रोमवासियों का गणराज्य से मोहभंग
कार्थेज के पतन के बाद पराजित देशों से गुलाम पकड़ने का काम तेज हो गया। गुलामों के विशाल झुण्ड पानी के जहाजों में भर-भर कर रोम पहुँचाए जाने लगे। इन्हें रोम के धनी जमींदार खरीदकर अपने खेतों में काम पर लगा देते थे।
इस प्रकार रोम के धनी और भी धनी हो गए जबकि रोम का जन-साधारण अब भी वहीं खड़ा था। उसकी जेबें खाली थीं, मन उदास थे और मस्तिष्क में रोमन गणराज्य के प्रति विरक्ति तथा घृणा का भाव था। सीनेट उसे तनिक भी नहीं सुहाती थी और कौंसिल से उसका विश्वास उठ गया था। सीनेट के चुनावों में होने वाली रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार भी अब जन-सामान्य की आंखों से छिपे नहीं रहे थे।
ग्लेडियेटरों से कमाई
रोम की सेनाएं अफ्रीकी तटों से हब्शियों को पकड़कर लाती थीं जिन्हें गुलामों के रूप में बेच कर रोम गणराज्य को भारी कमाई होती थी। इन्हें खेतों में काम करने से लेकर बड़े-बड़े भवनों के लिए पत्थर ढोने, सड़कों पर गिट्टी कूटने, जंगलों से लकड़ी काटकर लाने, पशु चराने तथा जंगली जानवरों का शिकार करने जैसे भारी-भारी काम सौंपे जाते थे।
कार्थेज के पतन के बाद रोम में गुलामों की इतनी बड़ी संख्या में आवक होने लगी कि उन सभी को काम पर नहीं लगाया जा सकता था। इसलिए उन्हें मनोरंजन करने के काम पर लगा दिया गया। अमीर लोग अपने-अपने गुलामों को हथियार देकर एक दूसरे के सामने खड़ा कर देते और उनके बीच तलवार-बाजी करवाते। इन नकली लड़ाइयों में गुलामों को असली चोट लगती, असली खून बहता और यहाँ तक कि वे असली मृत्यु को प्राप्त कर जाते थे। इन गुलाम योद्धाओं को ग्लेडियेटर कहा जाता था। अपने प्राण बचाने के लिए प्रत्येक योद्धा अंतिम सांस तक लड़ता था। इस कारण ये मुकाबले अत्यंत वीभत्स एवं भयानक होते थे।
इन प्रतिस्पर्द्धाओं को देखने के लिए सैंकड़ों रोमनवासियों की भीड़ जुटती थी। यह भीड़ इन मुकाबलों को देखने के लिए ग्लेडियेटरों के स्वामियों को धन चुकाती थी। धीरे-धीरे रोम में इस खेल को इतनी प्रसिद्धि मिल गई कि यह रोम का प्रमुख खेल बन गया। हाथों में तलवार, भाले एवं गंडासे लिए हुए दोनों ओर के गुलाम, शतरंज के खेल में मरने वाले पैदलों की तरह एक दूसरे के हाथों बेरहमी से मार दिए जाते थे और रोमनवासी उनके चीत्कारों को सुनकर आनंदित होते।
अपनी जान बचाने और प्रतिद्वन्द्वी की जान लेने के लिए ग्लेडियटरों द्वारा की जाने वाली पैंतरे-बाजियां दर्शकों के रोमांच को चरम पर पहुँचा देती थीं। इस प्रकार अब ग्लेडियेटरों की लड़ाई खेल और रोमांच न रहकर व्यवसाय बन गई। बहुत से लोग इस खेल में अपने-अपने ग्लेडियेटरों को उतार कर मालामाल होने लगे। एक तरह से यह मुर्गे और बकरे लड़ाकर कमाई करने जैसा खेल हो गया जिसमें पशु-पक्षियों की जगह इंसान लड़ते थे।
पहले जब गुलामों को पकड़कर रोम लाया जाता था तो वे पेटभर खाना, आश्रय और कपड़े पाकर संतुष्ट हो जाते थे तथा कठोर परिश्रम करने के बावजूद भागने का प्रयास नहीं करते थे किंतु जब उन्हें ग्लेडियेटर बनाया जाने लगा तो वे प्रायः अवसर पाकर जंगलों में भाग जाते। उनमें से बहुत कम को ही वापस पकड़ कर लाना संभव हो पाता था।
इसलिए ग्लेडियेटरों को मजबूत कोठरियों में बंद करके रखा जाने लगा। उन्हें कोठरियों में अच्छा भोजन दिया जाता था ताकि वे हष्ट-पुष्ट रहें तथा खेल के मैदान में जीत प्राप्त करके अपने मालिक की तिजोरी धन से भर सकें। दूसरी ओर जंगलों में भाग जाने वाले ग्लेडियेटर प्रायः जंगली जानवरों का आहार बन जाते।
ग्लेडियेटरों का विद्रोह
