Saturday, July 27, 2024
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मुगल बादशाहों के हरम

मुगल बादशाहों के हरम हजारों औरतों से आबाद रहते थे। इन औरतों में शाही बेगमें, राजमाताएँ, शहजादियाँ, बांदियाँ, लौण्डियाँ, वेश्याएँ, नृत्यांगनाएँ आदि शामिल होती थीं।

जब बादशाह अहमदशाह बहादुर सिकंदराबाद के मैदान में परास्त होकर से दिल्ली भाग गया तब उसके हरम की आठ हजार औरतें सिकंदराबाद में ही छूट गईं। एक बादशाह के हरम में इतनी औरतों का होना विचित्र बात लगती है किंतु उस काल में भारत के मुगल बादशाहों के हरम पूरी दुनिया में अपने बड़े आकार के लिए चर्चित थे।

‘हरम’ अरबी भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है- ‘छिपा हुआ स्थान।’ मुगल बादशाहों, शहजादों, अमीरों तथा प्रांतीय सूबेदारों आदि राजपुरुषों की महिलाओं के निवास के लिए बादशाह के मुख्य किले के भीतर हरम का विशाल भवन बनाया जाता था। यह किले के भीतर स्थित मुख्य महलों के साथ ही निर्मित किया जाता था किंतु इसमें बादशाह तथा शहजादों को छोड़कर अन्य पुरुषों का प्रवेश वर्जित होता था।

मुगल बादशाह के शाही हरम में कई हजार स्त्रियां होती थीं जिनमें बादशाह की माता, विमाता, पत्नी, बहिन, पुत्री आदि महिला सम्बन्धियों के साथ-साथ दासियों, स्त्री-सैनिकों एवं ख्वाजासरों अर्थात् हिंजड़ों के रहने के कक्ष होते थे। बादशाह की चहेती वेश्याओं, नृत्यांगनाओं एवं उपपत्नियों को भी हरम में स्थान मिलता था। मुगलों के हरम में बादशाह के 16 वर्ष तक के पुत्र एवं पौत्र भी रह सकते थे।

पूरे आलेख के लिए देखें यह वी-ब्लॉग-

भारत में दो प्रथम मुगल बादशाहों बाबर एवं हुमायूँ के हरम अपेक्षाकृत छोटे थे जबकि अकबर, जहांगीर, शाहजहाँ एवं औरंगजेब के हरम बहुत विशाल थे। भारत में मुगल हरम का वास्तविक स्वरूप अकबर के समय से शुरू होता है, जहांगीर के समय में अपने चरम पर पहुंचता है तथा औरंगजेब की मृत्यु के साथ ही अपनी पहचान खोने लगता है। क्योंकि इसके बाद के मुगल बादशाह कमजोर हो चुके थे तथा मुगलिया सल्तनत का आकार भी सिकुड़ गया था। इस काल में मुगल हरम रंगरलियों का अड्डा बन गया था।

मुगल काल में अनेक स्थानों पर हरम थे। मुख्य शाही हरम आगरा, दिल्ली, फतेहपुर सीकरी और लाहौर में थे। जहाँ पर बादशाह और उसके वजीर, प्रांतीय सूबेदार आदि निवास करते थे। अहमदाबाद, बुरहानपुर, दौलताबाद, मान्डू तथा श्रीनगर में भी मुगल हरम स्थापित किए गए थे। 

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शाही हरम में औरतों की संख्या का पता समकालीन लेखकों की पुस्तकों से लगता है। अकबर का दरबारी अमीर अबुल फजल लिखता है कि अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थी परन्तु इससे पहले के दो बादशाहों के समय यह संख्या 300 और चार सौ से अधिक ज्ञात नहीं होती। अबुल फजल के अनुसार राजपूत शासक मानसिंह की हरम में भी 1500 महिलाएं थीं। फ्रैसिस मांजरेट के अनुसार राजनीतिक सन्धियों के लिए किए गए विवाहों से अकबर की 300 पत्नियाँ थीं।

अबुल फजल ने लिखा है कि हर बेगम के लिए अलग कक्ष होता था। आगरा और फतेहपुर सीकरी के महलों में तीन सौ कक्ष नहीं हैं। अतः या तो यह बात सही नहीं है कि अकबर की तीन सौ पत्नियां थीं अथवा यह बात सही नहीं है कि प्रत्येक पत्नी के लिए शाही हरम में एक अलग कक्ष था। अंग्रेज यात्री हॉकिंस ने जहांगीर की पत्नियों की संख्या भी 300 बताई है जबकि कोरियत ने जहांगीर की पत्नियों की संख्या 1000 बताई है। वह लिखता है कि इनमें नूरमहल प्रमुख थी। जहांगीर के आधुनिक जीवनीकार बेनी प्रसाद ने 300 के आंकड़े को भयावह माना है। बेनी प्रसाद के अनुसार जहांगीर की पत्नियों एवं रखैलों की संख्या 300 रही होगी।

