथे पर जीत का सेहरा बांध सके किंतु तब तक औरंगज़ेब के सिपाही, महाराजा रूपसिंह के निकट पहुँच चुके थे।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source