बाबरकालीन स्थापत्य
ई.1526 में बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी को परास्त करके दिल्ली एवं आगरा पर अधिकार कर लिया। इसके बाद बाबर ने खानवा, चंदेरी एवं घाघरा के युद्ध जीतकर भारत में मुगल सल्तनत की स्थापना की। वह भारत में केवल चार साल राज्य कर सका। इतने कम समय में वह अपना राज्य भी ढंग से व्यवस्थित नहीं कर सका इसलिए भवन निर्माण के बारे में सोचना भी कठिन था। फिर भी बाबर ने भारत में कुछ विध्वंस एवं कुछ निर्माण किए।
बाबर को तुर्क तथा अफगान सुल्तानों द्वारा दिल्ली और आगरा में निर्मित इमारतें पसंद नहीं आईं। उस काल में ग्वालियर के महल ही हिन्दू कला के सुंदर उदाहरण के रूप में शेष बचे थे। यद्यपि बाबर के अनुसार इनके निर्माण में किसी निश्चित नियम एवं योजना का पालन नहीं हुआ था तथापि वे बाबर को सुंदर एवं हृदयग्राही प्रतीत हुए। बाबर ने अपने लिए ग्वालयिर के अनुकरण पर महल बनवाए।
बाबर ने स्वयं अपनी प्रशंसा करते हुए लिखा है कि ‘मैंने आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर एवं कोल नामक स्थानों पर भवन निर्माण के कार्य में संगतराशों को लगाया।’
सतीश चन्द्र ने लिखा है- ‘बाबर के लिए स्थापत्य का सबसे महत्वपूर्ण पहलू नियम-निष्ठता एवं समरूपता थी जो उसे भारतीय इमारतों में दिखाई नहीं दी। बाबर भारतीय कलाकारों के साथ काम करने के लिए उत्सुक था। इस कार्य हेतु उसने प्रसिद्ध अलबानियाई कलाकार ‘सिनान’ के शिष्यों को बुलाया। बाबर को भारत में स्थापत्य के क्षेत्र में ज्यादा कुछ करने का समय नहीं मिला और उसने जो कुछ बनवाया उसमें से अधिकतर भवन अब नष्ट हो चुके हैं।’
बाबर ने या तो आगरा, सीकरी, बयाना आदि स्थानों पर बड़े निर्माण अर्थात् महल एवं दुर्ग आदि नहीं बनवाकर मण्डप, स्नानागार, कुएं, तालाब एवं फव्वारे जैसी लघु रचनाएं ही बनवाई थीं या फिर बाबर द्वारा निर्मित इमारतें मजबूत सिद्ध नहीं हुईं। क्योंकि वर्तमान में पानीपत के काबुली बाग की विशाल मस्जिद एवं रूहेलखण्ड में संभल की जामा मस्जिद को छोड़कर, बाबर द्वारा निर्मित कोई भी इमारत उपलब्ध नहीं है। या तो वे बनी ही नहीं थीं या फिर वे समस्त इमारतें खराब गुणवत्ता के कारण नष्ट हो चुकी हैं।
यद्यपि पानीपत के काबुली बाग की मस्जिद एवं रूहेलखण्ड की मस्जिद पर्याप्त विशाल रचनाएं हैं तथापि उनमें शिल्प, स्थापत्य एवं वास्तु का कोई सौंदर्य दिखाई नहीं देता। इन दोनों भवनों के बारे में स्वयं बाबर ने स्वीकार किया है कि इनकी शैली पूरी तरह भारतीय थी। यहाँ भारतीय शैली से तात्पर्य मुगलों के पूर्ववर्ती दिल्ली सल्तनत-काल की पठान शैली से है। बाबर को भारत में समरकंद जैसी इमारतें बना सकने योग्य कारीगर उपलब्ध नहीं हुए। न बाबर के पास इतना धन एवं इतना समय था कि वह इमारतों का निर्माण करवा सके।
बाबर के शिया सेनापति मीर बाकी ने अयोध्या में भगवान राम के ‘जन्मस्थानम्’ मंदिर को तोड़कर, उसी सामग्री से वहीं एक ढांचा खड़ा किया जिसे मुगल रिकॉर्ड्स में ‘मस्जिद-जन्मस्थानम्’ कहा गया। मीर बाकी ने इस ढांचे पर दो शिलालेख लगवाए। इन शिलालेखों में बाबर के नाम का उल्लेख होने के कारण इस ढांचे को जन-साधारण की भाषा में ‘बाबरी-मस्जिद’ कहा जाने लगा।
