मुगल बादशाह का हरम अकबर के समय से ही मुगल शहजादियों से भरने लगा था क्योंकि अकबर ने शहजादियों के विवाह करने की परम्परा बंद कर दी थी। इस नितांत अमानवीय परम्परा का एक खास कारण था।
अकबर की सात बहनें थीं, बक्शीबानू बेगम, अकीका सुल्ताना बेगम, अमीना बानू बेगम, बख्त उन्निसा बेगम, सकीना बानू बेगम, जहान सुल्ताना बेगम तथा फख्र उन्निसा बेगम। इन सातों के पति मिर्जा कहलाते थे और ये सातों मिर्जा स्वयं को शहंशाह अकबर के बराबर समझते थे।
वे अकबर के साथ न केवल उद्दण्डता पूर्वक व्यवहार करते थे अपितु समय मिलते ही अकबर की सल्तनत उखाड़कर अपनी सल्तनत कायम करने के लिए बगावत करते थे। अकबर अपनी बहिनों के लिहाज के कारण अपने बहनोइयों को पकड़कर न तो मार ही पाता था और न उन्हें कैद कर पाता था।
अंत में तंग आकर जब तक अकबर ने अपने बागी बहनोइयों को मार नहीं डाला, तब तक उनके द्वारा की जाने वाली बगावत समाप्त नहीं हुई। इस कारण अकबर ने नियम बना दिया कि भविष्य में मुगल शहजादियों के विवाह नहीं किए जाएंगे।
इसी नियम पर चलते हुए अकबर ने अपनी चारों पुत्रियों आराम बानू बेगम, खानम सुल्तान बेगम, शकर उसनिसा बेगम तथा मेहरुन्निसा बेगम के विवाह नहीं किए थे।
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अकबर के पुत्र जहाँगीर ने भी अपनी तीनों शहजादियों माजियार बेहरूज, बहार बानू बेगम तथा निठार बेगम की शादियां नहीं कीं। फिर भी जहाँगीर के पुत्र शाहजहाँ को अपने राज्यारोहण से पहले अपनी सौतेली बहिन लाडली बेगम के पति से निबटना पड़ा था।
लाडली बेगम का किस्सा इस प्रकार से है-
जहाँगीर ने अपनी प्रेयसी नूरजहाँ के पति शेरअफगन को मारकर नूरजहाँ से विवाह किया था। शेरअफगन से नूरजहाँ की एक बेटी थी जिसे लाडली बेगम कहा जाता था। जब नूरजहाँ को बंगाल से आगरा लाया गया तो लाडली बेगम भी उसके साथ जहाँगीर के हरम में चली आई थी तथा उसका लालन-पालन भी शहजादियों की तरह हुआ था।
जब लाडली बेगम जवान हुई तो नूरजहाँ ने लाडली बेगम का विवाह अपने पति जहाँगीर की एक अन्य बेगम के पेट से जन्मे पुत्र शहरयार से कर दिया।
जब जहाँगीर बीमार पड़ा तो शाहजहाँ जो कि उन दिनों खुर्रम के नाम से जाना जाता था, शहरयार को मारकर ही बादशाह बन सका था। हालांकि शहरयार को तो खुर्रम के हाथों इसलिए भी मरना ही था क्योंकि वह खुर्रम का सौतेला भाई भी था तथा शाहजहाँ जानता था कि उसे अपने अठारह चाचाओं और भाइयों को मारे बिना मुगलों का तख्त हासिल नहीं होने वाला था।
इसलिए शाहजहाँ ने अपने दादा अकबर द्वारा शहजादियों का विवाह न करने के सम्बन्ध में बनाए गए नियम को अपने समय में भी सख्ती से लागू कर रखा था और अपनी चारों शहजादियों में से किसी का विवाह नहीं किया था।
इस नियम की पालना करने से बादशाह को जंवाइयों की बगावत की संभावना से और भावी बादशाह को बहनोइयों की बगावत की समस्या से तो छुटकारा मिल गया था किंतु एक नई समस्या पैदा हो गई थी।
अब शहजादियाँ जीवन भर बादशाह के हरम का हिस्सा बनकर रहतीं थीं और वे भावी बादशाह के लिए होने वाले उत्तराधिकार के युद्ध में खुलकर भाग लेती थीं। शाहजहाँ का हरम भी इस खतरनाक समस्या से संक्रमित था। उसकी चारों शहजादियों भी अब जवान हो गई थीं। और उन्होंने भी अपने भाइयों के साथ मिलकर मुगलिया राजनीति के खूनी खेल में भाग लेना आरम्भ कर दिया था।
चारों शहजादियों ने एक-एक भाई का दामन पकड़ लिया था। जहांआरा ने दारा शिकोह को, रोशनआरा ने औरंगज़ेब को, गौहर आरा ने मुराद को और पुरहुनार बेगम ने शाहशुजा को बादशाह बनाने के लिए राजनीतिक शतरंज पर षड़यंत्रों की खूनी गोटियां बिछानी आरम्भ कर दीं थीं।
चारों शहजादियाँ अपनी पसंद के भाई को तख्ते ताउस पर बैठाकर कोहिनूर हीरे तथा दिल्ली के लाल किले का स्वामी बनाने का ख्वाब देखा करती थीं। इस प्रकार अकबर द्वारा बनाई गई नीति के कारण मुगलों को बहनोइयों और जवांइयों की समस्याओं से तो मुक्ति मिल गई थी किंतु अब मुगल बादशाह बहनों और बेटियों के षड़यंत्रों से घिर गए थे।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता