Saturday, July 27, 2024
spot_img

110. मलिक काफूर कर्ण बाघेला की पुत्री देवलदेवी को उठा लाया!

अल्लाउद्दीन खिलजी का सपना पूरे भारत पर अधिकार करने का था। दक्षिण भारत के राज्यों की विपुल सम्पत्ति अल्लाउद्दीन को आकृष्ट करती थी। उत्तर भारत के अभियानों के कारण सेना तथा शासन का व्यय बहुत बढ़ गया था। इसलिए अब उसने दक्षिण भारत के लिए अभियान की योजना बनाई।

अल्लाउद्दीन खिलजी यह देखकर हैरान था कि उत्तर भारत को जीतने में हुए व्यय की तुलना में इन राज्यों से धन की प्राप्ति बहुत कम हुई थी। इसकी पूर्ति दक्षिण के धन से हो सकती थी। इस समय तक अल्लाउद्दीन की सेना अत्यंत विशाल हो चुकी थी। इस कारण अल्लाउद्दीन चाहता था कि उसकी सेना किसी न किसी अभियान में संलग्न रहे ताकि सुल्तान के विरुद्ध विद्रोह न कर सके। इन सब कारणों से उसने दक्षिण भारत के विरुद्ध अभियान आरम्भ किया।

दक्षिण भारत की भौगोलिक असुविधाओं तथा उत्तर भारत से दूरी के कारण अब तक कोई अन्य तुर्की सुल्तान दक्षिण भारत पर अभियान करने का साहस नहीं कर सका था। ई.1305 तक मारवाड़ के जालोर एवं सिवाना आदि छोटे राज्यों को छोड़कर लगभग शेष उत्तरी भारत के राज्यों को जीत लिया गया था। इसलिए ई.1306 में दक्षिण विजय का अभियान आरम्भ किया गया जो ई.1312 तक चलता रहा।

इस समय दक्षिण भारत में चार प्रमुख हिन्दू राज्य थे-

(1.) देवगिरी राज्य, इस पर यादवों का शासन था, इसकी राजधानी देवगिरि थी।

(2.) तेलंगाना राज्य जहाँ काकतीय वंश का शासन था, इसकी राजधानी वारांगल थी।

(3.) होयसल राज्य जहाँ होयसल वंश का शासन था, इसकी राजधानी द्वारसमुद्र थी।

(4.) मदुरा का राज्य जहाँ पांड्य वंश का शासन था, इसकी राजधानी मदुरा थी।

इस रोचक इतिहास का वीडियो देखें-

हालांकि अल्लाउद्दीन खिलजी के दक्षिण अभियान की अवधि ई.1306 से 1312 मानी जाती है किंतु वारांगल का एक अभियान ई.1302 में ही कर लिया गया था। इस अभियान का नेतृत्व मरहूम नुसरत खाँ के भतीजे तथा वारिस छज्जू खाँ और गाजी मलिक के पुत्र जूना खाँ को दिया गया था। यही जूना खाँ आगे चलकर मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से सुल्तान बना था। छज्जू खाँ और जूना खाँ बंगाल से उड़ीसा होते हुए तेलंगाना पहुंचे। उन दिनों तेलंगाना की राजधानी वारांगल थी जहाँ काकतीय वंश का राजा प्रताप रुद्रदेव (द्वितीय) शासन करता था। मुसलमान इतिहासकारों ने उसे लदरदेव के नाम से पुकारा है। इस युद्ध में राजा प्रताप रुद्रदेव ने तुर्की सेना को परास्त कर दिया। इसलिए अनेक मुस्लिम इतिहासकारों ने इस युद्ध का उल्लेख नहीं किया है।

कुछ इतिहासकारों ने अल्लाउद्दीन को पराजय के कलंक से बचाने के लिए लिखा है कि इस अभियान के माध्यम से अल्लाउद्दीन खिलजी वारांगल को अपने राज्य में सम्मिलित नहीं करना चाहता था अपितु उसका लक्ष्य केवल धन प्राप्त करना था। इस प्रकार अल्लाउद्दीन खिलजी का दक्षिण भारत का प्रथम अभियान विफल हो गया।

To purchase this book, please click on photo.