जहांगीर कालीन अंग्रेज यात्री सर टॉमस रो ने जहांगीर के हरम में महिलाओं की संख्या 3000 बताई है जिसमें बादशाह के परिवार की महिलाओं के अलावा रखैल, हिंजड़े एवं दासियाँ भी शामिल थी। इटैलियन यात्री निकोलो मनूची ने जहांगीर की पत्नियों की संख्या 2 हजार बताई है। शाहजहाँ की विवाहिता पत्नियों की संख्या चार थी। फिर भी उसकी उप-पत्नियों और रखैलों की संख्या अत्यधिक थी। औरंगजेब के समय भी हरम में औरतों की संख्या कम ही थी। 

शाही मुगल हरम के संचालन के लिए मजूबत प्रशासनिक व्यवस्था थी जिसमें अनेक महिला कर्मचारी नियुक्त थीं। प्रत्येक पद की कर्मचारी का वेतन निश्चित था जो कि 2 रुपए से लेकर 51 रुपए प्रतिमाह था। ये कर्मचारी एक दारोगा के अधीन काम करते थे जिसे 1028 रुपए से लेकर 1610 रुपए प्रतिमाह मिलते थे। बादशाह हरम में भोजन एवं शयन के लिए जाता था। इसलिए हरम को कड़े सुरक्षा घेरे में रखा जाता था जिसके चलते शाही हरम में कोई परिन्दा भी पर नहीं मार सकता था।

अबुल फजल ने अकबर के शासनकाल में हरम की सुरक्षा व्यवस्था का वर्णन करते हुए लिखा है- ‘यद्यपि हरम में पांच हजार से अधिक महिलाएं थीं किंतु अकबर ने प्रत्येक को एक अलग महल दे रखा था, ये महल कई कक्षों में बंटे थे और प्रत्येक कक्ष एक पवित्र महिला की देख-रेख के अधीन था।’

हरम के अन्दर विश्वसनीय महिला सुरक्षा कर्मियों की तैनाती होती थी तथा हरम के बाहर किन्नरों की टुकड़ी तैनात रहती थी सबसे बाहरी घेरे में विश्वासपात्र राजपूतों का समूह पहरेदारी करता था। उनके आगे प्रवेश-द्वारों के द्वारपाल होते थे। हरम की दीवारों के चारों ओर अमीर और अहदी, एकल सिपाही और अन्य सैनिक टुकड़ी गश्त लगाती थी।

हरम के सभी आगंतुक, बेगमों या अमीरों की पत्नियों या अन्य पवित्र महिलाओं को प्रवेश द्वार पर सूचित करना आवश्यक होता था। हरम में आने वाली किसी भी महत्वपूर्ण महिला को द्वार पर अपनी अगवानी करवाने की इच्छा व्यक्त करनी पड़ती थी और अगवानी करने वाली महिला की स्वीकृति के बाद ही उसे एक निर्धारित समय के लिए अन्दर जाने की अनुमति दी जाती थी।

उच्च-स्तरीय महिलाओं के लिए यह अवधि पूरे माह की भी हो सकती थी। इन सब के अतिरिक्त अकबर स्वयं भी हरम पर निगरानी रखता था। शाहजहाँ के काल में भारत आए इटैलियन यात्री मनूची ने भी हरम की सुरक्षा व्यवस्था का लगभग यही विवरण प्रस्तुत किया है।

औरंगजेब के समय महलदार का पद बहुत प्रभावशाली हो गया था। औरंगजेब के समय में लिखी गई पुस्तक अहकाम-ए-आलमगिरी के अनुसार महलदार अर्थात् हरम की अधीक्षक नूर-अल-निसा ने शहंशाह के तीसरे शहजादे मुहम्मद आजम को अहमदाबाद स्थित शाही बाग में प्रवेश देने से मना कर दिया था क्योंकि शहजादे ने उसे अपने साथ चलने से रोक दिया था। इससे नाराज होकर शहजादे आजम ने उस महिला महलदार को ही वहाँ से बाहर निकाल दिया।

महिला महलदार ने औरंगजेब से शहजादे के व्यवहार की शिकायत की। इस पर औरंगजेब ने उस महिला अधिकारी को सही ठहराया और अपने पुत्र को सजा दी। जिस प्रकार महलदार महल में प्रवेश करने वालों की व्यवस्था देखती थी उसी प्रकार बेग तथा दरोगा हरम के भीतर की व्यवस्था करते थे।

यह बात समझ से परे है कि इतनी कड़ी सुरक्षा में रहने वाले हरम की आठ हजार महिलाओं को बादशाह अहमदशाह सिकंदराबाद के युद्ध क्षेत्र में बने सैन्य शिविर में लेकर क्यों गया था!

-डॉ. मोहनलाल गुप्ता

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