Thursday, March 28, 2024
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मौलाना आजाद द्वारा जिन्ना और प्रस्तावित पाकिस्तान का विरोध

मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अपनी पुस्तक इण्डिया विन्स फ्रीडम में अनेक स्थानों पर पाकिस्तान निर्माण के सिद्धांत के विरोध में अपने विचार प्रकट किए हैं। उनका जन्म 1988 में मक्का में हुआ था। वे अरबी, उर्दू, हिन्दी, संस्कृत, और अंग्रेजी के प्रसिद्ध विद्वान थे। उनकी शिक्षा काहिरा के अल अजहर में हुई थी।

मौलाना अपने समय के सर्वाधिक बुद्धिमान मुस्लिम नेताओं में गिने जाते थे। वे जिन्ना के पाकिस्तान में नहीं, अपितु गांधीजी के भारत में रहना चाहते थे। वे भारत के मुसलमानों को भावी पाकिस्तान के सीमित संसाधनों की बजाय विशाल भारत के समस्त प्राकृतिक संसाधनों को भोगते हुए देखना चाहते थे। वे जानते थे कि किस रोटी पर मक्खन अधिक लगा हुआ है!

एक स्थान पर वे लिखते हैं- ‘मुस्लिम लीग की पाकिस्तान वाली योजना पर मैंने हर दृष्टि से सोचा-विचारा है। हिन्दुस्तानी की हैसियत से देश की पूरी इकाई पर भविष्य में क्या असर पड़ेगा, इस पर गौर किया है। मुसलमान की हैसियत से, हिन्दुस्तान के मुसलमानों की किस्मत पर इसका क्या असर पड़ सकता है, इसका अन्दाजा लगाया है। इस येाजना के सभी पहलुओं पर गौर करने पर मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूँ कि यह न सिर्फ पूरे हिन्दुस्तान के लिए नुक्सान-देय है बल्कि मुसलमानों के लिए खास तौर पर है और दरअसल इससे तो जो मसले सुलझते हैं उससे कहीं ज्यादा पैदा होते हैं।’

मुहम्मद अली जिन्ना जब भी कांग्रेस के किसी मुस्लिम प्रतिनिधि को किसी भी सरकारी समिति में सदस्य या सरकार में मंत्री बनाए जाने का विरोध करता था तो उसका सीधा असर मौलाना अबुल कलाम आजाद पर पड़ता था। क्योंकि वे कांग्रेस के मुस्लिम सदस्य थे और जिन्ना किसी भी मुसलमान को इस शर्त पर सरकार में शामिल होने दे सकता था जब वह कांग्रेस का न होकर मुस्लिम लीग का सदस्य हो। इसलिए मौलाना अबुल कलाम आजाद सदैव जिन्ना के विरोधी रहे। मौलाना ने जिन्ना द्वारा मांगे जा रहे मुसलमानों के भावी अलग देश के ‘पाकिस्तान’ नाम का विरोध किया।

15 अप्रेल 1946 को उन्होंने एक वक्तव्य प्रकाशित करवाया जिसमें कहा गया-

‘यह नाम मेरी तबियत के खिलाफ है। इसका आशय है कि दुनिया का कुछ हिस्सा पाक है और बाकी नापाक। इस तरह दुनिया को पाक और नापाक हिस्सों में बांटना इस्लाम की रूह को गलत साबित करना है। इस्लाम में ऐसे बंटवारे की कोई गुंजाइश नहीं क्योंकि हजरत मुहम्मद ने कहा है- खुदा ने मेरे लिए सारी दुनिया ही मस्जिद बनाई है।

इसके अलावा पाकिस्तान की योजना मुझे पराजय का प्रतीक मालूम होती है जो यहूदियों की मांग के नमूने पर तैयार की गई है। यह तो मान लेना है कि पूरे हिन्दुस्तान की इकाई में मुसलमान अपने पैरों पर टिक नहीं सकेंगे इसलिए एक सुरक्षित कोने में सिमटकर उन्हें तसल्ली मिल जाएगी। यहूदियों की एक राष्ट्रीय आवास की मांग के साथ सहानुभूति रखी जा सकती है क्योंकि वे सारी दुनिया में बिखरे पड़े हैं और कहीं के भी अनुशासन में वे अहम पार्ट अदा नहीं कर सकते लेकिन हिन्दुस्तान के मुसलमानों की हालत तो बिल्कुल दूसरी है।

उनकी संख्या लगभग 9 करोड़ है और हिन्दुस्तान की जिंदगी में उनकी तादाद और उनकी खूबियां इतनी अहम हैं कि अनुशासन और नीति के सभी सवालों पर बखूबी और पुरअसर तरीकों से अपना प्रभाव डाल सकते हैं। कुदरत ने कुछ इलाकों में उनको केन्द्रित कर उनकी मदद भी की है। ऐसी हालत में पाकिस्तान की कोई ताकत नहीं रह जाती। मुसलमान की हैसियत से कम से कम मैं तो पूरे मुल्क को अपना समझने का, इसकी सियासी और माली जिंदगी के फैसले में हिस्सा लेने का हक नहीं छोड़ सकता। मुझे तो जो हमारा बपौती हक है, उसे छोड़ना और उसके एक टुकड़े से तसल्ली करना कायरता का पक्का सबूत मालूम होता है। ‘