ई.1306 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने नए सिरे से दक्षिण भारत के लिए अभियान आरम्भ किए। अल्लाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत के अभियानों की जिम्मेदारी अपने गुलाम मलिक काफूर को सौंपी जो खम्भात से खरीद कर लाया गया एक हिन्दू लड़का था और उसे खवासरा अर्थात् नपुंसक बनाकर एवं इस्लाम में परिवर्तित करके सुल्तान की सेवा में रखा गया था। अल्लाउद्दीन ने मलिक काफूर को दक्षिण अभियान के लिए एक विशाल सेना प्रदान की।

एक ही सेनापति को समस्त सैनिक अभियानों की जिम्मेदारी देना सुल्तान तथा सल्तनत दोनों के लिए खतरे की घण्टी थी। इतिहास स्वयं को दोहरा सकता था और जैसा छल अल्लाउद्दीन खिलजी ने अपने पूर्ववर्ती सुल्तान अपने ताऊ और श्वसुर जलालुद्दीन खिलजी के साथ किया था, ठीक वैसा ही व्यवहार स्वयं अल्लाउद्दीन के साथ मलिक काफूर द्वारा किया जा सकता था।

कड़ा का गवर्नर रहते हुए अल्लाउद्दीन देवगिरि को जीतकर लूट चुका था। सुल्तान बनने के बाद अल्लाउद्दीन ने मलिक काफूर को फिर से देवगिरि के विरुद्ध अभियान पर भेजा। इसके दो प्रमुख कारण थे। पहला तो यह कि देवगिरि के राजा रामचन्द्र ने पूर्व में दिए गए अपने वचन के अनुसार दिल्ली को कर नहीं भेजा था और दूसरा यह कि रामचन्द्र ने गुजरात के राजा राय कर्ण बघेला तथा उसकी पुत्री देवल देवी को अपने यहाँ शरण दी थी।

अल्लाउद्दीन खिलजी देवलदेवी को प्राप्त करना चाहता था और देवगिरि पर फिर से अपनी सत्ता स्थापित करना चाहता था। मलिक काफूर तथा अल्प खाँ की संयुक्त सेनाओं ने एलिचपुर पर अधिकार करके वहाँ तुर्की गवर्नर नियुक्त कर दिया। इसके बाद मलिक काफूर ने देवगिरि पर आक्रमण किया। राजा रामचंद्र यादव दो महीने तक बड़ी वीरता के साथ तुर्की सेना का सामना करता रहा परन्तु विशाल तुर्की सेना के समक्ष उसके पैर उखड़ गए। उसने आत्मसमर्पण कर दिया।

राजा कर्ण बघेला ने अपनी पुत्री देवलदेवी का विवाह राजा रामचंद्र के पुत्र शंकरदेव के साथ करना निश्चित किया था किंतु कर्ण बघेला और रामचंद्र, दोनों ही राजकुमारी देवलदेवी की रक्षा नहीं कर सके। राजकुमारी को विवाह मण्डप से उठा लिया गया। मलिक काफूर ने राजकुमारी को बंदी बना लिया तथा सुल्तान के हरम में शामिल करने के उद्देश्य से दिल्ली ले गया। कुछ दिन बाद अल्लाउद्दीन खिलजी के शहजादे खिज्र खाँ से देवल देवी का विवाह कर दिया गया। इस प्रकार माता कमलावती अल्लाउद्दीन की बेगम बन गई तथा पुत्री देवल देवी शहजादे की बेगम बन गई।

मलिक काफूर ने सम्पूर्ण देवगिरि राज्य को उजाड़ दिया तथा राजमहलों से अपार धन एकत्रित किया। मलिक काफूर ने उस धन को यादव राजा रामचन्द्र के साथ अपने सैनिकों के संरक्षण में दिल्ली भेज दिया। राजा रामचंद्र ने इस बार भी सुल्तान अल्लाउद्दीन खिलजी को अपार धन भेंट किया जिससे प्रसन्न होकर अल्लाउद्दीन ने राजा रामचन्द्र के साथ अच्छा व्यवहार किया तथा उसे ‘राय रय्यन’ की उपाधि दी। इस कारण रामचन्द्र ने फिर कभी अल्लाउद्दीन के विरुद्ध विद्रोह नहीं किया और न कभी अल्लाउद्दीन की सेनाओं ने देवगिरि पर पुनः अभियान किया।

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

21,585FansLike
2,651FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles

// disable viewing page source