एक दिन रोम गणराज्य में उपद्रव आरम्भ हो गए। ये उपद्रव अफ्रीकी तटों से पकड़कर लाए गए गुलामों और ग्लेडियेटरों ने किए थे। सैंकड़ों ग्लेडियेटरों ने ‘स्पार्तक’ नामक एक ग्लेडियेटर के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया। ये लोग बंद कोठरियों के दरवाजों को तोड़कर रोम की सड़कों पर आ गए और रोम के ‘पैट्रिशियन’ अर्थात् धनी-मानी लोगों को मारने लगे।
रोमन सेनाओं ने ग्लेडियेटरों के इस विद्रोह को बड़ी बेरहमी से कुचला। उन्हें ढूंढ-ढूंढकर मारा गया। रोम नगर में ‘एपियन’ नामक सड़क पर छः हजार गुलामों को एक साथ सूली पर चढ़ाया गया जिनमें से अधिकांश ग्लेडियेटर थे।
रोम में गृहयुद्ध
ग्लेडियेटरों के दमन के उपरांत भी रोम में शांति नहीं हुई। राजधानी की सड़कों पर हिंसा और उपद्रव पहले की भांति जारी रहे किंतु इस बार उनकी कमान सीनेट में नामांकन को लेकर लड़ रहे शक्तिशाली धनी जमींदारों के हाथों में थी। रोम का जन-साधारण अब भी शासन के प्रति मन में उदासी और मस्तिष्क में घृणा का भाव लिए अपने घरों में चुपचाप बैठा था।
उसमें सम्भवतः क्रांति करने की क्षमता ही नहीं बची थी। सीनेट में प्रवेश पाने के इच्छुक प्रतिद्वन्द्वियों की सेनाओं के बीच सड़कों पर खूनी संग्राम होने लगे। रोम की शक्ति, शत्रुओं का दमन करने में व्यय न होकर एक दूसरे को मारने में खर्च होने लगी। इस कारण रोमन सेनाओं में बिखराव दिखाई देने लगा और शीघ्र ही उन्हें देश से बाहर के मोर्चों पर पराजय का स्वाद चखना पड़ा जो कि रोमन योद्धाओं के लिए बिल्कुल नई बात थी।
पार्थव में रोम गणराज्य की भारी पराजय
रोम-वासियों की धारणा थी कि शासन-तंत्र चलाने के लिए उन्होंने अपने राज्य में जिस गणराज्य-व्यवस्था की स्थापना की है, वह संसार की समस्त व्यवस्थाओं में सर्वश्रेष्ठ है। इसे कभी कोई पराजित नहीं कर सकता किंतु जिस समय सीनेट में नामांकन को लेकर रोम का धनी-जमींदार वर्ग सड़कों पर एक दूसरे का खून बहा रहा था, रोम की सेनाएं पार्थव नामक देश में बड़ा युद्ध लड़ रही थीं।
ई.पू.53 में पार्थव देश के भीतर हुई ‘कैरे की लड़ाई’ में रोम की सेनाएं बुरी तरह परास्त हो गईं। पार्थव में स्थित रोमन सेना को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया तथा उसके डेरे लूट लिए गए। यह शर्मनाक पराजय रोम जैसे शक्तिशाली गणराज्य के लिए बहुत बड़ा झटका था। इस पराजय के कारण, रोमन वासियों के अजेय होने का भ्रम टूट गया। यह सीनेट के शासन काल की बड़ी घटनाओं में से एक थी तथा इसे गणराज्य की बहुत बड़ी विफलता माना गया।
मिस्र के शासक का रोम पर अधिकार
ईसा के जन्म से लगभग 325 साल पहले मेसीडोनिया के यूनानी सेनापति टॉलेमी सोटेर (प्रथम) ने मिस्र में टॉलेमी राजवंश की स्थापना की। वह मेसीडोनिया के राजा सिकन्दर का सहायक था तथा सिकंदर की मृत्यु के बाद उसने मिस्र में स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया था। तब से उसका वंश मिस्र पर शासन करता रहा था।
रोम की पार्थव पराजय के बाद मिस्र के शासक टॉलेमी (बारहवें) ने रोम पर अधिकार कर लिया। यह पराजय रोमन गणराज्य के लिए बहुत घातक सिद्ध हुई। जिस रोम ने केवल दूसरे देशों पर विजय और शासन करना ही जाना था, अब वही रोम मिस्र द्वारा पददलित होकर उसका उपनिवेश बन गया। रोमन गणपतियों के ऊपर मिस्री गवर्नर आकर बैठ गए।
अतः रोमन गणराज्य में यह धारणा बनने लगी कि गणराज्य व्यवस्था में परस्पर प्रतिस्पर्द्धा कर रहे धनी-जमींदार रोम की रक्षा नहीं कर सकते। बहुत से रोमन यह अनुभव करने लगे थे कि गणराज्य की तुलना में राजतंत्रीय शासन कहीं अधिक अच्छा है जो देश के शत्रुओं के विरुद्ध पूरी शक्ति के साथ लड़ सकता है।