मौलाना ने एक फार्मूला तैयार किया तथा उसे कांग्रेस की वर्किंग कमेटी से मनवा भी लिया। इसमें पाकिस्तान की येाजना की सारी अच्छी बातें तो थीं किंतु उसकी खराबियों से बचा गया था। विशेषकर जनसंख्या की अदला-बदली से। आजाद के बहुत से हिन्दू साथियों ने तो नहीं लेकिन आजाद ने महसूस किया था कि मुसलमानों का एक बड़ा डर यह था कि यदि पूरे हिन्दुस्तान को आजादी मिली तो केन्द्र का हिन्दू-प्रधान-शासन अल्पसंख्यक-मुसलमानों पर दवाब डालेगा, दखल देगा, बंदरघुड़की देगा, आर्थिक दृष्टि से सतायेगा और राजनीतिक तौर पर कुचल देगा।

इस डर को दूर करने के लिए मौलाना की योजना थी कि दोनों पक्ष ऐसा हल मान लें जिसमें मुसलमानों के बहुमत वाले प्रदेश भीतरी मामलों में अपने विकास के लिए स्वतंत्र हों लेकिन साथ ही साथ जिन मामलों में पूरे देश का सवाल उठता हो, केन्द्र पर अपना प्रभाव डाल सकें।

मौलाना ने लिखा है- ‘हिन्दुस्तान की हालत ऐसी है कि केन्द्रीभूत और एकात्मक सरकार स्थापित करने का हर प्रयास असफल होकर ही रहेगा। इसी तरह हिन्दुस्तान को दो टुकड़ों में बांटने की कोशिश का भी वही परिणाम होगा। इस सवाल के सभी पहलुओं पर गौर करने क बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि इसका सिर्फ एक ही हल हो सकता है जो कांग्रेस फार्मूले में मौजूद है जिसमें प्रदेश और देश दोनों के विकास की संभावनाएं मौजूद हैं।

……. मैं उन लोगों में हूँ जो साम्प्रदायिक दंगों और कड़वाहटों के इस अध्याय को हिन्दुस्तान के जीवन में कुछ दिनों का दौर समझते हैं। मेरा पक्का विश्वास है कि जब हिन्दुस्तान अपने भाग्य की बागडोर स्वयं संभालेगा, तो यह खतरा समाप्त हो जाएगा।

मुझे ग्लैडस्टोन का एक कथन याद आता है- आदमी के मन से पानी का भय दूर करना है तो उस आदमी को पानी में फैंक दो। उसी तरह हिन्दुस्तान अपनी जिम्मेदारी स्वयं उठा ले और अपना कार्य संभालने लगे तभी डर और संदेह का यह वातावरण पूरी तरह दूर होगा। जब हिन्दुस्तान अपना ऐतिहासिक लक्ष्य प्राप्त कर लेगा तो साम्प्रदायिक संदेह और विरोध का वर्तमान अध्याय भुला दिया जाएगा और आधुनिक जीवन की समस्याओं का वह आधुनिक ढंग से सामना करेगा।

भेद तो तब भी रहेंगे ही किंतु साम्प्रदायिक न होकर आर्थिक। राजनीतिक पार्टियों के बीच विरोध भी रहेगा किंतु वह धार्मिक न होकर आर्थिक और राजनीतिक होगा। भविष्य में गठबंधन और साझेदारी सम्प्रदाय के आधार पर नहीं, वर्ग के आधार पर होंगी और उसी तरह नीतियां निर्धारित होंगी। यदि यह दलील दी जाए कि यह सिर्फ मेरा विश्वास है जिसे भविष्य की घटनाएं गलत साबित कर देंगी तो मुझे यह कहना है कि नौ करोड़ मुसलमानों को कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता और अपने भवितव्य को बचाने के लिए वे काफी ताकतवर हैं।’

इस प्रकार मौलाना कभी नहीं चाहते थे कि मुसलमानों का अलग देश बने। वे चाहते थे कि मुसलमान अपना भविष्य भारत में देखें। मौलाना द्वारा किए जा रहे विरोध के बावजूद कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों तेजी से पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे थे। अंतर केवल इतना था कि कांग्रेस एक कमजोर पाकिस्तान के निर्माण की तरफ बढ़ रही थी ताकि उसे बनने से पहले ही नष्ट किया जा सके जबकि मुस्लिम लीग एक मजबूत पाकिस्तान तलाश रही थी, एक ऐसा पाकिस्तान जो युगों तक कायम रहे, भारत का प्रतिद्वंद्वी बनकर रहे और भारत का प्रत्येक मुसलमान उस पाकिस्तान का नागरिक हो।

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