Thursday, April 18, 2024
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अध्याय – 38 – मुगल स्थापत्य कला (ल)

औरंगजेब कालीन स्थापत्य

औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसे यह पसंद नहीं था कि उसके पिता शाहजहाँ तथा तीनों भाई चित्रकला, संगीतकला तथा स्थापत्य में रुचि रखते थे। उसकी दृष्टि में ये सब इस्लाम विरोधी कार्य थे। 

औरंगजेब के निर्माण कार्य: औरंगजेब के शासनकाल में महाराष्ट्र के औरंगाबाद नगर के निकट औरंगजेब की मरहूम बेगम रबिया-उद्-दौरानी उर्फ दिलरास बानो बेगम का मकबरा बनवाया गया। इसे ‘बीबी का मकबरा’ तथा दक्कन का ताज’ भी कहा जाता है। इसमें ताजमहल की नकल करने का असफल प्रयास किया गया किंतु मीनारों में संतुलन न हो पाने के कारण पूरे भवन का सामन्जस्य बिखर गया।

यह एक मामूली ढंग की इमारत है और उसकी सजी हुई मेहराबों तथा अन्य सजावटों में कोई विशेषता नहीं है। मक़बरे का गुम्बद संगमरमर के पत्थर से बना है तथा शेष निर्माण पर सफेद प्लास्टर किया गया है। औरंगजेब ने दिल्ली के लाल किले में एक मस्जिद बनवाई, जो उसकी सादगी का परिचय देती है। इसे मोती मस्जिद भी कहा जाता है। यह मस्जिद उच्च कोटि के संगमरमर से निर्मित की गई है।

औरंगजेब ने लाहौर में भी एक मस्जिद बनवाई जिसे बादशाही मस्जिद कहा जाता है। इसमें गोलाकार बंगाली छत और फूले हुए गुम्बद बनाए गए हैं। मस्जिद का मुख्य भवन एवं मीनारें लाल बलुआ पत्थर से बनाई गई हैं जबकि भवन के ऊपर के गुम्बद तथा मीनारों के ऊपर के बुर्ज सफेद संगमरमर से बनाए गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में यह तीसरे नम्बर की सबसे बड़ी मस्जिद है।

यह लाल पत्थर से बनी मण्डलीय मस्जिदों में अंतिम है। इसके बाद मुगलों ने ऐसी मस्जिद फिर कभी नहीं बनाई। औरंजेब द्वारा निर्मित लाहौर की बादशाही मस्जिद, शाहजहाँ द्वारा दिल्ली में बनवाई गई जामा मस्जिद की अनुकृति पर बनी है किंतु यह दिल्ली की जामा मस्जिद की तुलना में बहुत बड़ी है।

औरंगजेब की दूसरे नम्बर की पुत्री जीनत-उन्निसा ने ई.1707 में दिल्ली के शाहजहाँनाबाद में खैराती दरवाजा के पास जीनत-अल-मस्जिद बनवाई। शाहजहाँ द्वारा निर्मित जामा मस्जिद से साम्य होने से इसे दिल्ली की मिनी जामा-मस्जिद भी कहा जाता है। शाहजहाँ की पुत्री रौशनआरा का निधन ई.1671 में हुआ। उसका मकबरा दिल्ली में बनाया गया।

इस मकबरे के चारों ओर बड़ा उद्यान था जिसका कुछ हिस्सा अब भी बचा हुआ है। लाहौर दुर्ग के आलमगीरी दरवाजे का निर्माण औरंगजेब के काल में ई.1673 करवाया गया। औरंगजेब के धाय-भाई मुजफ्फर हुसैन ने चण्डीगढ़ से 22 किलोमीटर दूर पिंजोर गार्डन बनवाया। यह बाग श्रीनगर के शालीमार बाग की शैली पर बना हुआ है तथा सात सीढ़ीदार क्यारियों (टैरेस-बैड) में लगा हुआ है।

बाग का मुख्य द्वार बाग के सबसे ऊँचे टैरेस में खुलता है। यहाँ पर एक महल बना हुआ है जिसका निर्माण राजस्थानी-मुगल शैली में हुआ है। इसे शीशमहल कहा जाता है। इससे लगता हुआ हवामहल है। दूसरी टैरेस पर रंगमहल है जिसमें मेहराबदार दरवाजे हैं।

औरंगजेब के बाद की मुगल स्थापत्य कला: ई.1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद उत्तरकालीन मुगल बादशाहों के समय में कोई उल्लेखनीय इमारत नहीं बनी। इस काल में केन्द्रीय सत्ता के कमजोर हो जाने के कारण स्थापत्य शैली भी स्थानीय सत्ता की भांति आंचलिक प्रभाव ग्रहण करने लगी क्योंकि भवनों का निर्माण कार्य मुगल शहजादों के हाथों से निकलकर अवध के नवाब तथा अन्य आंचलिक प्रमुखों के हाथों में चला गया था।