इस ढांचे को वर्ष 1992 में एक जन-आंदोलन में ढहा दिया गया। ई.1528 में बाबर ने आगरा में आरामबाग था का निर्माण करवाया। यह भारत का सबसे पुराना मुग़ल उद्यान है। इस उद्यान में विभिन्न प्रकार की ज्यामितीय रचनाएं बनाई गई हैं। यह बाग ऊँची चाहरदिवारी से घिरा है जिसके कोने की बुर्जियों के ऊपर स्तम्भयुक्त मंडप हैं। नदी के किनारे दो-दो मंजिले भवनों के बीच में एक ऊँचा पत्थर का चबूतरा है।
जहाँगीर ने इस बाग की संरचनाओं में कुछ परिवर्तन किए। ब्रिटिश शासनकाल में भी कुछ नव-निर्माण करवाए गए। इस स्मारक के उत्तरी-पूर्वी किनारे पर एक और चबूतरा है जहाँ से हम्माम के लिए रास्ता है। हम्माम की छत मेहराबदार है। नदी से पानी निकालकर एक चबूतरे से बहते हुए चौड़े नहरों, कुंडों एवं झरनों के रास्ते दूसरे चबूतरे तक लाया जाता था।
बाबर ने आगरा के लोदी किले में जामा मस्जिद बनवाई। वह राजपूताने की सीमा पर ऐसे भवन बनवाना चाहता था जो ठण्डे हों। इसलिए उसके आदेश से आगरा, सीकरी, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर तथा अन्य नगरों में कुछ भवनों का निर्माण किया गया जो अब शेष नहीं बचे हैं। धौलपुर नगर के बाहर स्थित कमलताल के निकट बाबरकालीन भवनों के ध्वंसावशेष देखे जा सकते हैं। जब बाबर खानवा के युद्ध के लिए धौलपुर पहुँचा था तब यह कमलताल मौजूद था।
हुमायूँ कालीन स्थापत्य
बाबर के पुत्र नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ ने ई.1533 में दिल्ली में यमुना के किनारे दीनपनाह नामक नवीन नगर का निर्माण आरम्भ करवाया। यह नगर ठीक उसी स्थान पर निर्मित किया गया जिस स्थान पर पाण्डवों की राजधानी इन्द्रप्रस्थ स्थित थी। इस परिसर से मौर्य एवं गुप्तकालीन मुद्राएं, मूर्तियाँ एवं बर्तन आदि मिले हैं तथा भगवान शिव का एक प्राचीन मंदिर भी मिला है जिसे कुंती का मंदिर कहा जाता है।
दीनपनाह नामक शहर में हुमायूँ ने अपने लिए कुछ महलों का निर्माण करवाया। इन महलों के निर्माण में स्थापत्य-सौंदर्य के स्थान पर भवनों की मजबूती पर अधिक ध्यान दिया गया। जब ई.1540 में शेरशाह सूरी ने हुमायूँ का राज्य भंग कर दिया तब शेरशाह ने दीनपनाह को नष्ट करके उसके स्थान पर एक नवीन दुर्ग का निर्माण करवाया जिसे अब दिल्ली का पुराना किला कहते हैं।
दीनपनाह के भीतर शेरमण्डल नामक एक भवन है। इसका निर्माण हुमायूँ ने अपने लिए पुस्तकालय के रूप में करवाया। शेरशाह सूरी कि समय में यह शेरमण्डल कहलाने लगा। यह अष्टकोणीय एवं दो मंजिला भवन है जो एक कम ऊँचाई के चबूतरे पर टावर की आकृति में खड़ा किया गया है। इसके निर्माण में लाल बलुआ पत्थर काम में लिया गया है।
हुमायूँ ने आगरा में एक मस्जिद बनवाई थी जिसके भग्नावशेष ही शेष हैं। इसकी मीनारें भी ध्वस्त प्रायः हैं जिसके कारण इसकी स्थापत्य सम्बन्धी विशेषताओं को समझा नहीं जा सकता। हिसार के फतेहाबाद कस्बे में भी हुमायूँ ने एक मस्जिद बनवाई जिसे हुमायूँ मस्जिद कहा जाता है। हुमायूँ ने यह मस्जिद दिल्ली के सुल्तान फिरोजशाह तुगक द्वारा निर्मित लाट के निकट बनवाई।
मस्जिद में लम्बा चौक है। इस मस्जिद के पश्चिम में लाखौरी ईंटों से बना हुआ एक पर्दा है जिस पर एक मेहराब बनी हुई है। इस पर एक शिलालेख लगा हुआ है जिसमें बादशाह हूमायूँ की प्रशंसा की गई है। यह मस्जिद ई.1529 में बननी शुरु हुई थी किंतु हुमायूँ के भारत से चले जाने के कारण अधूरी छूट गई। ई.1555 में जब हुमायूँ लौट कर आया तब इसका निर्माण पूरा करवाया गया।