कुछ भवन खानदेश और दक्षिण के अन्य भागों में भी बने किंतु वे शाहजहाँ कालीन स्थापत्य का स्तर प्राप्त करने में असफल रहे। डॉ. आशीर्वादीलाल श्रीवास्तव ने लिखा है- ‘अठारहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में जो इमारतें बनीं, वे मुगलकालीन शिल्पकला के डिजाइन का खोखलापन और दीवालियापन ही प्रकट करती हैं।’

ई.1753-54 में दिल्ली में वजीर सफदर जंग का मकबरा बना। इस मकबरे का ऊध्र्व अनुपात (वर्टिकल प्रपोरशन) आवश्यकता से कहीं अधिक है फिर भी इसे मुगल वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना माना जाता है। मकबरे में सफदरजंग और उसकी बेगम की कब्र बनी हुई है। केन्द्रीय भवन में सफ़ेद संगमरमर से निर्मित एक बड़ा गुम्बद है। शेष भवन लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ है।

इसका स्थापत्य हुमायूँ के मकबरे की डिजाइन पर आधारित है। मोती महल, जंगली महल और बादशाह पसंद नाम से पैवेलियन भी बने हुए हैं। चारों ओर पानी की चार नहरें हैं, जो चार इमारतों तक जाती हैं। मुख्य भवन से जुड़ी हुई चार अष्टकोणीय मीनारें हैं।

 दक्षिणी दिल्ली के महरौली क्षेत्र में स्थित ज़फ़र महल मुगल काल का अंतिम ऐतिहासिक भवन है। इसके भीतरी ढांचे का निर्माण मुगल बादशाह अकबर (द्वितीय) ने तथा बाहरी भाग और दरवाजे का निर्माण बहादुरशाह (द्वितीय) ने करवाया। संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर से बनी इस तीन मंजिला इमारत का प्रवेशद्वार 50 फुट ऊँचा और 15 मीटर चैड़ा है।

इस द्वार का निर्माण बहादुर शाह ज़फ़र ने करवाया था। प्रवेश द्वार पर घुमावदार बंगाली गुंबजों और छोटे झरोखों का निर्माण किया गया है। जफर महल के मुख्य दरवाजे की मेहराब के ऊपरी भाग में दोनों तरफ पत्थर के दो कमल लगाए गए हैं।

ब्रिटिश शासनकाल का वास्तु

ब्रिटिश अधिकारियों ने भारत में अनेक विशाल भवन बनाए जिनमें भारतीय एवं मुस्लिम स्थापत्य शैलियों के साथ यूरोपीय स्थापत्य शैलियों का भी समावेश किया। ई.1911 में अंग्रेजों ने नई दिल्ली को राजधानी बनाया। उन्होंने नई दिल्ली में अनेक राजकीय कार्यालयों के भवन, गिरजाघर और ईसाई कब्रिस्तान बनवाए जिनमें यूरोपीय स्थापत्य की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।

कलकत्ता का विक्टोरिया मेमोरियल, बम्बई का चर्चगेट रेलवे स्टेशन भवन, दिल्ली का वायसराय भवन (अब राष्ट्रपति भवन), संसद भवन अंग्रेजों की ही देन हैं। अंग्रेजों ने बम्बई में गेट वे आॅफ इण्डिया एवं दिल्ली में इण्डिया गेट का निर्माण करवाया।

अंग्रेजों के शासन काल में मंदिर-वास्तु भी नवीन स्वरूप के साथ विकसित हुआ। दिल्ली का लक्ष्मीनारायण मंदिर, बनारस के हिंदू विश्वविद्यालय के भवन, वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी का भारत माता मंदिर बीसवीं शती के मंदिर-वास्तु की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं।

कुशीनगर में बने निर्वाण बिहार, बुद्ध मंदिर और सरकारी विश्रामगृह में बौद्ध कला को पुनर्जीवन मिला है। दिल्ली में लक्ष्मीनारायण मंदिर के साथ भी एक बुद्ध मंदिर है। इस काल में राजाओं के महलों और विद्यालय भवनों ने भी वास्तु-कला को नवीन स्वरूप प्रदान किया तथा हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम एवं ईसाई स्थापत्य पद्धतियों के मेल से भारतीय स्थापत्य कला पूर्ण रूप से नवीन स्वरूप में ढल गई।

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